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फ्लोरा एन स्टील: ब्रिटिश शासित भारत में एक विपुल लेखिका जो समझती थीं भारत व् भारतीयों को

मेरठ

 30-11-2023 10:36 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

फ्लोरा एन स्टील (Flora Annie Steel), एक उत्कृष्ट लेखिका थीं, जिनके द्वारा लिखित भारत से जुड़े उपन्यास और लघु कहानियाँ 19वीं सदी के अंत में खूब पढ़ी और पसदं की जाती थी। उनकी तुलना अक्सर भारतीय जीवन को दर्शाने वाले एक अन्य प्रसिद्ध लेखक रुडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) से की जाती थी। स्टील के उपन्यास आज भी पढ़े जाते हैं क्योंकि वे भारतीय इतिहास और संस्कृति पर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। वह एक ऐसी लेखिका थीं जो भारत और उसके लोगों को वास्तव में समझती थीं।
फ्लोरा एन वेबस्टर का जन्म 2 अप्रैल, 1847 को इंग्लैंड के सुडबरी (Sudbury, England) में हुआ था। वह एक सरकारी कर्मचारी जॉर्ज वेबस्टर (George Webster) और एक धनी उत्तराधिकारी इसाबेल मैकलम (Isabella Mccallum) की छठी संतान थीं। 1867 में, 20 साल की उम्र में, फ्लोरा ने भारतीय सिविल सेवा के इंजीनियर, हेनरी विलियम स्टील (Henry William Steele) से शादी कर ली। अपनी शादी के कुछ समय बाद, वह 1867 में अपने पति के साथ भारत आ गईं, और अगले 22 साल उन्होंने यहीं बिताए। वह एक ऑटोडिडैक्ट (Autodidact) थीं, जिसका अर्थ है कि उन्होंने अधिकांश ज्ञान खुद ही हासिल किया था। उन्होंने छोटी उम्र में ही पढ़ना-लिखना सीख लिया और अपने पिता के पुस्तकालय से किताबें पढ़ने लगीं। इस प्रारंभिक शिक्षा ने उन्हें भारतीयों की जीवनशैली को समझने और इसे अपनाने के लिए तैयार किया। इसी की वजह से वह कई भारतीय भाषाओं और रीति-रिवाजों को सीखने में सक्षम हो गई।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उनके भीतर भारतीय लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति थी और वे भारतीयों के अधिकारों और शिक्षा की समर्थक मानी जाती थी। उन्होंने भारतीय कला और शिल्प को बढ़ावा देने के लिए रुडयार्ड किपलिंग के पिता जॉन लॉकवुड किपलिंग (John Lockwood Kipling) के साथ भी काम किया था। अपने पति के स्वास्थ्य में गिरावट के बाद, फ्लोरा एन स्टील ने उनकी कुछ पेशेवर जिम्मेदारियाँ भी संभालीं। स्टील भारत में महिलाओं की शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं। उनका मानना था कि महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा नितांत आवश्यक है। उन्होंने पंजाब में महिलाओं के लिए स्कूलों की स्थापना की, जिनमें महिलाओं को साक्षरता, संख्यात्मकता और बुनियादी चिकित्सा ज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। उस समय ऐसा करना कोई आसान काम नहीं था, क्योंकि खुद कई पारंपरिक भारतीय समुदाय ही महिलाओं को शिक्षित करने के पक्ष में नहीं थे। अन्य लेखकों के विपरीत, स्टील ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की आलोचक रही हैं। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की अक्षमता और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। उनका मानना था कि अंग्रेज भारतीयों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे थे। अपनी इस सोच और स्पष्टवादिता के कारण वह ब्रिटिश अधिकारियों की नजर में भी खटकने लगी थी। हालांकि सभी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, स्टील ने कुप्रथाओं के बारे में लिखना और बोलना जारी रखा।
