Post Viewership from Post Date to 07-Mar-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2405 193 2598

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

बहुभाषीय संचार के लिए रेडियो की शुरुआत कब हुई; जानें भारत का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन

मेरठ

 05-02-2024 09:41 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

मानव जीवन के विकास में संचार की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही है। समय के साथ-साथ संचार के विभिन्न साधन लगातार विकसित हुए हैं। कबूतर वाहकों और दूतों से लेकर टेलीग्राफ, रेडियो और अब इंटरनेट तक, संचार के साधनों ने एक लंबा सफर तय किया है। उपर्युक्त सभी साधनों में रेडियो ने संचार के एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में इस क्षेत्र में क्रांति ला दी। रेडियो आज की दुनिया में संचार के सबसे भरोसेमंद रूपों में से एक है। रेडियो पर आप अपने शहर से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, मनोरंजन से संबंधित कार्यक्रमों के विषय में सुन सकते हैं एवं देश और दुनिया की भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह हमें देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से जोड़ता है। प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ-साथ आज इसका रूप भी बदल गया है। इंटरनेट के इस नए युग में, रेडियो ने खुद को बदलती प्रौद्योगिकी के साथ विकसित एवं एकीकृत किया है जिसके कारण यह आज भी संचार के सबसे पसंदीदा रूपों में से एक है। 'रेडियो ने अपना वर्तमान रूप कैसे प्राप्त किया', आइये जानते हैं इसके इतिहास के विषय में। इसके साथ ही यह भी जानते हैं कि भारत में रेडियो की शुरुआत कब हुई, भारत का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन कौन सा है, रेडियो ने दुनिया को कैसे बदल दिया और अब इंटरनेट ने रेडियो को कैसे बदला?
1890 के दशक में रेडियो या वायरलेस टेलीग्राफ का विचार पहली बार इतालवी आविष्कारक गुग्लिल्मो मार्कोनी (Guglielmo Marconi) द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसे उन्होंने 1895 में एक किलोमीटर से अधिक दूर एक स्रोत पर एक वायरलेस मोर्स कोड (Morse Code) संदेश भेज कर मूर्त रूप प्रदान किया। 1897 में उन्हें रेडियो के लिए आधिकारिक ब्रिटिश पेटेंट (British patent) प्राप्त हुआ जिसे वास्तव में पहली वायरलेस टेलीग्राफ़ प्रणाली (wireless telegraph system) कहा जा सकता है। इधर रूस (Russia) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में भी इसी प्रकार के उपकरण के आविष्कार के प्रयास जारी थे। इसी कड़ी में वर्ष 1900 तक विश्व में चार वायरलेस टेलीग्राफ़ प्रणाली मौजूद थीं। प्रथम विश्व युद्ध से ठीक पहले के वर्षों में, अमेरिकी टेलीफोन और टेलीग्राफ (American Telephone and Telegraph), जनरल इलेक्ट्रिक (General Electric) और वेस्टिंगहाउस (Westinghouse) जैसी कंपनियों के वैज्ञानिक और आविष्कारक, जिनमें रेजिनाल्ड फेसेंडेन (Reginald Fessenden), ली डे फॉरेस्ट (Lee De Forest) और सिरिल एल्वेल (Cyril Elwell) शामिल थे, वायरलेस संचार की क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहे थे ताकि मोर्स कोड में बिंदुओं और डैश के स्थान पर अधिक परिष्कृत संदेश प्रसारित किए जा सकें। 1914 में, कनाडा (Canada) के फेसेंडेन (Fessenden) द्वारा जनरल इलेक्ट्रिक के साथ मिलकर ऐसे अल्टरनेटर बनाने का कार्य किया गया जिसके द्वारा पर्याप्त शक्तिशाली प्रसारण तरंगों के माध्यम से हज़ारों मील की दूरी तक आवाज़ और संगीत को प्रसारित किया जा सकता था। रेडियो को प्रथम विश्व युद्ध से पहले के वर्षों में सैन्य अनुप्रयोगों के लिए विकसित किया गया था, और अमेरिकी नौसेना के पास इसका पेटेंट था।
1919 में, मार्कोनी द्वारा बनाया गया यंत्र जनरल इलेक्ट्रिक ने खरीद लिया, जिसके बाद डेविड सरनॉफ (David Sarnoff) के नेतृत्व में 'रेडियो कॉरपोरेशन ऑफ अमेरिका' (Radio Corporation of America RCA) का गठन हुआ। और इसी के साथ रेडियो का युग शुरू हुआ। समाचार और मनोरंजन कार्यक्रमों को सुनने के लिए लोगों में इसके लिए एक अलग ही दीवानगी थी। जिसके कारण RCA का स्टॉक मूल्य 1928 की शुरुआत में 85 डॉलर से बढ़कर 1929 की गर्मियों तक 500 डॉलर हो गया। व्यापारिक संगठनों एवं सामाजिक संस्थाओं ने भी रेडियो के रूप में नई तकनीक के माध्यम से अपनी सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिया। विश्वविद्यालयों द्वारा रेडियो-आधारित पाठ्यक्रम पेश करना शुरू किया गया। चर्चों ने अपनी सेवाओं का प्रसारण शुरू किया, समाचार पत्रों ने भी रेडियो प्रसारण के साथ गठजोड़ बनाया। धीरे धीरे समाचार एवं शैक्षिक विषय सामग्री के अतिरिक्त रेडियो पर मनोरंजन कार्यक्रम एवं खेलों का भी प्रसारण किया जाने लगा। 