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किसी भी इंसान का व्यक्तित्व उसके गुणों, उद्देश्यों और अनुभूति से निर्मित होता है। इन इकाइयों का उपयोग करके मनोवैज्ञानिक, और आज से आप खुद भी किसी व्यक्ति के व्यवहार को समझने और कुछ स्तर की भविष्यवाणी कर सकते हैं। पश्चिमी मनोविज्ञान में व्यक्ति के तीन, पाँच या सोलह लक्षणों का उपयोग करके उसके व्यक्तित्व का वर्णन किया जाता है। हालांकि भारतीय मनोवैज्ञानिक, प्राचीन समय से ही मनुष्य के गुणों (सत्व, रजस और तमस), या त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) का उपयोग करके व्यक्तित्व का वर्णन करते आ रहे हैं। अंतर-सांस्कृतिक शोधों में भारतीय और पश्चिमी मनोविज्ञान के बीच बड़ा अंतर देखा गया है। आज हम इन्हीं अंतरों का विश्लेषण करेंगे।
पश्चिमी संस्कृति में एक व्यक्ति को दूसरों और समाज से अलग देखा जाता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को समाज के विशाल या समग्र के एक हिस्से के रूप में देखा जाता है। यह अंतर कई मायनों में इन दोनों संस्कृतियों के लोगों के व्यवहार पर बड़ा प्रभाव डालता है। उदाहरण के तौर पर, पश्चिमी लोग अपने निजी लक्ष्यों और उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित करने की अधिक संभावना रखते हैं, यानी पश्चिमी मनोविज्ञान स्वयं को बाहरी दुनिया से अलग देखता है। जबकि भारतीय लोग अपना ध्यान दूसरों के साथ, अपने संबंधों और अपने समुदाय में अपनी भूमिका पर केंद्रित करने की अधिक संभावना रखते हैं। भारतीय मनोविज्ञान, स्वयं को ब्रह्मांड के साथ जोड़कर और अंततः परमात्मा के साथ एक के रूप में देखता है। भारतीय यह भी मानते हैं कि “हम सभी अपने से बड़ी किसी ऊर्जा का एक हिस्सा हैं।”
दोनों संस्कृतियों में “चेतना की समझ” भी अलग-अलग नज़र आती है। उदाहरण के तौर पर पश्चिमी मनोविज्ञान, चेतना (Consciousness) को हमारे आस-पास के परिवेश के प्रति जागरूकता की भावना के रूप में देखता है। इनके अनुसार चेतना हमें अपने आसपास की दुनिया को सोचने, महसूस करने और समझने में सक्षम बनाती है। लेकिन यदि हम भारतीय मनोविज्ञान की बात करें तो यहां पर “चेतना को इस पूरी श्रृष्टि की अंतिम वास्तविकता और स्वयं के सर्वोच्च लक्ष्य के रूप में देखा जाता है।” यहां पर चेतना को हमारे अस्तित्व का सार और दुख से मुक्ति की कुंजी माना जाता है।
पश्चिमी और भारतीय मनोविज्ञान के दृष्टिकोणों के बीच एक और बड़ा अंतर, मानसिक विकारों के बारे में दोनों की समझ भी है। यानी पश्चिमी मनोविज्ञान मानसिक विकारों (Mental Disorders) को जैविक या मनोवैज्ञानिक समस्याओं के रूप में देखता है।
उनके अनुसार मानसिक विकार, मस्तिष्क में असंतुलन या दर्दनाक अनुभवों के कारण उत्पन्न होते हैं। उनके उपचार विकल्पों में भी अक्सर दवा या थेरेपी (Therapy) को शामिल किया जाता है। हालांकि भारतीय मनोविज्ञान में मानसिक विकारों को आध्यात्मिक समस्याओं के रूप में देखा जाता है। हमारे अनुसार मानसिक विकार, ईश्वर से मतभेद या हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारकों में पैदा हुए असंतुलन के कारण उत्पन्न होते हैं। भारत में मानसिक विकार के उपचार विकल्पों में अक्सर योग और ध्यान जैसे आध्यात्मिक अभ्यास शामिल होते हैं, जिन्हें वाकई में पश्चिम में भी कारगर माना गया है।
