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भारत में उल्कापिंडों के गिरने से बनी हैं कुछ अद्भुत भूसंरचनाएं

मेरठ

 18-08-2023 10:01 AM
खनिज

हमारे ग्रह पृथ्वी के निर्माण के 4.5 अरब वर्षों में, हमनें आज तक यहां घटित कई घटनाओं के बारे में जानकारी इकट्ठा कर ली है । हालांकि, कभी-कभी हमारा ग्रह, बाहरी अंतरिक्ष से आने वाली अद्भुद वस्तुओं का भी साक्षी रहा है, जिन्हें हम उल्कापिंड कहते हैं। कुछ पिंड तो एक कंकड़ जितने छोटे होते है,जबकि, कुछ अन्य तो इतने बड़े होते हैं कि,वे वैश्विक प्रभाव पैदा करते हैं।
पृथ्वी की सतह पर बाहरी अंतरिक्ष से निरंतर कुछ उल्कापिंड गिरते रहते हैं। हालांकि, इनमें से अधिकांश हमारे वायुमंडल में प्रवेश करने पर जल जाते हैं। हम रात्रि के आकाश में क्षणभंगुर उज्ज्वल जलन के रूप में इस उल्कापात का आनंद लेते हैं। इसे हम आमतौर पर टूटता तारा कहते हैं।दिन के दौरान भी उल्कापात होते है, परंतु सूर्य प्रकाश के कारण हम उन्हें नहीं देख पाते हैं। कनाडा(Canada)के न्यूब्रंसविक विश्वविद्यालय(University of New Brunswick) के ग्रह एवं अंतरिक्ष विज्ञान केंद्र (Planetary and Space Science Centre) के अनुसार, पृथ्वी पर गिरे उल्कापातों द्वारा निर्मित 190 प्रभाव संरचनाएँ(Impact Craters) मौजूद हैं। प्रत्येक उल्कापात की जानकारी को उनके डेटाबेस(Database) में दर्ज किया गया है।
“उल्का प्रभाव क्रेटर”, पृथ्वी के भूवैज्ञानिक अतीत के बारे में हमें जानकारी प्रदान करते हैं। वैज्ञानिक हमारे गतिशील सौर मंडल के इतिहास को समझने के लिए इन संरचनाओं का अध्ययन करते हैं। साथ ही, वे भविष्य के प्रभाव परिदृश्यों की भविष्यवाणी करने के लिए इस जानकारी का उपयोग करते हैं।
आइए,भारत में उल्कापातों के परिणामस्वरूप बनी संरचनाओं के बारे में जानते हैं।हमारे देश भारत में तीन उल्का प्रभाव क्रेटर हैं। वे राजस्थान में रामगढ़, महाराष्ट्र में लोनार और मध्य प्रदेश में ढाला में वर्षों पहले बने हैं। 1.महाराष्ट्र में लोनारक्रेटर: इन तीनों उल्का प्रभाव क्रेटर संरचनाओं में से सबसे प्रसिद्ध, लोनारक्रेटर, पहली बार 1823 में एक विशाल ज्वालामुखीय बेसाल्ट(Basalt) मैदान पर खोजा गया था। इसके ऐसे विशेष स्थान के कारण, वैज्ञानिक लंबे समय तक, इसे एक ज्वालामुखीय क्रेटर ही मानते थे। लेकिन बाद में पता चला कि यह गड्ढा लगभग 35,000 – 50,000 साल पहले उल्कापिंड के प्रभाव का परिणाम था।
लोनारक्रेटर लगभग 500 फीट गहरा है। इसका व्यास 1.8 किलोमीटर है जबकि,इस गड्ढे का किनारा ज़मीन से 65 फीट ऊपर उठा हुआ है। जिस उल्कापिंड के कारण यह क्रेटर बना, उसका वजन दस लाख टन से अधिक था तथा वह लगभग 90,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से पृथ्वी से टकराया था। दिलचस्प बात यह है कि, इस उल्कापिंड के परिणामस्वरूप बनी झील का पानी खारा और क्षारीय है। इसके निर्माण के हजारों वर्षों के बाद भी,इस क्रेटर में आज भी प्राकृतिक कांच मास्केलिनाइट(Maskelynite) पाया जाता है, जो उच्च वेग के प्रभाव पर ही बनता है। मास्केलिनाइट की खोज के कारण ही, वैज्ञानिक आश्वस्त हैं कि, लोनार क्रेटर का निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट से नहीं, बल्कि उल्कापात से हुआ था। यह एक अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र भी है, जो कई वनस्पतियों तथा वन्यजीवों की प्रजातियों का घर है । सर्दियों के महीनों के दौरान कुछ प्रवासी पक्षियों को भी इस झील में देखा जा सकता है।
