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भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण शहरीकरण और औद्योगीकरण तेज़ी के साथ बढ़ रहा है। ऐसे में कई बार जल निकासी और बड़ी मात्रा में निकलने वाले सीवरेज (Sewerage) को प्रबंधित करना, सरकारों के लिए भी बड़ा सिरदर्द बन जाता है। हालांकि मज़े की बात यह है कि आज से हज़ारों साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के तहत भारत में जल और सीवरेज को इतने बेहतरीन ढंग से प्रबंधित किया जाता था कि उस समय की प्रबंधन प्रणालीयां आज भी न केवल भारत बल्कि दुनियाँ भर के आधुनिक शहर निर्माताओं के लिए प्रेरणा पुंज के रूप में काम करती है।
आधुनिक समय में भारत में तेजी से बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण, जनसंख्या वृद्धि और झुग्गी-झोपड़ियों की आबादी तथा प्रवासन में वृद्धि के कारण शहरी क्षेत्रों में जल निकासी और सीवरेज प्रणाली भारत में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है। हालांकि ऐसा प्रतीत होता है, कि इन संदर्भ में हम अपने स्वर्णिम इतिहास से भी कुछ नहीं सीखें हैं। आपको जानकर आश्चर्य और दुख भी होगा कि 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत के लगभग 48.9% घरों में जल निकासी की सुविधा नहीं थी, जबकि 33% घरों में केवल खुली जल निकासी व्यवस्था थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 (2005-2006) की रिपोर्ट में पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में 52.8% घरों में स्वच्छता में सुधार हुआ है, यानी देश के लगभग 52.8% घरों का फ्लश (Flush) या शौचालय, शौचालय पाइप्ड सीवर (Toilet Piped Sewer) या सेप्टिक (Septic) या अन्य प्रणालियों से जुड़ा हुआ है। हालाँकि, 41% घरों में अभी भी घरेलू परिसर में कोई शौचालय नहीं है, उनमें से 24.2% सार्वजनिक शौचालय पर निर्भर हैं और अन्य 16.8% खुले में शौच करते हैं। इसके अलावा, 28% से अधिक शहरी आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है। बेंगलुरु, कर्नाटक में, प्रत्येक 52 घरों में से केवल आधे में सीवरेज सिस्टम था, जबकि हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में, 124 घरों में से 86 में न तो सीवरेज सिस्टम था और न ही बहता पानी था।
देश की राजधानी दिल्ली को तीन बड़े जल निकासी बेसिनों (नजफगढ़, ट्रांस-यमुना और बारापुला) में विभाजित किया जाता है। शहर की पुरानी जल निकासी प्रणाली अधिकतम 50 मिमी वर्षा को संभाल सकती है। इससे थोड़ा भी अधिक पानी, शहर की प्रणाली पर भारी दबाव डाल देता है, जिसके परिणामस्वरूप मुख्य सड़कों पर बाढ़ आ जाती है और बाद में यातायात जाम हो जाता है।
देश की आर्थिक राजधानी मानी जाने वाली मुंबई की तूफान जल निकासी प्रणाली (Storm Water Drainage System) भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान 1860 में बनाई गई थी। इसे 25 मिमी वर्षा के परिणामस्वरूप पड़ने वाले बहाव को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया था। मुंबई की तूफान से होने वाली जल निकासी प्रणाली लगभग एक सदी पुरानी है और यह 2000 किमी में फैली हुई सतही नालियों और लगभग 400 किमी में भूमिगत नालियों का एक नेटवर्क है। हालाँकि, जल निकासी प्रणाली में कई स्थानों पर भारी गाद भरी हुई है और छिद्रित है, जिससे वर्षा जल को प्रभावी ढंग से निकालना मुश्किल हो जाता है। बृहन्मुंबई तूफान जल निपटान प्रणाली (BRIMSTOWAD) परियोजना 1985 की बाढ़ के बाद 1993 में मुंबई की जल निकासी प्रणाली को दुरुस्त करने के लिए प्रस्तावित की गई थी और इसका उद्देश्य बाढ़ के प्रति शहर की संवेदनशीलता के लिए एक दीर्घकालिक रोड मैप (Road Map) बनाना था। हालांकि 2005 की बाढ़ से मची तबाही के बाद विशेषज्ञों को भी यह समझ में आ गया कि, मुंबई को अभी भी अपनी शहर योजना और बुनियादी ढांचे में सुधार की विशेष आवश्यकता है।
