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5वीं से 6वीं शताब्दी के बीच, जिस समय गुप्त साम्राज्य निरंतर क्षीण हो रहा था, उसी समय आधुनिक मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में ‘उच्चकल्प’ और ‘परिव्राजक’ नामक दो ऐसे साम्राज्य उभरे, जिन्होंने इन क्षेत्रों में लगभग सौ वर्षों तक शासन किया। हालांकि, गहन शोध और जागरूकता के अभाव में आज इनके अस्तित्व की तलाश करना भी मुश्किल हो गया है। लेकिन आज पुराने सिक्कों, शिलालेखों तथा पुरानी पांडुलिपियों में वर्णित उल्लेखों के माध्यम से हम इन साम्राज्यों के महत्वपूर्ण शासकों और उनके कुछ योगदानों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
सबसे पहले हम ‘उच्चकल्प राजवंश’ (Uchchhakalpa Dynasty) के बारे में जानने का प्रयास करेंगे, जिन्होंने 5वीं से 6वीं शताब्दी के बीच, मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। उच्चकल्प राजवंश के अधिकार क्षेत्रों में, आधुनिक मध्य प्रदेश के उत्तर-पूर्वी हिस्से आते थे। उनकी राजधानी उच्चकल्पा जिसे वर्तमान में उंचेहरा के नाम से जाना जाता है, में स्थित थी। आज उंचेहरा, मध्य प्रदेश राज्य के सतना जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यह शहर, मध्य भारत में विंध्य सीमा क्षेत्र के आसपास स्थित है। उंचेहरा दूध से बने शुद्ध खोवे के लिए काफी प्रसिद्ध है, जिसे यहीं के गाँवों में बनाया जाता है। आज यह शहर दिल्ली, भोपाल और जबलपुर जैसे प्रमुख शहरों से रेल तथा सड़क परिवहन के जरिये, अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। आधुनिक उंचेहरा में कार्यालय ब्लॉक, तहसील, पुलिस-स्टेशन, अस्पताल, वन विभाग का कार्यालय, डाकघर, दूरसंचार-कार्यालय, बस अड्डा और रेलवे स्टेशन, उच्च माध्यमिक स्तर तक के स्कूल, मध्य प्रदेश भोज विश्वविद्यालय तथा दो धर्मशालाएँ जैसी सभी जरूरी और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र में परिहार राजपूत महाराजाओं का कबीर मठ, राज मंदिर (शाही मंदिर), और महाराजाओं की एक कोठी (किला) जैसे दर्शनीय स्थल भी मौजूद हैं। उंचेहरा के निकट ही 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के शासनकाल में निर्मित ‘पटैनी’ नामक एक जैन मंदिर भी है।
कुछ इतिहासकारों ने उंचेहरा की पहचान, उच्चकल्प वंश के राजाओं के शिलालेखों में वर्णित, “प्राचीन उच्चकल्पा शहर” के रूप में की है। एक अनिर्दिष्ट कैलेंडर युग (Unspecified Calendar Era) के दिनांकित शिलालेख में जयनाथ (वर्ष 174-182) और सर्वनाथ (वर्ष 191-214) नामक दो उच्चकल्प राजाओं का उल्लेख मिलता है।
उच्चकल्प शिलालेखो को मध्य भारतीय शैली की गुप्त लिपि में लिखा गया था। इन शिलालेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उच्चकल्प राजवंश के सबसे प्रारंभिक राजा ओघदेव थे। जिनके बाद राजा कुमारदेव, फिर जयास्वामिन और उनके बाद राजा व्याघ्र उनके उत्तराधिकारी बने। शिलालेखों के अनुसार राजा जयनाथ इस राजवंश को इस राजवंश के शुरुआती राजाओं में से माना जाता है। वे राजा व्याघ्र और रानी अज्जहितादेवी के पुत्र थे। जय नाथ के बाद उनका पुत्र श्रवण नाथ उत्तराधिकारी बना । हालांकि श्रवण नाथ के उत्तराधिकारियों के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है।
इस राजवंश के ज्ञात राजाओं और रानियों की सूची निम्नवत दी गई है:
● महाराज ओघा-देव और महादेवी कुमार-देवी (Mahārāja Ogha-Deva And Mahādevi
Kumarā-Devī)
● महाराज कुमार-देव और महादेवी जया-स्वामिनी (Mahārāja Kumarā-Deva And
Mahādevi Jaya-Svāminī)
● महाराज जया-स्वामी और महादेवी रमा-देवी ) Mahārāja Jaya-Svāmin And
Mahādevi Ramā-Devī)
● महाराज व्याघ्र और महादेवी अज्जहिता-देवी (Mahārāja Vyāghra And Mahādevi
Ajjhita-Devī)
● महाराजा जया-नाथ और महादेवी मुरुंडा-स्वामिनी (Mahārāja Jaya-Nātha And
Mahādevi Murunda-Svaminī, 493–507 ईसवी)
● महाराजा सर्व-नाथ (Mahārāja Śarva-Nātha (Sharvanatha), 508–533 ईसवी)
