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आज हमारे मेरठ जिले में भूमि विवाद से जुड़े हुए असंख्य मामले सामने आ रहे हैं। अनुमानित 7.7 मिलियन लोग, 2.5 मिलियन हेक्टेयर विवादित भूमि के लिए संघर्ष कर रहे हैं। चूंकि भूमि भारत के विकास पथ के केंद्र में है, इसलिए भूमि संघर्ष का समाधान खोजना सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण नीतिगत चुनौती का मुद्दा है। भारतीय अदालतों में सबसे अधिक भूमि विवाद के मामले दर्ज होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अब तक तय किए गए सभी मामलों में से 25 प्रतिशत मामलेभूमि विवाद के हैं, जिनमें से 30 प्रतिशत मामले भूमि अधिग्रहण से संबंधित थे।सर्वेक्षणों से पता चलता है कि भारत में सभी दीवानी मामलों में से 66 प्रतिशत मामले भूमि या संपत्ति विवादों से संबंधित हैं।
भूमि पर कानूनी और अतिरिक्त-कानूनी विवादों की उच्च घटनाएं विधायी कारकों के कारण होती हैं, जैसे ऐतिहासिक आख्यानों से उत्पन परस्पर विरोधी कानून, संपत्ति के अधिकारों को नियंत्रित करने वाली वर्तमान नीतियां, और इन कानूनों के अनुपालन में प्रशासन की विफलता आदि। वहीं न्यायिक कारकों के कारण येभूमि विवाद लंबे समय तक विचाराधीन पड़े रहते हैं।
पहले तो भूमि विवाद के मामलों को अदालत में लाने में कानूनी और साक्ष्य संबंधी बाधाएँ आती हैं, और फिर न्यायिक क्षमता की कमी के कारण त्वरित समाधान में देरी होती है।
इतने अधिक भूमि विवादों के पीछे भारत में मौजूद विभिन्न परस्पर विरोधी आख्यान, नीतियां और भूमि कानून हैं। ब्रिटिश शासन के समय बने पहले आख्यान के अनुसार,‘राज्य’ उस भूमि का मालिक माना जाताहै , जो किसी निजी स्वामित्व में नहीं है। यह आख्यान सरकार को चुनिंदा लाभार्थियों को उदारतापूर्वक भूमि का पुनर्वितरण करने का अधिकार देता है। भूमि पर ऐसे राज्य अधिग्रहण ऐतिहासिक रूप से काफी विवाद का स्रोत रहे हैं।‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च लैंड राइट्स इनिशिएटिव’ (Centre for Policy Research- Land Rights Initiative (CPR-LRI)) का अनुमान है कि पिछले 70 वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय में मौजूद सभी भूमि मुकदमों के 30 प्रतिशत ऐसे ही विवाद रहे हैं। ऐसा ही एक दूसरा आख्यान, लोगों द्वारा व्यक्त किया गया, जिसमें किसान और पारंपरिक समुदाय जैसे मवेशी चराने वाले, वनवासी, आदिवासी, मछुआरे आदि द्वारा भूमि को एक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संसाधन के रूप में देखा जाता है । अब इतने अधिक जमीनी विवाद के बाद, अनुसूचित जनजातियों और किरायेदारों जैसे कुछ समूहों के संपत्ति अधिकारों को संविधान और क़ानून द्वारा संरक्षित किया गया है।
इन दोनों प्रतिस्पर्धी आख्यानों को स्पष्ट करने के लिए अक्सर भूमि कानून एक दूसरे के साथ संघर्ष में रहते है। उदाहरण के लिए, ‘वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act), 2006’ के प्रावधानों को कभी-कभी ‘भारतीय वन अधिनियम (Indian Forest Act), 1927’ और ‘वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act), 1980’ के विरोध में देखा जाता है।
‘भारतीय वन अधिनियम’ में प्रस्तावित संशोधनों से वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधानों को भी खतरा है। इसके अलावा कानूनी विवाद तब भी उत्पन्न होते हैं जब अलग-अलग हितधारकों को खुश करने के लिए कानूनों को अधिनियमित या संशोधित किया जाता है।
वहीं यदि एक बार कोई भूमि विवाद अदालत में जाता है तो न्यायिक अक्षमता के कारण वे मामले लंबित मामलों की सूची में आ जाते हैं; इस अक्षमता के पीछे तीन कारण मौजूद हैं:
1.भारत में भूमि विवाद की संख्या मौजूद न्यायाधीशों की संख्या से काफी अधिक है;
2.विशेष रूप से न्यायपालिका के निम्नतम स्तरों पर विवादों को शीघ्रता से हल करने के लिए आवश्यक वित्तीय, तकनीकी और अवसंरचनात्मक क्षमता की कमी;
3.सरकार द्वारा न्यायालय के निर्णयों को सही रूप से संपादन करने की कमी, और इस तरह के प्रवर्तन पर अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए सीमित न्यायिक क्षमता।
