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बाओबाब एक बहुत ही ख़ास वृक्ष होता है, जो पूरे अफ़्रीका में पाया जाता है। इस पेड़ को ताकत और लचीलेपन का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि यह कठोर वातावरण में भी बड़ी ही आसानी से पनप सकता है।
इस पेड़ का हर एक भाग कई मायनों में विशेष होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि “बाओबाब (Baobab) का पेड़, एक पूरे गाँव को जीवित रहने हेतु आश्रय से लेकर भोजन और पानी तक सब कुछ प्रदान कर सकता है।”
बाओबाब के पेड़ अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप (यमन, ओमान) के दक्षिणी सिरे का मूल निवासी है। ये पेड़ आम तौर पर उप-सहारा अफ्रीका के शुष्क, तपते सवाना में पाए जाते हैं। बाओबाब को मंकी-ब्रेड ट्री (Monkey-Bread Tree), और क्रीम ऑफ टार्टर ट्री (Cream Of Tartar Tree) जैसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। बाओबाब का एक और नाम उल्टा पेड़ (Upside-Down Tree) भी है, क्यों कि ये पेड़ ऐसे दिखते हैं, जैसे कि वे उलटे उगे हों और उनकी जड़ें हवा में हों। इस पेड़ की ऐसी संरचना होने के पीछे भी कुछ दिलचस्प किंवदंतियां है। पहली किवदंती के अनुसार जब ईश्वर ने इस पेड़ को बनाया था तो यह पेड़ ईश्वर के पसंदीदा पेड़ों में से एक बन गया था। हालांकि अपनी इसी विशेषता पर इस पेड़ को इतना घमंड हो गया था कि वह हर समय अपने गुणों का ही बखान करता रहता था। एक दिन, ईश्वर स्वयं पृथ्वी पर आए और बाओबाब से कहा कि “उसे अपनी विशेषताओं पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि सभी पेड़ अपने-अपने तरीके से सुंदर हैं।” लेकिन बाओबाब लगातार डींगें हांकता रहा, इसलिए ईश्वर ने उसे उठाया और जमीन में उल्टा कर दिया, जिस कारण इसकी जड़ें ऊपर की ओर आ गई और इसके ऊपर का हिस्सा जमीन में दब गया।
इस पेड़ की संरचना से जुड़ी एक और किवदंती है, जो कहती है कि ईश्वर ने नूह के जहाज़ (Noah's Ark) से उतरने वाले आखिरी जानवर लकड़बग्घे को एक बाओबाब का पौधा दिया और उसने गुस्से में उसे उल्टा फेंक दिया। कुल मिलाकर इन सभी किवदंतियों का सार यही है कि “हमें घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि घमंड हमारे पतन का कारण बन सकता है।” हालांकि भले ही बाओबाब की संरचना देखने में अजीब हो, लेकिन इसकी विशेषताएं और इसके लाभ वाकई में काबिले तारीफ हैं।
बाओबाब वृक्ष को अफ्रीका और मेडागास्कर (Madagascar) का प्रतीक भी माना जाता है। यह पेड़ एक हजार साल से भी अधिक समय तक जीवित रह सकता है। बाओबाब को चलता-फिरता जलाशय माना जाता है। बरसात के मौसम में, इसके खोखले तने में 100,000 लीटर तक पानी जमा हो सकता है। इसकी छाल भूरे रंग की और चिकनी होती है, और इसकी शाखाएँ विशाल होती हैं। सभी बाओबाब पर्णपाती होते हैं, और शुष्क मौसम में इनकी पत्तियाँ झड़ जाती हैं। भले ही शुष्क मौसम के दौरान यह पेड़ मृत दिखाई देता है, लेकिन वास्तव में, यह औसतन 1,500 वर्षों से अधिक समय तक जीवित रहता है । सबसे ऊंचे बाओबाब 30 मीटर (99 फीट) ऊंचे होते हैं और उनका व्यास 26 मीटर (87 फीट) हो सकता है।
अपने पूरे जीवनकाल के दौरान यह अपने आस-पास की सभी जीवों और पौधों को आश्रय और भोजन प्रदान करता है। इसके फल को एक सुपरफूड (Superfood) माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाओबाब के फल दुनिया में सबसे अधिक पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों में से एक माने जाते हैं। इसकी छाल, बीज और पत्तियों का उपयोग भी विभिन्न प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है। इतना ही नहीं बाओबाब के सूखे गूदे विटामिन सी (Vitamin C), फाइबर (Fiber) और एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidants) से भरपूर होते हैं। इसकी छाल से रस्सी और कपड़े बनाए जा सकते हैं, बीजों से तेल बनाया जा सकता है और यहाँ तक की इसकी पत्तियां भी खाने योग्य होती हैं। यदि बच्चों को पेट में दर्द हो, तो इसे ठीक करने के लिए उन्हें इसके फलों के रस की एक बूंद दी जाती है।
