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‘अर्क तेल’ (Essential oil) पौधों, फूलों, जड़ी-बूटियों और पेड़ों से प्राप्त घटक होते हैं। अर्क तेल हमारे शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं और हमें विभिन्न बीमारियों से राहत दिला सकते हैं। इन तेलों का ज्यादातर उपयोग इनके सुगंधित गुणों के लिए किया जाता है; पौधों से निकाले गए प्राकृतिक खुशबूदार एवं गुणों से युक्त तेल का उपयोग करके शरीर के स्वास्थ्य को संतुलित करने और बढ़ावा देने की इस कला को अरोमाथेरेपी (Aromatherapy) कहा जाता है। हालांकि, उनका कुछ अन्य तरीकों से भी उपयोग किया जा सकता है। अरोमाथेरेपी के माध्यम से विभिन्न अर्क तेल हमें ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) जैसी बीमारियों से भी राहत दिला सकते हैं। अल्पकालिक ब्रोंकाइटिस हमारे वायुमार्ग का संक्रमण होता है। अधिकांश मामलों में यह तीन सप्ताह के भीतर, उपचार के बिना ही ठीक हो सकता है। अल्पकालिक ब्रोंकाइटिस के अधिकांश मामलों में घर पर ही इलाज किया जा सकता है। हालांकि, जब इसके लक्षण 3 महीनों से अधिक और कम से कम दो साल तक बने रहते हैं, तब इसे दीर्घकालिक ब्रोंकाइटिस की श्रेणी में माना जाता है। ब्रोंकाइटिस के कारण हमारे फेफड़ों के मुख्य वायुमार्ग (ब्रोंकाई (Bronchi) में सूजन आ जाती है और जलन होने लगती है। ब्रोंकाइटिस के मुख्य लक्षणों में बलगम के साथ तीव्र और दर्दनाक खांसी, सर्दी, बुखार, सिरदर्द आदि शामिल हैं।
आइए, कुछ अर्क तेलों के बारे में जानते हैं, जिनका उपयोग ब्रोंकाइटिस से राहत पाने हेतु किया जा सकता है:-
नीलगिरी अर्क तेल (Eucalyptus Oil) की 1 बूंद, अजवायन तेल की 3 बूंदें, टी ट्री (Tea tree) अर्क तेल की 3 बूंदें और चंदन अर्क तेल की 4 बूंदें बंद कमरे में वाष्पित करके हम इन्हें सूंघ सकते हैं। हम, नींबू के तेल की 3 बूंदें, मेलिसा (Melissa) तेल की 1 बूंद और लोहबान तेल की 3 बूंदें भी वाष्पित करके नियमित रूप से कुछ समय के लिए साँस के साथ सूंघ सकते है। ये तेल संक्रमण से लड़ने और बलगम को कम करने में मदद करते हैं तथा भाप के कारण सूजन कम हो जाती है और जलन में आराम मिलता है, जिससे सांस लेने में आसानी होती है। बुखार की स्थिति में, नीलगिरी अर्क तेल की 1 बूंद और पुदीने के अर्क तेल की 1 बूंद के साथ माथे पर ठंडा सेक भी लगा सकते है। बुखार उतरने पर, नियमित रूप से पैरों की मालिश करनी चाहिए, विशेष रुप से पैरों के तलवों पर विशेष ध्यान दें जहां फेफड़े का प्रतिवर्त स्थित होता है। 30 मिलीलीटर मीठे बादाम के तेल में देवदार तेल की 5 बूंदें, लोहबान तेल की 4 बूंदें और प्लाई (Plai) तेल की 2 बूंदें मिलाकर भी आज़माया जा सकता है।
आयुर्वेद में ब्रोंकाइटिस को संस्कृत भाषा में “तमका श्वास” (Tamaka Shwasa) कहा जाता है। तमका श्वास से तात्पर्य फेफड़ों में सूजन से संबंधित लक्षणों और बीमारियों से है। इसका परिभाषित लक्षण “कफज कसा” है, जिसका अर्थ खराब कफ दोष के साथ-साथ बढ़े हुए पित्त के कारण होने वाली खांसी है। श्वसन से संबंधित इन परिणामों के अलावा, तमका श्वास के परिणामस्वरूप थकावट, काम की उत्पादकता में कमी, पाचन में बाधा, मतली, उल्टी और लगातार सिरदर्द जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।
आइए, ब्रोंकाइटिस के इलाज और फेफड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कुछ शानदार आयुर्वेदिक उपचारक देखते हैं-
१. शहद-