किसी भी सरकार ने कभी भी मौजूदा भूमि कानूनों को युक्तिसंगत बनाने का प्रयास नहीं किया है। भारत में सभी भूमि कानूनों के एक विस्तृत डेटाबेस (Database) के निर्माण के बाद, संसद को ऐसे कानूनों को निरस्त करना चाहिए, जो लोगों के कुछ समूहों, विशेष रूप से महिलाओं को, अधिकारों से वंचित करते हैं। साथ ही, अलग अलग समय के कानूनों के बीच का संघर्ष खत्म करना भी ज़रूरीहैं।
भारत में, वर्तमान मेंसंपत्ति के स्वामित्व दस्तावेजों की श्रृंखला -‘प्रकल्पित भूमि शीर्षक’ (आरओआर)(Record of Rights) के माध्यम से साबित होता है। ये वर्तमान मालिक को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के बीच हुए सभी स्वामित्व के हस्तांतरण का प्रमाण प्रदान करता है। पंजीकरण को संपत्ति के हस्तांतरण के लिए दो पक्षों के बीच एक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है। हालांकि इसमें एक महत्वपूर्ण बाधा यह है कि इनमें से किसी भी मध्यवर्ती लेनदेन को चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि उप-पंजीयक का कार्यालय केवल केंद्रीय पंजीकरण अधिनियम (Registration Act) 1908 के तहत विलेख पंजीकरण कर रहा है, और यह भूमि के स्वामित्व को सत्यापित नहीं करता है। इस कारण हमारे देश में काफी व्यापक रूप में संपत्ति धोखाधड़ी होती है। वहीं राजस्व विभाग और पंचायती राज विभाग भूमि अभिलेखों के संरक्षक होते है। तथा वे भू-अभिलेख विवरण बनाए रखने के लिए नियुक्त प्राधिकारी हैं। बिक्री, ऋण, बंधक, गिरवी की रिहाई, अन्य विभागों द्वारा शुरू किए गए फसल-अद्यतन के माध्यम से स्वामित्व के परिवर्तन आदि राजस्व विभाग के अधिकारियों द्वारा अनुमोदित किए जाते हैं, और फिर स्वामित्व प्रकल्पित भूमि शीर्षक में अद्यतन किए जाते हैं। भू-अभिलेख राज्य कानूनों के अधिकार क्षेत्र में आता है।
देश में पंजीकरण विभाग भूमि अभिलेख प्रणाली से स्वतंत्र एक सॉफ्टवेयर (Software) का उपयोग करते हैं। पंजीकृत होने वाली संपत्ति से संबंधितदस्तावेज नागरिक द्वारा मेटा डेटा (Meta data) के साथ अपलोड(Upload) किया जाता है।
इस क्षेत्र में आने वाली कुछ प्रमुख चुनौतियों निम्नवत है :
1.भूमि संबंधी मुकदमों की संख्या में वृद्धि,
2.एक ही भूमि या भू-संपत्ति की दोहरी बिक्री को ट्रैक (Track) करना;
3.अद्वितीय अभिलेखन या स्वामित्व के सुनहरे अभिलेखन का न होना;
4.भूमि अभिलेख को सत्यापित करने के लिए नागरिकों की सुविधा-प्रणाली की कमी होना;
5.भूमि को संपार्श्विक सुरक्षा के रूप में उपयोग करके बैंकों से ऋणके लिए कागजी काम;
6.राजस्व और वित्तीय संस्थानों से दस्तावेज प्राप्त करने में देरी में कठिनाई आदि।
अतः इन चुनौतियों को दूर करने के लिए अन्य विवरण की तुलना में, भू-अभिलेखविवरण को ब्लॉकचेन (Blockchain) में सटीक रूप से संग्रहीत करने की आवश्यकता है। राज्य में राजस्व अधिकारियों द्वारा अनुमोदन के बाद भूमि के एक टुकड़े पर लेन-देन के मौजूदा इतिहास को पहले ब्लॉकचैन में डाला जाता है। स्वीकृत विवरण को डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित और संग्रहीत किया जाता है। यह किसी भी दाखिल-खारिज के लिए शुरुआती बिंदु होता है।राजस्व विभाग द्वारा जारी प्रमाण पत्रों को ब्लॉकचेन में संग्रहीत किया जाता है,और इसका लेन-देन के दौरान किसी भी सत्यापन प्रक्रिया के लिए बैंक जैसी अन्य एजेंसियों द्वारा उपयोग किया जा सकता है।अन्य विभागों द्वारा बिक्री, ऋण, बंधक, बंधक की रिहाई, फसल अद्यतन से स्वामित्व परिवर्तन-संबंधित लेनदेन शुरू किया जा सकता है। उपर्युक्त लेन-देन की शुरुआत के दौरान, ब्लॉकचैन विवरण का उपयोग करके विवरणों का सत्यापन किया जाता है।संबंधित डेटाबेस में लेन-देन के अनुमोदन के बाद विलेख पंजीकरण,, लेन-देन का विवरण ब्लॉकचेन में संग्रहीत किया जाता है।
संदर्भ :-
https://rb.gy/yoeod
https://rb.gy/l26tx
https://rb.gy/hc6se
चित्र संदर्भ
1. ब्लॉकचैन प्रौद्योगिकी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. भूमि की मापजोख करते अधिकारीयों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कंप्यूटर पर विश्लेषण करते अधिकारीयों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. ब्लॉक चैन संचार को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)