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‘मैगॉट थेरेपी(Maggot Therapy)’ में ग्रीन–बॉटल मक्खी(Green-bottle fly) के मैगॉट्स या कीट का उपयोग शामिल होता है, जिन्हें मनुष्यों में नेक्रोटिक(Necrotic), मैला और/या संक्रमित ऊतक हटाने के लिए, किसी घाव पर डाला जाता है। यदि किसी घाव से दोबारा मैल निकलने का खतरा हो, तो मैगॉट का उपयोग इस घाव को साफ करने के बाद,स्वच्छ बनाए रखने के लिए, भी किया जा सकता है।
डॉक्टरों और ऊतक व्यवहार्यता विशेषज्ञों ने पाया है कि, ये कीट पारंपरिक ड्रेसिंग(Dressing) की तुलना में, घावों को अधिक तेजी से साफ करने और भरने में सक्षम हैं। ये कीट किसी घाव की स्थिति में सुधार करते हैं और उपचार की प्रक्रिया शुरू करने में मदद करते हैं, हालांकि फिर भी, वे मृत ऊतक और किसी भी संबंधित बैक्टीरिया(Bacteria) को हटाकर, हर प्रकार के घावों के इलाज के रूप में, सही नहीं होते हैं।
मैगॉट कीट मृत ऊतकों का उपभोग करते हैं तथा घाव में एक विशेष रसायन छोड़ते हैं, जो मृत ऊतकों को तरल रूप में विघटित कर देते हैं। और इस तरल को यह कीट आसानी से हटा और पचा सकता है। इस प्रक्रिया के दौरान, ये कीट बैक्टीरिया भी ग्रहण कर लेते हैं, जो बाद में उनकी आंत में नष्ट हो जाते हैं। यह एक प्रभावी प्रक्रिया है कि, कीट लार्वा(Larvae), कुछ दिनों के भीतर ही, घाव को साफ कर सकता है।
मैगॉट थेरेपी में निम्न दो तरीकों से इलाज किया जा सकता है:
बायोबैग ड्रेसिंग(BioBag dressing):इसमें कीटों को एक ड्रेसिंग के भीतर बंद कर दिया जाता है, जो एक छोटी जालीदार थैली होती है। इसमें एक छोटा सा टुकड़ा, या फोम(Foam) के टुकड़े होते हैं, जो मैगॉट के विकास में सहायता करते हैं एवं उत्सर्जन का प्रबंधन करते हैं।
फ्री रेंज मैगॉट्स(Free range maggots): इसमें मैगॉट्स को सीधे घाव पर लगाया जाता है और एक विशेष ड्रेसिंग प्रणाली में रखा जाता है। इसकी सटीक प्रकृति उपचार किए जा रहे घाव के आकार और स्थान से निर्धारित होती है।
इस तरह, वे घाव को ठीक करने हेतु, पारंपरिक ड्रेसिंग द्वारा लिए गए अधिक समय की तुलना में, जल्द ही घावों को साफ कर सकते हैं, जो संभावित रूप से उपचार के समय को तेज कर सकता है। साथ ही, मैगॉट थेरेपी को घावों से प्रतिरोधी एवं एमआरएसए(Methicillin-resistant Staphylococcus aureus) बैक्टीरिया को खत्म करने में भी सफल दिखाया गया है।
सदियों से, यूरोपीय सैन्य चिकित्सकों ने वर्णन किया था कि, कैसे सैनिकों के घावों पर मैगॉट या कीटों के उपयोग से वे घाव, बाद में अक्सर साफ दिखाई देते थे। यह देखा गया था कि, सैनिकों के कीटों से उपचारित घाव, अन्य घावों की तुलना में बेहतर ठीक हो गए थे, जिनमें कीट नहीं लगाए गए थे। प्रथम विश्व युद्ध के युद्धक्षेत्रों पर घाव मायियासिस (Myiasis) पर अपनी टिप्पणियों के बाद, विलियम बेयर(William Baer) ने कीटों से घाव के इलाज पर पहली बार वर्ष 1929 में अपने परिणाम प्रस्तुत किए थे। फिर, 1935 तक, हजारों चिकित्सकों ने इस प्रथा को अपना लिया था।
परंतु, 1940 के दशक के दौरान मैगॉट थेरेपी का उपयोग लगभग खत्म हो गया था।
क्योंकि, तब एंटीबायोटिक दवाओं (Antibiotics) एवं शल्य चिकित्सक तकनीकों का विकास एवं सुधार हुआ था। लेकिन 1980 के दशक में, फिर से यह एहसास हुआ कि, शल्य चिकित्सा तथा एंटीबायोटिक्स सभी घावों को ठीक नहीं कर सकते। अतः 1990 के दशक में, न भरने वाले घावों के उपचार के रूप में मैगॉट थेरेपी को फिर से शुरू किया गया।