भारत की सबसे पुरानी संयुक्त सीवरेज प्रणाली (Combined Sewerage System) कोलकाता शहर की मानी जाती है। इसे 100% अपवाह के साथ 6.35 मिमी/घंटा वर्षा को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
कोलकाता की तरह बैंगलोर में भी तूफानी जल नालियाँ हैं, जिनका निर्माण कई साल पहले किया गया था। हालाँकि जैसे-जैसे शहर का विकास हुआ है, वैसे-वैसे बारिश के दौरान बरसाती नहरों में पानी का प्रवाह भी बढ़ने लगा है। सड़क के किनारे की नालियों में बैकफ्लो (Backflow) के कारण नालों से सटे निचले इलाकों में अचानक बाढ़ आ जाती है। पंजाब के लुधियाना में, उचित जल निकासी व्यवस्था के अभाव के कारण मानसून में सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढों में बड़ी मात्रा में पानी भर जाता है। ये गड्ढे 50 सेमी से अधिक गहरे और इतने चौड़े हो जाते हैं कि चौपहिया वाहनों के लिए भी बड़ी समस्या पैदा कर देते हैं। खराब जल निकासी व्यवस्था के अलावा, जल जमाव का दूसरा प्रमुख कारण सड़कों का बढ़ता स्तर है।हालाँकि अच्छी खबर यह है कि हाल के वर्षों में विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक वा भारतीय आवास और शहरी विकास निगम से अनुदान या ऋण के माध्यम से मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता और चेन्नई जैसे प्रमुख शहरों में ट्रंक सीवरों (trunk sewers) का पुनर्वास और जीर्णोद्धार शुरू किया गया है। मुंबई और चेन्नई में सड़क और रेल यातायात को बाधित होने से बचाने के लिए सीवर पाइप बिछाने के लिए ट्रेंचलेस प्रौद्योगिकियों (Trenchless Technologies) के सफल अनुप्रयोग का प्रदर्शन किया है। हालाँकि छोटे शहर जिन्हें अंतरराष्ट्रीय फंडिंग नहीं मिल पा रही है, वहाँ पर सुधार उपायों को लागू करना अभी भी मुश्किल हो रहा है। लेकिन सोचने की बात यह है कि आज से हज़ारों साल पहले जब सिंधु घाटी सभ्यता के समय तो “अंतरराष्ट्रीय” शब्द का भी अस्तित्व नहीं था, फिर भी इस सभ्यता के लोगों ने अपने क्षेत्र में ही शानदार जल निकासी और सीवरेज प्रणाली विकसित कर ली थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि सिंधु घाटी सभ्यता, जो लगभग 2500 ईसा पूर्व अस्तित्व में थी, में एक परिष्कृत जल निकासी प्रणाली हुआ करती थी जो शहर के हर निजी घर से जुड़ी हुई थी। लोथल शहर की जल निकासी व्यवस्था और भी जटिल थी। इस शहर में प्रत्येक निजी घर से कचरा एकत्र किया जाता था और उसे शहर के बाहर स्थित एक केंद्रीय नाबदान में फेंका जाता था।
1894 में, महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ III ने वड़ोदरा में एक सुनियोजित जल निकासी प्रणाली शुरू की जिसमें हर 500 मीटर पर वेंट शाफ्ट (Vent Shaft) दिये गये थे। ये शाफ्ट सीवेज से गंदी गैसों को बाहर निकलने देते थे और शहर को गंध-मुक्त रखते थे। हैदराबाद के निज़ाम भी इस व्यवस्था से प्रेरित हुए और उन्होंने भी अपने राज्य में एक भूमिगत जल निकासी प्रणाली का निर्माण किया।
संदर्भ
http://tinyurl.com/5fpap6tm
http://tinyurl.com/2az4kctn
http://tinyurl.com/345efwud
http://tinyurl.com/2rrv2b8t
http://tinyurl.com/bdzucaju
चित्र संदर्भ
1. लोथल में एक पानी के कुएं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मुंबई शहर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अपशिष्ट के बहाव को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. गली में फैली गन्दगी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. तूफान जल निकासी प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
6. संयुक्त सीवरेज प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. भारतीय सड़को पर गड्ढों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
8. सिन्धु घाटी के स्नानागार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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