Post Viewership from Post Date to 24-Aug-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
4007 575 4582

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

विज्ञान को जीवन में लाती है बिजनौर के विद्यालय में बनी खगोल विज्ञान प्रयोगशाला

मेरठ

 24-07-2023 10:34 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

हमारे सुंदर ग्रह पृथ्वी पर मानव प्राचीन काल से ही खगोल विज्ञान से आकर्षित रहा है। खगोल विज्ञान उन खोजों के संदर्भ में एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है, जो पहले ही हो चुकी हैं या भविष्य में होने वाली हैं। इस विषय को अक्सर “सभी विज्ञानों की जननी” भी कहा जाता है। इस विषय में वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवन और ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में फैली हुई गलत धारणाओं को स्पष्ट करने की शक्ति है। खगोल विज्ञान का अनुसंधान वास्तविकता और मानवीय धारणाओं के बीच की बाधाओं को दूर करके ब्रह्मांड में नई खोजों और नई जीवन-समर्थक संभावनाओं के द्वार खोलने में सक्षम है। अतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ, अन्य कई कारकों की वजह से आज की घड़ी में भारतीय शिक्षण प्रणाली में खगोल विज्ञान शामिल करना आवश्यक है। हालांकि, एक विषय के रूप में खगोल विज्ञान की पूरी क्षमता का उपयोग करने के मामले में भारतीय शिक्षण प्रणाली आज भी पीछे है। लेकिन, इसके बावजूद, देश में कई निजी व्यवसाय और संगठन पहले से ही खगोल विज्ञान से संबंधित समग्र शिक्षा को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए क्रमिक उपाय कर रहे हैं। यह प्रयास इसलिए भी किए जा रहे हैं, कि भारतीय शिक्षण प्रणाली में इस विषय की शुरूआत होने पर भविष्य में छात्रों को लाभ होगा। क्योंकि, यह विषय नक्षत्रों, ग्रहों की गति और अन्य कई पहलुओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिसका उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। साथ ही इसके माध्यम से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही कई दंतकथाओं को स्पष्ट करने में भी मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए, हमारे पूर्वजों ने सूर्य ग्रहण के दौरान घर के अंदर रहने की सलाह दी थी, जिसका मजाक पश्चिमी सभ्यता से आकर्षित कुछ लोगों द्वारा बनाया जाता है, जबकि खगोल विज्ञान ऐसी दंतकथाओं को स्पष्ट करने में मदद कर सकता है।
वर्ष 2020 में, देश में लागू की गई नई शिक्षा नीति (National Education Policy (NEP 2020), शिक्षा प्रणाली में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ खगोल विज्ञान के विषय को शामिल करने का समर्थन करती है। अवलोकन या निगरानी, सिमुलेशन (Simulation) या अनुकरण, प्रयोग और विश्लेषण को शामिल करने के आधार पर, खगोल विज्ञान वैज्ञानिक मानसिकता और तर्कसंगतता को प्रोत्साहित करता है। इसके पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में, चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति के दूरबीन दृश्यों और पाठों का उपयोग विद्यार्थियों को यह सिखाने के लिए किया जा सकता है कि, ये खगोलीय वस्तुएं मानव जीवन और इस प्रकार संपूर्ण ब्रह्मांड को कैसे प्रभावित करती हैं। खगोल विज्ञान विद्यार्थियों को उनकी प्राकृतिक और वैज्ञानिक जिज्ञासा को बढ़ाने में मदद कर सकता है और साथ ही यह विषय छात्रों को एक मूल्यवान पाठ पढ़ा सकता है। इसी तरह, जब हम अपनी भारतीय संस्कृति की विविधता पर चर्चा करते हैं, तो हमें परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक प्रथाओं को ध्यान में रखना पड़ता है। इस विविधता में कुछ किंवदंतियां भी आती है, जो हमें ब्रह्मांड की खोज करने और उसे समझने से रोकती है। इन विचारों का खंडन करना और भावी पीढ़ियों को खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान में सुधार के लिए आवश्यक संसाधन देना भी आवश्यक है। खगोल विज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल करने से इस लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।