मैगॉट थेरेपी का पहला संभावित एवं नियंत्रित अध्ययन, वर्ष 1991 में शुरू हुए अमेरिकी सम्मेलनों में प्रस्तुत किया गया था, और 1995 की शुरुआत में प्रकाशित किया गया था। फिर, कुछ वर्षों बाद,मेडिकल मैगॉट्स™(Medical Maggots™) कॉलोनी विकसित करने को संयुक्त राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन(United States Food and Drug Administration) द्वारा विपणन मंज़ूरी प्रदान की गई थी। और आज दुनिया भर में कम से कम 23 अन्य प्रयोगशालाएं भी मेडिकलमैगॉट्स™ का उत्पादन कर रही हैं।
हालांकि, इन मक्खियों के घृणित एवं अस्वास्थ्यकर होने के बारे में प्रचलित सांस्कृतिक दृष्टिकोण विश्व में फैला हुआ है। मक्खियों द्वारा फैलने वाली, मायियासिस बीमारी की नकारात्मक छवि दक्षिण गोलार्ध में अधिक मजबूत है। इससे इस थेरेपी से लोग दूर ही रहते हैं। एक सुरक्षित और प्रभावी पद्धति होने के बावजूद भी, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में मैगॉट थेरेपी का उपयोग कम ही किया जाता है।जबकि, मैगॉट थेरेपी का उपयोग दाब अल्सर(Pressure ulcer), वीनस स्टेसिस अल्सर(Venous stasis ulcers), मधुमेह फूट अल्सर(Diabetic foot ulcers), जलन के घाव, दर्दनाक घावों और चिकित्सा के बाद भी न भरने वाले घावों के इलाज के लिए किया गया है। मैगॉट थेरेपी से अंग विच्छेदन और अन्य शल्य-चिकित्सक प्रक्रियाओं पर निर्भरता भी कम हो जाती है। मैगॉट थेरेपी के अन्य फायदों में, इसकी सरलता, सुरक्षा और अपेक्षाकृत कम लागत शामिल है।
क्या आप जानते हैं कि, चरक संहिता, जो आयुर्वेद के मूलभूत ग्रंथों में से एक है, में भी मैगॉट थेरेपी का उल्लेख मिलता है?
दरअसल, भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में, मधुमेह संबंधी फूट अल्सर या पैर के अल्सर के असंख्य मामले मौजूद हैं। और वे रोगी मृत ऊतकों से अनभिज्ञ होते हैं। और चुंकि,इस अल्सर या घाव में कोई अनुभूति नहीं होती है,इसलिए, लोग कई अवांछित वस्तुओं पर कदम भी रख देते हैं और उन्हें इसका पता नहीं चलता।
मधुमेह संबंधी पैर के अल्सर के साथ आने वाले रोगियों की संख्या से आश्चर्यचकित होकर, जहां मृत ऊतकों को हटाने की मात्रा बहुत अधिक थी और उपचार नहीं हो रहा था, कोलार शहर के एक डॉक्टर बी.आर.श्रीनिवास ने समाधान के लिए, चरक संहिता की ओर रुख किया और अनुकूल परिणामों के साथ मैगॉट थेरेपी के साथ रोगियों का इलाज भी किया।
भविष्य में यह संभावना है कि,पूरी दुनिया जल्द ही ऐसे उपचारों तक समान पहुंच की मांग करेगी। क्योंकि, अब इस बात के ठोस सबूत हैं कि, ये उपचार प्रभावी, सुरक्षित, सरल एवं अपेक्षाकृत सस्ते हैं और इन्हें उच्च प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा प्रशासित करने की आवश्यकता नहीं है। उम्मीद है, मैगॉट थेरेपी तक हमारी पहुंच बढ़ने का इंतजार लंबा नहीं होगा।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mr3b6h6t
https://tinyurl.com/2525mnsf
https://tinyurl.com/yr6punrs
https://tinyurl.com/4dyf29y4
https://tinyurl.com/4ers5nh8
चित्र संदर्भ
1. मैगॉट थेरेपी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,Flickr)
2. ग्रीन–बॉटल मक्खी के मैगॉट्स या कीटों को दर्शाता एक चित्रण (openverse)
3. मधुमेह रोगी के पैर के घाव पर मैगॉट डीब्रिडमेंट थेरेपी को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. मेडिकल पैकेजिंग में मैगॉट्स को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
5. मैगॉट्स को दर्शाता एक चित्रण (openverse)
6. पैर के अल्सर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
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