जौनपुर ज़िले में, गन्ना, सरसों और मिर्च, सबसे अधिक उगाई जाने वाली, नकदी फ़सलों में से कुछ हैं। नकदी फ़सल, जिसे ‘लाभ फ़सल’ भी कहा जाता है, व्यापारिक कृषि फ़सल होती है। इन्हें लाभ अर्थात, बेचने के लिए उगाया जाता है। ऐसी फ़सलों को आमतौर पर, गैर–कृषि व्यापारियों या कंपनियों द्वारा खरीदा जाता है। गन्ना, कपास, जूट, तंबाकू और तिलहन, भारत में सबसे अधिक उगाई जाने वाली, नकदी फ़सलों में से कुछ हैं। तो आइए, आज नकदी फ़सलों के बारे में जानें, कि, वे खाद्य फ़सलों से कैसे भिन्न हैं और वे क्यों महत्वपूर्ण हैं? इसके बाद, हम भारत की कुछ सबसे लोकप्रिय नकदी फ़सलों के बारे में बात करेंगे। फिर, हम चर्चा करेंगे कि, क्या चावल और गेहूं जैसी खाद्य फ़सलों के बजाय, तंबाकू उगाना अच्छा है? अंत में, हम, नकदी फ़सलों के कृषि से, जैव विविधता पर पड़ने वाले, नकारात्मक प्रभावों का पता लगाएंगे।
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पैसा कमाने के इरादे से उगाई जाने वाली नकदी फ़सलों का, या तो सीधे उपभोग किया जाता है, या विनिर्माण उद्योग द्वारा कच्चे माल के रूप में, इस्तेमाल होता है। ऐसी फ़सलें, व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य होने के कारण, कृषि परिवारों को राजस्व उत्पन्न करने में, मदद करती हैं। इन फ़सलों में, कपास, चाय, कॉफ़ी, कोको, मसाले आदि शामिल हैं।
दरअसल, नकदी फ़सल, खाद्य फसलों से भिन्न होती हैं। खाद्य फ़सलें, मानव के घरेलू या देशज उपभोग के इरादे से उगाई जाने वाली, फ़सलें होती हैं। इसलिए, किसान उतना ही उगाते हैं, जिससे उनकी व्यक्तिगत ज़रूरतें पूरी होती हैं। फल, सब्ज़ियां, अनाज, कंद, एवं फलियां आम खाद्य फ़सलें हैं। ऐसी फ़सलों की खेती में, आम तौर पर, कोई व्यावसायिक पहलू शामिल नहीं होता है।
भारत जैसे विकासशील देशों में, नकदी फ़सलों की खेती, किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता और समाज के लिए, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है।
उनके महत्व को निम्नलिखित पहलुओं में समझा जा सकता है:
•किसान: नकदी फ़सल की खेती से, किसानों को अधिक मुनाफ़ा कमाने में मदद मिलती है, जिससे, उनके जीवन स्तर में सुधार होता है। यह कृषि और कृषि-आधारित क्षेत्रों में रोज़गार के अधिक अवसर पैदा करने में भी मदद करता है, जिससे, समग्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। साथ ही, यह कृषि, नवाचार के लिए, प्रोत्साहन प्रदान करती है, एवं कृषि निवेश और ग्रामीण विकास के लिए पूंजी बढ़ाती है।
•खाद्य सुरक्षा: चूंकि, ऐसी फ़सलों की खेती, अधिकतम पैदावार के साथ-साथ, उपज की गुणवत्ता पर केंद्रित होती है, इसलिए, यह वैश्विक खाद्य सुरक्षा प्राप्त करने की दिशा में, एक महत्वपूर्ण कदम है।
•पर्यावरण: नकदी फ़सल खेती का भविष्य, टिकाऊ कृषि गहनता की अवधारणा पर आधारित है। इसका उद्देश्य, पर्यावरण की सुरक्षा के साथ, कृषि उत्पादन में वृद्धि करना है। इसमें उर्वरकों की सूक्ष्म खुराक, अंतर-फ़सल, आनुवंशिक फ़सल सुधार, आदि तकनीकों का उपयोग करके मिट्टी की उर्वरता, जैव विविधता और अन्य पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को संरक्षित करना शामिल है। साथ ही, पर्यावरणीय पदचिह्न को कम करना, दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है।
नकदी फ़सलें उगाने के आर्थिक लाभ:
नकदी फ़सलें, देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में सहायक होती हैं। विकासशील देश, अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए, अक्सर ही, इस पद्धति का उपयोग करते हैं। ऐसी फ़सलें, दूसरे देशों में निर्यात की जाती हैं। इन फ़सलों का उपयोग, उद्योगों में किया जाता है, और इनके व्यापक लाभ हैं। यदि, उस फ़सल की मांग अधिक है, तो इससे उसकी कीमत बढ़ जाती है। इससे, उत्पादक देश को लाभ पहुंचता है।
भारत की नकदी फसलें:
1.) गन्ना: गन्ना, भारत की एक प्रमुख नकदी फ़सल है। इसकी खेती, मुख्य रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में होती है। 2021 के वित्तीय वर्ष में, भारत ने प्रति हेक्टेयर, लगभग 82 मेट्रिक टन गन्ने का उत्पादन किया था। जबकि, वित्त वर्ष 2022 में, हमारे देश ने, 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का चीनी निर्यात भी किया है।
2.) जूट: पश्चिम बंगाल, बिहार और असम जैसे राज्य, शीर्ष जूट उत्पादकों में से कुछ हैं। इस फ़सल का उपयोग, विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे कागज़, पर्यावरण-अनुकूल वस्तुएं, बोरियां और यहां तक कि, फ़र्नीचर बनाने के लिए किया जाता है। वित्त वर्ष 2022 में, भारत ने करीब, 1080 मीट्रिक टन जूट के सामान का उत्पादन किया था।
