चलिए आज रामपुर राजघराने के मित्र, मुरादाबाद के सहसपुर बिलारी शाही परिवार से मिलते हैं

मध्यकाल : 1450 ई. से 1780 ई.
16-10-2023 09:34 AM
Post Viewership from Post Date to 16- Nov-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
4363 222 0 4585
* Please see metrics definition on bottom of this page.
चलिए आज रामपुर राजघराने के मित्र, मुरादाबाद के सहसपुर बिलारी शाही परिवार से मिलते हैं

प्रसिद्ध रामपुर राजघराने के बारे में तो हम सभी जानते हैं। लेकिन, रामपुर के नजदीक में बसे मुरादाबाद जिले में एक और शाही परिवार है, जिसे “सहसपुर बिलारी शाही परिवार” के नाम से जाना जाता है। सहसपुर बिलारी शाही परिवार, एक समय में मुरादाबाद और बदायूँ जिले का सबसे बड़ा जमींदार हुआ करता था, जिनके अधिकार में एक शहर और 486 गाँव थे। सहसपुर का स्वामित्व “राजा चंद्र विजय” के हाथों में है। राजा चंद्र विजय सिंह, सहसपुर के वर्तमान राजा हैं, जिनका जन्म 18 दिसंबर 1950 में लखनऊ में हुआ था।
उन्होंने स्नातक की उपाधि के लिए देहरादून के दून स्कूल (Doon School) और हिंदू कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से पढ़ाई की है। इसके बाद, उन्होंने नई दिल्ली में विधि संकाय में कानून (LLB) की पढ़ाई की। आज वह उत्तर प्रदेश के एक जाने माने राजनेता भी हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में दो कार्यकाल (1989/1991 और 1993/1995) और एक बार संसद सदस्य (13वीं लोकसभा - 1999/2004) के रूप में कार्य किया है। वह कई अन्य समितियों के भी सदस्य हैं। साथ ही वह 1979-1990 तक रोहिलखंड युवा आवाज़ के पूर्व संपादक भी रहे हैं। उनके पूर्वज, महाराज पृथ्वी सिंह, लोधी राजाओं के साथ संभल, मुरादाबाद जिले में आकर बस थे। हालांकि 1526 में मुगल सम्राट बाबर द्वारा पानीपत में हार के बाद, वे शांति से पंजाब में बस गए। लेकिन इस बीच भी वे बदायूँ और कटेहर (मुरादाबाद का पुराना नाम) के लोगों के लगातार संपर्क में थे। औरंगजेब का शासनकाल समाप्त होने के बाद वह 'राय' की उपाधि प्राप्त करने के लिए वापस आए और 1713 में उन्हें बिजनौर जिले का 'चकला दार' बनाया गया।
राजा चंद्र विजय सिंह के दादा, राजा जगत कुमार सिंह की 1934 में मृत्यु हो गई थी। वह अपने पीछे रानी प्रीतम कुंवर (राजा चंद्र विजय सिंह की दादी) और एक छोटी बेटी, राजकुमारी इंद्र मोहिनी (राजा चंद्र विजय सिंह की मां) को छोड़ कर चले गए थे। कानून (कोर्ट ऑफ वार्ड्स (Court of Wards) और पारिवारिक रीति-रिवाज के अनुसार, राजा चंद्र विजय सिंह जन्म के समय ही राजा की उपाधि प्राप्त करने में सफल रहे। आप जानकर हैरान होंगे कि ब्रिटिश काल में भी अंग्रेज़ों को, उच्च दर्जे वाले भारतीय घरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। क्योंकि उस समय भारतीय लोगों को लगता था कि, इससे उनकी पवित्रता नष्ट हो सकती है। हालांकि उस समय एक ब्रिटिश अधिकारी का किसी भारतीय के घर में दौरा करना भी एक बड़ी बात समझी जाती थी। चूंकि सहसपुर बिलारी के राजा भी एक उच्च दर्जे वाले भारतीय थे, इसलिए उन्होंने अंग्रेज़ों को बिना नाराज किये, उनकी मेहमान नवाजी करने का एक शानदार उपाय निकला। इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों से मिलने के लिए, अपने घर से बहुत दूर और मुरादाबाद के एक सुरक्षित क्षेत्र में एक गेस्ट हाउस (Guest house) बनवाया। अंग्रेजों को भी यह व्यवस्था काफी पसंद आयी, क्योंकि वे अभी भी 1857 के विद्रोह से डरे हुए थे।
