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9 पूर्णता की संख्या है। शून्य(0) पहली संख्या होती है व 9 के बाद संख्याएं पुनः दोहराती हैं। 9 संख्या मानव अस्तित्व के 9 आदर्शों(नवग्रह) का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। नौ कभी-कभी केतु से भी जुड़ा होता है, जो मोक्ष कारक(मुक्ति का कारक) है। केतु भगवान गणेश से जुड़ा है, जो हमें मोक्ष प्रदान करने वाली मां कुंडलिनी के द्वार की रक्षा करते हैं।
दुर्गा सप्तसती में देवी दुर्गा के नौ रूप हैं, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। संख्या 9, देवी दुर्गा से भी जुड़ी है, जिनके यंत्र (ज्यामितीय प्रतीक) में 9 नुकीले तारे हैं और जिन्हें नवरात्रि पर पूजा जाता है। हिंदू कालचक्र ज्योतिष में, वह दुर्गा मां ही हैं, जो हमारे शरीर के प्राण तथा हमारी मूल जीवन शक्ति की रक्षा करती हैं।
यदि, योग का कोई संख्यात्मक प्रतीक होता तो, यह 108 होना चाहिए। क्योंकि, 1 + 0 + 8 = 9 होता है। और 9 पूर्णता की संख्या है।जबकि, 108 संख्या के माध्यम से, सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत के बीच मिलन को ठोस रूप से दर्शाया गया है। आइए, इस संख्या के बारे में अधिक बाते जानते हैं।
एक ‘राशि चक्र’ में, 30 डिग्री (Degrees) की 12 राशियां होती हैं। ये राशियां 2 सूर्य देवताओं या आदित्य से जुड़ी हैं। कहा जाता है कि, ये राशियां सूर्य से प्राप्त परिणाम देती हैं। जब हम प्रत्येक राशि को नौ ‘अम्सों’ या विभाजनों में विभाजित करते हैं, तो यह ‘नवांश’ बनाता है। 30 डिग्री को नौ से विभाजित करने पर, 3 डिग्री और 20 मिनट के 9 चिह्न मिलते हैं। 9 अम्सोंवाली इन 12 राशियों में से प्रत्येक के साथ, कुल 108 अम्स होते हैं। यह नवांश आत्मा के अंतर्निहित गुणों, जातक के धर्म (उद्देश्य) तथा भाग्य और जीवनसाथी के अंतर्निहित गुणों को दर्शाता है। जबकि, वैदिक ज्योतिष में ‘नवमांश’, उच्च सम्मान में रखी जाने वाली 108 राशियों वाली कुंडली है।
दूसरी ओर, चंद्रमा लगभग 27 दिनों में, एक राशि चक्र से गुजरता है, जिससे चंद्र राशि का निर्माण होता है। इसे ‘नक्षत्र’ कहा जाता है। चंद्रमा चतुर्थ भाव का कारक है। इन 27 चंद्र राशियों में से प्रत्येक को 4 अम्सों (विभाजनों) में विभाजित किया गया है, जिन्हें पद (पदचिह्न) कहा जाता है। नक्षत्र (चंद्र चिह्न) 13-20 डिग्री होते हैं, जिन्हें चार से विभाजित करने पर, 3-20 डिग्री बन जाते हैं। 27 नक्षत्रों को 4 पदों से गुणा करने पर, 108 संख्या प्राप्त होती हैं। ये चार पद, चार आयनों से संबंधित हैं। वे चार आया कर्म(पेशा), अर्थ(जीविका), काम(खुशी/परिवार), मोक्ष(आध्यात्मिकता/मुक्ति) हैं। प्रत्येक पद में एक स्वर होता है, जिसके प्रयोग से स्वर के भीतर, एक विशिष्ट ग्रह को सक्रिय किया जा सकता है। और चंद्रमा में, 108 पद और 108 स्वर हैं।
चंद्र राशि के पद और सूर्य राशि के नवमांश संख्या 108 के साथ पंक्तिबद्ध होते हैं। 108 वह संख्या है जहां, चंद्रमा अर्थात मानस और सूर्य अर्थात आत्मान/अहंकार, एक पंक्ति में आते हैं। यह वह संख्या है, जहां चंद्रमा के चक्र को सूर्य के चक्र के साथ संरेखित किया जा सकता है। अर्थात, 108 वह संख्या है जो, मन और आत्मा को संरेखित करती है।
