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भोजन करने का कौन सा स्वरूप हैं उचित? जानें, आयुर्वेद व हमारी संस्कृति का विचार

मेरठ

 12-08-2023 09:39 AM
स्वाद- खाद्य का इतिहास

आजकल आधुनिक संस्कृति में,व्यापक रूप से यह स्वीकार किया जाता है कि, उचित स्वास्थ्य के लिए, हमें अपने दैनिक आहार को तीन बड़े भोजन अर्थात, सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात के भोजन में विभाजित करना चाहिए। हालांकि, हाल के कुछ वर्षों में, विशेषज्ञों ने अपना दृष्टिकोण बदलना शुरू कर दिया है। वे यह सुझाव दे रहे हैं कि पुरानी बीमारी को रोकने एवं वज़न घटाने के लिए, छोटी मात्रा में दिन में चार–पांच बार भोजन करना सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, अब कई लोग इस विचार एवं पक्ष के अनुसार अपने भोजन के स्वरूप को बदल रहे हैं। एक अध्ययन से पता चलता है कि, भोजन की आवृत्ति में वृद्धि करने से रक्त लिपिड(Lipid) या वसा के स्तर में सुधार हो सकता है और हृदय रोग का खतरा कम हो सकता है। इसलिए, कई विशेषज्ञ एक दिन में कम आवृत्ति में तथा एक ही समय पर अधिक भोजन न करने की सलाह देते हैं। साथ ही, कुछ अध्ययनों के निष्कर्ष है कि, जो लोग छोटी मात्रा में तथा चार–पांच भोजन करते हैं, उनमें कोलेस्ट्रॉल(Cholesterol) का स्तर काफ़ी अच्छा होता हैं। जबकि, उन लोगों के शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है, जो एक या दो बार ही अधिक भोजन करते हैं। छोटे-छोटे एवं अधिक आवृत्ति वाले भोजन को अक्सर मोटापे का एक इलाज माना जाता है। कई लोग मानते हैं कि, हर दो से तीन घंटों के बीच खाना खाने से, हमारे मेटाबॉलिज्म (Metabolism) को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है। वास्तव में, कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि, बार-बार भोजन करने की तुलना में एक–दो बार ही अधिक भोजन करने से भोजन का तापीय प्रभाव(Thermic effect of Food) अधिक बढ़ सकता है। यह प्रभाव, भोजन के पाचन के लिए लगने वाली ऊर्जा की मात्रा से संबंधित है। इसका अर्थ यह है कि, प्रस्तुत अध्ययनों के आधार पर, कोई भी ठोस सबूत भोजन के एक विशिष्ट स्वरूप को एक–दूसरे की तुलना में समर्थन नहीं देता है। साथ ही, इनमें से कई अध्ययनों की अपनी सीमाएं भी हैं।उदाहरण के लिए, भोजन या नाश्ते में क्या शामिल होना चाहिए, इसकी कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है। इसका भी अध्ययन के परिणामों पर प्रभाव पड़ सकता है।
अतः खाने के यह दोनों स्वरूप तब तक फायदे मंद हो सकते हैं, जब तक कि हमारा प्राथमिक लक्ष्य स्वस्थ पदार्थ खाने पर केंद्रित होता हैं। इसके साथ ही,यह सुझाव दिया जाता है कि, फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और कम वसा या वसा रहित दूध या डेयरी उत्पादों को भोजन में शामिल करना आवश्यक हैं।आहार में, समुद्र से प्राप्त भोजन, मांस और पोल्ट्री(Poultry), अंडे, विभिन्न बीज, सोया उत्पाद, फलियां और बादाम आदि सहित विभिन्न स्रोतों से प्रोटीन शामिल करें।साथ ही, अपनी आवश्यक कैलोरी(Calories)की मात्रा से थोड़ी कम ही कैलोरी ग्रहण करें। इसके अलावा, अतिरिक्त शर्करा, कोलेस्ट्रॉल, ट्रांसवसा(Trans fat) और वसा को सीमित करें। क्योंकि, एक स्वस्थ एवं संतुलित आहार में उपरोक्त मानक पदार्थ होते हैं। वैसे तो, पारंपरिक तौर पर पूरे दिन में तीन अच्छे भोजन यानी कि सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना ही भोजन करने का उचित स्वरूप है। खाने का यह स्वरूप, मोटे तौर पर हमारे काम की सारणी और व्यस्त जीवनशैली पर आधारित है। इससे, हमारे लिए दिन में तीन बार भोजन करना आसान हो जाता है। हममें से कई लोगों का शरीर इस तरह के खाने का आदी भी बन गया है और भोजन का यह स्वरूप सबसे लोकप्रिय भी है।
क्या आप जानते हैं कि, इस स्वरूप पर बने रहने के कुछ स्वास्थ्य लाभ हैं? उदाहरण के लिए, इससे रक्त शर्करा नियंत्रण में रहता है। साथ ही, हम पूरे दिन तृप्त एवं ऊर्जावान महसूस कर सकते है।दिन में दो से तीन बार भोजन करना सबसे अच्छा है। इससे, दिन में हमारी अधिकांश कैलोरी की पहले ही खपत हो जाती है।और तो और, देर रात भोजन करना मधुमेह और हृदय रोग सहित कार्डियो-मेटाबॉलिक (Cardio–metabolic) बीमारी से भी जुड़ा है।
अतः विज्ञान कहता है कि,भोजन करने का सबसे स्वास्थ्यप्रद तरीका दो या तीन बार ही भोजन करना है। इसके साथ ही, रात में लंबे समय तक उपवास करना, दिन में बहुत जल्दी या फिर बहुत देर से खाना न खाना और दिन की शुरुआत में ही अधिक कैलोरी का सेवन करना, आदि भी भोजन के सही तरीके हैं।
आयुर्वेद एक अच्छी अग्नि, अर्थात सही पाचन अग्नि को बनाए रखने का सुझाव देता है। यह अग्नि तभी प्राप्त होती है,जब हम वास्तव में भूख लगने पर कुछ खाते हैं। यदि आपको दिन में 4-5 बार खाना पसंद हैं, तो सुनिश्चित करें कि, जब आपको भूख लगी हो, केवल तभी ऐसा भोजन करें। और हां, वह भी कम मात्रा में खाएं। भारतीय संस्कृति में भी तीन मुख्य भोजन हैं। हमारे देश भारत में, अधिकांश लोग सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन और शाम का भोजन ही करते हैं। ऐसे में, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि, हमें भारतीय संस्कृति के अनुसार ही भोजन ग्रहण करना चाहिए, क्यूंकि यह यहां के मौसम और उपलभ्द सामग्री के भी अनुकूल है ।

संदर्भ
https://tinyurl.com/27a3a29j
https://tinyurl.com/2yyzz97v
https://tinyurl.com/c9vajnnc
https://tinyurl.com/ymc3veuz
https://tinyurl.com/78ejczuk
https://tinyurl.com/yc6fa4vu

चित्र संदर्भ

1. नाश्ता करते एक भारतीय परिवार को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. भारतीय तंदूरी का स्वाद लेते बच्चे को दर्शाता चित्रण (wikipedia)
3. नाश्ता करते एक भारतीय युगल को दर्शाता चित्रण (Pexels)
4. एक हलके भारतीय नाश्ते को दर्शाता चित्रण (Pexels)
5. भोजन करती छोटी बच्ची को दर्शाता चित्रण (wikipedia)

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