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भगवद् गीता का हिंदू धर्म में अनन्य, असाधारण महत्व है। हिंदू धर्म में, गीता एक धार्मिक ग्रंथ से परे, हमारी आस्था का केंद्र भी है। भगवद् गीता ने श्री अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी आदि महापुरुषों के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण विदेशी व्यक्तियों को भी प्रभावित किया हैं। एल्डस हक्सले(Aldous Huxley), हेनरी डेविड थोरो (Henry David Thoreau), जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर(J. Robert Oppenheimer), राल्फ वाल्डो एमर्सन(Ralph Waldo Emerson), कार्ल जंग(Carl Jung), बुलेंट एसेविट (Bulent Ecevit), हरमन हेस (Hermann Hesse), हेनरिक हिमलर(Heinrich Himmler), जॉर्ज हैरिसन(George Harrison), निकोला टेस्ला(Nikola Tesla) सहित कुछ अन्य विचारकों और संगीतकारों ने भगवद् गीता से प्रेरणा ली हैं।
हमारे हिंदू धर्म के अनुसार, निरंतर प्रवाह की इस दुनिया में, मनुष्य की कभी भी खत्म न होने वाली पीड़ा की जड़ लालसा है। श्रीकृष्ण भगवद् गीता में कहते है कि, “सब कुछ इच्छा से ढका हुआ होता है; जैसे धुएं से आग, धूल से दर्पण एवं मां के गर्भ के आवरण से अजन्मा बच्चा भी ढका होता है। हमारी बुद्धि इच्छा से घिरी हुई है, और इच्छा अपने असंख्य रूपों में मौजूद होती है, जो आग की तरह कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकती है।
पर हम आज ऐसे विषय की बात क्यों कर रहें हैं? दरअसल, इसी विषय पर एक महान कवि और साहित्यिक आलोचक टी.एस.एलियट(Thomas Stearns Eliot) ने,‘फोर क्वार्टेट्स(Four Quartets)’ शीर्षक वाली एक ऐसी रचना लिखी जो उनके पेशे की सबसे उत्कृष्ट कविता बन गई। टी. एस. एलियट की यह रचना हमारे श्रद्धेय ग्रंथ भगवद् गीता से प्रभावित है। आइए पढ़ते हैं!
टी. एस. एलियट एक कवि, निबंधकार, प्रकाशक, नाटककार, साहित्यिक आलोचक और संपादक थे। वह 20वीं सदी के प्रमुख कवियों में से एक थे तथा अंग्रेजी भाषा की आधुनिकतावादी कविताओं के क्षेत्र में एक केंद्रीय व्यक्ति हैं। अपने आलोचनात्मक निबंधों के संग्रह के माध्यम से, उन्होंने पुरानी मान्यताओं को नष्ट किया और नई मान्यताओं को स्थापित किया। हार्वर्ड विश्वविद्यालय(Harvard University) में पढ़ते हुए, उन्होंने संस्कृत भाषा और कुछ भारतीय दर्शन का अध्ययन किया था।
वर्ष 1922 में प्रकाशित, द वेस्टलैंड(The Waste Land), 1925 में प्रकाशित द हॉलोमेन(The Hollow Men), 1930 में ऐश वेडनसडे(Ash Wednesday) और फिर बाद में, वर्ष 1943 में फोर क्वार्टेट्स आदि उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं। तत्कालीन कविता साहित्य में उनके उत्कृष्ट एवं अग्रणी योगदान के लिए उन्हें 1948 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार(Noble Prize) से भी सम्मानित किया गया था।
डांटे(Dante), शेक्सपियर(Shakespeare), बाइबल(Bible) और कुछ अन्य ईसाई विचारकों और संगीतकारों के अलावा, टी. एस. एलियट भारतीय दर्शन और रहस्यवाद से बहुत प्रभावित थे। दरअसल, वह ज्यादातर भगवद् गीता से ही प्रभावित थे, जो की निस्संदेह दुनिया की साहित्यिक और आध्यात्मिक उत्कृष्ट कृतियों में से एक है। भगवद् गीता के बारे में उनका संपूर्ण ज्ञान, उनके एक कथन से स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता है।
उन्होंने कहा था कि, “मेरे अनुभव के साथ, गीता दिव्य सुखांतकी की अगली महान दार्शनिक कविता है।”
