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क्या आप जानते हैं कि हमारे मेरठ के पास स्थित सहारनपुर शहर को हरा सोना यानी ग्रीन गोल्ड (Green Gold) के नाम से जाना जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में बांस की सबसे अधिक खेती इसी शहर में होती है। सहारनपुर के कारीगर कई पीढ़ियों से जटिल और हस्तनिर्मित लकड़ी (handmade wood) के फर्नीचर बना रहे हैं, जिस कारण आज उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है।
ये कारीगर अपने काम के लिए सबसे बेहतरीन गुणवत्ता वाली लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। यहां के फर्नीचर की विशेषता इसकी सूक्ष्म नक्काशी (micro carving), विस्तृत पुष्प रूपांकन (Elaborate Floral Motifs) और बारीक जड़ाई है, जो कारीगरों की निपुणता को प्रदर्शित करती है। यहां के फ़र्निचर की कलाकारी, मुगल और फ़ारसी प्रभावों के स्पर्श के साथ पारंपरिक भारतीय डिज़ाइनों के मिश्रण एवं भव्यता और सुंदरता को भी दर्शाते हैं।
सहारनपुर में विशेष रूप से जटिल जाली के काम पर जोर दिया जाता है। यहां पर निर्मित टेबल, कुर्सियाँ, अलमारियाँ और सजावटी सामान जाली के प्रयोग की इस विशिष्ट शैली को प्रदर्शित करते हैं।
सहारनपुर के कुशल कारीगरों ने बेहतरीन लकड़ी के काम के संदर्भ में शहर की प्रतिष्ठा को कायम रखा है। इस शिल्प के लिए समर्पित परिवारों और समुदायों ने पारंपरिक तकनीकों को संरक्षित किया है और अपने इस हुनर को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पारित करते रहते है। सहारनपुर में उत्पादित फर्नीचर की जटिल शिल्प कौशल और विशिष्ट शैलियाँ दुनिया भर के प्रशंसकों और संग्राहकों को मोहित करती रहती हैं, जो भारत में लकड़ी की कला की शाश्वत सुंदरता और विशेषज्ञता को प्रदर्शित करती हैं। इस शहर की लोकप्रियता का श्रेय, यहाँ के कारीगरों द्वारा प्रयोग की जाने वाली उम्दा किस्म की लकड़ियों को भी दिया जाता है
क्या आप जानते हैं कि सागौन की लकड़ी (Teak Wood) को इसकी मजबूती और अग्नि-प्रतिरोध क्षमता के कारण, भारत में घर या कार्यालय के फर्नीचर निर्माण हेतु सबसे अच्छी लकड़ी माना जाता है। यह देश की सबसे महंगी लकड़ियों में से एक मानी जाती है। पॉलिश करने के बाद सागौन की लकड़ी बहुत ही आकर्षक लगती है। साथ ही इसमें सूखी सड़न होने या सफेद चींटियों के लगने से ख़राब होने का ख़तरा भी नहीं होता है। इसके अलावा यह लकड़ी बहुत अधिक सिकुड़ती भी नहीं है। यह भारत के दक्षिणी और मध्य भागों में पाई जाती है।
सागौन की लकड़ी से बने फर्नीचर न केवल देखने में आकर्षण लगते हैं, बल्कि जब आप इसे छूते हैं तो यह चिकना प्रतीत होते हैं और इसका भूरा रंग, दूसरी किसी भी लकड़ी की तुलना में बहुत बेहतर दिखता है। लकड़ी के उच्च घनत्व के कारण, यह क्षय और सड़न के प्रति भी प्रतिरोधी साबित होती है। इसका मतलब है कि यह लकड़ी लंबे समय तक अच्छी स्थिति में रहती है।
हालांकि सागौन के अलावा भी भारत में फर्नीचर निर्माण हेतु कई बेहतरीन लकड़ियाँ पाई जाती हैं, जिनकी सूची निम्नवत दी गई है:
1. शीशम: शीशम की लकड़ी अपनी कठोरता और लचीलेपन के लिए जानी जाती है। इसमें लचीलापन और कुचले जाने की क्षमता अधिक होती है, जिस कारण यह फर्नीचर बनाने के लिए आदर्श विकल्प बन जाती है। यह लकड़ी भी सबसे खूबसूरत दिखने वाली लकड़ियों में से एक मानी जाती है। इस लकड़ी से कई सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती हैं, जिनमे अलमारियाँ, गणितीय उपकरण और वायलिन (Violin) जैसे संगीत वाद्ययंत्र भी शामिल हैं। शीशम का उपयोग अक्सर बेडरूम और किचन कैबिनेट (Bedroom And Kitchen Cabinet), डाइनिंग रूम सेट (Dining Room Set) और अन्य प्रकार की नक्काशी बनाने के लिए भी किया जाता है। शीशम को कर्नाटक, केरल, ओडिशा और तमिलनाडु में उगाया जाता है।