यह पेड़ बेहद कठिन परिस्थितियों में उगता है, और अपने आसपास के जीवन को पोषित करता है। बाओबाब पेड़ हमारे लिए एक अनुस्मारक की तरह है, जो अपने अस्तित्व से ही हमें यह सन्देश दे देता है कि “हम सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी अपनी सुंदरता और ताकत बनाये रख सकते हैं, और दूसरों की मदद कर सकते हैं।”
आज, आप बाओबाब के आकर्षक पेड़ों को कच्छ और काठियावाड़ प्रायद्वीप, गोवा, मालवा और आंध्र प्रदेश के दक्षिण-मध्य दक्कन पठार में फैले हुए देख सकते हैं। यदि हम भारत में इनकी उपस्थिति की बात करें तो ऐसा माना जाता है कि “भारत में बाओबाब को अफ्रीकी सैनिकों द्वारा लाया गया था।” इन सैनिकों को भारतीय शासकों द्वारा नियुक्त किया गया था। उदाहरण के लिए, मांडू के राजा द्वारा नियुक्त किये गए पूर्वी अफ्रीका के सैनिक अपने साथ प्रोटीन और विटामिन से भरपूर, बाओबाब की फली लाते थे। इसी तरह, हैदराबाद के शासकों ने भी अफ्रीकी घुड़सवार सेना भर्ती की, जिनके द्वारा लाये गए बाओबाब के पेड़ आज भी उन क्षेत्रों में खड़े हैं जहां कभी सैन्य बस्तियां हुआ करती थीं।
हालांकि भारत में बाओबाब के पेड़ बड़ी संख्या में तो नहीं दिखाई देते, लेकिन इन्हें मध्य प्रदेश के मांडू शहर में बहुतायत में देखा जा सकता है। मांडू में अनुमानित 1,000 बाओबाब के पेड़ पाए जाते है, जहां ये पेड़ देश में सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। भील जनजाति के संरक्षण के प्रयासों के कारण ये लचीले और लुप्तप्राय पेड़ सदियों से यहां के आदिवासी लोगों की आजीविका चला रहे हैं। इस दुर्लभ पेड़ को और अधिक संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए, धार जिले के बागवानी विभाग ने बाओबाब पेड़ के फल के लिए भौगोलिक संकेत (Geographical Indication (GI) टैग के लिए आवेदन करने की योजना बनाई है। यह जीआई टैग इस फल को अधिक मान्यता देगा और अनधिकृत उपयोग से सुरक्षा प्रदान करेगा। मांडू के अलावा, बाओबाब के पेड़ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, महाराष्ट्र के वाई और गुजरात और आंध्र प्रदेश के कुछ स्थानों पर भी पाए जाते हैं। मध्य प्रदेश सरकार इस क्षेत्र में बाओबाब पेड़ों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है और जीआई टैग प्राप्त करना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4jtjtwte
https://tinyurl.com/bdd7bup5
https://tinyurl.com/ubxyp2bn
https://tinyurl.com/3x6tkmex
https://tinyurl.com/mtsz7c6f
https://tinyurl.com/yeyrzspv
चित्र संदर्भ
1. बाओबाब के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. एडानसोनिया ग्रैंडिडिएरी, मेडागास्कर को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. बाओबाब के अनोखे पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. बाओबाब के सूखे पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. बाओबाब के पेड़ के भीतर आदिवासी बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
6. धुले, महाराष्ट्र, भारत में बाओबाब के पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
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