हमारी भावना और बुद्धि दोनों की तात्कालिक समस्याओं के दार्शनिक समाधान के लिए उनकी कविता विचार और समय, अनंत काल, क्रिया, निष्क्रियता, लगाव और वैराग्य के अलग-अलग तत्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं।भगवद् गीता में व्यक्त किया गया एक हिंदू विचार, एलियट की वैदिक अध्यात्मविज्ञान के माध्यम से, सांत्वना खोजने की आवश्यकता के रूप में कविता का केंद्रीय विषय बन जाता है। जॉर्ज विलियमसन(George Williamson) बताते हैं कि,इस कविता में निहित मूल विचार को ईसाई और हिंदू दोनों विचारों के अनुरूप देखा जाता है। वास्तव में, ‘फोर क्वार्टेट्स’ में भगवद् गीता का इसके रूप और दर्शन दोनों मायनों में बड़े पैमाने पर पालन किया गया है। गीता, जो वेदांत का सार प्रस्तुत करती है, भगवान की कृपा प्राप्त करने के हेतु उनके प्रति पूर्ण समर्पण की बात करती है। भगवान कृष्ण अर्जुन को सलाह देते हैं कि, यदि उन्हें ज्ञान और कर्म का मार्ग कठिन लगता है, तो उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए पूर्ण आत्म-समर्पण का मार्ग अपनाना ही एकमात्र विकल्प है। यह विचार निम्नलिखित श्लोक के माध्यम से समझा जा सकता है:
सर्व-धर्मन्परित्यज्यममअकंशरणं व्रज अहं त्वं सर्व पापेभ्यमोक्षयिस्यामिमा सुखा
अर्थात, तब अपने सारे सांसारिक कर्तव्यों को छोड़ दो, और अपने आप को केवल मेरे प्रति समर्पित कर दो। चिंता मत करो; मैं तुम्हें तुम्हारे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा।
एलियट ने भगवान कृष्ण के विचारों को स्वीकार किया था और उनका मानना था कि, मनुष्य के कर्मों के आधार पर या तो उसकी आत्मा दूसरा आकार लेती है या उसे स्थायी निवास मिलता है। जब एलियट ने उस प्रकार की प्रेमपूर्ण वैराग्य की व्याख्या करने की कोशिश की, जिसे उन्होंने पवित्रता के लिए ईसाइयों के आह्वान के केंद्र के रूप में देखा, तो वह गीता के नायक, अर्जुन की ओर आकर्षित हो गए थे।
एलियट ने गीता का समान रूप से विस्तार किया है। इसका एक अन्य उदाहरण है कि,एलियट ने गीता के “निःस्वार्थ कर्म” के आग्रह और “सर्वोच्च लक्ष्य” के मार्ग के बीच संबंध जोड़ा था।
दूसरी ओर, कवि ने अपनी द वेस्टलैंड रचना में भी, भारतीय दर्शन की उनकी समझ को एक महत्वपूर्ण कारक बनने दिया। एलियट ने यह दृष्टिकोण रखने के लिए एक आवश्यक, संकेतात्मक और दीर्घ तकनीक का उपयोग किया कि, आधुनिक पश्चिमी शहरी सभ्यता निष्फल और असंतोषजनक थी। शायद इसी वजह से, उनकी कृतियों को व्यापक आलोचना का सामना भी करना पड़ा था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4fn9hvzy
https://tinyurl.com/yt3n9ykr
https://tinyurl.com/mrta9p9a
https://tinyurl.com/bdhhkcfn
https://tinyurl.com/ympwp9tk
https://tinyurl.com/35dvm5y4
चित्र संदर्भ
1. अंग्रेजी कवि टी. एस. एलियट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. निकोला टेस्ला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. टी.एस. एलियट, 1923 - ब्लैक एंड व्हाइट पोर्ट्रेट फ़ोटोग्राफ़ को दर्शाता चित्रण (
PICRYL)
4. भगवद् गीता को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. फोर क्वार्टेट्स’ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. गीता श्लोक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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