Post Viewership from Post Date to 11-Oct-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2430 500 2930

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

“तंत्र” की सही व्याख्या समझने के लिए जरूरी है, अभिनवगुप्त रचित “तंत्रलोक” का अध्ययन

मेरठ

 11-09-2023 02:25 PM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

"तंत्र" शब्द को आमतौर पर वासना और यौन अभ्यास से जोड़कर, त्रुटिपूर्ण या नकारात्मक संदर्भ में पेश किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। वास्तव में जो लोग तंत्र की प्राचीन परंपरा, जटिलता और आध्यात्मिक गहराई को नहीं समझ पाए, उन्हीं लोगों के द्वारा तंत्र को एक घिनौने अभ्यास के रूप में प्रचारित किया गया।
आपको बता दें कि, तंत्र का अभ्यास प्राचीन भारत में लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास शुरू हुआ था। यह एक रहस्यमय और आध्यात्मिक आंदोलन था, जिसके अंतर्गत अनुष्ठान, ध्यान और योग के माध्यम से चेतना की उच्च स्थिति प्राप्त करने की कोशिश की जाती थी। वास्तव में "तंत्र", हमारे जीवन के साथ बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है। इसका सीधा संबंध सद्जीवन और सद्गति, यानी निर्वाण की प्राप्ति करने से है। प्राचीन समय में तंत्र का प्रमुख उद्देश्य हमें हमारे भौतिक अस्तित्व की शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से पार ले जाना था। यह हमारी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से के चक्र को जागृत करने का अभ्यास है, जिससे चेतना का उत्थान होता है और मनुष्य पूर्ण समाधि अथवा निर्वाण की ओर अग्रसर होता है। कई महान दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के दावे को सत्य साबित करते हुए, तंत्र का दर्शन (Philosophy Of Tantra) भी इस बात पर बहुत अधिक जोर देता है कि "इस ब्रह्मांड में सभी चीजें आपस में परस्पर जुड़ी हुई हैं।"
यह पूरे ब्रह्मांड को परमात्मा के अवतार या अंश के रूप में देखता है। “शक्ति” की अवधारणा तंत्र दर्शन के मूल में निहित है। यह स्त्री की दिव्य ऊर्जा पर बल देता है, जो ब्रह्मांड में हर चीज में व्याप्त है। परमात्मा का स्त्री स्वरूप, सृजन की शक्ति से संपन्न है। इसी शक्ति के बल पर सैकड़ों और हजारों ब्रह्मांडों का जन्म हुआ। दूसरे शब्दों में, यह प्राण या सृजन की ऊर्जा है। तंत्र कहता है कि, ध्यान विधियों का उपयोग करके, यौन ऊर्जा को उच्च रचनात्मक कंपनों में भी परिवर्तित किया जा सकता है। तंत्र के अनुसार, मातृ दिव्यता स्वयं भी सृष्टिकर्ता या परम शिव से जुड़ी हुई है। इस प्रकार, “शक्ति के उपयोग से सम्पूर्ण श्रृष्टि के रचनाकार तक पहुंचा जा सकता है।” लेकिन ऐसा करने के लिए हमें हमारे सूक्ष्म शरीर में स्थित ऊर्जा केंद्रों के भंवर "चक्र" को सक्रिय करना होगा। तंत्र हमें सिखाता है कि, ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु या विषय (जिसमें हमारी कामुकता भी शामिल है।) दैवीय ऊर्जा से युक्त है। आध्यात्मिक विकास के लिए इस ऊर्जा का दोहन और उपयोग करना जरूरी है। हालांकि कमज़ोर दिल वाले या आवेगी लोगों को इस अभ्यास से दूर रहने की सलाह दी जाती है। तंत्र के लिए व्यापक प्रशिक्षण, तैयारी और कठिन प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है।
हालांकि अपने समृद्ध इतिहास और आध्यात्मिक महत्व के बावजूद, दुर्भाग्य से “ पश्चिम की दुनियां में तंत्र को पूरी तरह से यौन केंद्रित अभ्यास के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है।” तंत्र के प्रति फैली इस नकारात्मकता का मुख्य कारण, “तंत्र का वह गलत और विकृत संस्करण है, जिसे 1960 और उसके बाद के काउंटरकल्चर आंदोलन (Counterculture Movement) के दौरान पश्चिम में फैलाया गया था।” पश्चिम में प्रचलित तंत्र के संस्करणों ने मुख्य रूप से कामुकता और सुखवाद पर ही ध्यान केंद्रित किया एवं इस परंपरा के गहरे आध्यात्मिक पहलुओं की हमेशा उपेक्षा ही की। दुर्भाग्य से इस गलत बयानी ने तंत्र को एक गलत अभ्यास के रूप में पेश किया है, जिसके अनुसार यह केवल एक यौन अभ्यास है। लेकिन अब आप भी जानते हैं कि वास्तविकता इससे कोसों दूर है।
