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क्या आप जानते हैं कि हमारे मेरठ के निकट दो शाही परिवारों (बिजनौर के ताजपुर शाही परिवार और नजीबाबाद के सहानपुर शाही परिवार) के पास अभी भी बिजनौर और नजीबाबाद जिलों में अपने महल हैं। ताजपुर परिवार (तगाओं) के पूर्वज, भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में रहते थे, जहां मुस्लिम आक्रमणकारी अक्सर खैबर दर्रे के माध्यम से हमले किया करते थे। इन आक्रमणकारियों का सामना सबसे पहले इन बहादुर, “तागा जनजाति” से होता था। औरंगजेब के समय में, हिंदुओं के प्रति कठोर व्यवहार के कारण, तागा जनजाति ने अपनी पुरोहिती का काम छोड़ दिया और किसान बन गए। बाद में उन्हें “त्यागी” के नाम से जाना जाने लगा।
उस समय तागा कबीले (तगाओं) के मुखिया बलराम सिंह साहब ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। अपने लोगों और संपति से जुड़े कई बड़े नुकसान झेलने के बाद, उन्होंने अपने परिवार और एक छोटी सेना सहित एक शांतिपूर्ण क्षेत्र में जाने का फैसला किया। इसके बाद वे बश्ता परगना के आजमपुर और उसके आसपास के इलाकों में बस गये।
1525 के अभिलेखों में भी ताजपुर परिवार (तगाओं) का उल्लेख मिलता है, जो जमींदार थे। तगाओं का उल्लेख अकबर के प्रशासन और अबुल फज़ल द्वारा लिखित आइन-ए-अकबरी में भी किया गया है।
उस समय, पूरा बिजनौर जिला दिल्ली के एक प्रांत, संबल सरकार का हिस्सा हुआ करता था। इस क्षेत्र को पन्द्रह परगना में विभाजित किया गया था। आइन-ए-अकबरी में दारानगर, अफजलगढ़ और बारापुरा जैसे आधुनिक क्षेत्रों का उल्लेख मिलता है। बिजनौर उस समय दारानगर का हिस्सा माना जाता था। यह क्षेत्र मुख्य रूप से तगाओं और ब्राह्मणों द्वारा बसाया गया था।
ताजपुर शाही परिवार के पूर्वजों ने जिले में मुगलों का समर्थन करने वाले नवाबों के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। बिजनौर के ताजपुर एस्टेट (Tajpur Estate) के शासकों का एक समृद्ध इतिहास रहा है। 1873 से पहले राजा बहादुर प्रताप ताजपुर एस्टेट के शासक थे। अपने शासनकाल में उन्होंने स्कूल और एक औषधालय खोलकर, एक रेलवे स्टेशन (Railway Station) के लिए भूमि और धन दान करके और राम बाग पैलेस का निर्माण करके अपने समुदाय की समृद्धि में अहम योगदान दिया। राजा बहादुर प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद उनके तीन पुत्रों राजा जगत सिंह साहब, राजा श्याम सिंह और कुंवर शिव नाथ सिंह ने परिवार का बंटवारा कर दिया। अंतिम दो राजाओं ने ईसाई धर्म अपना लिया।
आधुनिक बिजनौर अपने जंगलों, नदियों और गन्ने के खेतों के लिए जाना जाता है। यहां पर राजशाही दौर के कई पुराने महल भी हैं। हालांकि पर्याप्त रखरखाव न मिल पाने के कारण आज ये महल क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और टूट रहे हैं। इनका रखरखाव भी बहुत महंगा पड़ता है। इन महलों में अभी भी पुरानी बाघ की खाल और शिकार की ट्राफियां रखी हुई हैं, जो हमें इस क्षेत्र के शाही इतिहास की याद दिलाती हैं।
हालांकि अब उम्मीद की जा रही है, कि इन बाघों की बदौलत इन महलों को उनका पहले जैसा गौरव लौटाया जा सकता है। दरअसल इस संदर्भ में अमानगढ़ टाइगर रिजर्व (Amangarh Tiger Reserve), जो इन महलों के करीब है, को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। इस क्षेत्र की सड़कों में भी सुधार किया जा रहा है। इसलिए, स्थानीय लोग यहां पर अधिक संख्या में पर्यटकों के आने की उम्मीद कर रहे हैं। आशा है कि ये पर्यटक यहां मौजूद इन समृद्ध महलों का भी दौरा करेंगे और यह देख पाएंगे कि राजघरानों का जीवन कैसा होता था।
बिजनौर के नूरपुर ब्लॉक में 280 साल पुराना विजय निवास भी इन्हीं भव्य महलों में से एक है। इसका निर्माण ताजपुर राज्य पर शासन करने वाले त्यागी परिवार द्वारा किया गया था। इस परिवार के एक राजा को एक फ्रांसीसी महिला से प्यार हो गया, उसने ईसाई धर्म अपना लिया और आम के बगीचे में उसके लिए एक चर्च बनवाया। यह चर्च आज भी वहीं पर है।
लेकिन बिजय निवास अब धूल और मकड़ी के जालों से ढक चुका है। हालांकि यहां जाने पर आप शाही परिवार और भालू, बाघ और तेंदुए जैसे भरवां जानवरों की तस्वीरें आज भी देख सकते हैं। इस शाही परिवार के सदस्यों में से एक, इंद्रजीत सिंह को उम्मीद है कि सरकार इस क्षेत्र को बहाल करने में मदद करेगी। बिजनौर से एक और शाही परिवार (नजीबाबाद के सहानपुर शाही परिवार) का भी बहुत पुराना और गहरा संबंध रहा है। सहानपुर बिजनौर जिले में मौजूद एक शहर और नगर पंचायत है। एक समय में सहानपुर में काकरान परिवार के जाट राजाओं का शासन हुआ करता था। वे लोग स्वयं को भगवान राम के वंशज मानते हैं। उन्होंने सहानपुर से लेकर हरिद्वार में हर की पौड़ी तक के एक बड़े क्षेत्र पर शासन किया। उन्होंने सहानपुर में एक किला और एक महल बनवाया, जहां पर अब उनके परिवार के वंशज रहते हैं। राजा भारतेंद्र सिंह और रानी भावना कुमारी भी सहानपुर के इसी शाही परिवार का हिस्सा हैं। वह बिजनौर संसदीय सीट से सांसद भी हैं। ये परिवार 1937 से विधायक चुनावों में निरंतर जीत हासिल कर रहा है। 1937 में राजा चरत सिंह विधायक पद पर चुने जाने वाले पहले व्यक्ति थे। उनके बेटे, राजा देवेंद्र सिंह ने 1967, 1969 और 1985 में जीत हासिल की। यह परंपरा जारी रही और 2002 तथा 2012 में, राजा देवेन्द्र सिंह के बेटे राजा भारतेंद्र सिंह विधायक और 2014 में सांसद चुने गये।
संदर्भ
https://tinyurl.com/vesavtc6
https://tinyurl.com/mwbt2cwn
https://tinyurl.com/3fhpceyt
https://tinyurl.com/4xz72www
https://tinyurl.com/4xm5fmk8
https://tinyurl.com/5mys5ffh
चित्र संदर्भ
1. ताजपुर में "राजा का महल" को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. एक भारतीय जनजाति को दर्शाता एक चित्रण (The Folk Tales)
3. मानचित्र में बिजनौर जिले को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. ताजपुर चर्च को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. सहानपुर के महल के "बड़ा कमरा" को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
6. साहनपुर किले का मुख्य कमरा जिसे "बड़ा कमरा" कहा जाता है, को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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