अपनी विविध संस्कृति और परंपराओं के लिए जाने जाने वाले हमारे शहर मेरठ में सभी धर्मों के त्यौहार बड़े धूमधाम और उल्लास के साथ मनाए जाते हैं। कुछ त्यौहारों के साथ जुड़े धार्मिक गतिविधि के रूप में यहां कई बार मेलों का भी आयोजन किया जाता है। यहां मेलों के दिनों में लोग बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं। मेरठ में आयोजित होने वाला नौचंदी मेला ऐसा ही एक लोकप्रिय मेला है जो दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
हमारा मेरठ शहर, रंगीन नौचंदी मेले में भाग लेने के लिए दूर-दूर से आने वाले लोगों की गतिविधियों से, पूरे एक महीने गुलजार रहता है। हमारे देश में कई मेले लगते हैं, लेकिन मेरठ के नौचंदी मेले जैसा शायद ही कोई मेला देश में लगता हो। यह मेला सैकड़ों वर्षों की परंपरा के सन्दर्भ में आयोजित किया जाता है। यह मेला मुख्य रूप से सन 1672 में पशु व्यापारियों के लिए शुरु हुआ था। हालांकि, तब से इस मेले में कई बदलाव हुए हैं। आज यह मेला धार्मिक उत्साह, वाणिज्यिक गतिविधियों, कलात्मक रचनात्मकता और देहाती मनोरंजन का मिश्रण है। यह मेला प्रतिवर्ष मेरठ के करीबी शहर सरधना में, होली के बाद आने वाले सप्ताह के दौरान आयोजित किया जाता है। पार्वती का अवतार ‘देवी चंडी’ की पूजा के साथ इस आयोजन की शुरुआत होती है। इस मेले की विशालता, विविधता, रंग, उल्लास और उत्साह पर विश्वास करने के लिए दरअसल इसे वास्तव में देखना होगा!
एक मान्यता के अनुसार, राक्षसराज रावण की पत्नी मंदोदरी ने मेरठ के एक राक्षस परिवार में जन्म लिया था। राक्षस परिवार में जन्म लेने के बावजूद मंदोदरी देवी चंडी की बड़ी भक्त थीं, और उन्होंने देवी चंडी के सम्मान में यहां एक मंदिर बनवाया था। इस अवसर को मनाने के लिए एक धार्मिक उत्सव का आयोजन किया गया। तब से हर साल नौचंदी मेले का आयोजन हो रहा है। नौचंदी मेले का अपना इतिहास है और इसके बारे में कई किंवदंतियां और कहानियां प्रसिद्ध हैं। एक किंवदंती के अनुसार, अंग्रेजों ने वर्ष 1800 के दौरान इस मेले को राजस्व संग्रहित करने के उद्देश्य से शुरु किया था। यह मेला भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के 1857 के विद्रोह के दौरान भी लगा था। विद्रोह के नेताओं में से एक, नाना साहेब, स्थानीय लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने की प्रेरणा देने के लिए यहां आए थे। 1884 में, मेरठ जिले के तत्कालीन कलेक्टर (Collector), एफ.एन.राइट (F.N.Wright) ने यहां विशेष नस्ल के घोड़ों की प्रदर्शनी आयोजित की थी। इस भव्य आयोजन के लिए, संभावित खरीदारों को आकर्षित करने के लिए मेले के अनुरूप अन्य गतिविधियों का आयोजन भी यहां किया जाता था।
प्रारंभ में मेले का प्रबंधन जमींदार किया करते थे। किंतु वर्तमान समय में, स्थानीय नगर निगम और शहर के महापौर इस मेले का आयोजन करते हैं। मेले के साथ मेले का अच्छा प्रबंधन भी उतना ही उल्लेखनीय है। मेले में एक हजार से अधिक स्टॉल (Stall) लगाई जाती हैं, और हर दिन 50,000 से अधिक लोग इस मेले में आते हैं। स्टॉल और दुकानों को सफेद कपड़े से सजाया जाता है, जिसे स्थानीय बोलचाल में ‘चांदनी’ कहा जाता है।
