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ताक़त, बुद्धि और दांव-पेंचों के खेल, “कुश्ती” को आज भी ग्रामीण भारत का एक पसंदीदा खेल माना जाता है। हमारे उत्तर प्रदेश और हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस खेल की लोकप्रियता देखते ही बनती है। क्या बूढ़े-क्या बच्चे, सभी लोग आपको अखाड़ों में दांव पेंच आज़माते और धूल उड़ाते हुए नज़र आ जाएँगे। वास्तव में कुश्ती को “मिट्टी से जुड़ा हुआ खेल” माना जाता है, और पारंपरिक रूप से इसे मिट्टी में ही खेला भी जाता है। लेकिन आधुनिक समय में कुश्ती के कई स्वरूप विकसित हो चुके हैं, और इन विविध रूपों के साथ ही कुश्ती के मंच यानी अखाड़े भी बदल चुके हैं।
परंपरागत रूप से कुश्ती या पहलवानी का अभ्यास और प्रदर्शन “मिट्टी के गड्ढे” के बीच में ही किया जाता है। इन गड्ढों को अखाड़ा कहा जाता है, और एक अखाड़ा कम से कम 20 फीट चौड़ा होता है। आदर्श रूप से, कुश्ती के लिए लाल मिट्टी का उपयोग किया जाता है। पहलवानों के बीच इन अखाड़ों को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इन अखाड़ों को कुश्ती के लिए तैयार करने के लिए, इनकी मिट्टी में कई सामग्रियां मिलाई जाती हैं।
अखाड़ों में डाली जाने वाली मुख्य सामग्रियों में घी,मेवे का तेल/सरसों का तेल, नींबू का रस और अखरोट का तेल आदि शामिल है। पहलवानों को ठंडक की अनुभूति प्रदान करने के लिए अखाड़े की मिट्टी में कपूर मिलाया जाता है। साथ ही कपूर, दर्द और जलन जैसे लक्षणों से राहत देने के लिए भी डाला जाता है। कुश्ती सीखने और खेलने के दौरान कटने, जलने और घावों को कीटाणुरहित करने के लिए मिट्टी में हल्दी भी मिलाई जाती है।
यह शुष्क त्वचा को ठीक करने और घावों को फैलने से रोकने में मदद करती है तथा त्वचा की लोच में भी सुधार करती है। कभी-कभी, अखाड़े की मिट्टी या रेत को चमकदार बनाने के लिए उसमें कलर एजेंट (Color Agent) भी मिलाया जाता है। मामूली घावों के इलाज के लिए नीम की पत्तियों का पाउडर भी मिलाया जाता है। इससे लड़ाई के दौरान अगर कोई पहलवान घायल हो जाता है तो आगे संक्रमण होने की संभावना भी कम हो जाती है। मिट्टी में चंदन पाउडर को भी इसके औषधीय गुणों के लिए मिलाया जाता है। अंत में, जब पानी डाला जाता है, तो मिट्टी लगभग दलदली हो जाती है और इसमें बिल्कुल भी धूल नहीं बनती है। इस प्रकार अखाड़े की मिट्टी में मिलाई जाने वाली प्रत्येक सामग्री, पहलवानों के स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रदर्शन में भी सुधार करती है।
प्रशिक्षण और प्रतियोगिता से पहले इन अखाड़ों से किसी भी प्रकार के कंकड़ या पत्थर को साफ किया जाता है। कुश्ती की खेल भावना का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अभ्यास के दौरान पहलवान स्वयं और अपने विरोधियों पर दो मुट्ठी मिट्टी फेंककर उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं। आख़िर में दंगल के देवता आमतौर पर हनुमान जी और भूदेवी से प्रार्थना की जाती है। इन सभी मान्यताओं और अभ्यासों से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है, कि जिस ज़मीन पर ये पहलवान अभ्यास करते हैं, उसकी मिट्टी उनके किए कितनी पवित्र होती है।
क्या आप जानते हैं कि इंटरनेशनल नेटवर्क ऑफ रेसलिंग रिसर्चर्स (International Network Of Wrestling Researchers (INWR) के आधिकारिक जर्नल "इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रेसलिंग साइंस (International Journal Of Wrestling Science)" में भी मांसपेशियों की ताकत, समन्वय, संतुलन और मांसपेशियों की सहनशक्ति में सुधार के संदर्भ में मिट्टी पर खेली जाने वाली कुश्ती के लाभों का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार मिट्टी की कुश्ती पहलवानों को न केवल उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है, बल्कि उन्हें एक अनूठा अनुभव भी प्रदान करती है।
हालाँकि आधुनिक युग में बदलते समय के साथ ही कुश्ती भी मिट्टी से प्लास्टिक की चटाई या फोम के गद्दों में स्थानांतरित हो गई है। चोटों से बचने के लिए कुश्ती मैट (Wrestling Mat) को ज़रूरी माना जाता है। 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि भारतीय पहलवानों को कुश्ती के दौरान सबसे अधिक चोटें घुटने, चेहरे, कंधे, टखने और गर्दन पर लगती हैं। ये चोटें आम तौर पर खिलाड़ियों के बीच संपर्क, चटाई के संपर्क या मुड़ने वाली गतिविधियों के कारण लगती हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार एक अच्छी कुश्ती मैट में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए:
- मज़बूत फोम: यह झटके को बेहतर ढंग से अवशोषित करने में मदद करता है।
- रोगाणुओं से सुरक्षा: एक अच्छी कुश्ती चटाई की सतह बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री, सबसे आम बैक्टीरिया, यीस्ट (yeast), फफूंद और कवक से रक्षा कर सकती है।
- स्थायित्व और आराम: एक अच्छी कुश्ती चटाई, आरामदायक और टिकाऊ होती है। इसमें तीव्र कुश्ती सत्रों को संभालने के लिए पर्याप्त कुशनिंग या अतिरिक्त पैडिंग (Adequate Cushioning Or Extra Padding) होती है।
आधुनिक समय में कुश्ती खेलने के इन्हीं दो पारंपरिक रूपों को लेकर लोग दो गुटों में बटे हुए नज़र आ रहे हैं। भारत में पारंपरिक मिट्टी कुश्ती और आधुनिक चटाई कुश्ती के बीच बहस जारी है। मिट्टी और मैट, दोनों किस्म की कुश्ती में चोट लगना आम बात है। हालाँकि दोनों शैलियों की अपनी-अपनी खूबियाँ हैं, इसलिए पहलवानों को दोनों में प्रशिक्षण लेने में सक्षम होना चाहिए। सरकार और भारतीय कुश्ती महासंघ भी पहलवानों के लिए मैट की उपलभ्दता और उसपर कोचिंग जैसी अधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए काम कर रहा है। समय के साथ भारत के लिए सदियों पुरानी प्रतिभा को आधुनिक आवश्यकताओं के साथ मिश्रित करना भी महत्वपूर्ण है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/3h2e8cjw
http://tinyurl.com/4uebxu3c
http://tinyurl.com/bdd3tnk6
चित्र संदर्भ
1. अखाड़े और चटाई में खेली जा रही कुश्ती को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare, flickr)
2. अखाड़े की पहलवानी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. युवा पहलवानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मिट्टी में कुश्ती की प्रतियोगिता को संदर्भित करता एक चित्रण (DeviantArt)
5. कुश्ती मैट को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
6. चटाई पर हो रही कुश्ती को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)