शहद में बलगम निस्सारक गुणों वाले फाइटोन्यूट्रिएंट्स (Phytonutrients) का भंडार होता है। एक गिलास गर्म पानी में 2 चम्मच शहद मिलाकर रोजाना एक बार पीने से फेफड़ों के वायुमार्ग में जमा बलगम को बाहर निकलने में मदद मिलती है।
२. आंवला-
आंवले में प्रचुर मात्रा में एंटी-एलर्जीक (Anti-allergic) और रोगाणुरोधी यौगिक पाए जाते हैं। ये गुण फेफड़ों के संक्रमण को काफी हद तक विफल कर देते हैं। एक आंवले के ताजे रस और एक चम्मच दालचीनी चूर्ण को गर्म पानी में मिलाकर दिन में एक बार सेवन करने से फेफड़ों में रोगजनक बैक्टीरिया (Bacteria) से लड़ने में मदद मिलती है और ब्रोंकाइटिस के लक्षणों से राहत भी मिलती है।
३. सरसों का तेल-
सरसों का तेल फेफड़ों की सूजन को कम करने के लिए एक आश्चर्यजनक प्राकृतिक उपचार है। दो बड़े चम्मच सरसों के तेल में एक चुटकी कपूर मिलाएं। इस मिश्रण से अपने छाती के क्षेत्र में गोलाकार गति में हल्की मालिश करें। यह मिश्रण हमारे वायुमार्ग में फंसे बलगम को बाहर निकालने और सांस लेने की क्षमता बढ़ाने में उल्लेखनीय साबित होता है।
४. लहसुन-
लहसुन सूजनरोधी तत्वों से भरपूर होता है, जो हमारे फेफड़ों के ऊतकों की संरचना और कार्य को समृद्ध करता है। लहसुन की दो कलियाँ काटकर, इन्हें उबले हुए दूध में मिलाएँ। इस दूध को दिन में एक बार पीने से यह ब्रोंकाइटिस के लिए एक शानदार इलाज बन सकता है।
५. तुलसी-
तुलसी के स्वास्थ्य संबंधित फायदे तो हम सब जानते ही हैं। तुलसीकी कुछ पत्तियों को गर्म पानी में उबालकर बनाई गई तुलसी की चाय पीने से लगातार आने वाली खांसी और सिरदर्द से राहत मिलती है और ब्रोंकाइटिस के लक्षण धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।
६. हल्दी का दूध-
ब्रोंकाइटिस का इलाज करने का एक आसान और सरल तरीका एक चम्मच हल्दी को एक गिलास दूध में मिलाकर और उबालकर दिन में दो या तीन बार पीना भी है। अगर इसे सुबह खाली पेट लिया जाए, तो यह सबसे प्रभावशाली तरीका साबित होता है।
७. घर पर बना चूर्ण-
यह चूर्ण आप सूखी काली मिर्च, अदरक और पिप्पली को निश्चित मात्रा में मिलाकर बना सकते हैं, जिसका शहद के साथ मिलाकर सेवन किया जाता है।
८. मुलेठी की जड़-
मुलेठी की जड़ को पीसकर इसका चूर्ण बनाएं। फिर, आधे गिलास पानी में आधा चम्मच चूर्ण मिलाकर 15 मिनट तक उबालने के बाद इसका सेवन करें।
९. अडूसा (वासा)-
ब्रोंकाइटिस के पुराने मामलों के लिए, आयुर्वेद वासा अर्थात मालाबार नट के पौधे के उपयोग की सलाह देता है। पुरानी खांसी होने पर, अडूसा के पत्तों को एकत्र करके अच्छी तरह पीसकर और फिर इसका काढ़ा बनाकर 60 मिलीलीटर की मात्रा पीने से खांसी तुरंत ठीक हो जाती है।
१०. अन्य आयुर्वेदिक औषधियाँ-
ब्रोंकाइटिस के उपचार के लिए आयुर्वेद द्वारा कुछ अन्य मानक औषधियाँ भी निर्धारित की गई हैं। इनमें रस सिन्दूर, प्रवलपिष्टी, कफचिंतामणि, सितोपलादि चूर्ण आदि शामिल हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2v9svb36
https://tinyurl.com/rzrm4drh
https://tinyurl.com/56cvrcjx
https://tinyurl.com/nmpc3n8n
चित्र संदर्भ
1. खांसती हुई महिला और अर्क तेलों को दर्शाता चित्रण (wikimedia,
Creazilla)
2. ब्रोंकाइटिस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. नीलगिरी अर्क तेल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अरोमाथेरेपी को दर्शाता चित्रण (Max Pixel)
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