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विभिन्न वस्तुओं के साथ संस्कृतियों के वैश्विक आदान-प्रदान में सहायक बना “रेशम मार्ग”

मेरठ

 28-08-2023 09:43 AM
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक

प्राचीन काल में रेशम मार्ग से जुड़े विभिन्न मार्गों पर सिर्फ रेशम ही नहीं, बल्कि कई अन्य वस्तुओं का भी व्यापार होता था। इन मार्गों से न केवल विभिन्न वस्तुओं का बल्कि, विभिन्न देशों के विचारों और शिक्षाओं का वैश्विक आदान-प्रदान हुआ। “वैश्वीकरण” के जिस रूप को आज हम देख रहे हैं, वह वास्तव में रेशम मार्ग की शुरूआत के कारण ही अपने वर्तमान स्वरूप में आया है। तो आइए जानते हैं कि आखिर वे कौन सी वस्तुएं थीं, जिनका रेशम मार्ग के माध्यम से आदान-प्रदान किया गया तथा कैसे यह मार्ग वैश्वीकरण में सहायक बना। सबसे पहले तो यह जानते हैं, कि आखिर रेशम मार्ग क्या है? रेशम मार्ग, व्यापार मार्गों का एक तंत्र था, जिसने चीन (China) और सुदूर पूर्व को मध्य पूर्व और यूरोप (Europe) के साथ जोड़ा था। इसकी स्थापना 130 ईसा पूर्व में हुई, जब चीन में हान राजवंश (Han Dynasty) ने आधिकारिक तौर पर पश्चिमी देशों के साथ व्यापार शुरू किया। यह मार्ग 1453 ईस्वी तक उपयोग में रहे, किंतु इसके बाद ऑटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) ने चीन के साथ व्यापार बंद कर दिया, हालांकि, रेशम मार्ग का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए होता रहा। इन मार्गों का स्थायी प्रभाव वाणिज्य, संस्कृति और इतिहास पर आज भी देखा जा सकता है। पूर्वी, मध्य और पश्चिमी यूरोप से जुड़ने से पहले रेशम मार्ग वर्तमान चीन, कजाकिस्तान (Kazakhstan), रूस (Russia), तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan), उज्बेकिस्तान (Uzbekistan), अजरबैजान (Azerbaijan), भारत, ईरान (Iran), अफगानिस्तान (Afghanistan), यूक्रेन (Ukraine) और बेलारूस (Belarus) से जुड़ा हुआ था। समुद्री रेशम मार्ग वर्तमान वियतनाम (Vietnam), फिलीपींस (Philippines), इंडोनेशिया (Indonesia), मलेशिया (Malaysia), सिंगापुर (Singapore), भारत, श्रीलंका (Sri Lanka), पाकिस्तान (Pakistan), ईरान और खाड़ी अरब राज्यों तक फैले बंदरगाहों तक पहुंचा और अलेक्जेंड्रिया (Alexandria), वेनिस (Venice), जेनोआ (Genoa) और कैडिज़ (Cadiz) तक इनका विस्तार जारी रहा। विभिन्न संघर्षों और प्रतिस्पर्धाओं के बावजूद भी वस्तुओं, भाषाओं और धर्मों का आदान-प्रदान और प्रवाह होता रहा। रेशम मार्ग व्यापारियों, तीर्थयात्रियों, भिक्षुओं, सैनिकों और खानाबदोश लोगों को राजकुमारियों, जादूगरों, शास्त्रियों और साधारण निवासियों के संपर्क में लाया। सम्राटों, खानों, सुल्तानों और राजाओं ने निश्चित रूप से रेशम मार्ग के विभिन्न हिस्सों पर नियंत्रण की मांग की, लेकिन किसी ने भी उनमें हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं की। विचारों, कौशलों, औषधियों और सौंदर्यशास्त्र की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ-साथ, बौद्ध धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म जैसे प्रमुख धर्मों के प्रसार में भी रेशम मार्ग सहायक बना। रोमन साम्राज्य (Roman Empire) और यूरोप में व्यापारियों के बीच चीन के रेशम की लोकप्रियता के कारण “रेशम मार्ग” को अपना नाम प्राप्त हुआ, लेकिन रेशम ही एकमात्र ऐसी सामग्री नहीं थी, जिसका पूर्व के देशों से पश्चिमी देशों में निर्यात हुआ हो। रेशम मार्ग की मदद से फल, सब्जियां, पशुधन, अनाज, चमड़ा, खाल, विभिन्न प्रकार के उपकरण, धार्मिक वस्तुएं, कलाकृतियां, कीमती पत्थर और धातुओं का आदान-प्रदान संभव हुआ। हान राजवंश के दौरान चीन के लोगों ने कागज और बारूद जैसी वस्तुओं का आविष्कार किया, तथा रेशम मार्ग की मदद से पश्चिमी देशों की संस्कृति और इतिहास पर इसका स्पष्ट और