इस क्रेटर स्थल का हिंदू पौराणिक कथाओं में भी बड़ा सांस्कृतिक महत्व है: लोनार झील को वह स्थान माना जाता है, जहां भगवान विष्णु ने राक्षस लोनासुर का वध किया था। यहां स्थित स्थानीय देवी कमलाजा देवी के मंदिर में भी काफ़ी लोग दर्शन हेतु आते हैं। क्या आप जानते हैं कि जून 2020 में, लोनार झील ने वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था, जब झील का पानी गुलाबी रंग में बदल गया था! यह रंग परिवर्तन झील में संभवतः हेलोआर्चिया (Haloarchaea) नामक नमक-प्रेमी सूक्ष्म जीवों की बढ़ी हुई आबादी के कारण हुआ था, जो एक विशिष्ट गुलाबी रंगद्रव्य का उत्पादन करते हैं। हालांकि, जुलाई 2020 तक झील का पानी पुनः अपने मूल स्वरूप में वापस आ गया था। 2.मध्य प्रदेश में ढाला क्रेटर: लगभग 2,500 मिलियन वर्ष पहले बना यह क्रेटर, भारत का सबसे पुराना एवं सबसे बड़ा उल्का प्रभाव क्रेटर है। मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित, ढाला क्रेटर का व्यास 11 किलोमीटर है, जिसके कारण यह एशिया(Asia) खंड का सबसे बड़ा क्रेटर माना जाता है। शोधकर्ताओं को यहां कुछ चट्टानों के साक्ष्य मिले हैं, जो केवल उच्च वेग के प्रभाव से निकलने वाली गर्मी के कारण बनते हैं। इस क्रेटर और इसके किनारे के अधिकांश हिस्से अब नष्ट हो गए हैं, लेकिन, इस भूवैज्ञानिक संरचना को कदापि नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 3.राजस्थान में रामगढ़ क्रेटर: लगभग 165 मिलियन वर्षों पहले, राजस्थान के कोटा शहर से लगभग 110 किलोमीटर दूर एक बड़ा उल्कापिंड गिरा था, और अतः वहां लगभग 10 किलोमीटर व्यास वाला एक असामान्य गड्ढा बन गया। यह क्रेटर अद्वितीय है, क्योंकि इसके केंद्र में एक शिखर स्थित है।
इसके अलावा, स्पेस.कॉम(Space.com) के अनुसार विश्व के कुछ शीर्ष क्रेटर निम्नलिखित हैं:
1. बैरिंजर क्रेटर(BARRINGER CRATER)
स्थान: एरिज़ोना(Arizona), संयुक्त राज्य अमेरिका
व्यास: 0.8 मील (1,300 मीटर)
2. वोल्फ क्रीक क्रेटर (WOLFE CREEK CRATER)
स्थान: पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया(Australia)
व्यास: 2890 फीट (880 मीटर)
3. गॉसेस ब्लफ़ (टोनोराला)(GOSSES BLUFF (TNORALA)
- स्थान: उत्तरी ऑस्ट्रेलिया
- व्यास: मूल रूप से लगभग 13.6 मील (22 किमी), हालांकि, अब यह केवल 2.7 मील (4.5 किमी) है।
4. पिंगुअलुइट क्रेटर(PINGUALUIT CRATER)
- स्थान: पिंगुअलुइट नेशनल पार्क, कनाडा
- व्यास: 2.1 मील (3.4 किमी)।
अब, आप वास्तविक जीवन में या गूगल अर्थ (Google Earth) के माध्यम से, अपने घर से ही इन अविश्वसनीय संरचनाओं का स्वयं पता लगा सकते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/389exckw
https://tinyurl.com/mwx2d4xv

चित्र संदर्भ
1. महाराष्ट्र के लोनारक्रेटर को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. पृथ्वी प्रभाव डेटाबेस विश्व मानचित्र को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. महाराष्ट्र में लोनारक्रेटर को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. जून 2020 में शैवाल खिलने के कारण महाराष्ट्र में लोनार क्रेटर झील के पानी का रंग गुलाबी हो गया। को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. मध्य प्रदेश में ढाला क्रेटर को दर्शाता चित्रण (googleMAP)
6. राजस्थान में रामगढ़ क्रेटर को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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