कहानी का असली रोमांच फिल्मों में ढूंढें या किताबों में?

विचार II - दर्शन/गणित/चिकित्सा
28-06-2023 09:38 PM
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कहानी का असली रोमांच फिल्मों में ढूंढें या किताबों में?

कहा जाता है कि किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती हैं, जिनके माध्यम से वह दूसरों के अनुभवों और सलाह को पढ़कर अपनी मुश्किलों से पार पा सकता है। एक पुस्तक आपको एक ही जीवन में कई लोगों का जीवन जी लेने की आजादी देती हैं। लेकिन आज ज़माना डिजिटल (Digital) हो गया है, इसलिए आधुनिक पीढ़ी का रुझान भी किताबों में वर्णित शब्दों के बजाय फिल्मों या चलचित्रों (वीडियो) की ओर अधिक बढ़ गया है। पहली नजर में आपको भी ऐसा लगेगा कि मनोरंजन की दौड़ में किताबें, नए ज़माने की फिल्मों से पिछड़ रही हैं, लेकिन ज़रा सोचिये कि कोई तो कारण होगा कि कई सालों से किताबें पढ़ने वाले पुस्तक प्रेमी, अपने आनंद को फिल्मों के बजाय, कागज की मटमैली सी खुशबु लिए किताब के पन्नों में ढूंढते हैं। किताबें हमारे बीच लंबे समय से मौजूद हैं, और कई पीढ़ियों से चीजों को सिखाने और हमारे मनोरंजन का माध्यम बनी हुई हैं। दूसरी ओर फिल्में, पिछले कुछ ही दशकों में बहुत अधिक लोकप्रिय हो गई हैं। हालांकि दोनों (किताबों और फिल्मों) के अपने-अपने फायदे हैं और दोनों अलग-अलग लोगों को अलग-अलग तरीके से आकर्षित करते हैं। किताबों और फिल्मों के बीच की वर्चस्व की दौड़ लंबे समय से चली आ रही है। पुस्तक का फिल्मों के रूप में रूपांतरण लगभग सौ वर्षों से अधिक समय से हो रहा है। फिल्म सिंड्रेला (Cinderella), ब्रदर्स ग्रिम (Brothers Grimm) की पुस्तक सिंड्रेला (1899)की कहानी से प्रेरित पहली फिल्म थी। इसके अलावा शेक्सपियर (Shakespeare) के कार्यों पर आधारित पहली फिल्म भी लगभग उसी समय बनाई गई थी।
आमतौर पर किताबों को फिल्मों से बेहतर माना जाता है। हालांकि, यह इस बात पर निर्भर हो सकता है कि आप पूछ किससे रहे हैं। आजकल के अधिकांश युवा किताबें पढ़ने के बजाय फिल्में देखना अधिक पसंद करते हैं। इसलिए बहुत से लोग मानते हैं कि यह हमारे समाज के लिए एक नकारात्मक संकेत है। उनका मानना है कि पढ़ने से हमारे दिमाग को कई फायदे होते हैं और यह हमें बेहतर तथा समझदार इंसान बना सकता है। जब किसी किताब की तुलना उसके फिल्म रूपांतरण (किताब पर आधारित फिल्म) से की जाती है, तो अधिकांश लोग इस बात से सहमत होते हैं कि मूल किताबें ही हमेशा बेहतर होती हैं। हालांकि, इस पर भी अलग-अलग दृष्टिकोण हैं।
नीचे ऐसे कई वैध कारण दिए गए हैं, कि क्यों किताबें फिल्मों से बेहतर होती हैं:
१. किताबें अधिक जटिल अनुभव प्रदान करती हैं, क्योंकि उन्हें पढ़ने में फिल्म देखने की तुलना में अधिक समय लगता है। जब आप कोई किताब पढ़ते हैं, तो आप केवल एक पाठक नहीं रह जाते बल्कि आप उससे कहीं अधिक बन जाते हैं! आप उन सभी अनुभवों को महसूस करते हैं, जो उस पुस्तक में लिखित कहानी के पात्र महसूस करते हैं। आप एक नायक हो सकते हैं, बीमारी से लड़ सकते हैं, असाधारण व्यक्ति बन सकते हैं, या प्यार में भी पड़ सकते हैं। किताबों की कोई सीमा या प्रतिबंध नहीं होता है, और वे आपको एक पूरी नई दुनिया में प्रवेश करने की अनुमति देती हैं जहां कुछ भी संभव है।
२. किताबें पाठकों को कमियों को भरने हेतु, अपनी कल्पना का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। यानी पाठक अपनी कल्पना का प्रयोग करके यह निर्धारित कर सकते हैं कि पात्र कैसे दिखते हैं या उनकी आवाज कैसी है। किताबों का यही गुण, प्रत्येक व्यक्ति के लिए पुस्तक पढ़ने को एक अनूठा अनुभव बना देता है।
३. फिल्मों की तुलना में किताबों में अधिक विस्तृत विवरण दिए गए होते हैं। फिल्मों में कहानी बताने के लिए एक समय सीमा (आमतौर पर लगभग 90-120 मिनट) सीमित होती है, जबकि किताबें कथानक, पात्रों और कारनामों के बारे में अधिक गहराई से जानकारी प्रदान कर सकती हैं।
४. कई पुस्तक प्रेमियों का मानना है कि किताबों पर फिल्में नहीं बननी चाहिए, क्योंकि फिल्में अक्सर किताबों द्वारा निर्धारित उच्च मानकों को पूरा करने में विफल रहती हैं। इनमें कई महत्वपूर्ण विवरण अक्सर छोड़ दिए जाते हैं या बदल दिए जाते हैं, और हो सकता है कि फिल्म की व्याख्या पुस्तक के विवरण से मेल ही न खाए। इसके अतिरिक्त, फिल्म रूपांतरण अक्सर व्यापक दर्शकों को आकर्षित करने के लिए किए जाते हैं, जो मूल कहानी की अखंडता से समझौता कर सकते हैं।