आत्म-बोध (Self-Actualization) पर भी पश्चिमी मनोविज्ञान और भारतीय मनोविज्ञान के विचार अलग-अलग नजर आते हैं। पश्चिमी मनोविज्ञान आत्म-बोध को, स्वयं का सर्वोत्तम संस्करण (स्वरूप) बनने के रूप में देखता है, जबकि भारतीय मनोविज्ञान में आत्म-बोध को किसी के वास्तविक स्वरूप और अंतिम वास्तविकता की पहचान के रूप में देखा जाता है।
पश्चिमी और भारतीय मनोविज्ञान दोनों इस एक बात पर सहमत नज़र आते हैं कि, “सभी मनुष्यों की कुछ जैविक ज़रूरतें (भोजन, सुरक्षा, कामुकता और नींद) होती हैं।” हालाँकि, मज़े की बात यह है कि भारतीय मनोविज्ञान यह भी मानता है कि “मनुष्य इन बुनियादी जरूरतों से भी ऊपर उठ सकता है” और अलौकिक क्षमताओं (समय को पार करने और ब्रह्मांड से जुड़ने की क्षमता) को विकसित कर सकता है।
यदि हम मृत्यु की बात करें तो भारतीय मनोविज्ञान जीवन और मृत्यु के चक्र को एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखता है। यानी जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसकी जीवन ऊर्जा (जीव) जिसे हम आत्मा के रूप में जानते हैं, अपनी यात्रा जारी रख सकती है और अंततः एक नए शरीर में प्रवेश करके पुनः जन्म ले सकती है। इस यात्रा की दिशा को कई जन्मों के संचित कर्म निर्धारित करते हैं। दूसरी ओर, पश्चिमी मनोविज्ञान डार्विन के विकासवादी सिद्धांत (Darwin's Theory of Evolution) से अधिक प्रभावित नजर आता है। यानी यह मनुष्य की निरंतर विकासवादी क्षमता में विश्वास नहीं रखता है।
यदि हम जीवन के लक्ष्यों और मूल्यों की बात करें, तो भारतीय मनोविज्ञान, जीवन के चार लक्ष्य और मूल्यों में विश्वास रखता है:
धर्म: नैतिक जीवन जीना
अर्थ : अपनी ज़रुरत के अनुसार धन संचय करना
काम: इच्छाओं की पूर्ति करना
मोक्ष: जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति
इन लक्ष्यों को एक निश्चित क्रम में पूरा किया जाना चाहिए, जिसमें मोक्ष ही अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। भारतीय मनोविज्ञान आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष प्राप्त करने के लिए योग और ध्यान जैसी आध्यात्मिक प्रथाओं को बहुत महत्व देता है। दूसरी ओर, पश्चिमी मनोविज्ञान भौतिक संसार और व्यक्तिगत आत्म पर अधिक केंद्रित है। आधुनिक समय में इंसान को उसकी मनोवैज्ञानिक विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण के लिए “व्यक्तित्व प्रकार (Personality Type) नामक शब्द का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर व्यक्तित्व प्रकार और व्यक्तित्व विशेषक (Personality Traits) को अलग-अलग माना जाता है। व्यक्तित्व प्रकार इस बात पर आधारित होता हैं कि लोग जानकारी को कैसे समझते हैं और संसाधित कैसे करते हैं, या वे कैसे निर्णय लेते हैं। व्यक्तित्व के दो मुख्य प्रकार (बहिर्मुखी और अंतर्मुखी) होते हैं। बहिर्मुखी लोग अधिक मिलनसार और सामाजिक होते हैं, जबकि अंतर्मुखी लोग अधिक मूक और आत्मविश्लेषी होते हैं। कई लोग अपने व्यक्तित्व प्रकार, ताकत और कमजोरियों को समझने के लिए मायर्स-ब्रिग्स टाइप इंडिकेटर (Myers-Briggs Type Indicator (MBTI) नामक व्यक्तित्व परीक्षण (Personality Test) का सहारा लेते हैं।
एमबीटीआई में चार अलग-अलग पैमाने होते हैं:
बहिर्मुखता बनाम अंतर्मुखता “Extroversion (E) vs. Introversion (I)”: बहिर्मुखी लोग मिलनसार होते हैं, और सामाजिक मेलजोल पसंद करते हैं, जबकि अंतर्मुखी लोग अधिक आरक्षित होते हैं और अकेले समय बिताना पसंद करते हैं।