तंत्र की वास्तविक एवं उचित परिभाषा को सामने लाने के लिए प्राचीन भारतीय लेखक, “अभिनवगुप्त” की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति "तंत्रलोक" को मूल आधार माना जा सकता है। तंत्रलोक में उन्होंने 64 अद्वैत आगमों और तंत्र के विभिन्न स्कूलों का विस्तृत विश्लेषण दिया गया है। इसके 37 अध्यायों में तंत्र के अनुष्ठानिक और दार्शनिक दोनों पहलुओं पर चर्चा की गई। अपने आकार और दायरे के कारण तंत्रलोक को हिंदू तंत्र के अद्वैत विद्यालय का विश्वकोश माना जाता है। तंत्रलोक 10वीं सदी में लिखा गया था और 19वीं सदी के अंत में इसे पुरानी पांडुलिपियों में फिर से खोज लिया गया। "तंत्रलोक" का शाब्दिक अर्थ 'तंत्र की व्याख्या' होता है। तंत्रलोक के रचयिता अभिनवगुप्त को एक प्रभावशाली संगीतकार, कवि, नाटककार, व्याख्याता, धर्मशास्त्री और तर्कशास्त्री भी माना जाता है। अभिनवगुप्त का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने समय में दर्शन और कला के सभी स्कूलों का अध्ययन पंद्रह (या अधिक) शिक्षकों और गुरुओं के मार्गदर्शन में किया। *यहां पर "स्कूल" शब्द विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों के बजाय विभिन्न दार्शनिक और कलात्मक परंपराओं को संदर्भित करता है, जिनके बारे में अभिनवगुप्त ने अपने शिक्षकों और गुरुओं से सीखा था। अपने जीवनकाल में उन्होंने 35 से अधिक रचनाएँ कर डाली, जिनमें तंत्रलोक, कौल और त्रिक (जिसे आज कश्मीर शैववाद के रूप में जाना जाता है।) उनके सबसे प्रसिद्ध विश्वकोश ग्रंथ माने जाते है।
हालांकि यह जानना काफी दिलचस्प है कि “अभिनवगुप्त" उनका वास्तविक नाम नहीं था, बल्कि एक उपाधि थी जो उन्होंने अपने गुरु से अर्जित की थी।” अभिनवगुप्त का अर्थ "योग्यता और अधिकारिता" होता है। अभिनवगुप्त ने भरत के “नाट्यशास्त्र” पर “अभिनवभारती” नामक एक उल्लेखित टिप्पणी भी लिखी। उन्होंने पहली बार रस की तकनीकी परिभाषा पेश की। उनके अनुसार, "रस नाटक के भावनात्मक स्वर से रंगा हुआ आत्मा का सार्वभौमिक आनंद है।" रस-भाव भारतीय प्रदर्शन कलाओं जैसे नृत्य, नाटक, सिनेमा, साहित्य आदि में केंद्रीय अवधारणा है।
अभिवनगुप्त ने शांतम नामक “नौवां रस” पेश किया, जो शांति या स्थिरता को दर्शाता है। ये कुल नौ रस एकजुट होकर "नवरस" का निर्माण करते हैं। रस के अभाव में भाव का कोई अर्थ नहीं रह जाता। भाव मन की अवस्था है, जबकि रस उस भाव से उत्पन्न सौंदर्यात्मक स्वाद होता है। आसान शब्दों में उदाहरण के तौर पर समझें तो : जब किसी फिल्म को देखते समय एक दुखद दृश्य हमें रुला देता है, तो वास्तव में वही दृश्य इस फिल्म का “रस” होता है। अभिनवगुप्त की बहुमुखी प्रतिभा इतनी उल्लेखनीय थी कि, उनके कार्यों पर आज भी दुनिया भर के पचास से अधिक देशों में शोध किया जाता है। वह सदियों से बड़े पैमाने पर दक्षिण भारतीय शैव तंत्रवाद से जुड़े रहे। आचार्य अभिनवगुप्त की बहुमूल्य शिक्षाएँ समकालीन समाज में लाभदायक साबित हो सकती हैं, लेकिन बड़े ही दुख की बात है कि “आज स्कूली किताबों में उनका कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है।”

संदर्भ
https://tinyurl.com/3yfz4aaf
https://tinyurl.com/5n7utuax
https://tinyurl.com/4eubrwhc
https://tinyurl.com/5f5vnnfx
https://tinyurl.com/5n6ddyu9

चित्र संदर्भ 
1. तंत्रलोक पुस्तकों और माँ काली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, PICRYL)
2. 7 चक्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. तांत्रिक ध्यान के रहस्यमय शरीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अभिनवगुप्त द्वारा रचित तंत्रलोक पुस्तकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. विविध तंत्र स्थितियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id