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हमारे मेरठ की रैपिड रेल निर्माण परियोजना (Rapid Rail Construction Project) को जिस तेजी से पूरा किया जा रहा है, वह प्रगति वाकई में सराहनीय है। इस परियोजना की प्रगति ने हमें यह भी दिखा दिया कि, निर्माण कार्य में मशीनों और उचित प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करने से, कई वर्षों में पूरे होने वाले कार्य, केवल कुछ ही महीनों में पूरे किए जा सकते हैं। लेकिन, निर्माण कार्य में मशीनों के प्रयोग को भारत के विशाल श्रमिक समूह में बेरोजगारी और गरीबी के बहुत बड़े नुकसान के रूप में देखा जा सकता है।
व्यवसाय की दुनिया में, कई कंपनियां अक्सर दूसरे देशों से सस्ते श्रमिकों को काम पर रखकर या लोगों के बजाय मशीनों का उपयोग करके श्रम लागत को कम करने का प्रयास करती हैं। इससे श्रमिकों और समुदायों के लिए आर्थिक प्रतिस्पर्धा और विभिन्न चुनौतियां पैदा हो सकती हैं।
शारीरिक श्रम, या मैन्युअल कार्य (Manual Work) मशीनों या जानवरों के बजाय लोगों द्वारा अपने हाथों और शरीर का उपयोग करके किया जाता है। मानव इतिहास के अधिकांश समय में किसी भी काम को पूरा करने के लिए यही तरीका मुख्य रहा है। हालांकि, जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी उन्नतियां हुई, वैसे-वैसे मशीनों और स्वचालन के बढ़ते चलन ने धीरे-धीरे मानव और पशु श्रम की आवश्यकता को कम कर दिया।
आज किसी भी काम को पूरा करने में कौशल और बुद्धिमत्ता दोनों की आवश्यकता हो सकती है, और कुछ कार्य मुख्य रूप से शारीरिक तौर पर ही किये जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर फल चुनना, अलमारियों में सामान जमा करना, खुदाई करना या ईंटें जोड़ने जैसे कार्य अकुशल या अर्धकुशल श्रमिकों द्वारा भी अच्छी तरह से किए जा सकते हैं। हालांकि इस वजह से, लोग कभी-कभी यह गलत धारणा बना लेते हैं कि शारीरिक श्रम के लिए कौशल की आवश्यकता नहीं होती है या यह केवल निम्न-श्रेणी के श्रमिकों के लिए होता है।
भारत में निर्माण कार्यों में तेजी के बाद निर्माण परियोजनाओं में भी वृद्धि देखी गई है। लेकिन इसकी कीमत इन घरों को बनाने वाले कई श्रमिकों को अपना जीवन देकर चुकानी पड़ती है। पैसे बचाने के लिए कई निर्माण कंपनियां अपने श्रमिकों की सुरक्षा की उपेक्षा कर रही हैं। वह अपने श्रमिकों को कानूनी रूप से आवश्यक हेलमेट (Helmet) और जूते जैसे उचित सुरक्षा उपकरण प्रदान करने में विफल साबित हो रही हैं। इसीलिए, सुरक्षा उपकरणों और उचित सुरक्षा की कमी के कारण हर साल हजारों श्रमिक घातक दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। लगभग दस सालों से काम करने वाले निर्माण श्रमिक राम भवन के अनुसार अधिकांश ठेकेदार, श्रमिकों की सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। उन्हें कभी-कभी पुराने और ख़राब फिटिंग वाले हेलमेट और घटिया जूते दे दिए जाते हैं। इन तमाम जोखिमों के बावजूद भी रोजागर और गरीबी की समस्या के कारण उन्हें मज़बूरी में ऐसे काम करना पड़ता है।
निर्माण परियोजनाओं में काम करने वाले अधिकांश निर्माण श्रमिक, दूर दराज के गांवों से आए प्रवासी होते हैं, जो काम के अवसरों के लिए शहरों की ओर आकर्षित होते हैं। इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों की आपूर्ति के कारण ठेकेदारों को भी श्रमिकों को खोने का डर नहीं होता है। इनमें से कई श्रमिक कभी किसान थे, जो कृषि संकट के कारण निर्माण कार्य में चले गए।
काम के दौरान श्रमिकों को उचित सुरक्षा गियर या यहां तक कि उचित आश्रय के अभाव में कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। काम के दौरान श्रमिकों को धूल और जहरीले वायु प्रदूषण का भी सामना करना पड़ता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। इस प्रकार की लापरवाही का खामियाजा कई बार इन गरीब श्रमिकों को अपनी जान गवाकर चुकाना पड़ता है। इसका एक जीता-जागता उदाहरण हमारे मेरठ में ही देखने को मिल गया। लोगो के अनुसार निर्माणाधीन रैपिड रेल (Rapid Rail) की निर्माणाधीन पटरी का स्लैब (Slab), रात के करीब तीन बजे नीचे गिर गया। इस स्लैब के मलबे में आठ मजदूर दब गए। हालांकि, घटना की जानकारी होते ही बचाव कार्य शुरू हो गया और घायल मजदूरों को मलबे से निकाला गया। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। आपको हैरानी होगी कि रात के तीन बजे भी, ये श्रमिक वहां स्लैब को जोड़ने से पहले लोहे के ढांचे को बांध रहे थे। उसी दौरान हिस्से के लोहे का ढांचा उलझ गया और दोनों पिलरों के बीच का स्लैब धड़ाम से गिर गया। ऐसी दुर्घटनाओं के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले प्रवासी मजदूर, बेहतर वेतन और सुरक्षा उपकरणों की मांग के लिए यूनियन (Union) बनाने की हिम्मत भी नहीं कर पाते है। जिसके परिणामस्वरूप, दुर्घटनाओं के बाद कानूनी कार्रवाई करने या मुआवजे का दावा करने के लिए भी उनके पास कोई जानकारी या विकल्प नहीं होता है।
