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31 मई अर्थात आज का दिन संपूर्ण विश्व में ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ (World No Tobacco Day) के रूप में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation (WHO) के सदस्य राष्ट्रों द्वारा इस दिन को वर्ष 1987 में ‘तंबाकू की लत जैसी महामारी’ और इसके कारण होने वाली मृत्यु और बीमारियों की विश्वभर में जागरुकता लाने के लिए निश्चित किया गया था। इस वर्ष अर्थात 2023 में ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ का विषय ‘अन्न उत्पन्न करो, तंबाकू नहीं’ निश्चित किया गया है। इस अभियान का उद्देश्य है कि तंबाकू की फसल के लिए सरकार द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता (subidies) सरकारी रूप से समाप्त हो,तथा इससे होने वाली बचत का उपयोग किसानों की खाद्य सुरक्षा और पोषण में सुधार करने वाली अधिक टिकाऊ फसलों के लिए हो। किसी भी देश में धर्म, सरकार, और कानूनों की अहम् भूमिका होती है धूम्रपान करने वालो को दंडित करने और धूम्रपान पर जुर्माना लगाने में । ये ऐसे लोग होते है जो न केवल स्वयं के स्वास्थ्य को खतरे में डालते हैं, बल्कि धूम्रपान न करने वाले लोगों के स्वास्थ्य को भी गंभीर जोखिम में डालते हैं।
किंतु आश्चर्य की बात यह है कि इतिहास में किसी भी धर्म प्रमुख, तानाशाह या सरकार द्वारा कभी भी धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने के बारे में नहीं सोचा गया। दुनिया का पहला ज्ञात सार्वजनिक धूम्रपान प्रतिबंध वर्ष 1590 में पोप अर्बन VII (Pope Urban VII) के 13 दिवसीय शासनकाल में लगाया गया था। तब पोप ने चर्च के बरामदे में याअंदर, तंबाकू का उपयोग या सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत करने का आदेश दिया था। 17वीं शताब्दी में, कई यूरोपीय देशों ने भी पोप अर्बन VII के विचार का अनुकरण किया था और शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि 1848 में बुर्जुआ (bourgeois)अभिजात, यानी मध्यम वर्ग के नेतृत्व में हुई क्रांति द्वारा सार्वजनिक धूम्रपान पर लगे प्रतिबंध को निरस्त कर दिया गया।
इसके बाद नाज़ी पार्टी (Nazi Party) द्वारा उनके कार्यालयों, जर्मन विश्वविद्यालयों, डाकघरों और सैन्य अस्पतालों में पहला ज्ञात आधुनिक राष्ट्रव्यापी तंबाकू प्रतिबंध लगाया गया था।
भारत में ‘सार्वजनिक रूप से या सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान न करने’ केनियम के प्रचलित होने से पहले, 1999 में सर्वोच्च न्यायालय में कांग्रेस नेता, मुरली देवड़ा, ने एक याचिका दायर की थी जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने की मांग की गई थी। न्यायालय खंडपीठ ने 2 नवंबर, 2001 को माना कि सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने से गैर-धूम्रपान करने वालों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन होता है,जिसकी संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में गारंटी दी गई है।
इसके अलावा 1975 से ही, ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है,’ ऐसी वैधानिक चेतावनी तंबाकू के प्रत्येक पैकेट पर देना अनिवार्य कर दिया था। उसके बाद से भारत ने एक लंबा सफर तय किया है। हालांकि, आज ये सारे उपाय और कदम असफलता की राह पर है। इसके क्या कारण है?आइए जानते हैं।
वास्तव में, 2008 में भारत में तंबाकू उद्योग 36 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता था, और यह भारत के कुल उत्पाद राजस्व में 10% योगदान देता था, जिसमें लगभग 90% योगदान सिगरेट का था। तब देश में यह कुल 35,000 करोड़ रुपयों का उद्योग था।
