Post Viewership from Post Date to 23-Sep-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2198 638 2836

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

मेरठ की बेटी “निष्ठा”, भारत की कृति– शतरंज को कर रही है देश में प्रसिद्ध

मेरठ

 23-08-2023 09:35 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

आप, आधुनिक शतरंज खेल के बारे में जानते ही होंगे। परंतु, क्या आपको इस खेल का इतिहास पता हैं? आइए, जानते हैं। दरअसल, शतरंज का प्रारंभिक स्वरूप ‘चतुरंग’ था। यह रणनीति बोर्ड (Board) से संबंधित, एक प्राचीन भारतीय खेल है। इसे संस्कृत भाषा में ‘चतुरङ’ कहा जाता है। हम इस बोर्ड खेल को आधुनिक भारतीय शतरंज का जनक कह सकते हैं। सबसे पहली बार भारत में, चतुरंग को ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी के आसपास जाना गया। फिर बाद में, इसे ईरान (Iran) में शतरंज के रूप में अपनाया गया था, जो मध्य-कालीन यूरोप (Europe) में प्रसिद्ध हुए आधुनिक शतरंज का ही एक रूप था। सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े लोथल शहर से एक बोर्ड पर शतरंज के समान टुकड़ों के पुरातात्विक अवशेष पाए गए हैं।इन्हें 2000 से 3000 ईसा पूर्व का माना जा रहा है। “चतुरंग” का वर्णन सबसे पहले हिंदू ग्रंथ भविष्य पुराण में किया गया था। भविष्य पुराण को आधुनिक चीजों तथा प्रक्षेपों को शामिल करने के लिए जाना जाता है। हालांकि, चतुरंग के सटीक नियम हमें ज्ञात नहीं हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, इस खेल के नियम आज के आधुनिक शतरंज के समान ही थे।
संस्कृत शब्द “चतुरंग” का अर्थ, “चार अंग” या “चार भुजाएं” है, जो पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी सेना और रथ सेना के प्राचीन सैन्य खंडों को संदर्भित करता है। चतुरंग की उत्पत्ति सदियों से एक पहेली बनी हुई है। माना जाता है कि, इसकी उत्पत्ति गुप्त साम्राज्य में हुई थी, जिसका सबसे पहला स्पष्ट संदर्भ छठी शताब्दी और उत्तर भारत से मिलता है। जबकि, चतुरंग इससे कहीं अधिक पुराना है। इसके संदर्भ में तथ्य यह है कि, रथ चतुरंग बोर्ड पर सबसे शक्तिशाली मोहरा है, हालांकि, कम से कम पांच या छह सदियों से रथ युद्ध में प्रचलित ही नहीं थे। चतुरंग को बिना चौरस के 8×8 बोर्ड पर खेला जाता था, जिसे अष्टपद कहा जाता था। अष्टपद एक खेल का नाम भी है। इस बोर्ड पर कभी-कभी विशेष चिह्न बने होते थे, जिनका अर्थ भी आज अज्ञात है। हालांकि, कहा जाता है कि, ये निशान चतुरंग से संबंधित नहीं थे, बल्कि परंपरागत रूप से ही बोर्ड पर बनाए गए थे। ये विशेष चिह्न उन चौरस से मेल खाते हैं, जिन तक नियमों के अनुसार कोई भी मोहरा पहुंच नहीं सकता है। कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि, अष्टपद का उपयोग कुछ पुराने पासा खेल प्रकार के लिए भी किया जाता था। शायद, यह खेल प्रकार ‘चौका भार’ के समान था, जिसमें निशानों का कुछ अर्थ होता था। चतुरंग खेल का प्रारंभिक संदर्भ हमें कभी-कभी सुबंधु द्वारा उनकी ‘वासवदत्ता’ नामक किताब में मिलता है, जो पांचवीं से सातवीं शताब्दी ईस्वी के बीच प्रकाशित हुई थी। आइए, शतरंज और चतुरंग के बीच कुछ दिलचस्प तुलनाओं पर एक नजर डालते हैं। चतुरंग अपने मोहरों को संबोधित करने हेतु, शतरंज के समान ‘काला’ और ‘सफ़ेद’ शब्दों का उपयोग नहीं करता है। इसके बजाय, यह ‘बड़ा मोहरा’ तथा ‘छोटा मोहरा’ आदि शब्दों का उपयोग करता है। चतुरंग में, जहां राजा, रानी से अधिक शक्तिशाली था, वहीं शतरंज में रानी अलौकिक क्षमताओं से परिपूर्ण होती है। शतरंज में एक महिला छवि को एक शक्तिशाली भूमिका सौंपकर लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के यह एक सूक्ष्म प्रयास के रूप में अच्छा प्रयास है। शतरंज में चेकमेट (Checkmate) खेल के अंत का संकेत देता है, वहीं चतुरंग में, खिलाड़ी के पास तब भी अपने प्रतिद्वंद्वी के राजा को चेक से सावधान करने और चेकमेट से बचने का मौका हो सकता है।