स्थायी प्रभाव पड़ा। पूर्व और पश्चिमी देशों के बीच जिन वस्तुओं का सबसे अधिक कारोबार किया गया था, वह कागज और बारूद उनमें से एक थे। यूरोप में कागज के आगमन ने महत्वपूर्ण औद्योगिक परिवर्तन को बढ़ावा दिया, अब लिखित शब्द पहली बार जन संचार का एक प्रमुख रूप बन गए थे। गुटेनबर्ग (Gutenberg) के प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार से पुस्तकों और समाचार पत्रों का बड़े पैमाने पर उत्पादन हुआ, जिससे समाचार और सूचना का व्यापक आदान-प्रदान संभव हुआ। इसके अलावा, रेशम मार्ग के कारण पूर्वी देशों के समृद्ध मसाले भी तीव्रता के साथ पश्चिमी देशों में लोकप्रिय हुए और पूरे यूरोप में बनाए जाने वाले व्यंजनों में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया। इसी प्रकार, कांच बनाने की तकनीकें इस्लामी दुनिया से पूर्वी देशों की ओर स्थानांतरित होने लगीं। अनेक खोजकर्ता, सुदूर पूर्व की संस्कृति और भूगोल को बेहतर ढंग से समझना चाहते थे, किंतु रेशम मार्ग की शुरूआत से पहले ऐसा करना बहुत कठिन था। वेनिस (Venice) मूल के खोजकर्ता मार्को पोलो (Marco Polo) ने इटली (Italy) से चीन तक यात्रा करने के लिए रेशम मार्ग का उपयोग किया। उस समय यह क्षेत्र मंगोलियाई साम्राज्य के नियंत्रण में था तथा मार्को पोलो 1275 में यहां पहुंचे थे। मार्को पोलो ने कुबलई खान (Kublai Khan) के दरबार में काम करते हुए एशिया में 24 साल बिताए। 1295 में, जब मंगोलियाई साम्राज्य का पतन हो रहा था, तब मार्को पोलो रेशम मार्ग के माध्यम से वापस वेनिस लौट आए। रेशम मार्ग पर पोलो की यात्रा का उल्लेख उनकी पुस्तक "द ट्रेवल्स ऑफ़ मार्को पोलो" (The Travels of Marco Polo) में मिलता है। इस पुस्तक ने यूरोपीय लोगों को एशियाई वाणिज्य और संस्कृति की बेहतर समझ प्रदान की। पोलो और बाद में वॉन रिचथोफ़ेन (Von Richthofen) ने अपने कार्यों में उन वस्तुओं का उल्लेख किया, जिनका रेशम मार्ग की मदद से आदान प्रदान किया गया था। पश्चिमी देशों से पूर्वी देशों में ले जायी गई वस्तुओं में घोड़े, सैडल्स और राइडिंग टैक (Saddles and Riding Tack), अंगूर की बेल, कुत्ते तथा विदेशी और घरेलू जानवर, जानवरों के फर और खाल, शहद, फल, कांच के बने बर्तन, ऊनी कंबल, गलीचे, कालीन, कपड़ा (जैसे पर्दे), सोना और चांदी, ऊंट, गुलाम, हथियार और कवच शामिल थे। जबकि, पूर्व से पश्चिम की ओर ले जाई गई वस्तुओं में रेशम, चाय, रंग, कीमती पत्थर, चीनी मिट्टी के बर्तन जैसे प्लेटें, कटोरे, कप, फूलदान आदि, मसाले (जैसे दालचीनी और अदरक), कांस्य और सोने की कलाकृतियां, दवा, इत्र, हाथी दांत, चावल, कागज़, बारूद आदि शामिल हैं। हिमालय के दर्रों से होकर मध्य एशिया में आयातित विभिन्न वस्तुओं में खाद्यान्न, कपास, रंगाई सामग्री, बर्तन, सूखे मेवे, रेशम, केसर, शॉल और पश्चिमी हिमालय की कलाकृतियां और बहुमूल्य वस्तुएं तथा तिब्बत के अर्द्ध कीमती पत्थर, जड़ी-बूटियां, सोने की धूल, कस्तूरी, नमक, बोरेक्स (Borax) और जानवर शामिल थे।

संदर्भ:
https://l1nq.com/22uIu
https://urx1.com/vkXpU
https://tinyurl.com/4vtba77u
https://tinyurl.com/bdh498js
https://tinyurl.com/mv769n67

चित्र संदर्भ
1. रेशम मार्ग में आदान प्रदान को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
2. रेशम मार्ग के मानचित्र को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. चीन में हान राजवंश को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. कारवां के दृश्य को दर्शाता चित्रण (Pxfuel)
5. सिल्क रोड पर आधुनिक कालीन को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. रेशम मार्ग के व्यापारियों की कलाकृति को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. "मार्को पोलो" की यात्रा को दर्शाता चित्रण (PICRYL)

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