इस गेस्ट हाउस का निर्माण 1909 और 1913 के बीच किया गया और इसका नाम सर जेम्स स्कोर्गी मेस्टन (sir james scorgie meston) और उनकी पत्नी लेडी मेस्टन (Lady Meston) के नाम पर 'मेस्टन निवास (Meston Residence)' करके रखा गया। 1900 की शुरुआत में, लॉर्ड मेस्टन (Lord Meston) आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत के गवर्नर हुआ करते थे। सहसपुर बिलारी के राजा बहादुर से उनकी अच्छी मित्रता थी। इसी मित्रता के कारण वह अक्सर मुरादाबाद आते रहते थे। इसलिए अपने अंग्रेज़ मेहमानों के लिए 1909 में, राजा बहादुर ने एक गेस्ट हाउस बनाने का फैसला किया। इसका नाम भी इसके पहले अतिथि, सर जेम्स स्कोर्गी मेस्टन के नाम पर ही "मेस्टन निवास" रखा गया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, इस गेस्ट हाउस का उपयोग वरिष्ठ इतालवी युद्धबंदियों को रखने के लिए किया गया था। 1934 में, अपने जवान पति राजा जगत कुमार सिंह जी की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद, रानी प्रीतम कुंवर इस घर में रहने लगीं। वह एक शिक्षित महिला थीं, और यूपी जमींदार एसोसिएशन (UP Landlord Association) की अध्यक्ष भी थीं। 1950 में, उनकी बेटी और राजा चंद्र विजय सिंह की माँ राजकुमारी इंद्र मोहिनी को, मेस्टन निवास, दहेज के रूप में दिया गया। उनके पुत्र राजा चंद्र विजय सिंह, इसी निवास में पले-बढ़े हैं। आगे चलकर राजा चंद्र विजय सिंह ने इस महल का पुनर्निर्माण कराने का फैसला किया। यह काम उन्होंने लखनऊ के एक जाने माने शिल्पकार, आदिल अहमद को सौपा, जिनके दादा उनके परिवार को बहुत पहले से जानते थे। इस परिवार के हमारे रामपुर के नवाबों के साथ भी अच्छे संबंध रहे हैं। दोनों ही राजघराने अपने शानदार भोजन के लिए जाने जाते थे।
आज के समय में आप भी मेस्टन निवास में विशेषतौर पर मेहमानों के लिए बनाए गए छह कमरों में रह सकते हैं। घर का डिज़ाइन समय के साथ-साथ कभी भारतीय तो कभी मुगल और मोरक्कन शैली में बदलता रहता है। दिन भर शहर की व्यस्त सड़कों पर घूमने के बाद, मेहमान इस खूबसूरत जगह पर आराम कर सकते हैं। मेस्टन निवास में मौजूद नीले कमरे को यहां के सबसे शानदार कमरों में से एक माना जाता है, जहां सफेद मोर पंख शरद ऋतु के पत्तों की तरह झूमर से नीचे लटक रहे हैं। हालांकि यहां के सभी कमरे बहुत फैंसी (fancy) हैं, जिन्हें बहुत ही सुंदरता से सजाया गया है। मेस्टन निवास एक विशेष प्रकार का होटल है, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक काल की शैली को पारंपरिक भारतीय संस्कृति के साथ जोड़ देता है। कुल मिलाकर यह ठहरने और चैन से आराम करने के लिए एक शांत और सुंदर जगह है। यह एक ऐसी जगह है, जहां आप इतिहास के बारे में भी बहुत जान सकते हैं।

संदर्भ

https://tinyurl.com/2cwktt7w
https://tinyurl.com/5a49hpju
https://tinyurl.com/u4ujhndb
https://tinyurl.com/47fvvm9r

चित्र संदर्भ
1. राजा चंद्र विजय सिंह और मेस्टन निवास को दर्शाता एक चित्रण (facebook , youtube)
2. राजा चंद्र विजय सिंह जी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. मानचित्र में मुरादाबाद जिले को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मेस्टन बिल्डिंग पर जेम्स स्कॉर्गी मेस्टन के लिए पट्टिका का चित्रण (Wikimedia)
5. मेस्टन निवास में मौजूद नीले कमरे को यहां के सबसे शानदार कमरों में से एक माना जाता है, को दर्शाता एक चित्रण (facebook)