इनके अलावा उच्चकल्प शासनकाल के कुछ ताम्रपत्र शिलालेख भी खोजे गए हैं। जिनकी सूची निम्नवत दी गई है:
बुम्हरा पत्थर के एक स्तंभ शिलालेख में उच्चकल्प शासक श्रवणनाथ और परिव्राजक शासक हस्तिन को समकालीन (एक ही समय का) बताया गया है। इस शिलालेख के अनुसार बुम्हारा इन दोनों राज्यों के बीच की सीमा रेखा थी। इससे यह भी पता चलता है कि दोनों ही साम्राज्य, गुप्त साम्राज्य के जागीरदार थे। जानकार मानते हैं कि उच्चकल्प और परिव्राजक दोनों ही पड़ोसी साम्राज्य थे। परिव्राजक राजवंश ने भी 5वीं और 6वीं शताब्दी के दौरान मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस राजवंश के राजाओं ने महाराजा की उपाधि धारण की और संभवतः गुप्त साम्राज्य के सामंतों के रूप में शासन किया। इस राजवंश के बारे में इसके दो राजाओं ‘हस्तिन’ और ‘संक्षोभ’ के शिलालेखों से पता चलता है। ‘परिव्राजक’ शब्द का शाब्दिक अर्थ, ‘भ्रमणशील या घुमक्कड़ तपस्वी’ होता है। यह वंशावली संभवतः भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मणों के वंश से आई थी, जो कुछ समय पहले तक शायद भटकते हुए तपस्वी रहे होंगे।
समक्षोभा के खोह शिलालेख में “सुशर्मन” को भारद्वाज गोत्र का एक विद्वान तपस्वी बताया गया है और उनकी तुलना महर्षि कपिल से की गई है। इसमें कहा गया है कि वह ‘संपूर्ण सत्य’ और विज्ञान की चौदह शाखाओं को जानते थे। महाराजा देवाध्या, सुशर्मन के वंशज थे, और उनके पुत्र महाराजा प्रभंजन उनके उत्तराधिकारी बने। प्रभंजन के उत्तराधिकारी उनके पुत्र महाराजा दामोदर बने।
परिव्राजक के शिलालेखो में शाही गुप्त राजवंश का उल्लेख मिलता है, लेकिन इनमें किसी भी गुप्त अधिपति का उल्लेख नहीं मिलता है। हालाँकि, ‘महाराजा’ शीर्षक का उपयोग आमतौर पर सामंती राजाओं द्वारा उपयोग किया जाता था जिससे यह पता चलता है कि परिव्राजक गुप्तों के सामंत थे। हालांकि कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार भले ही परिव्राजक मूल रूप से गुप्तों के सामंत थे, लेकिन हस्तिन के शासनकाल तक वह स्वतंत्र हो गए थे। दामोदर के पुत्र महाराजा हस्तिन ने कई युद्ध जीते थे। साथ ही वह एक दानी राजा भी थे, जिन्होंने ब्राह्मणों को गायें, घोड़े, हाथी, सोना और जमीनें दान में दी थी। हस्तिन ने कम से कम 42 वर्षों तक शासन किया था। क्योंकि उनका सबसे पहला शिलालेख वर्ष 156 का और अंतिम शिलालेख वर्ष 198 का है। खोजे गए भुमरा शिलालेख में उन्हें महादेव (शिव) के चरणों में ध्यान करते हुए वर्णित किया गया है, जिससे यह पता चलता है, हस्तिन शैव धर्म के अनुयायी थे।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के सतना जिले में उंचेहरा के पास स्थित एक बहुत छोटी सी बस्ती ‘खोह’ में परिव्राजक और उच्चकल्प, दोनों ही साम्राज्यों के शिलालेख मिलते हैं। प्राप्त शिलालेखों से पता चलता है कि गुप्त काल में इस क्षेत्र का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहा होगा। इस स्थान पर कम से कम आठ ताम्रपत्र अनुदान पाए गए हैं जो सभी गुप्त काल के हैं। खोह में कुल आठ प्लेटें (Plates) खोजी गई हैं, जिनमें से तीन परिव्राजक वंश की और पांच उच्चकल्प वंश की हैं। यहाँ पर परिव्राजक शासकों के तीन तांबे के अनुदान (दो महाराजा हस्तिन के और एक महाराजा संक्षोभ के) भी खोजे गए हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3h46web3
https://tinyurl.com/2znvkwr4
https://tinyurl.com/yc43w87a
https://tinyurl.com/2p8ax3c5
चित्र संदर्भ
1. जयनाथ के कटनी शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 534 सीई के खोह ताम्रपत्र शिलालेख को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. जयनाथ के कटनी शिलालेख की प्लेट संख्या 3 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कुमरा मठ स्थल से प्राप्त छठी शताब्दी की प्रारंभिक चार पक्षीय वैष्णव कलाकृति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. उचेहरा रेलवे स्टेशन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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