भारत के पंजाब में अपने बाईस वर्षों के प्रवास के दौरान, फ्लोरा एन स्टील ने इस क्षेत्र और इसके लोगों के बारे में व्यापक ज्ञान प्राप्त किया। इस दौरान वह स्कूलों की निरीक्षक बन गईं। इस भूमिका ने उन्हें भारतीयों पुरुषों और महिलाओं दोनों के जीवन को प्रत्यक्ष रूप से देखने की अनुमति दी। उनके अनुभवों ने उन्हें उपन्यास लिखने के लिए प्रेरित किया, जिसमें उन्होंने औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली जटिल और अक्सर विरोधाभासी भूमिकाओं का पता लगाया गया। इन उपन्यासों ने साहित्यिक आलोचकों (विशेषकर उत्तर औपनिवेशिक और लिंग अध्ययन में काम करने वालों का) का ध्यान आकर्षित किया है। हालाँकि ये आलोचक इस बात पर आम सहमति पर नहीं बना पाए कि स्टील के उपन्यास ब्रिटिश साम्राज्यवाद का समर्थन नहीं करते हैं या उसे चुनौती देते हैं। जेनिफर ओत्सुकी (Jennifer Otsuki) जैसे कुछ विद्वानों ने स्टील के उपन्यासों को "उपनिवेशवादी टाइपोलॉजी (Colonialist Typology)" के उदाहरण के रूप में देखा है। स्टील का "ऑन द फेस ऑफ द वॉटर्स (On The Face Of The Waters)" नामक उपन्यास विद्रोह से जुड़े अन्य उपन्यासों से अलग था, क्योंकि इसमें विद्रोह या संघर्ष के दोनों पक्षों (भारतीय और ब्रिटिश) को सहानुभूतिपूर्वक चित्रित करने का प्रयास किया था। उन्होंने विद्रोह की घटनाओं को सनसनीखेज नहीं बनाया, और उन्होंने अंग्रेजों को नायक और भारतीयों को खलनायक के रूप में चित्रित नहीं किया। इसके बजाय, उसने विद्रोह को कई कारणों और दृष्टिकोणों वाली एक जटिल घटना के रूप में दिखाने की कोशिश की। इस उपन्यास को लिखने से पहले स्टील ने व्यापक स्तर पर शोध किया था। उन्होंने कई महीनों तक भारत की यात्रा की और उन लोगों का साक्षात्कार या इंटरव्यू (Interview) लिया जो इस विद्रोह से गुजरे थे। उन्हें सरकारी अधिकारियों द्वारा विद्रोह से संबंधित गोपनीय और अब तक अज्ञात कागजात के बक्सों को देखने की अनुमति भी दी गई थी। स्टील के उपन्यास की सटीकता और संघर्ष के दोनों पक्षों के सहानुभूतिपूर्ण चित्रण के लिए आलोचकों द्वारा भी प्रशंसा की गई।
स्टील के उपन्यास केवल विद्रोह तक ही सीमित नहीं थे। उन्होंने भारतीय जीवन के अन्य पहलुओं, जैसे धर्म, विवाह और सामाजिक रीति-रिवाजों के बारे में भी यथासंभव लिखा। उन्हें भारतीय महिलाओं के जीवन में विशेष रुचि थी और उन्होंने उनके बारे में संवेदनशीलता और समझ के साथ लिखा। यह गुण उन्हें उस समय के ब्रिटिश लेखकों से अलग खड़ा कर देता था। स्टील एक अत्यधिक कुशल और व्यावहारिक महिला थी जो किसी भी बाधा को दूर कर सकती थी, फिर चाहे वह ब्रिटिश या भारतीय कानूनों या रीति-रिवाजों के कारण ही उत्पन्न न हुई हो। हालाँकि, वह भारत के परिदृश्यों और परंपराओं की सुंदरता के प्रति भी बहुत संवेदनशील थीं। व्यावहारिकता और रहस्यवाद का यह संयोजन उनकी आत्मकथा के एक अंश में स्पष्ट होता है: जहां वह अपने जहाज से समुद्री शैवाल देखते हुए, भारत, भारतीयों और यहां आने वाले विदेशिओं के बीच जटिल सम्बन्ध बना देती हैं । वह लिखती हैं: "प्राचीन यात्रियों का मानना था कि समुद्री शैवाल वास्तव में भारत के खजाने की रक्षा करने वाले समुद्री सांपों की एक बेल्ट थी। लेकिन आज हम आधुनिक लोग जानते हैं कि यह सिर्फ एक समुद्री शैवाल है। मुझे यकीन नहीं है कि क्या सही है, लेकिन मैं यह जानती हूं जो लोग समुद्री शैवाल के अलावा कुछ नहीं देखते हैं और भारत की रहस्यमय सुंदरता को नजरअंदाज करते हैं, वे देश के वास्तविक सार से चूक जाएंगे।"

संदर्भ
https://tinyurl.com/ypc6eb44
https://tinyurl.com/mr364j6j
https://tinyurl.com/27usfcv7

चित्र संदर्भ
1. फ्लोरा एन स्टील और एक पारंपरिक भारतीय विवाह के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia, picryl)
2. युवा फ्लोरा एन स्टील को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. वेल्स स्लाइड में महिला मताधिकार आंदोलन को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. पंजाब की कहानियाँ (1894) पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. 1903 में खींची गई फ्लोरा एन स्टील की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)

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