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अनुगीता, एक प्राचीन भारतीय संस्कृत ग्रंथ है, जो मूल रूप से महाभारत के 14वे अध्याय का ही एक हिस्सा है। इसमें महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण और अर्जुन के बीच हुए संवाद को दर्शाया गया है। अनुगीता में नैतिकता के साथ-साथ अस्तित्व की प्रकृति सहित विभिन्न विषयों पर विस्तार से चर्चा की गई है। अनुगीता का शाब्दिक अर्थ गीता का अनु ("निरंतरता, साथ-साथ, अधीनस्थ") होता है।
अनुगीता में 36 अध्याय हैं जिनमें से प्रत्येक अध्याय में एक अलग कहानी या दंतकथा है, जो किसी एक नैतिक सिद्धांत को दर्शाती है। माना जाता है कि अनुगीता की मूल रचना संभवतः 400 ईसा पूर्व और 200 ई के बीच लिखी गई थी, लेकिन इसके संस्करण संभवतः 15वीं या 16वीं शताब्दी के आसपास संशोधित हुए।
श्रीमद्भगवद्गीता की भांति, अनुगीता भी धर्म (नैतिकता, नैतिक उपदेश) पर केन्द्रित ग्रंथों में से एक है। हालांकि अनुगीता में आंशिक रूप से, आसुत दर्शन के बजाय, किंवदंतियों और दंतकथाओं के माध्यम से श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ नैतिक मूल्यों को पुनर्गठित किया गया है। अनुगीता महाभारत के अध्याय 16 से 50 तक कुल 34 अध्यायों में उद्धृत है। यह मुख्य रूप से तीन खंडों में विभाजित है।
पहले खंड में महर्षि कश्यप और एक सिद्ध पुरुष के बीच हुई चर्चा दी गई है। इस खंड में ऋषि कश्यप, एक सिद्ध पुरुष से पूछते हैं कि जन्म और मृत्यु के चक्र से कैसे बचा जाए? साथ ही वह उससे पुनर्जन्म, मुक्ति, मानव शरीर की उत्पत्ति, आत्मा की समाधि जैसे विषयों के बारे में भी पूछते हैं। इसके उत्तर में वह सिद्ध पुरुष मन की प्रकृति, धार्मिक सुख, कर्म के सिद्धांत, स्वर्ग और नरक के सिद्धांत, यज्ञ के सिद्धांत, त्याग, इन्द्रियों को संयमित करने और मुक्ति प्राप्त करने के लक्ष्य पर मन को स्थिर रखने का सन्देश देते हैं।
पाठ के दूसरे खंड में एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी के बीच हुए संवाद को दिया गया है। इस खंड में ब्राह्मण की पत्नी जीवन चक्र से मुक्ति को लेकर चिंतित रहती है और अपने पति से इस चिंता का समाधान ढूंढने का आग्रह करती है। इसके बाद ब्राह्मण उसे शरीर के गुणों, कर्मेंद्रियों और ज्ञानेंद्रियों की धारणा को समझाते हुए, अपनी इंद्रियों को अंदर की ओर निर्देशित करने का सन्देश देते हैं। इसके बाद वह उसे मन, व्यवहार, बुद्धि और निजी सिद्धांतों की व्याख्या भी करते हैं। इसके बात अहिंसा के सिद्धांतों पर चर्चा की जाती है।
पाठ के अंतिम खंड में एक गुरु और उनके शिष्य के बीच हुई चर्चा को दर्शाया गया है। तीसरे खंड में एक शिष्य अपने गुरु से कई प्रश्न पूछता है, जैसे: "सर्वोच्च सत्य क्या है?, सुख और दुख के बीच क्या अंतर है?, सुख कैसे प्राप्त किया जाए? तथा अच्छे गुण क्या हैं और उन्हें कैसे समझाया जाए? इत्यादि। इसके बाद गुरु अपने शिष्य को त्रिगुणों (सत्व, रजस और तमस) के बारे में एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हैं और बताते हैं कि ब्रह्मांड में सब कुछ इन तीनों का ही मिश्रण है। इसके बाद गुरु द्वारा संसार की नश्वरता और मायावी प्रकृति की व्याख्या की जाती है।
इन तीनों खण्डों में हुई चर्चाओं को श्री कृष्ण, अर्जुन को सुना रहे होते हैं। इन तीनों कहानियों के माध्यम से अनुगीता तपस्या (तप), बलिदान (यज्ञ), और गुण (गुण) की अवधारणाओं पर चर्चा करती है। अनुगीता हमें सिखाती है कि मुक्ति पाने के लिए हमें हमारे मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना जरूरी है। हमें सांसारिक चीजों के प्रति अपने लगाव को त्यागना चाहिए और अपने आध्यात्मिक स्वभाव को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हालांकि यह प्रक्रिया आसान नहीं है, लेकिन जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने का यही एकमात्र तरीका है।
आदि गुरु शंकराचार्य भी अनु गीता को बड़े पैमाने पर उद्धृत करते थे। उन्होंने अपने गीता भाष्य में इसका संदर्भ भी दिया है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने भी इस पवित्र ग्रंथ को उद्धृत किया था। यद्यपि अनु गीता , भगवद गीता का अनुवर्ती पाठ है। लेकिन इसके बावजूद अनु गीता का संदर्भ और रचना भगवद गीता से थोड़ी-बहुत अलग है। भगवद गीता की व्याख्या युद्ध के मैदान में अर्जुन की नैतिक दुविधा और निराशा को कम करने के लिए की गई थी। इसमें श्री कृष्ण अर्जुन में कर्तव्य की भावना पैदा करके उसके संदेहों को दूर करते हैं। जिससे उसमे युद्ध करने के लिए आत्मविश्वास पैदा होता है। वहीँ अनु गीता पूरी तरह से अलग स्थिति में रची गई है। इसकी रचना युद्ध को जीतने के बाद की गई है। अब पांडवों द्वारा अपना राज्य वापस हासिल किया गया है, और वह शांति तथा समृद्धि के साथ अपने नए जीवन का आनंद ले रहे थे। भागवद गीता के 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं, जबकि अनुगीता के 36 अध्यायों में 1056 श्लोक हैं। भगवद गीता एक अधिक संक्षिप्त पाठ है जो हिंदू धर्म के दार्शनिक पहलुओं पर केंद्रित है। वहीँ अनु गीता एक अधिक विस्तृत पाठ है, जिसमें इसकी शिक्षाओं को स्पष्ट करने के लिए कहानियां और दृष्टान्त दिए गए हैं। भगवद गीता के समान ही अनु गीता में भी कई शिक्षाएं दी गई हैं, लेकिन इसमें कुछ नई और भिन्न जानकारियां भी दी गई हैं। कुल मिलाकर अनु गीता उन लोगों के लिए एक मूल्यवान ग्रंथ है जो हिंदू धर्म की दार्शनिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं के बारे में अधिक गहराई एवं गंभीरता से जानना चाहते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5fy3u6hz
https://tinyurl.com/2sjd8a6e
https://tinyurl.com/5d4bhw68
चित्र संदर्भ
1. 'अनुगीता' उपदेश को दर्शाता एक चित्रण (snl.no)
2. एक योद्धा के साथ बैठे श्री कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (Creazilla)
3. गुरु शिष्य को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. आदि शंकराचार्य को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
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