सेंसिंग बनाम अंतर्ज्ञान “Sensing (S) vs. Intuition (N)”: सेंसिंग प्रकृति के लोग अपनी इंद्रियों के माध्यम से वास्तविक जानकारी इकट्ठा करना पसंद करते हैं, जबकि अंतर्ज्ञानी पैटर्न और इंप्रेशन (Patterns and Impressions) के माध्यम से जानकारी इकट्ठा करना पसंद करते हैं।
विचारक बनाम भावनात्मक “Thinking (T) vs Feeling (F)”: विचारक लोग तर्क और वस्तुनिष्ठ डेटा के आधार पर निर्णय लेते हैं, जबकि भावनात्मक लोग भावनाओं और व्यक्तिगत मूल्यों के आधार पर निर्णय लेते हैं।
निर्णय बनाम धारणा “Judgment (J) vs. Perception (P)”: निर्णय प्रकृति के लोग संरचना और दृढ़ निर्णय पसंद करते हैं, जबकि धारणाकर्ता लोग निर्णय के प्रति अधिक खुले और अनुकूलनीय होते हैं।
एमबीटीआई परिणामों को फिर चार-अक्षर वाले उप व्यक्तित्व प्रकारों, जैसे आईएसटीजे (ISTJ), आईएनएफजे (INFJ), या ईएनटीपी (ENTP) इत्यादि में संयोजित किया जाता है। प्रत्येक व्यक्तित्व प्रकार की अपनी अनूठी ताकत और कमजोरियां होती हैं। उदाहरण के लिए, आईएसटीजे प्रक्रति के लोग अधिक वफादार, व्यवस्थित और पारंपरिक होने के लिए जाने जाते हैं, जबकि ईएनटीपी प्रक्रति के लोग आविष्कारशील और रचनात्मक माने जाते हैं।
एमबीटीआई को दुनिया में सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्व परीक्षणों में से एक माना जाता है। हालांकि कुछ अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि इस तरह के परीक्षण विश्वसनीय या वैध नहीं होते है, और इनके परिणाम समय के साथ बदल सकते हैं। लेकिन इन आलोचनाओं के बावजूद, एमबीटीआई आत्म-खोज और व्यक्तिगत विकास के लिए एक उपयोगी उपकरण हो सकता है। अपने स्वयं के व्यक्तित्व प्रकार को समझकर, लोग अपनी ताकत से खेलना सीख सकते हैं और दूसरों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बना सकते हैं।
यहां कुछ उदाहरण दिए गए हैं कि वास्तविक दुनिया में एमबीटीआई का उपयोग कैसे किया जा सकता है:
१. एक छात्र अपने एमबीटीआई परिणामों का उपयोग एक ऐसा करियर चुनने के लिए कर सकता है जो उनके व्यक्तित्व प्रकार के लिए उपयुक्त हो।
२. एक प्रबंधक अपने कर्मचारियों को बेहतर ढंग से समझने और अधिक उत्पादक कार्य वातावरण बनाने के लिए अपने एमबीटीआई परिणामों का उपयोग कर सकता है।
३. कोई व्यक्ति अपने संचार और डेटिंग कौशल (Dating Skills) को बेहतर बनाने के लिए अपने एमबीटीआई परिणामों का उपयोग कर सकता है।
कुल मिलाकर, एमबीटीआई एक मूल्यवान उपकरण है जो लोगों को अपने और दूसरों के बारे में अधिक जानने में मदद कर सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/jjz7mt79
https://tinyurl.com/bdcpvc3v
https://tinyurl.com/38bzupvr
https://tinyurl.com/yc3tmsc2
चित्र संदर्भ
1. ग्रामीण भारत के एक युगल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. श्री कृष्ण के विश्वरूप स्वरूप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक भारतीय महर्षि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. योग करती युवती को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)
5. पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. व्यक्तित्व प्रकार के संज्ञानात्मक कार्यों को दर्शाने वाले एक आरेख। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. मिलनसार लोगों को दर्शाता एक चित्रण (pixahive)
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