मेरठ एक औद्योगिक शहर है यहाँ पर यातायात एक प्रमुख कारक रहा है विकास व प्रसार में। यह शहर अंग्रेजों द्वारा बसाया गया था तथा यहाँ पर शुरूआती दौर से ही कई यातायात का प्रबन्ध किया गया था, उस समय गाड़ीयों का प्रबन्ध ना होने के कारण बैल का प्रयोग किया जाता था। वह परम्परा आज भी मेरठ में जीवित है तथा यहाँ पर कहीं कहीं बैलगाड़ी दिखाई दे जाती है। यहाँ पर बैलगाड़ी खींचनें में लाये जाने वाले बैल नागौरी नश्ल के बैल हैं। नागौरी नश्ल के बैलों के विषय में यदि देखा जाये तो ये राजस्थान के नागौर जिले में उत्पन्न माने जाते हैं। नागौरी बैल प्रायः सफेद रंग के होते हैं। इनका सीना मजबूत होता है। आँखों में एक विशेष प्रकार की चमक होती है। इनकी गर्दन चुस्त, मुतान कसा हुआ, पूंछ अपेक्षाकृत छोटी, सींग छोटे व सुडौल, टांगें पतली, मुँह छोटा तथा त्वचा मुलायम होती है। ये बैल, एक दिन में पाँच एकड़ तक भूमि जोत सकते हैं। कच्चे मार्ग पर 6 से 8 क्विंटल तथा पक्के मार्ग पर 8 से 10 क्विंटल माल की ढ़ुलाई कर सकते हैं। नागोरी नस्ल के बैल रेगिस्थान के गरम मौसम के लिए बहोत ही उपयुक्त होते है। तेजी से चलने के कारण बैलगाड़ियों में इसका व्यापक इस्तेमाल किया जाता है। नागोरी नस्ल मुख्यतः कृषि उद्द्येशों की पूर्ती के लिए पाली जाती हैं। ये पशु सूखे के लिए बहोत उपयोगी होती हैं। दिये गये चित्र में नागौरी नश्ल के ही बैल को दिखाया गया है जो की मेरठ के नेता हकीमुद्दीन मार्ग (जो संगीत के वाद्य यंत्रो के लिये जाना जाता है) पर खड़ा है। यह प्रदर्शित करता है कि कैसे आज भी बैलों का प्रयोग यातायात व मालवाहक के रूप में किया जाता है। 1. नागौरी बैल, प्रेम कुमार, आई.जी.एन.सी.ए
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