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क्या आप जानते हैं कि सबसे प्राचीन वेद, ऋग्वेद में “इंद्रदेव” का वर्णन सबसे अधिक बार किया गया है। ऋग्वेद के सभी 1028 सूक्तों (भजनों) में से लगभग एक तिहाई में कहीं न कहीं इंद्रदेव का संदर्भ मिल ही जाता है। क्योंकि लगभग 250 सूक्त उन्हें समर्पित हैं, जबकि 50 अन्य सूक्तों में अन्य वैदिक देवताओं के साथ उनका वर्णन किया गया है । कई श्लोकों में उन्हें ब्रह्मांड का स्वामी भी कहा गया है।
सनातन धर्म में इंद्र को सभी देवताओं सहित पूरे स्वर्ग का राजा भी माना जाता है। वह आकाश, प्रकाश, मौसम, मेघ, बादलों की गरज, तूफान, बारिश, प्रवाह और युद्ध के भी देवता माने जाते हैं। हालांकि, उत्तर-वैदिक भारतीय साहित्य में देवराज इंद्र का वर्णन कम मिलता है, लेकिन विभिन्न पौराणिक कथाओं में उनकी भूमिका अहम रही है।
हिंदू धर्म में इंद्र देव को एक शक्तिशाली स्वर्ग के राजा के रूप में माना गया है। इंद्र की प्रतिमा में उन्हें वज्र नामक एक अत्यंत शक्तिशाली अस्त्र एवं ऐरावत नामक सफेद हाथी पर सवार दिखाया जाता है। देवराज इंद्र के वज्र को किसी भी हिंदू देवता के पास मौजूद सबसे शक्तिशाली अस्त्रों में से एक माना जाता है। वज्र को देवताओं के वास्तुकार विश्वकर्मा द्वारा, वृत्रासुर को मारने के लिए ऋषि दधीचि की अस्थियों से बनाया गया था। भारत में प्रचलित किंवदंतियों में, इंद्र को ताकत, युद्ध कौशल और “सोम" नामक एक विशेष पेय के सेवन के लिए जाना जाता है। सोम एक पवित्र पेय माना जाता था, जिसका सेवन करने से उन्हें शक्ति और ताकत मिलती थी। एक अन्य प्रचलित किवदंती में वह “वृत्र" नामक एक विषैले सांप को मारकर, एक नदी को सुचारु तौर पर बहने में मदद भी करते हैं, जिसके प्रवाह को वह जहरीला अजगर रोके रहता था ।
इंद्र द्वारा इस नदी को मुक्त किये जाने से सीधे तौर पर मानव जाति को लाभ होता है। हिंदू धर्म के अलावा देवराज इंद्र को बौद्ध और जैन समाज की पौराणिक कथाओं में भी चित्रित किया गया है। बौद्ध धर्म में उन्हें त्रयस्त्रिम्सा स्वर्ग (Trayastrimsa heaven) के शासक शक्र (Sakra) के रूप में जाना जाता है। चीन China) में, उन्हें 24 सुरक्षात्मक देवताओं में से एक माना जाता है। जापान (Japan) में, वह 12 संरक्षक देवताओं में से एक माने जाते हैं ।
हालांकि, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भले ही ऋग्वेद और कई अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों में इंद्र को एक शक्तिशाली देवता के रूप दर्शाया गया है, लेकिन वहीं पारसी ग्रंथ ‘अवेस्ता’ (Avesta) में देवराज इंद्र को इसके ठीक विपरीत, एक नकारात्मक भूमिका में दर्शाया गया है। इस ग्रंथ में उन्हें एक महत्वहीन व्यक्ति के रूप में और एक दानव की भांति चित्रित किया गया है। ऋग्वेद के विपरीत, अवेस्ता में इन्द्र का उल्लेख केवल दो बार किया गया है। ईरानी परंपरा (अवेस्ता) में इंद्र और वृत्र नामक सांप से जुड़ी कोई भी कहानी प्रचलित नहीं है। पारसी धर्म में इंद्र को इसलिए भी दानव माना जाता है, क्योंकि वह रक्त बलि से जुड़े देवता हैं, जिसे पारसी धर्म में एक बर्बर और अनैतिक प्रथा माना जाता है।
हालांकि, ईरानी परंपरा की भांति भारतीय दर्शन में भी कई बार इंद्र को एक जटिल और विरोधाभासी देवता के रूप उल्लेखित किया जाता है। यहां पर वह विनाश एवं सृजन तथा हिंसा एवं शांति, दोनों पक्षों के देवता माने जाते हैं। ऋग्वेद के कुछ सूक्तों में, इंद्र को एक क्रूर और रक्तपिपासु देवता के रूप में भी चित्रित किया गया है। वहीँ कई अन्य सूक्तों में उन्हें एक परोपकारी देवता के रूप में चित्रित किया गया है, जो अपनी प्रजा की रक्षा करते हैं। देवराज इंद्र से जुड़ी एक बात और गौर करने लायक है कि भारतीय संस्कृति में उनकी पूजा नहीं की जाती।
