यदि आप एकजुटता की शक्ति को समझना चाहते हैं, तो आपको 10वीं से 12वीं शताब्दी तक मध्य और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों पर शासन करने वाले कलचुरी राजवंश के बारे में ज़रूर जानना चाहिए। इन शासकों ने विभिन्न क्षेत्रों को एक राजवंश के तहत एकीकृत किया और ऐतिहासिक संदर्भ में नए-नए कीर्तिमान गढ़े। चलिए इस राजवंश की उपलब्धियों एवं शासकों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
कलचुरी राजवंश राजाओं का एक समूह था, जिन्होंने 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था।
कलचुरी राजवंश में दो राज्य शामिल हैं:
1. चेदि साम्राज्य, जिसने मध्य भारत पर शासन किया, जिसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, मालवा और महाराष्ट्र राज्य शामिल थे।
2. हैहय साम्राज्य जिसने दक्षिण भारत, कर्नाटक राज्य पर शासन किया।
"कलचुरी" नाम एक पुरानी भारतीय भाषा के दो शब्दों से आया है:
- "काली" का अर्थ है "लंबी मूंछें"
- "चुरी" का अर्थ है "तेज़ चाकू"
चेदि राजाओं को "दहलास के राजा" भी कहा जाता था। उनकी राजधानी त्रिपुरा थी, जो आधुनिक शहर जबलपुर से 6 किलोमीटर दूर स्थित थी।
सबसे महत्वपूर्ण कलचुरी राजाओं में से एक गंगेयदेव थे। उन्होंने अपने शासन के दौरान चेदि साम्राज्य को उत्तरी भारत में सबसे शक्तिशाली बनाने की कोशिश की।
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कलचुरी राजवंश को भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जिसने 200 से अधिक वर्षों तक देश के बड़े क्षेत्रों पर शासन किया। उनके राजाओं ने अपने द्वारा शासित क्षेत्र पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।
कलचुरियों का मुख्य क्षेत्र चेदि क्षेत्र था, जिसे दहला-मंडला के नाम से भी जाना जाता था। उनकी राजधानी त्रिपुरी थी, जिसे अब तेवर कहा जाता है और यह मध्य प्रदेश राज्य के जबलपुर शहर के पास है। जबलपुर के बारे में ऐसा माना जाता है कि इस शहर का नाम ऋषि जाबालि नामक एक पौराणिक विभूति के नाम पर पड़ा है। पुरातत्वविदों को शहर में प्राचीन सम्राट अशोक के समय के अवशेष भी मिले हैं। 9वीं और 10वीं शताब्दी के बीच जबलपुर प्रसिद्ध त्रिपुरी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। हालांकि 875 ई. में, कलचुरी राजवंश ने जबलपुर पर कब्ज़ा कर लिया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। उन्होंने कई वर्षों तक शहर पर शासन किया। जबलपुर में एक पत्थर के बक्से में कुछ लिखावट वाली प्लेटें मिली हैं। खास तौर पर पहली प्लेट पर 10वीं और 17वीं पंक्तियों के बीच, कुछ अक्षर समय के साथ खराब हो गए हैं। लेकिन दूसरी प्लेट पर लिखावट अभी भी अच्छी स्थिति में है। ये प्लेटें अब नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय में रखी गई हैं।
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इनमे की गई लिखावट नागरी अक्षरों में है और भाषा संस्कृत है। इन शिलालेखों का उद्देश्य भगवान शिव के लिए एक मंदिर (कीर्तिश्वर) के निर्माण से जुड़ी जानकारी को संरक्षित करना है। शिलालेख में उल्लिखित तिथि वर्ष 926 है, जो कलचुरी युग को संदर्भित करती है। यह शिलालेख हमें बताता है कि कीर्तिश्वर मंदिर कलचुरी युग के दौरान बनाया गया था।
कलचुरी राजवंश की उत्पत्ति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है हालांकि एक सिद्धांत उन्हें महिष्मती के कलचुरियों से जोड़ता है। 10वीं शताब्दी तक, त्रिपुरी के कलचुरी बहुत शक्तिशाली हो गए थे। उन्होंने अपने पड़ोसियों, जैसे कि गुर्जर-प्रतिहार, चंदेल और परमारों पर हमला करके और उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा करके अपनी शक्ति और साम्राज्य को कई गुना बढ़ा लिया था। उनके राष्ट्रकूटों और कल्याणी के चालुक्यों के साथ वैवाहिक संबंध भी थे।