2. सैटिनवुड (Satinwood): सैटिनवुड एक टिकाऊ और मजबूत लकड़ी होती है जो अपने स्थायित्व और मजबूती के लिए जानी जाती है। इसकी चमकदार फिनिश इसे काफी आकर्षक बनाती है। यह लकड़ी दक्षिणी और मध्य भारत में पाई जाती है। सैटिनवुड, फर्श के लिए बिल्कुल उपयुक्त मानी जाती है और इसे हर दिन साफ करने की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही इस लकड़ी को रखरखाव की भी कम आवश्यकता होती है।
3. साल: साल की लकड़ी मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इसे अपनी तन्य शक्ति और स्थायित्व (Durability) के लिए जाना जाता है, जिस कारण यह फर्श, संगीत वाद्ययंत्र, फर्नीचर, लकड़ी के फ्रेम और लकड़ी के बीम बनाने के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बन जाती है। साल की लकड़ी सफेद चींटियों, कवक और कीड़ों के प्रति भी प्रतिरोधी होती है। इसकी मजबूती और स्थायित्व के कारण इस लकड़ी का उपयोग - फ्रेम और दरवाजे बनाने के लिए किया जाता है।
हालाँकि यदि आप खेती करने और उससे आर्थिक लाभ अर्जित करने के नजरियें से देखें तो आमतौर पर ऐसी लकड़ियाँ अच्छी मानी जाती हैं, जो कि मजबूत होने के साथ-साथ काफी तेज़ी के साथ बढ़ती हैं। इस तरह की लकड़ियों में शामिल हैं:
1. हाइब्रिड चिनार (Hybrid Poplar): यह पेड़ अपनी तीव्र वृद्धि दर और लकड़ी की उच्च उपज के लिए जाना जाता है। यह केवल तीन वर्षों में 40 फीट तक की ऊंचाई तक पहुंच सकता है और आमतौर पर इसका उपयोग पेपर पल्प (Paper Pulp), पैलेट (Pallets) और निर्माण लकड़ी के लिए किया जाता है।
2. नीलगिरी (Eucalyptus): नीलगिरी के पेड़ मूलतः ऑस्ट्रेलिया (Australia) में पाए जाते हैं और अपनी तेज़ वृद्धि दर तथा उच्च घनत्व वाली लकड़ी के लिए लोकप्रिय हैं। इनका उपयोग आमतौर पर फर्श, फर्नीचर और लुगदी की लकड़ी के लिए किया जाता है।
3.पॉलाउनिया (Paulownia): इसे "राजकुमारी वृक्ष (Princess Tree)" के रूप में भी जाना जाता है। पॉलाउनिया मूल रूप से चीन में उगता है और अपनी तीव्र विकास दर तथा हल्की टिकाऊ लकड़ी के लिए लोकप्रिय है। इसका उपयोग आमतौर पर फर्नीचर, निर्माण और संगीत वाद्ययंत्रों के लिए किया जाता है।
4. नॉर्दर्न रेड ओक (Northern Red Oak): यह पेड़ मूलतः उत्तरी अमेरिका में उगता है और अपनी मजबूत, टिकाऊ लकड़ी और तेज़ विकास दर के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर फर्नीचर, फर्श और निर्माण लकड़ी के लिए किया जाता है।
5. ईस्टर्न व्हाइट पाइन (Eastern White Pine): यह पेड़ उत्तरी अमेरिका का मूल निवासी है और अपनी मुलायम, हल्की लकड़ी और तेज़ विकास दर के लिए जाना जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर पैनलिंग (Paneling), इंटीरियर ट्रिम (Interior Trim) और निर्माण लकड़ी के लिए किया जाता है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mrymf7zw
http://tinyurl.com/p39yv6tp
http://tinyurl.com/3z4xsj9d
चित्र संदर्भ
1. भारतीय लकड़ी के कारीगर को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. लकड़ी का काम कर रहे बढ़ई को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
3. सागौन के पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शीशम की लकड़ी पर कलाकारी को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
5. सैटिनवुड की कुर्सी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. साल के पेड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. हाइब्रिड चिनार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. नीलगिरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. पॉलाउनिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
10. ईस्टर्न व्हाइट पाइन को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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