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हीर-राँझा और सोहनी-महिवाल की प्रेम कहानियां कई दशकों से भारतीय प्रेमी जोड़ों के लिए एक प्रेरणा श्रोत के रूप में काम कर रही हैं। आज के समय में शायद ही कोई ऐसा युगल होगा जो इन प्रेमी जोड़ों की कहानियों से परिचित न हो। लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि ये सभी अमर प्रेम कहानियां वास्तव में शुरू कहां से हुई थी?
चलिए जानते हैं! आज की पहली कहानी "हीर रांझा", पंजाब की एक प्रसिद्ध दुखद प्रेम कहानी है, जिसे अनेक कवियों द्वारा लिखा गया है। यह कहानी हीर सियाल और धीदो रांझा के बीच प्यार के इर्द-गिर्द घूमती है। इस कहानी का सबसे प्रसिद्ध संस्करण 1766 में वारिस शाह द्वारा लिखा गया था। हालांकि दामोदर गुलाटी (दामोदर दास अरोड़ा) ने यह दावा किया है कि उन्होंने इस कहानी में वर्णित घटनाओं को अपनी आँखों के आगे घटित होते हुए देखा है। उनके द्वारा लिखित संस्करण भी पंजाबी साहित्य में सबसे पहला और सबसे पुराना माना जाता है। उन्होंने अपनी कविता में उल्लेख किया है कि वह झांग से हैं, जहां हीर का घर था। दामोदर गुलाटी, मुगल राजा अकबर के शासनकाल के दौरान झांग में रहते थे। उन्हें मुख्य रूप से "हीर और रांझा" कहानी लिखने के लिए ही जाना जाता है। उन्होंने हीर और रांझा की कहानी संदल बार की बोली में लिखी। इसके बावजूद कहानी में प्रयुक्त भाषा पांच सौ साल बाद आधुनिक माझी बोली से अधिक मिलती जुलती है।
हालांकि नजम हुसैन सैयद ने गुलाटी के काम का विश्लेषण किया और सुझाव दिया कि गुलाटी इस घटना के वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे। 16वीं सदी के कवि शाह हुसैन ने भी इस कहानी को अपनी कविता में शामिल किया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कहानी की उत्पत्ति फारस से हुई है, जबकि अन्य का मानना है कि "हीर" नाम ग्रीक देवी हेरा से प्रेरित था। इस कहानी की उत्पत्ति के बारे में लोगों की अलग-अलग राय हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि हीर और रांझा वास्तविक चरित्र थे जो 15वीं और 16वीं शताब्दी में लोदी राजवंश के दौरान रहते थे। वारिस शाह ने 1766 में अपने उपन्यास के लिए उनकी ही वास्तविक कहानी का इस्तेमाल किया था। दूसरों का मानना है कि यह केवल वारिस शाह द्वारा रची गई एक कहानी थी। वारिस शाह इस कहानी के गहरे अर्थ की बात करते हुए कहते हैं कि यह कहानी इंसानों द्वारा ईश्वर की खोज का प्रतीक है। "हीर-रांझा" दुखद प्रेम कहानियों की किस्सा शैली का हिस्सा है, जिसमें "लैला मजनू" और "ससुई पुन्नहुन" जैसी कहानियां भी शामिल हैं। "हीर रांझा" की कहानी की तुलना अक्सर शेक्सपियर (Shakespeare) के नाटक "रोमियो एंड जूलियट (Romeo and Juliet")" से भी की जाती है क्योंकि दोनों में परिवार के सदस्यों द्वारा प्रेमी जोड़े का विरोध किया गया और दोनों की कहानियां दोनों प्रेमियों की मृत्यु के साथ समाप्त होती हैं।
जैसा कि हमने पढ़ा, हीर-रांझा को पंजाब की चार लोकप्रिय दुखद प्रेम कहानियों में से एक माना जाता है। अन्य तीन कहानियां “मिर्ज़ा साहिबान, सोहनी महिवाल और सस्सी पुन्नुन” हैं। "मिर्जा साहिबान" नामक कहानी को "पीलू" द्वारा लिखा गया था। पीलू, जिन्हें हज़रत पीलू के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध पंजाबी कवि थे जो 1580 से 1675 तक जीवित रहे। पीलू द्वारा लिखी गई कहानी दो प्रेमियों मिर्जा और साहिबान के इर्द-गिर्द घूमती है। वे दोनों झांग नामक जिले के एक कस्बे खेवा में रहते थे। मिर्ज़ा, खरल कबीले के एक स्थानीय मुखिया बंजाल का बेटा था। दूसरी ओर, साहिबान, सियाल नामक दूसरे कबीले के प्रमुख खिवा खान की बेटी थी।