2019 में ‘थॉट आर्बिट्रेज रिसर्च इंस्टीट्यूट’ (Thought Arbitrage Research Institute) द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि तंबाकू उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में 11,79,498 करोड़ रुपये का योगदान देता है, और लगभग 4.57 करोड़ लोगों को रोजगार देता है। इसमें 60 लाख किसान, 2 करोड़ खेत मजदूर, 40 लाख पत्ते तोड़ने वाले मजदूर, तथा इसके प्रसंस्करण, निर्माण और निर्यात में 85 लाख कर्मचारी और खुदरा बिक्री, और व्यापार में 72 लाख कर्मचारी शामिल हैं। तंबाकू उत्पादन भारत में वाणिज्यिक फसलों के कुल मूल्य में काफ़ी बड़ा योगदान देता है, जिससे हमारे देश को कृषि रोजगार, कृषि आय, राजस्व सृजन और विदेशी मुद्रा आय के मामले में भारी सामाजिक-आर्थिक लाभ होता है।
तंबाकू दुनिया में आर्थिक रूप से सबसे अधिक महत्वपूर्ण कृषि फसलों में से एक है। भारत में, तंबाकू की फसल 4.5 लाख हेक्टेयर (कुल खेती वाले क्षेत्र का 0.27%) में उगाई जाती है, जिससे करीब–करीब 75 करोड़ किलोग्राम तंबाकू की पत्ती का उत्पादन होता है। विश्व में चीन (China) और ब्राजील (Brazil) के बाद भारत तंबाकू का क्रमशः तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। वैश्विक परिदृश्य में, भारत में तंबाकू के कुल भूमि क्षेत्र के 10% पर तंबाकू का 9% उत्पादन किया जाता है। देश के लगभग 15 राज्यों में तंबाकू का उत्पादन होता हैं, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था और कृषक समुदाय की समृद्धि पर काफी प्रभाव पड़ता है।
एसोचैम (Assocham) के अध्ययन के अनुसार, 12 अरब अमेरिकी डॉलर के वैश्विक तंबाकू पत्ते के निर्यात व्यापार में भारत का पांच प्रतिशत का हिस्सा है। 100 से अधिक देशों में भारतीय तंबाकू का निर्यात किया जाता है। इसके अलावा तंबाकू का उत्पादन देश की सबसे खराब गुणवत्ता वाली मिट्टी पर होता है, जो कई अन्य फसलों को उगाने के लिए अनुपयुक्त होती है। जिसके कारण तंबाकू उगाना अत्यधिक श्रमसाध्य होने के बावजूद खाद्य फसलों की तुलना में लाभकारी होता है। साथ ही तंबाकू की फसल अन्य फसलों की तुलना में मौसम की स्थिति में बदलाव का बेहतर सामना कर सकती है, खासकर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात जैसे राज्यों में।
तंबाकू उद्योग के मुख्य लाभार्थी छोटे और सीमांत किसान, ग्रामीण महिलाएं, आदिवासी युवा और समाज के कमजोर वर्ग हैं।देश में तंबाकू एक वर्ष में विदेशी मुद्रा आय में 4,400 करोड़ रुपये का योगदान देता है, जो देश के कुल कृषि-निर्यात का 4% है। यह उत्पाद शुल्क राजस्व में 14,000 करोड़ रुपये का योगदान भी देता है। तंबाकू के इसी आर्थिक मूल्य की वजह से शायद सरकार के तंबाकू प्रतिबंध के उपाय असफल हो रहे है, और नीतिगत सुधार एवं निर्णयों में कमी आ रही है। अतः हमें कुछ ठोस उपायों की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://rb.gy/r4u66
https://rb.gy/oat6v
https://rb.gy/oi8c3
https://rb.gy/xr942
https://rb.gy/paa1e
चित्र संदर्भ
1. तम्बाकू बेचती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. धूम्रपान करते भारतीय को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)
3. बीड़ी बनाते भारतीय बुजुर्ग को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. तम्बाकू की खेती को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. सुखाई जा रही तम्बाकू को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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