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जब भी आप अपने दैनिक जीवन की कोई भी वस्तु खरीदते हैं तो उसको खरीदने से पहले उसका वज़न अथवा माप अवश्य जांचते हैं। फल व सब्जी खरीदते समय आपने सब्जी एवं फल विक्रेता को अवश्य ही तराजू पर बाट रखते हुए देखा होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि तौलने के लिए इस बाट प्रणाली की शुरुआत कब और कैसे हुई? आइए, भारत में बाट प्रणाली एवं ‘सेर’ प्रणाली की शुरुआत के विषय में जानते हैं, जब मुगलों ने वैदिक काल से चली आ रही रत्ती प्रणाली को हटाकर बाट और सेर प्रणाली की शुरुआत की।
हमारे देश भारत में बाटों या वज़न प्रणाली के मानकीकरण के शुरू होने से पहले रत्ती के बीजों का उपयोग किया जाता था। 'रत्ती' भारत में वजन मापने की सबसे पुरानी इकाइयों में से एक है। रत्ती वास्तव में एक पौधे का बीज है जिसका वजन लगभग मानक माना जाता था। हालांकि अब रत्ती प्रणाली का मानक 0.1215 ग्राम के बराबर निश्चित कर दिया गया है।
भारत में सबसे पहले एक चीनी व्यापारी मा हुआन (Ma Huan) (1413-1451) ने कोचीन शहर में एक मानकीकृत वजन और मुद्रा प्रणाली के प्रयोग के बारे में वर्णन करते हुए लिखा है कि कोचीन में सोने के सिक्के जिन्हें ‘फैनम’ (fanam) या स्थानीय रूप से 'पनाम' (Panams) के नाम से जाने जाते थे। ये उच्च गुणवत्ता के थे और इन्हें चीन में 4 ‘ली’ (li) वजन वाले 15 चांदी के सिक्कों से बदला जा सकता था।
हालांकि भारत में मुगलों के आक्रमण से पहले वजन मापने के तरीके निश्चित नहीं थे। मुगलों ने भारत में रत्ती प्रणाली के स्थान पर बाट प्रणाली की शुरुआत की जो आज के किलोग्राम बाट के समान ही था। हालांकि प्रत्येक प्रांत में इसका अपना एक अलग संस्करण था। जिससे भ्रम की स्थिति पैदा होने पर इसे 'सेर' कहा जाने लगा।
‘सेर’ जिसे ‘सिहर’ भी कहते हैं द्रव्यमान और आयतन की एक पारंपरिक इकाई है। 20वीं सदी के मध्य से पहले एशिया के अधिकांश हिस्से में इसका उपयोग किया जाता था। हालांकि अब इसका उपयोग केवल कुछ देशों जैसे अफगानिस्तान, ईरान और भारत के कुछ हिस्सों में ही किया जाता है। ईरान में यह इकाई भारत में वज़न की तुलना में छोटी इकाई को दर्शाती है। भारत में, सेर का उपयोग ज्यादातर उत्तरी भारत में और दक्षिण में तेलंगाना में भी किया जाता था। आधिकारिक तौर पर, सेर को ‘वज़न और माप मानक अधिनियम, 1956 की संख्या 89' (Standards of Weights and Measures Act (No. 89 of 1956), जिसे 1960 और 1964 में संशोधित किया गया था, द्वारा 1.25 किलोग्राम (2.755778 पॉन्ड) के बराबर निर्धारित किया गया। हालाँकि, भारत में क्षेत्रीय एवं स्थानीय स्तर पर सेर के लिए अलग अलग मान निर्धारित थे। वैश्विक स्तर पर भी सेर के लिए अलग अलग देशों में अलग अलग मान थे, उदाहरण के लिए ओमान, नेपाल और पाकिस्तान में एक सेर लगभग 0.93310 किलोग्राम और अफगानिस्तान में, लगभग 7.066 किलोग्राम के बराबर था।
इसके पश्चात मुगल साम्राज्य (1526-1857) के दौरान केंद्रीय कृषि सुधार लागू किए गए, जिसके तहत तत्कालीन राजस्व मंत्री टोडर मल के निर्देशन में स्थानीय अधिकारियों द्वारा सांख्यिकीय आंकड़े संकलित किए गए। इन सुधारों के एक भाग के रूप में, अकबर (1556-1605) ने अपने साम्राज्य में वज़न और माप प्रणाली में पर्याप्त मानकीकृत नियम लागू किए। इस प्रणाली के तहत भूमि को गज़ और बीघा जैसी इकाइयों में मापा जाने लगा। प्रत्येक गज 24 बराबर भागों में विभाजित होता था और प्रत्येक भाग को तस्सुज कहा जाता था। इसके अलावा भूमि को स्पष्ट रूप से चिन्हित करने लोहे के जोड़ों के साथ मानकीकृत बांस के खंभों का इस्तेमाल किया जाने लगा।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अंग्रेजों ने भारत में अपनी स्वयं की वज़न प्रणाली की शुरुआत की, जो पिछली प्रणालियाँ की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक मानकीकृत थी। इस प्रणाली के तहत अंग्रेजों ने विभिन्न प्रकार के वज़न मानक शुरू किए, जिनमें से एक महत्वपूर्ण वजन मानक था, जिसमे किंग जॉर्ज पंचम (King George V) का प्रतीक अंकित था।
इसी प्रणाली के तहत उन्होंने भारत में पौंड (pound) की शुरुआत की। 1947 में भारत की आजादी के बाद वज़न प्रणाली भी अंग्रेजों से विरासत में मिली और अन्य व्यवस्थाओं की भांति जारी रही। हालांकि1958 में, भारत की आजादी के 11 साल बाद, तत्कालीन भारत सरकार द्वारा एक मानकीकृत वज़न प्रणाली की शुरुआत की गई, जिसके तहत किलोग्राम पर आधारित आधुनिक वज़न प्रणाली अस्तित्व में आई।
संदर्भ
https://rb.gy/o96b3a
https://rb.gy/0m2y07
https://rb.gy/ro35k7
https://rb.gy/e6wop5
चित्र संदर्भ
1. मुग़ल दरबार और बाट इकाई को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare,
eBay)
2. रत्ती के बीजों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. मानक सेर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सम्राट जहाँगीर (शासनकाल 1605-1627) अपने बेटे शाहजहाँ को तराजू पर तौल रहे हैं! को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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