कहानी के दोनों युगल एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। हालांकि इन दोनों के माता-पिता इनके प्रेम को स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन फिर भी वे दोनों सब चीज़ों के ऊपर प्यार को चुनते हैं और एक साथ भागने तथा नया जीवन शुरू करने का फैसला करते। इसके बाद साहिबान के कबीले वाले और उसके भाई दोनों के पीछे पड़ जाते हैं। जब वे भाग रहे थे, तब मिर्जा एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुकता है, और उसे नीद आ जाती है। मिर्जा एक बेहतरीन धनुर्धर था, और उसके पास साहिबान के भाइयों का सामना करने के लिए तीर और धनुष भी होता है। लेकिन साहिबान नहीं चाहती थी कि मिर्जा और उसके भाइयों के बीच कोई खून-खराबा हो। इसलिए, वह गहरी नींद में सोये हुए मिर्ज़ा के सभी तीरों को तोड़ देत्ती है, इस उम्मीद में कि वह अपने भाइयों से स्वीकृति के लिए विनती करेगी। लेकिन जब उसके भाई मिर्जा को बिना तीरों के देखते हैं, तो वह उसे वहीँ पर मार देते हैं। इसके बाद मिर्ज़ा की मौत से साहिबान का दिल टूट जाता है, और वह उसी टूटे हुए तीर से अपनी जीवन लीला भी समाप्त कर देती है। पंजाब की चार लोकप्रिय दुखद प्रेम कहानियों में अगली कहानी "सोहनी महिवाल" की है। सोहनी महिवाल या "सुहनी मेहर" सिंध की एक प्रसिद्ध दुखद प्रेम कहानी है। इस कहानी की नायिका सोहनी की एक ऐसे आदमी से शादी हो जाती है, जिसे वह नापसंद करती है। हालांकि वह विवाह के बाद भी अपने प्रेमी महिवाल से मिलने जाती है, जो भैंसे चराता है। हर दिन उसके मार्ग में एक नदी पड़ती है, जिसे वह बहादुरी से मिट्टी के बर्तन का उपयोग करके पार करती है। हालांकि एक रात, उसकी भाभी, उसके मिट्टी के बर्तन को कच्ची मिट्टी से बने बर्तन से बदल देती है। यह घड़ा पानी में घुल जाता है और सोहनी नदी की लहरों में खो जाती है। सोहनी महिवाल की कहानी 10वीं शताब्दी में सुमरा राजवंश काल के दौरान लिखी गई थी। इसे बाद में शाह अब्दुल करीम बुलरी और अंततः शाह जो रिसालो (Shah Jo Risalo) के लेखन में खोजा गया।
पंजाब की चार लोकप्रिय दुखद प्रेम कहानियों में हमारी आज की आखिरी कहानी "सस्सी पुन्नू" की है। "सस्सी पुन्नू" या "ससुई पुन्नहुन" एक लोककथा है जो सिंधी, बालोची और पंजाबी लोककथाओं का हिस्सा है। यह लोककथा बलूचिस्तान में भी लोकप्रिय है। यह कहानी एक प्रेमिका के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसके पति को उसके दुश्मन उससे दूर कर देते हैं। इसके बाद वह अपने पति को खोजने की तलाश में कई चुनौतियों का सामना करती है। इस कहानी का सबसे पहला उल्लेख क़ाज़ी क़दान के ग्रंथों में मिलता है। इसे बाद में शाह अब्दुल करीम की किताब "करीम जो रिसालो (Karim Jo Risalo )" में भी शामिल किया गया। इसके अलावा यह कहानी शाह लतीफ़ की प्रसिद्ध पुस्तक "शाह जो रिसालो (Shah Jo Risalo)" में भी दिखाई देती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3kra4yhc
https://tinyurl.com/bdd69j76
https://tinyurl.com/33e2zh56
https://tinyurl.com/5n73k92z
https://tinyurl.com/bdn52k4u
https://tinyurl.com/5jukjwy5
चित्र संदर्भ
1. हीर-राँझा की प्रेम कहानी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. हीर राँझा फिल्म के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मिर्ज़ा साहिबान फिल्म के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. साहिबान की गोद में मिर्जा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. नदी पार करती सोहनी को दर्शाता एक चित्रण (
PICRYL)
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