इसके अलावा, शतरंज में जब कोई मोहरा आठवीं पंक्ति में पहुंचता है, तो खिलाड़ी के पास उसे रानी, हाथी, ऊंट या वजीर के रूप में पदोन्नत करने का विकल्प होता है। हालांकि, चतुरंग में मोहरे को केवल रानी के लिए ही पदोन्नत किया जा सकता है। यह जानना मनोरंजक है कि शतरंज में, प्रत्येक मोहरे को अपनी पहली चाल में एक या दो वर्ग/चौरस आगे बढ़ाने की अनुमति होती है, जबकि चतुरंग में, यह एक वर्ग तक सीमित है। हालांकि, अब भारत तथा पूरे विश्व में ही आधुनिक शतरंज प्रसिद्ध है। पिछले कुछ दशकों में भारत में शतरंज की लोकप्रियता काफ़ी बढ़ गई है। इसका मुख्य कारण, शतरंज के उत्कृष्ट खिलाड़ी, जीएम या ग्रैंडमास्टर (Grandmaster) और 5 बार विश्व चैंपियन (Champion) रह चुके विश्वनाथन आनंद से अन्य खिलाड़ियों को मिली प्रेरणा हैं। इनके अलावा, प्रथम राष्ट्रीय चैंपियन रामचंद्र सपरे (1955), प्रथम भारतीय अंतर्राष्ट्रीय मास्टर मैनुअल एरोन (1961), प्रथम भारतीय ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद (1988), और प्रथम भारतीय महिला ग्रैंडमास्टर सुब्बारमन विजयालक्ष्मी (2001) आदि खिलाड़ियों से भी आज शतरंज खिलाडियों की पीढ़ी प्रेरणा पाती है। एक ऐसे ही प्रेरक एवं कुशल खिलाड़ी का उदाहरण हमारे शहर मेरठ में भी है। जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलना सीखते हैं, उस उम्र में अगर कोई बच्चा शतरंज की चालों को उलझाने और सुलझाने लगे, तो यह कमाल की बात है। दरअसल, हमारे शहर मेरठ के पांडवनगर के निवासी श्री विवेक त्यागी की बेटी निष्ठा में कुछ ऐसा ही हुनर है। विवेक त्यागी शहर में एक शतरंज अनुशिक्षण केंद्र चलाते हैं। केंद्र में खिलाड़ियों को शतरंज के नियम सिखाते समय, निष्ठा अपने पिता के साथ होती थी। ऐसे में, केवल चार साल की उम्र में ही वह शतरंज सीखने लगी। इतना ही नहीं लगातार अभ्यास से उसके खेल में निखार आ रहा है। सात वर्षीय निष्ठा त्यागी, अपनी बाल अवस्था में ही शतरंज के बड़े-बड़े खिलाड़ियों को मात दे रही है। आपको जानकर हैरानी होगी कि शतरंज की चालों से निष्ठा वरिष्ठ खिलाड़ियों को भी उलझा रही है। निष्ठा ने अब तक जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इन प्रतियोगिताओं में अपना जलवा बिखेर कर वह, अब शतरंज में कई महत्वपूर्ण पदक अपने नाम कर चुकी है।
निष्ठा को मिले पदक निम्नलिखित हैं:
1.2016 में अंडर-7(Under–7) वर्ग में राज्य प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक;
2.2017 में अंडर-14 वर्ग में जिला स्तर पर रजत पदक।
3.2017 में अंडर-9 वर्ग में जिला स्तर पर स्वर्ण पदक।
4.2017 में खेल चेतना मेले में अंडर-9 वर्ग में स्वर्ण पदक।
5.2017 में मुक्त वरिष्ठ राज्य प्रतियोगिता इलाहबाद में प्रतिभाग।
6.2018 में सोनीपत में मुक्त वरिष्ठ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग।
7.2018 में द्वितीय खेल चेतना मेले में अंडर-7 में स्वर्ण पदक।
8.2018 में सीबीएसई (CBSE) उत्तर प्रभाग में अंडर-19 वर्ग में कांस्य पदक।
9.2018 में डीएवी संघ (DAV cluster) में अंडर-19 में स्वर्ण पदक।
10.2018 में डीएवी जोनल (DAV zonal) में अंडर-19 वर्ग में स्वर्ण पदक। शतरंज केंद्र के प्रशिक्षक विवेक त्यागी ने बताया है कि, शतरंज में एकाग्रता की जरूरत होती है। जो छोटे बच्चों के लिए मुश्किल है। लेकिन, उनकी बेटी निष्ठा शतरंज को बड़ी एकाग्रता और धैर्य से खेलती है। कई बार वह पिता से प्रशिक्षण ले रहे बच्चों को भी शतरंज सिखाना शुरू कर देती है। विश्वनाथन आनंद को आदर्श मानते हुए वह इस खेल में आगे बढ़ रही है।
हमारे लिए कितनी गर्व की बात है कि शतरंज की उत्पत्ति भारत से हुई है। और अब, हमारे देश में इस खेल के प्रति लोकप्रियता भी काफी बढ़ रही है। जबकि, हमारे शहर की बेटी निष्ठा का हुनर तो वाकई में प्रशंसनीय है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/spv7yjyv
https://tinyurl.com/yn8dah5p
https://tinyurl.com/4cz7s4me
https://tinyurl.com/bdf4kp9n

चित्र संदर्भ
1. शतरंज खेलती युवती को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
2. वल्लट्टम और शतरंज मोहरों को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. चतुरंग को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. भारतीय चतुरंग शतरंज सेट को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. शतरंज क्लासिक में विश्व शतरंज चैंपियन विश्वनाथन आनंद को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. शतरंज खेलती लड़की को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id