1930 के दशक में कार्यक्रमों के ढेरों विकल्पों की एक विशाल श्रृंखला के माध्यम से "रेडियो का स्वर्ण युग" शुरू हुआ और 1939 तक संयुक्त राज्य अमेरिका की लगभग 80 प्रतिशत आबादी के पास रेडियो था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रेडियो जनता तक युद्ध से संबंधित सूचनाएं प्रदान करने का एक प्रमुख साधन बन गया।
अब बात अगर अपने देश की की जाए, तो भारत में रेडियो का पहला प्रसारण ‘ऑल इंडिया रेडियो’ (All India Radio) के अस्तित्व में आने से लगभग 13 वर्ष पहले जून 1923 में ‘रेडियो क्लब ऑफ बॉम्बे’ (Radio Club of Bombay) द्वारा किया गया था। इसके पांच महीने बाद ‘कलकत्ता रेडियो क्लब’ (Calcutta Radio Club) की स्थापना की गई। 23 जुलाई 1927 में ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी’ (Indian Broadcasting Company IBC) की भी शुरुआत हुई, लेकिन तीन साल से भी कम समय में यह बंद हो गई। इसके बाद 1937 में ‘केंद्रीय समाचार संगठन’ (Central News Organisation CNO) की स्थापना की गई। उसी वर्ष ऑल इंडिया रेडियो को संचार विभाग के अंतर्गत कर दिया गया और 4 साल बाद इसे सूचना एवं प्रसारण विभाग के अंतर्गत कर दिया गया। स्वतंत्रता के समय भारत में दिल्ली, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ में छह रेडियो स्टेशन मौजूद थे। जबकि अन्य तीन रेडियो स्टेशन (पेशावर, लाहौर और ढाका) विभाजन के बाद पाकिस्तान में चले गए। उस समय ऑल इंडिया रेडियो की पहुँच केवल 2.5% क्षेत्र और 11% जनसंख्या तक थी। 1956 में ऑल इंडिया रेडियो को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण के लिए 'आकाशवाणी' नाम दिया गया।
तब से लेकर आज तक ऑल इंडिया रेडियो ने इतनी अधिक अभूतपूर्व समृद्धि हासिल की है कि यह दुनिया के सबसे बड़े मीडिया संगठनों में से एक बन गया है। आज आकाशवाणी के कुल 262 रेडियो स्टेशन हैं, जिनकी पहुँच कुल क्षेत्रफल के 92% लोगों तक है। भारत की विविध संस्कृतियों एवं बोलियों के आधार पर ऑल इंडिया रेडियो द्वारा 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण किया जाता है। इसके अलावा देश के विकास के विषय में विदेशी श्रोताओं को सूचित करने और साथ ही भरपूर मनोरंजन प्रदान करने के उद्देश्य से विदेश सेवा प्रभाग से संबंधित कार्यक्रम 11 भारतीय और 16 विदेशी भाषाओं में प्रसारित किए जाते हैं, जिनकी पहुँच 100 से अधिक देशों तक है। इसके अलावा ऑल इंडिया रेडियो के समाचार सेवा प्रभाग द्वारा लगभग 90 भाषाओं/बोलियों में प्रतिदिन 647 बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं। ऑल इंडिया रेडियो द्वारा वर्तमान में 18 FM त्रिविम ध्वनिक चैनल संचालित किए जा रहे हैं, जिन्हें AIR FM रेनबो (AIR FM Rainbow) कहा जाता है। इसके अलावा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई से समग्र समाचार और मनोरंजन कार्यक्रम प्रसारित के लिए चार अन्य चैनल एफएम चैनल एआईआर एफएम गोल्ड (AIR FM Gold) भी प्रसारित किए जाते हैं।
मीडिया के अन्य रूपों की तरह, रेडियो उद्योग में भी डिजिटल विकास हुआ है। पॉडकास्ट, डिजिटल आईपी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (podcasts, digitalized IPs, and social media platforms) के साथ रेडियो अब अधिकांश श्रोताओं के लिए सुलभ हो गया है। रेडियो अब केवल एक श्रव्य प्रसारण प्लेटफॉर्म तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी रेडियो चैनलों अब सोशल मीडिया पर मौजूद हैं और और यह पूरी तरह से डिजिटल हो गए हैं। ‘रेडियो सिटी’ (Radio City) इंटरनेट रेडियो स्टेशन शुरू करने वाला देश का पहला एफएम रेडियो स्टेशन है।
यूट्यूब (YouTube) चैनल पर साक्षात्कार जैसी सामग्री प्रदर्शित करके, विभिन्न डिजिटल प्लेटफार्मों के साथ सहयोग करके और नई उभरती प्रतिभाओं को बढ़ावा देकर रेडियो दिन ब दिन डिजिटलीकरण की ओर कदम बढ़ा रहा है। आज युवा पीढ़ी के बीच इंटरनेट रेडियो की लोकप्रियता बढ़ रही है क्योंकि यह सुविधानुसार संगीत या पॉडकास्ट का सुनने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है। इंटरनेट रेडियो के माध्यम से दूर दराज इलाकों में स्थित श्रोता भी रेडियो का आनंद ले सकते हैं।

