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क्या आप जानते हैं कि, हमारे मानव शरीर के सामान्य शारीरिक कार्यों के लिए, एक संतुलित माइक्रोबायोटा(Microbiota) संरचना आवश्यक है। यहां हम आपको बता दें कि, माइक्रोबायोटा एक विशिष्ट वातावरण में, जीवित सूक्ष्मजीवों का संग्रह होता है। और हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में भी, ऐसे असंख्य जीवाणु मौजूद होते हैं।
हालांकि, वायु प्रदूषक जैसे कई पर्यावरणीय कारक मानवीय माइक्रोबायोटा संरचना को बिगाड़ सकते हैं। गौरतलब है कि, वर्तमान में दुनिया की लगभग 99% आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण से प्रेरित माइक्रोबायोटा डिस्बिओसिस(Microbiotas’ dysbiosis) अर्थात, माइक्रोबायोटा के बीच असंतुलन और इसके संभावित बहु-अंग स्वास्थ्य जोखिमों से संबंधित अध्ययन किए हैं।
मानव शरीर वायरस(Viruses), बैक्टीरिया(Bacteria), आर्किया(Archaea) और प्रोटिस्ट(Protists) सहित खरबों सूक्ष्मजीवों का घर है। आमतौर पर, मानव शरीर इन रोगाणुओं को जन्म से ही बनाए रखता है। हालांकि, कुछ अध्ययनों में, गर्भ के ऊतकों में भी जीवाणुओं की कोशिकाओं का पता चला है। मानव शरीर का सामान्य माइक्रोबायोटा शरीर विज्ञान, शरीर रचना विज्ञान एवं रुग्णता के साथ-साथ, रोगजनक रोगाणुओं के प्रति संवेदनशीलता को भी प्रभावित करता है। हालांकि, ऐसे कई कारक हैं, जो सामान्य माइक्रोबायोटा संरचना को बदल देते हैं, और उन्हें मौकापरस्त रोगजनकों में बदलने में योगदान देते हैं।
हाल ही में किए गए, कुछ अध्ययनों ने सहजीवी माइक्रोबियल डिस्बिओसिस में, वायु प्रदूषण की भूमिका का सुझाव दिया है। यहां तक कि वायु प्रदूषकों के अल्पकालिक संपर्क ने भी माइक्रोबियल परस्पर क्रिया के खिलाफ मजबूत प्रभाव दिखाया है। वायु प्रदूषण तपेदिक, मेनिनजाइटिस(Meningitis) और कोविड–19, जैसे रोगजनकों के संक्रमण को बढ़ा सकता है। साथ ही, वायु प्रदूषण से आंतों में छाले भी हो सकते हैं।
प्रदूषण के संपर्क में आने से, मातृ स्वास्थ्य और नवजात शिशु के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बढ़ सकता है और श्वसन संबंधी बीमारियों, तंत्रिका संबंधी विकारों, संज्ञानात्मक बीमारियों, कैंसर और मधुमेह की संभावना बढ़ सकती है। वायु प्रदूषक श्वसन पथ के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं और रक्तप्रवाह में घुल जाते हैं, जो कोशिकाओं में सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव(Oxidative stress), प्रतिरक्षादमन और उत्परिवर्तन को बढ़ा सकते हैं, श्वसन प्रणाली और अन्य आंतरिक अंगों को प्रभावित कर सकते हैं और अंततः बीमारियों का कारण बन सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण ने लगभग पूरी वैश्विक आबादी को प्रभावित किया है। और, वायु प्रदूषण का अनुपात और जोखिम निम्न-से-मध्यम आय वाले देशों में एवं खासकर एशियाई देशों में सबसे अधिक है।
माइक्रोबायोम गतिशील होते है और हम जिस चीज़ के संपर्क में आते हैं, उसके साथ परस्पर क्रिया करते है। ऐसी जोखिमों को, जिसमें हमारा भोजन भी शामिल है, सूजन आंत्र रोग(Inflammatory bowel disease) को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। इसमें, क्रोहन रोग(Crohn’s disease) और अल्सरेटिव कोलाइटिस(Ulcerative colitis) जैसी स्थितियां शामिल हैं। ये तब होती हैं, जब हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं करती है और शरीर खुद पर ही हमला करना शुरू कर देता है, जिससे आंत में छाले और सूजन हो जाती है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस बड़ी आंत को प्रभावित करता है, जबकि क्रोहन आंत में कहीं भी प्रभावित कर सकता है। ये दोनों स्थितियां हार्मोन(Hormones), पाचन, ऊर्जा स्तर और मानसिक स्वास्थ्य सहित शरीर के लगभग हर हिस्से को प्रभावित कर सकती हैं।