इस मुद्दे के बीच, हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले का ‘फरीदपुर काजी विद्यालय’ इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इसकी ख्याति अब आसपास के गांवों तक फैल रही है। इस सरकारी विद्यालय में एक खगोल विज्ञान प्रयोगशाला है, जहां छात्र दिन के दौरान सितारों का निरीक्षण करते हैं। इस प्रयोगशाला की बाहरी दीवारों पर ग्रहों, क्षुद्रग्रहों और अंतरिक्ष यानों के रंगीन चित्र बनाए गए हैं। जबकि, आंतरिक दीवारों पर परीक्षण ट्यूब (Test tube), सूक्ष्मदर्शी (Microscope), दूरबीन, मानव शरीर रचना विज्ञान और अन्य विज्ञान से संबंधित चित्र बने हैं। इस खगोल विज्ञान प्रयोगशाला के अंदर, ये सभी चित्र प्रयोगों, अंतरिक्ष मिशनों की छवियों, सितारों के रेखा-चित्रों, सौर मंडल पट्टिका, ग्रहों के आंतरिक हिस्सों के 3डी-मुद्रित पोस्टर (Poster), आभासी वास्तविकता (Virtual reality) चश्मे और एक दूरबीन के साथ जीवंत हो उठते हैं।
इस प्रयोगशाला का निर्माण 23 वर्षीय आर्यन मिश्रा द्वारा किया गया है, जो एक खगोलशास्त्री और उद्यमी हैं। आर्यन ने वर्ष 2018 में दिल्ली में ‘स्पार्क एस्ट्रोनॉमी’ (Spark Astronomy) नामक एक कंपनी की स्थापना की थी और अब वह उनके अगले उद्यम एस्ट्रोस्केप (Astroscape) के माध्यम से विद्यालयों में खगोल विज्ञान प्रयोगशालाओं की स्थापना करते हैं। 2019 में केंद्र सरकार द्वारा भारत-भर के गांवों में ऐसी ही प्रयोगशालाएं बनाने के लिए, इस कंपनी के साथ करार किया गया है। क्या आप जानते हैं कि आर्यन एक समाचार पत्र विक्रेता के बेटे हैं,और उन्होंने खुद की एक दूरबीन भी बनाई है। उन्होंने अब तक विभिन्न विद्यालयों में ऐसे 300 से अधिक शिक्षण केंद्र बनाए हैं। उन्होंने प्रयोगशाला हेतु प्रत्येक स्कूल में शिक्षकों और प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया है। हमारे राज्य के भदोही शहर में एक अखबार विक्रेता के घर जन्मे आर्यन का ब्रह्मांड की दुनिया से जुड़ाव तब से ही स्पष्ट हो गया था जब वह कक्षा 5 में थे। हालांकि, परिवार की खराब वित्तीय स्थिति के कारण, उनके पास अधिक संसाधन नहीं थे । किंतु समय के साथ, खगोल दुनिया के बारे में आर्यन की जिज्ञासा बढ़ती गई। 14 साल की उम्र में ही, मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच एक क्षुद्रग्रह की खोज करने का श्रेय भी आर्यन को प्राप्त है।
इस प्रयोगशाला की छत रात्रि के समय आकाशगंगाओं को दर्शाती है। एक पूरी दीवार सौर मंडल – आठ ग्रह, सूर्य, चंद्रमा, क्षुद्रग्रह और ब्रह्मांड की अंतिम सीमा की खोज के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था ‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (National Aeronautics and Space Administration (NASA) के मिशन (Mission) को समझाने हेतु समर्पित है। इस प्रदर्शन पर नासा और अन्य संगठनों से प्राप्त मिशन की कुछ नवीनतम, उच्चतम-रिज़ॉल्यूशन (Resolution) वाली छवियां लगाई गई हैं। इसके साथ ही, दीवारों पर भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों, राकेश शर्मा, कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स (Sunita Williams), के पोस्टर (Poster) भी लगाए गए हैं, जिन पर हिंदी भाषा में उनकी संक्षिप्त जीवनियां लिखी हुई हैं।
यहां एक विशाल प्लैनिस्फीअर (Planisphere) और स्टारचार्ट (Star chart) अर्थात सितारों के रेखा-चित्र भी हैं, जो वर्ष के किसी भी दिन के लिए, रात्रि के आकाश में सितारों और नक्षत्रों को पहचानता है। यहां 50 इंच का प्लाज़्मा टीवी (Plasma TV) भी है, जिस पर सोशल मीडिया (Social Media) पर उपलब्ध विज्ञान के वीडियो(Video) दिखाए जाते हैं। अगर एक आधार विषय के रूप में पाठ्यक्रम में खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान शामिल किया जाता है, तो ये विषय छात्रों की रुचि को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण होंगे। इसके अतिरिक्त, हमें नए पेशेवर अवसर पैदा करना भी आवश्यक है, क्योंकि जल्द ही अंतरिक्ष यात्रियों और खगोलीय खोजों की मांग बढ़ने वाली है। अत: भारतीय शिक्षा प्रणाली को इसे एक विषय के रूप में शामिल करने की आवश्यकता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/erx2wnhe
https://tinyurl.com/38rbc43p
https://tinyurl.com/37z577wn
https://tinyurl.com/2p8s63j4
https://tinyurl.com/52nv7yfp
https://tinyurl.com/3dkw3cwz

चित्र संदर्भ
1. बिजनौर के विद्यालय में बनी खगोल विज्ञान प्रयोगशाला को दर्शाता चित्रण (youtube)
2. जिज्ञासा से पढ़ते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
3. दस्काईएक्स बिस्क (Bisque) सॉहबल टेलिस्कोप, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. फरीदपुर काजी विद्यालय’ की खगोल विज्ञान प्रयोगशाला को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
5. ब्रह्माण्ड को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id