3-20 का उपरोक्त विभाजन सूर्य और चंद्रमा को संरेखित करता है, जो शिव और पार्वती या पुरुष और प्रकृति के संरेखण को भी दर्शाता है। 108 मंडल, पुरुष और प्रकृति का एक साथ आना भी है, जो दुनिया की रचना से संबंधित है।
इसके साथ ही,सूर्य और चंद्रमा अपने-अपने व्यास से लगभग 108 गुना अधिक व्यास के साथ, हमारे ग्रह पृथ्वी से जुड़े हुए हैं।यहां दिया गया कथन, दरअसल इस प्रकार है:
1.पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी, 108 गुना सूर्य-व्यास के बराबर है।
2.पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी, 108 गुना चंद्रमा-व्यास के बराबर है। तथा
3.सूर्य का व्यास, 108 गुना पृथ्वी-व्यास के बराबर है।
राशि चक्र में, बड़े सौर चिह्न (राशि) 108 संख्या के साथ छोटे चंद्र चिन्हों (नक्षत्र) के समान आकार पाते हैं। फिर, भले ही सूर्य, चंद्रमा से 400 गुना बड़ा है, फिर भी उन्हें, अपने स्वयं के व्यास के108 गुना विभाजन से समान माना जाता है। यह भौतिक रूप से प्रकट करता है कि, पुरुष (सूर्य) और प्रकृति (चंद्रमा) इस पृथ्वी पर जीवन को बनाने और बनाए रखने के लिए, 108 के कंपन का उपयोग कर रहे हैं।
यह पुरुष और प्रकृति का कंपन है, जिसने हमें अस्तित्व में रखा है और यह वह गुप्त कुंजी भी है, जो हमें अपने अस्तित्व में जागने, हेरफेर करने या अस्तित्व से परे जाने में भी मदद करेगी। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तंत्र इस शक्ति का उपयोग करते है। भगवान और देवी, पुरुष और प्रकृति की सर्वोच्च रचनात्मक शक्ति के इस कंपन का उपयोग करने के लिए ही,किसी जाप माला में 108 मोती होते हैं। ध्यान करने वाले लोग, 108 मोतियों के साथ, मंत्र जाप की गिनती करते हैं।
108 संख्या से संबंधित अन्य सभी कारक, पुरुष(सूर्य) और प्रकृति(चंद्रमा) से ही जुड़े हैं। उदाहरण के लिए, आयुर्वेद के अनुसार, हमारे शरीर में 108 मर्म होते हैं। वे ऐसे बिंदु हैं, जो किसी जीवित प्राणी को ठीक कर सकते हैं, या उसे मार सकते हैं।
उन्हें वह बिंदु माना जाता है, जहां चेतना हमारे शरीर से जुड़ती है; जहां जीवित प्राणी को जीवन देने हेतु, पुरुष (चेतना) को प्रकृति (शरीर) में लाया जाता है। जब हम 108 बार मंत्र बोलते हैं, तो यह प्रत्येक बिंदु पर कवच (सुरक्षा) के रूप में कार्य करता है। एक अन्य उदाहरण के तौर पर,यह भी आम है कि,योगी संक्रांति और विषुव पर 108 सूर्य नमस्कार करते हैं।
या देवी सर्वभूतेषुशक्तिरूपेणसंस्थिता:
नमस्तस्यै नमस्तस्यैनमस्तस्यै नमो नम:
संदर्भ
https://tinyurl.com/2p2r3fem
https://tinyurl.com/yju3b6km
https://tinyurl.com/bde4kwbd
चित्र संदर्भ
1.नवरात्रि के पूजा समारोह में मां दुर्गा की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. नवदुर्गा स्वरूपों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ‘नक्षत्र’ पाण्डुलिपि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. संख्या 108 को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. शरीर चक्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)