संभवतः पर्यावरण में किसी चीज़ से उत्पन्न जोखिम के कारण आंतों में कुछ बैक्टीरिया के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्य प्रतिक्रिया होती है, इससे भी रोग हो सकते है।
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण इन रोगों की पर्यावरणीय जोखिमों में अधिक आम हैं, तथा अधिक विकसित देशों में सूजन आंत्र रोगों की दर अधिक है। एक विश्लेषण में पाया गया है कि, इन रोगों की सबसे अधिक दरें यूरोप और उत्तरी अमेरिका में थीं, जबकि अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के नव औद्योगीकृत देशों में ऐसे मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा, ये बीमारियां हमारे देश भारत के प्रमुख शहरों जैसे, दिल्ली और मुंबई में होती हैं।
एक तरफ, कैंसर अनुसंधान हेतु अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी(International Agency for Research on Cancer) ने वायु प्रदूषण, विशेष रूप से पीएम 2.5(PM2.5) को कैंसर के एक प्रमुख कारण के रूप में वर्गीकृत किया है। सूक्ष्म कण अर्थात पर्टिकुलेट मैटर(Particulate matter) वायु प्रदूषक है, जो सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्याओं और समय से पहले मृत्यु दर का कारण बनते है। 2021 में, 97% शहरी आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित, स्वास्थ्य-आधारित दिशानिर्देश स्तर से अधिक सूक्ष्म कण पदार्थ की सांद्रता के संपर्क में थी।
वायु प्रदूषण लोगों को विभिन्न तरीकों से प्रभावित करता है। वृद्ध लोग, बच्चे एवं पहले से किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे लोग, वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इसके अलावा, समाज में सबसे वंचित लोगों का स्वास्थ्य अक्सर खराब होता है और उच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा देखभाल तक उनकी पहुंच कम होती है, जिससे ऐसी समस्याओं के प्रति उनकी भेद्यता बढ़ जाती है।
इसी से संबंधित एक मुद्दा पर्टिकुलेट मैटर का है। पर्टिकुलेट मैटर को वायु गुणवत्ता नियामक उद्देश्यों के लिए, को उनके व्यास से परिभाषित किया जाता है। जिनका व्यास 10 माइक्रोन(micron)(PM10) या उससे कम होता है, वे हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं और हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। दूसरी ओर, सूक्ष्म कणीय पदार्थ को ऐसे कणों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिनका व्यास 2.5 माइक्रोन(PM2.5) या उससे कम होता है। ये कण भी सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं।
हृदय या फेफड़ों की लंबी बीमारी वाले वृद्ध वयस्कों, बच्चों और अस्थमा के रोगियों को पीएम10 और पीएम2.5 के संपर्क में आने से, स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव का अनुभव होने की सबसे अधिक संभावना है। इसके अलावा, बच्चों और शिशुओं को पीएम जैसे प्रदूषकों से नुकसान होने की आशंका है, क्योंकि, वे वयस्कों की तुलना में अधिक सांस लेते हैं। इसके अलावा, बच्चें अपनी अपरिपक्व प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण, स्वस्थ वयस्कों की तुलना में पीएम के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3sav4fux
https://tinyurl.com/3f57zv28
https://tinyurl.com/bdh7kr4d
https://tinyurl.com/4yb7jsyu
चित्र संदर्भ
1. सुंदर प्राकृतिक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia, pixels)
2. पेट में बैक्टीरिया को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. धुंए के पास बैठे बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (Imaggeo)
4. जलते हुए सड़क किनारे कूड़े के ढेर से PM2.5 वायु प्रदूषण की माप को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. धुआ छोड़ रही चिमनियों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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