निर्माण स्थलों पर मौजूद प्रबंधक, अक्सर उन पत्रकारों को भी नहीं आने देते, जो इस मुद्दे को संबोधित करने का प्रयास करते हैं। लेकिन, सभी जोखिमों के बावजूद भी ये श्रमिक अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए बहुत कम वेतन पर भी कड़ी मेहनत करते रहते हैं।
इन विषम परिस्थितियों के बीच महिला श्रमिकों को और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें काम पर रखा ही नहीं जाता, और यदि काम मिल भी गया तो उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है।
इस स्थिति में सुधार तभी हो सकता है जब, प्रत्येक ठेकेदार सुरक्षा उपकरणों के लिये पैसा खर्च करे और मौजूदा नियमों को ठीक से लागू करें। इसके साथ-साथ सरकारी जागरूकता अभियान और श्रमिकों तथा फर्मों का औपचारिक पंजीकरण भी उचित मुआवजा प्रदान करने में मदद कर सकता है। भारी असुरक्षा और गंभीर परिस्थितियों के बावजूद भी ये मजबूर श्रमिक जैसे तैसे मजदूरी करके अपने दिन गुजारते हैं। लेकिन, हाल के वर्षों में हुई तकनीकी प्रगति, इनसे ये काम भी छीनने को आतुर है।
आज दुनिया भर में निर्माण उद्योग भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence (AI), रोबोटिक्स और ऑटोमेशन (Robotics And Automation) जैसी नई तकनीकों को अपनाने लगा है। जापान और अमेरिका जैसे देशों में पहले से ही इस क्षेत्र में कई बड़ी सफलताएं हासिल कर ली गई हैं। हालांकि, भारत का रोबोटिक्स उद्योग अभी भी अपने शुरुआती चरण में है, लेकिन कई कंपनियां और स्टार्टअप (Startup) निर्माण प्रक्रियाओं में एआई (AI) और रोबोटिक्स का प्रयोग करने के विकल्प तलाश रहे हैं। इस तकनीक का प्रयोग डिज़ाइन से लेकर पूरे निर्माण चक्र में किया जा सकता है, जिससे उत्पादकता और गुणवत्ता में भारी वृद्धि होगी। लेकिन, यह तकनीक मैन्युअल श्रमिकों की आवश्यकता को भी कम कर सकती है।
दुनियाभर की कई कंपनियां और शोधकर्ता, निर्माण क्षेत्र में रोबोटिक्स का उपयोग करने भी लगी हैं। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क (New York) स्थित कंस्ट्रक्शन रोबोटिक्स (Construction Robotics) नामक कंपनी ने सेमी-ऑटोमेटेड मेसन (Semi-Automated Mason (Sam) नामक एक रोबोट विकसित किया है जो प्रतिदिन 3,000 ईंटें बिछा सकता है। सऊदी अरब भी अपनी आवास परियोजना को सफल बनाने के लिए रोबोटिक्स तकनीक का उपयोग करने की योजना बना रहा है।
भारत में भी हैदराबाद स्थित एंडलेस रोबोटिक्स (Endless Robotics) नामक एक भारतीय स्टार्टअप पहले से ही विभिन्न निर्माण और रखरखाव कार्यों से निपटने के लिए बुद्धिमान रोबोट पर काम कर रहा है। उदाहरण के लिए, उनके द्वारा विकसित वाल्ट (Walt) नामक रोबोट, मनुष्य की तुलना में 30 गुना तेजी से दीवारों को पेंट कर सकता है। यह प्रति मिनट लगभग 60 वर्ग फीट को कवर करता है और 8 से 14 फीट की ऊंचाई पर काम कर सकता है। कुल मिलाकर, नई तकनीक निर्माण क्षेत्र में लाभदायक तो साबित हो रही है, लेकिन यह बात गौर करने वाली है, कि इस लाभ का खामियाजा किसे चुकाना पड़ सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4cph9vfz
https://tinyurl.com/yc4r68ub
https://tinyurl.com/4z6444n2
https://tinyurl.com/2w287rj6
चित्र संदर्भ
1.भारतीय निर्माण श्रमिकों को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
2. निर्माण कार्य करते श्रमिक को संदर्भित करता एक चित्रण (maxpixel)
3. दुबई में काम करते भारतीय श्रमिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. असुरक्षा के बीच निर्माण कार्य करती महिला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. 3D प्रिंटिंग संरचना को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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