City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2717 | 687 | 3404 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
मेरठ में सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय ने पार्थेनियम खरपतवार (Parthenium weed) के दुष्प्रभावों के बारे में भारत भर के विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए "पार्थेनियम मुक्त राष्ट्रीय योजना" नाम से एक आंदोलन शुरू किया है।पार्थेनियम एक ऐसा खरपतवार है, जो पूरे देश में स्वतंत्र रूप से बढ़ता है।पार्थेनियम मुक्त राष्ट्रीय योजना का उद्देश्य लोगों को यह सिखाना है कि इन पौधों को नष्ट करने के लिए इन्हें व्यक्तिगत रूप से उखाड़ा जा सकता है या इनके फूलों पर सोडियम क्लोराइड/ग्लाइफोसेट (Sodium chloride/glyphosate) के घोल को छिड़का जा सकता है। तो आइए आज पार्थेनियम खरपतवार के इतिहास और इसके दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
पार्थेनियम खरपतवार प्रायः खेतों और ऐसी भूमि पर उगती है, जो उपयोग में नहीं है। इस पौधे के बारे में दिलचस्प बात यह है कि पार्थेनियम या पार्थेनियम हिस्टोरोफोरस (Parthenium hystorophorous) का एक राजनीतिक और ऐतिहासिक सम्बंध भी है। आज भारत में कोई भी ऐसी जगह नहीं है, जहां यह आक्रामक पौधा मौजूद न हो। यह लगभग हर जगह मौजूद है, किंतु आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आजादी से पहले यह प्रजाति भारत में कहीं भी मौजूद नहीं थी। भारत में इस प्रजाति की शुरूआत होती है, 1950 के दशक से जब भारत, भोजन की कमी का सामना कर रहा था। केंद्र की कांग्रेस सरकार ने भोजन संकट को कम करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) से गेहूं आयात करने का फैसला किया। इसी कारण से इसका उपनाम "कांग्रेस ग्रास" (Congress Grass) रखा गया। यह खाद्यान्न संयुक्त राज्य अमेरिका के PL 480(शांति के लिए भोजन) कार्यक्रम के तहत प्राप्त किया गया था। लेकिन जो गेहूँ भारत भेजा गया,वह घटिया किस्म का था, और उसमें पार्थेनियम खरपतवार के बीज भी शामिल थे। इस प्रकार इस गेंहू आयात से खतरनाक खरपतवार भारत में फैल गई और देश के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बनी हुई है।
यह खरपतवार पहली बार पुणे में देखी गई तथा अब अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी पाई जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि जब पहली बार खरपतवार को देखा गया था, तब सरकार द्वारा इसके प्रसार को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।जहरीला और आक्रामक पार्थेनियम, जिसे 'गाजर घास' के रूप में भी जाना जाता है, दुनिया के कई हिस्सों को प्रभावित कर चुका है। यह खरपतवार पहले ही हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश सहित कई भारतीय राज्यों में कहर बरपा चुकी है।
अपने जहरीले गुण के कारण यह त्वचा और श्वसन या सांस से सम्बंधित बीमारियां पैदा करता है। अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में पार्थेनियम का प्रत्यक्ष संपर्क उनकी त्वचा में तुरंत खुजली पैदा करता है। यदि कोई व्यक्ति लगातार इसके संपर्क में रहता है, तो उसकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है। पार्थेनियम के संपर्क से त्वचा में सूजन, खुजली, खुजली वाले स्थान से पानी का स्राव होना आदि समस्याएं हो सकती हैं। इसके अलावा त्वचा प्रकाश के प्रति संवेदनशील हो जाती है,जिससे रोगी को धूप का सामना करना मुश्किल हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि पार्थेनिन नाम के एक सेस्क्यूटरपीन लैटोन (Sesquiterpene laitone) के कारण यह खरपतवार एलर्जी पैदा करता है।इसके विपरीत, कैंसर अनुसंधान संस्थान, बॉम्बे में काम कर रहे कुछ शोध वैज्ञानिकों का मानना है कि यह एक जहरीला रसायन है, और जब ठीक से संसाधित किया जाता है, तो कैंसर विरोधी क्षमता प्रदर्शित करता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने समय-समय पर विभिन्न तरीकों से इसकी संभावित उपयोगिता का खुलासा किया है। उदाहरण के लिए एक कीटनाशक,पाचन के लिए एक टॉनिक,खाद्य मशरूम उगाने के लिए प्रोटीन युक्त आधार, मलेरिया-रोधी गुण आदि।
हाल के एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण देश के 65% हिस्से में पार्थेनियम के प्रसार का खतरा हो सकता है। जैव विविधता और संरक्षण पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि तीन क्षेत्रों, जिनमें पश्चिमी हिमालय, उत्तर पूर्वी राज्य और प्रायद्वीपीय भारत शामिल है, में पार्थेनियम का प्रसार बहुत तीव्र गति से हो सकता है। इस विदेशी प्रजाति ने लगभग सभी भारतीय राज्यों पर अपना विस्तार कर लिया है। एक अध्ययन के अनुसार इसके आक्रमण से देश की कई फसलों में 40% तक की उपज हानि हुई है और चारा उत्पादन में भी 90% की गिरावट आई है।खरपतवार का कृषि और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, यह फसलों के विकास को कम कर देता है और इसके पराग हवा को दूषित करते हैं, जिससे मनुष्यों और मवेशियों दोनों में एलर्जी होती है।यदि सरकार द्वारा पार्थेनियम के विस्तार को रोकने के लिए प्रभावी उपाय नहीं किए जाते हैं, तो यह हमारे पारिस्थितिक तंत्र के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है।
संदर्भ:
https://rb.gy/y9l50
https://rb.gy/puyyk
https://rb.gy/5hqms
https://rb.gy/7ku6q
https://t.ly/4ol5Q
चित्र संदर्भ
1. हाथ में पार्थेनियम खरपतवार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. खेत में उगी पार्थेनियम खरपतवार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. नजदीक से देखने पर पार्थेनियम खरपतवार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. पार्थेनियम खरपतवार के परागकणों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. जंगल के पास उगी पार्थेनियम खरपतवार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.