3.) कपास: भारत में, कपास, 6 दशलक्ष से अधिक किसानों की आजीविका का समर्थन करता है। पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्य, कपास की खेती करने वाले शीर्ष राज्य हैं। 2020 में, देश में, 36.5 दशलक्ष कपास गठरियों का उत्पादन किया गया। साथ ही, वर्ष 2020-2021 में, 6.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कपास निर्यात किया गया था।
4.) चाय: भारतीय चाय भी, एक नकदी फ़सल है! जनवरी से अप्रैल 2022 के दौरान, हमारे देश ने 65 मिलियन किलोग्राम चाय का निर्यात किया था । इसका मूल्य, 215 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। असम, दार्जिलिंग और नीलगिरी, भारत में प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र हैं। दुनिया में, भारत, चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
5.) तिलहन: तिलहन के मामले में, भारत, सोयाबीन, रेपसीड, सरसों, मूंगफली, अरंडी के बीज और तिल के उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है। 2022 में, भारत ने 37 मिलियन मेट्रिक टन से अधिक, तिलहन का उत्पादन किया था, और इस संख्या में सोयाबीन की हिस्सेदारी 13 मिलियन मेट्रिक टन थी। गुजरात, मूंगफली उत्पादन के लिए, और राजस्थान सरसों और रेपसीड के लिए जाना जाता है।
6.) तंबाकू: तंबाकू भी, भारत के लिए, एक नकदी फ़सल है। फ़्लू क्योर्ड वर्जिनिया (Flue Cured Virginia) तंबाकू, हाल ही में खबरों में था, क्योंकि, आंध्र प्रदेश की नीलामी में, इसकी रिकॉर्ड कीमत, 179.19 रूपए प्रति किलोग्राम थी। 2022 के वित्तीय वर्ष में, भारत ने, 353 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के तंबाकू का निर्यात किया था। आंध्र प्रदेश के अलावा, कर्नाटक भी, इस नकदी फ़सल के लिए जाना जाता है।
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आज, दुनिया के 79 देशों में, 349 मिलियन लोग, गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। इनमें से कई लोग, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हैं, जिनमें, अफ़्रीकी महाद्वीप के 30 से अधिक देश भी शामिल हैं। इनमें से कई देश, स्वस्थ भोजन के बजाय, तंबाकू उगाने के लिए उपजाऊ भूमि के बड़े क्षेत्रों का उपयोग करते हैं। तंबाकू उत्पादक देशों को, अक्सर ही, इसकी खेती के प्रतिकूल स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों के कारण, नकारात्मक आर्थिक प्रभाव का सामना करना पड़ता है। कई मामलों में, तंबाकू निर्यात से अर्जित, विदेशी मुद्रा का उपयोग, भोजन आयात करने के लिए किया जाता है। यह फ़सल उगाने से, किसानों और कृषि श्रमिकों का स्वास्थ्य खराब होता है। साथ ही, इससे जल स्रोतों, जंगलों, पौधों और पशु प्रजातियों जैसे बहुमूल्य संसाधनों पर अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय क्षति होती है।
नकदी फ़सल खेती के नकारात्मक प्रभाव:
1.) कीटों को नियंत्रित करने और पैदावार बढ़ाने के लिए, नकदी फ़सल खेती में, रासायनिक उर्वरकों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह पारिस्थितिकी तंत्र, प्रदूषण और मिट्टी की उर्वरता की कमी में योगदान देता है, जिससे मरुस्थलीकरण होता है।
2.) भूमि के भूखंडों को, आग से साफ़ करने से, जंगल की आग लग सकती है। अनियंत्रित छोड़ दिए जाने पर, यह आग, संरक्षित क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती है।
3.) जनसंख्या वृद्धि के कारण, उच्च मांग एवं घटती मिट्टी की उर्वरता, किसानों को, अपनी कृषि भूमि का विस्तार करने के लिए, प्रेरित कर रही है। इससे परती अवधि की लंबाई में कमी आ रही है, जो जैव विविधता के लिए फ़ायदेमंद होती है।
4.) यह घटना, कई पारिस्थितिक तंत्रों पर भी दबाव डालती है। भूमि की सफ़ाई के माध्यम से, नए क्षेत्रों का खुलना, वन आवरण में कमी और कई प्रजातियों के आवासों के विखंडन के लिए ज़िम्मेदार है।
5.) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जुड़ी बाधाओं के साथ मिलकर, ये प्रभाव, पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के क्षरण में और योगदान देंगे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4npr9f4b
https://tinyurl.com/y8xfj7fe
https://tinyurl.com/msc6bmw3
https://tinyurl.com/89zhjcmf
https://tinyurl.com/5bbmcfvt
चित्र संदर्भ
1. गन्ने के किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (peakpx)
2. खेत में गन्ना किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सरसों के खेत को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. खेत में कीटनाशकों का छिड़काव करती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)