संदर्भ
https://shorturl.at/biNQ2
https://shorturl.at/dJMZ6
https://shorturl.at/aFGHW
https://shorturl.at/dlOS4

चित्र संदर्भ
1.खेतों में काम करते समय रेडियो सुनते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. ब्रिटिश डाकघर के इंजीनियरों ने 1897 में गुग्लिल्मो मार्कोनी के वायरलेस टेलीग्राफी (रेडियो) उपकरण का निरीक्षण किया। इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रयुक्त रेडियो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. आकाशवाणी के समाचार सेवा प्रभाग (एनएसडी),के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ऑल इंडिया रेडियो, पुणे के प्रवेश द्वार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
 

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • मेरठ की ऐतिहासिक गंगा नहर प्रणाली, शहर को रौशन और पोषित कर रही है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:18 AM


  • क्यों होती हैं एक ही पौधे में विविध रंगों या पैटर्नों की पत्तियां ?
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:16 AM


  • आइए जानें, स्थलीय ग्रहों एवं इनके और हमारी पृथ्वी के बीच की समानताओं के बारे में
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:34 AM


  • आइए, जानें महासागरों से जुड़े कुछ सबसे बड़े रहस्यों को
    समुद्र

     15-09-2024 09:27 AM


  • हिंदी दिवस विशेष: प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण पर आधारित, ज्ञानी.ए आई है, अत्यंत उपयुक्त
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:21 AM


  • एस आई जैसी मानक प्रणाली के बिना, मेरठ की दुकानों के तराज़ू, किसी काम के नहीं रहते!
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:10 AM


  • वर्षामापी से होता है, मेरठ में होने वाली, 795 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा का मापन
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:25 AM


  • परफ़्यूमों में इस्तेमाल होने वाले हानिकारक रसायन डाल सकते हैं मानव शरीर पर दुष्प्रभाव
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:17 AM


  • मध्यकालीन युग से लेकर आधुनिक युग तक, कैसा रहा भूमि पर फ़सल उगाने का सफ़र ?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:32 AM


  • पेट्रोलियम के महत्वपूर्ण स्रोत हैं नमक के गुंबद
    खनिज

     09-09-2024 09:43 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id