आप इस मेले में, लखनऊ की चिकनकारी का काम, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन, वाराणसी के कालीन और गालीचा, आगरा के जूते, कानपुर के चमड़े के सामान, बरेली के कोहल, कन्नौज का इत्र, फिरोजाबाद की चूड़ियां, खुर्जा के चीनी मिट्टी के सामान, जयपुर की पोशाक और आभूषण, पानीपत की चादरें, असम के बेंत का फर्नीचर आदि खरीद सकते है। मेरठ के अपने उत्पाद जैसे खेल के सामान, कैंची और गजक तो यहां उपलब्ध होते ही हैं। बच्चों और यहां तक कि बड़ों को भी खुश करने के लिए मनोरंजक एवं मजेदार प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। यहां विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों का लाभ भी उठाया जा सकता है। मेले का एक विशेष आकर्षण शहरी और ग्रामीण स्वाद का सुखद मिश्रण है। प्रसिद्ध हलवा-पराठा, खास स्वाद वाली जलेबी, मुंह में पानी लाने वाले छोले भटूरे और सरसों के साग के साथ मक्के की रोटी, गोलगप्पे और यहां तक कि इडली, डोसा और वड़ा का भी स्वाद नौचंदी मेले में लिया जा सकता है। नौचंदी मेले का सांस्कृतिक पहलू भी महत्वपूर्ण है। यहां हर शाम कोई न कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसके अलावा, मेला समिति ने सौंदर्य प्रतियोगिता, वृद्धों का सम्मान, महिला सम्मेलनों का आयोजन, आतिशबाजी और संगीत प्रतियोगिताओं जैसे कुछ नए कार्यक्रम भी शुरु किए हैं। और अब मेले के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक पहलुओं को संरक्षित करने के लिए एक आर्ट गैलरी (Art Gallery) और संग्रहालय स्थापित करने की भी योजना बनाई गई है।
गौरतलब है कि यह मेला हिंदू मंदिर और मुस्लिम दरगाह के साथ सांप्रदायिक सद्भाव का एक दुर्लभ प्रतीक है। नौचंदी मैदान के परिसर में नौचंदी मंदिर और मुस्लिम संत बाला मियां की दरगाह पास–पास ही स्थित हैं। मेले के आगंतुक चाहे किसी भी धर्म के हों, वे दोनों पवित्र स्थानों में जाकर दर्शन करते हैं।
यह भी कहा जाता है कि शहर में जब-जब सांप्रदायिक दंगे हुए, तब-तब नौचंदी मेले ने ही हिंदू-मुस्लिम दलों के दिलों की कड़वाहट दूर की है। दंगों के बाद भी दोनों पक्ष के लोग नौचंदी मेले में एक साथ देखे गए। सन् 1672 में मां नवचंडी के मंदिर से एक पशु मेले के रूप में इस मेले की शुरुआत हुई थी। और तब से आज तक नौचंदी मेला 350 साल से लगातार आयोजित किया जा रहा है। नौचंदी ने विभिन्न आंदोलनों एवं संग्रामों में अत्याचार और बगावत के सुरों को भी खूब सुना है। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम देखने का गौरव भी नौचंदी को मिला। आजादी की मूरत बने नौचंदी ने शहर के कई उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन मेले की रौनक कभी भी कम नहीं हुई है।
संदर्भ
https://bit.ly/3NgRZpi
https://bit.ly/3J4CoXl
https://bit.ly/45P4QGm
https://bit.ly/3WT4EBT
चित्र संदर्भ
1. नौचंदी मेले को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. नौचंदी मेले के गेट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नौचंदी मेले के एक दृश्य को दर्शाता चित्रण (youtube)
4. नौचंदी मेलेें में गए एक व्यक्ति को दर्शाता चित्रण (wikimedia)