1030 के दशक में, कलचुरी राजा गंगेयदेव, अपनी पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर कई लड़ाइयाँ जीतकर शक्तिशाली सम्राट बन गए। उनके पुत्र लक्ष्मीकर्ण ने 1041 से 1073 ई. तक शासन किया। लक्ष्मीकर्ण युद्ध में इतने सफल रहे कि उन्होनें "चक्रवर्ती" की उपाधि धारण कर ली।" उन्होनें कुछ समय के लिए परमार और चंदेल साम्राज्यों के कुछ हिस्सों पर भी नियंत्रण किया। हालांकि लक्ष्मीकर्ण के बाद, कलचुरी राजवंश का पतन शुरू हो गया। उन्होंने अपने उत्तरी क्षेत्रों पर गहड़वाल नामक एक अन्य समूह के हाथों नियंत्रण खो दिया।
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अंतिम ज्ञात कलचुरी शासक त्रैलोक्यमल्ला थे, जिन्होंने संभवतः 1212 ई. तक शासन किया, लेकिन कोई भी यह सटीक तौर पर नहीं कह सकता कि उनका शासन कब समाप्त हुआ। 13वीं शताब्दी में, पुरानी कलचुरी भूमि परमारों, चंदेलों और अंततः दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में आ गई।
कलचुरी राजवंश ने कई वर्षों तक मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। उनके कुछ सबसे महत्वपूर्ण शासक थे:
कोक्कल-I
- वह पहले शक्तिशाली कलचुरी राजा थे।
- वह गुर्जर-प्रतिहार शासकों के साथ सहयोगी बन गए।
- उनका नाम रतनपुरा शिलालेख में उल्लेखित है।
- उनके एक बेटे ने रत्नपुरा कलचुरी शाखा की शुरुआत की |
शंकरगण-III
- वह लगभग 970 ई. में राजा बने।
- वह अपने राज्य का विस्तार करना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने कई युद्ध लड़े।
- उन्होंने गुर्जर-प्रतिहार राजा विजयपाल को हराया, लेकिन वह खजुराहो के चंदेलों से हार गए और युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई।
- उनके बाद, युवराज देव-II और कोक्कल-II राजा बने
गंगेय-देव (1015-1041 ई.)
- शुरुआत में, वह परमार राजा भोज के सेवक थे।
- बाद में वह पूर्व और उत्तर में युद्ध जीतने के बाद एक स्वतंत्र शासक बन गए।
- पूर्व में, उन्होनें उत्कल साम्राज्य पर हमला किया और उनके राजा शुभकार द्वितीय और दक्षिण कोसल के ययातिकोहराया।
- उत्तर में, उन्होंने सबसे पहले जेजाक-भुक्ति के चंदेलों को हराया, जो ग़ज़नवी आक्रमणों से कमज़ोर हो गए थे।
- बाद में उन्हें चंदेल राजा विजयपाल ने हराया |
लक्ष्मी कर्ण (1041-1073 ई.)
- उन्हें सबसे शक्तिशाली और लोकप्रिय कलचुरी शासक माना जाता है।
- उन्होंने एक महान सैन्य नेता के रूप में अपने राज्य का विस्तार करने के लिए कई युद्ध जीते।
- अपनी विजयों के कारण उन्हें "हिंद का नेपोलियन" भी कहा जाता था।
- अपने सफल अभियानों के बाद उन्होंने चक्रवर्ती की उपाधि धारण की।
- पूर्व में, उन्होंने अंग और वंगा राज्यों (अब बंगाल) पर आक्रमण किया।
- उन्होंने पाल राजाओं द्वारा शासित गौड़ क्षेत्र पर भी हमला किया।
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इन सभी शासकों पर आक्रमण करके कलचुरी राजवंश ने कई वर्षों तक शासन किया।
संदर्भ
https://tinyurl.com/25dpkkv6
https://tinyurl.com/2ddhzzpg
https://tinyurl.com/2bfcrxov
https://tinyurl.com/26jo7ny8
चित्र संदर्भ
1. कलचुरी राजवंश के सिक्कों एवं प्रभाव क्षेत्र को दर्शाते मानचित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. कलचुरी सामंत राजा, कलहशिला के सिक्के को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कलचुरी राजाओं में से एक, गंगेयदेव, के सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कलचुरी साम्राज्य के शाही प्रतीक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कलचुरी साम्राज्य के दौरान निमित 12वीं शताब्दी पातालेश्वर मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)