इनके मंदिरों की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती है। वास्तव में, सनातन धर्म में इंद्र को एक देवता माना जाता है, न कि भगवान। हिंदू धर्म से संबंधित विभिन्न किंवदंतियों में देखने को भी मिलता है कि भले ही इंद्र स्वर्ग के राजा माने जाते हैं लेकिन उन्हें भी विश्वामित्र जैसे ऋषियों या रावण जैसे दानवों से हमेशा खतरा रहता है। वह कई बार उनसे बचते फिरते नजर आते हैं।
वास्तव में इंद्र वैदिक युग के देवता माने जाते हैं। उस दौरान प्राकृतिक शक्तियों जैसे कि वर्षा, अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा, नदियों आदि की पूजा की जाती थी। लेकिन फिर सभ्यता और ज्ञान की प्रगति के साथ ही उच्चतर आध्यात्मिक देवताओं की पूजा की जाने लगी। इसी क्रम में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पवित्र त्रिमूर्ति भी अस्तित्व में आई। अब भगवान विष्णु को ब्रह्मांड का संचालक माना जाने लगा और इसीलिए देवराज इंद्र ने अपनी प्रासंगिकता और सम्मान खो दिया। बाद के ग्रंथों में देवराज इंद्र को कमजोर, कायर, भ्रष्ट और कामी देवता के रूप में दिखाया जाने लगा। वह अपने सिंहासन को लेकर सदैव ही चिंतित रहते थे।
उनकी कामुकता ने भी उनके लिए खूब निंदा बटोरी। हालांकि, यज्ञों के माध्यम से देवराज इंद्र की पूजा अभी भी की जाती है। प्रत्येक यज्ञ इंद्र को आहुति व घीचढ़ाने के साथ ही शुरू और समाप्त होता है। विश्वदेवा के रूप में, इंद्र का नाम अधिकांश वैदिक मंत्रों में उच्चारित होता है। लेकिन बाद के धार्मिक ग्रंथों ने देवराज इंद्र की लोकप्रियता कम करने में अहम् भूमिका निभाई है। उदाहरण स्वरूप, पवित्र हिंदू ग्रंथ ‘भगवद गीता’ में, भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि “इंद्र की पूजा नहीं की जानी चाहिए।” कृष्ण ने ऐसा क्यों कहा होगा इसके कई कारण हैं। पहला कारण यह है कि देवराज इंद्र प्राकृतिक जगत के देवता हैं, जबकि कृष्ण आध्यात्मिक जगत के देवता माने जाते हैं। इसलिए संभव है कि श्री कृष्ण शायद यह चाहते थे कि उनके अनुयायी केवल प्रकृति के बजाय आध्यात्मिक प्रगति पर अधिक ध्यान केंद्रित करें। उनके सम्मान में गिरावट का एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि “इंद्र का अहंकार से संबंध जोड़ा जाता है।" हिंदू धर्म में, अहंकार को एक नकारात्मक शक्ति के रूप में देखा जाता है जो लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने से रोकता है। यहां पर अपने अनुयायियों को इंद्र की पूजा न करने के लिए कहकर, कृष्ण संभवतः उनसे अपनी “इन्द्रियों को वश में कर”, अपना अहंकार दूर करने का प्रयास करने के लिए कह रहे थे। हालांकि, भले ही हिंदू धर्म में इंद्र की पूजा करना निषिद्ध माना गया है, लेकिन फिर भी वर्तमान में कई हिंदुओं द्वारा उनकी पूजा की जाती है। पाकिस्तान में रहने वाले कैलाशा लोग आज भी इंद्र की पूजा करते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5xstxdbf
https://tinyurl.com/ymz2rpnw
https://tinyurl.com/y6f9h8tw
https://tinyurl.com/yac479ec
https://tinyurl.com/2f33y2ha
https://en.wikipedia.org/wiki/Indra
चित्र संदर्भ
1. देवराज इंद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, Creazilla)
2. देवराज इंद्र को रस्सी से बंधें हुए दर्शाती एक प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. आकाश के देवता, इंद्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पालतू हिरण के साथ अप्सरा को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
5. मयूर के साथ देवराज इंद्र को दर्शाता एक चित्रण (snl)
6. हाथ में गोवर्धन पर्वत उठायें श्री कृष्ण एवं ऊपर आकाश में देवराज इंद्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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