५.कभी-कभी किताबों पर आधारित फिल्में मूल कहानी से भटक सकती हैं या उसे मूल कहानी से पूरी तरह से अलग बना सकती हैं। हालांकि, इन सभी उचित तर्कों के विपरीत फिल्मों के भी अपने फायदे होते हैं। जैसे:
१. फिल्में देखने में, किताब पढ़ने की तुलना में काफी कम समय लगता है। किसी व्यस्त आदमी के लिए फ़िल्में किसी कहानी का अनुभव करने का तेज तरीका प्रदान कर सकती हैं।
३. फिल्में दृष्टिगत रूप से अधिक जीवंत होती हैं। यह उन लोगों के लिए आनंददायक हो सकती हैं जिन्हें पढ़ते समय ज्वलंत छवियों की कल्पना करने में कठिनाई होती है। फिल्में पात्रों और घटनाओं का विस्तृत दृश्य प्रदान करती हैं, जिससे अपनी कल्पना को मेहनत कराने की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है।
४. अच्छे अभिनेता किसी फिल्म रूपांतरण में पात्रों को जीवंत बना सकते हैं। अभिनेताओं का अच्छा प्रदर्शन फिल्म को एक उत्कृष्ट कृति में बदल सकता है, जबकि खराब प्रदर्शन समग्र गुणवत्ता में कमी ला सकता है।
कुल मिलाकर किताबों को फिल्मों से बेहतर ही माना जाता है क्योंकि वे अधिक गहन अनुभव प्रदान करती हैं, कल्पना को प्रोत्साहित करती हैं और अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करती हैं। हालांकि, फिल्मों के भी अपने फायदे होते हैं और वे अपने तरीके से मनोरंजक हो सकती हैं। इस लेख में आगे किताबों पर आधारित कुछ उल्लेखनीय बॉलीवुड फिल्मों की सूची दी गई है:
१. तेरे मेरे सपने: ए जे क्रोनिन (A.J Cronin) के उपन्यास "द सिटाडेल (The Citadel)" पर आधारित यह फिल्म डॉ. एंड्रयू मैनसन (Dr. Andrew Manson) की कहानी बताती है, जो अन्य चिकित्सा पेशेवरों की सहायता के लिए ग्रामीण इलाकों की यात्रा करते हैं। यह हिंदी फिल्म पुस्तक के मूल कथानक को बनाए रखती है।
२. ओमकारा: विलियम शेक्सपियर (William Shakespeare) के नाटक "ऑथेलो (Othello)" पर आधारित यह फिल्म एक पारंपरिक भारतीय गांव की कहानी बताती है। इस कहानी में ओमकारा को ईर्ष्या और हीन भावना का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण वह दुखद कृत्य करने पर मजबूर हो जाता है। सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, यह फिल्म शेक्सपियर की कहानी के सार को प्रभावी ढंग से दर्शाती है।
३.आयशा: सोनम कपूर अभिनीत यह फिल्म जेन ऑस्टेन (Jane Austen) के प्रसिद्ध उपन्यास "एम्मा (Emma)" पर आधारित है। एम्मा वुडहाउस (Emma Woodhouse) की तरह आयशा भी खुद को मैचमेकर (Matchmaker) मानती है और लगातार दूसरों की जिंदगी में दखल देती है। दिल्ली की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म भारतीय दर्शकों को जेन ऑस्टेन के काम से परिचित कराते हुए आयशा की रोमांचक यात्रा पर ले जाती है।
४. सांवरिया: संजय लीला भंसाली ने फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की (Fyodor Dostoyevsky's) की "व्हाइट नाइट्स (White Nights)" पुस्तक को मंत्रमुग्ध कर देने वाली फिल्म "सांवरिया" में बदल दिया।
५. हैदर: निर्देशक विशाल भारद्वाज ने शेक्सपियर की "हैमलेट (Hamlet)" को भारतीय संदर्भ में, विशेष रूप से कश्मीर के राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्र में रूपांतरित किया है। हैदर, हैमलेट की तरह, अपने पिता की मृत्यु के कारणों को खोजता है और नैतिक दुविधाओं का सामना करता है।
६. कोहरा:उपन्यास "रेबेका" से प्रेरित यह फिल्म एक नवविवाहित पत्नी की कहानी बताती है जो अपने पति की मृत पत्नी के भूत से परेशान होती है। हालांकि फिल्म में कुछ असाधारण तत्व जोड़े गए हैं और अंत में बदलाव किया गया है, लेकिन यह मूल कहानी के रहस्य और आतंक को बरकरार रखती है।
७. नीली छतरी: रस्किन बॉन्ड (Ruskin Bond) की किताब पर आधारित यह फिल्म बिन्या नाम की एक युवा लड़की और उसकी बेशकीमती संपत्ति, एक नीली छतरी के इर्द-गिर्द घूमती है। सर्वश्रेष्ठ बाल फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली यह फिल्म नाटकीय तत्वों को जोड़ते हुए आकर्षक कथा को जीवंत बना देती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/3ze9x94c
https://tinyurl.com/mu4vvjuu
https://tinyurl.com/a9k59puj

चित्र संदर्भ

1. पुस्तक पढ़ते भारतीयों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. पुस्तक पढ़ती महिला को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
3. सिंड्रेला के दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. फिल्म देखते लोगों को दर्शाता चित्रण (Pexels)
5. पुस्तक पढ़ती युवती को दर्शाता चित्रण (wikimedia)