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आज हम आपको इस लेख के माध्यम से आपके स्वास्थ्य के बारे में जागरुक करना चाहते है-जब तक क्रोनिक किडनी डिसीज(Chronic Kidney Disease)अर्थात गुर्दों की चिरकालिक व्याधि या बीमारी बढ़ती नहीं है, बहुत से मरीज़ इसके बारे में नहीं जान पाते।स्टैनफोर्ड मेडिसिन(Stanford Medicine) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार,इन बीमारियों की समय-समय पर जांच से हमारी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो सकती है। क्रोनिक किडनी डिसीज से अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका(United States of America) में 37 मिलियन लोग अर्थात 15% अमेरिकी वयस्कप्रभावित हैं। इनमें से दो-तिहाई मामलों के लिए मधुमेह(diabetes) और उच्च रक्तचाप (blood pressure) जैसी बीमारियां जिम्मेदार हैं। अमेरिका में इस रोग पर 87 बिलियन डॉलर वार्षिक चिकित्सा खर्च होता हैतथा ‘किडनी रिप्लेसमेंटथेरेपी’ (Kidney Replacement Therapy) पर सालाना 37 बिलियन डॉलर अतिरिक्त खर्च होते हैं।माना जाता है कि वैश्विक स्तर पर यह रोग लोगों की मृत्यु का छठा सबसे तेजी से बढ़ने वाला कारण है।इससे विश्व में एक वर्ष में लगभग 1.7 मिलियन लोगों की मृत्यु होने का अनुमान है।
इस अध्ययन के प्रमुख लेखक मैरिका क्यूसिक(Marika Cusick)का कहना है कि,जब तक रोगी गुर्दे की इस बीमारी के अंतिम चरण तक नहीं पहुंच जाते हैं, ज्यादातर मामलों में तब तक लोगों को इस विषय का ज्ञान नहीं होताहै।इस रोग के शुरुआती चरण में अधिकांश लोग अनजान होते हैं। हालांकि इस रोग कीजांच करके, हम प्रारंभिक चरण में इसका निदान और उपचार कर सकते हैं,हमारी जीवन प्रत्याशा में सुधार कर सकते हैं और अंतिम चरण में बीमारी के बढ़ने के जोखिम को कम कर सकते हैं।पहले किडनी के रोग से पीडित रोगियों की औसत आयु 40से 60 वर्ष थी, जबकि अब यह घटकर 20से 40 वर्ष ही हो गई है।
इस रोगकी जांच के लिए मूत्र में एल्ब्यूमिन(Albumin)नामक एक प्रोटीन(Protein)की मौजूदगी का परीक्षण किया जाता है। मूत्र में इसकी मौजूदगी गुर्दे की बीमारी का संकेतक है। हालांकि, जैसा कि हम जानते हैं कि अब वैज्ञानिक प्रगति के चलते हर बीमारी का इलाज संभव है, और इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए सोडियम-ग्लूकोज कोट्रांसपोर्टर-2 इनहिबिटर (Sodium-Glucose Cotransporter-2 Inhibitors) दवाओं के एक नए वर्ग की खोज की गई है,जो इस बीमारी पर अत्यंत कारगर साबित हुआ है।
आइए, अब भारत में क्रोनिक किडनी डिसीजके परिदृश्य पर एक नजर डालते हैं।भारत में 78 लाख से अधिक लोग गुर्दों की बीमारी से पीड़ित हैं। इसके पीछे अस्वस्थजीवन-शैली एक प्रमुख कारण के रुप में उभरीहै।इसके अलावा मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, किडनी स्टोन(Kidney Stone), गुर्दों में संक्रमण और आनुवंशिक किडनी रोग भी हमारी किडनी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। गुर्दे की बीमारी के लक्षण तुरंत प्रकट नहीं होते हैं, इसलिए इसकी जांच करवाना ही एकमात्र तरीका है।अगर किसी को लगातार कमजोरी, थकान या पैरों में सूजन जैसे लक्षण महसूस होते हैं, या लगातार अनियंत्रित रक्तचाप की परेशानी है, तो ऐसी अवस्था में आपको डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
मूत्रमें यूरिया(Urea)कीमात्रा किडनी की बीमारी का सबसे पहला लक्षण है, जिसके बारे में 90% लोगों को पता नहीं होता है। इससे किडनी में स्टोन बनने का भी बड़ा खतरा होता है। हालांकि,पानी के ज्यादा से ज्यादा सेवन से किडनी स्टोन से बचा जा सकता है। गुर्दे की विफलता के अन्य लक्षण शक्तिहीनता और थकान हैं।
यदि आपकी उम्र 40 वर्ष से अधिक है, तो उचित किडनी परीक्षण, मूत्र परीक्षण, अल्ट्रासाउंड(Ultrasound), रक्तचाप की नियमित जांच आपके लिए आवश्यक हैं।आपका रक्तचाप जितना अधिक होगा, गुर्दे के क्षतिग्रस्त होने की संभावना भी अधिक होगी, इसलिए अपने रक्तचाप को नियंत्रित रखने के उपाय करें।साथ ही ब्लड शुगरलेवल(Blood Sugar Level) नियंत्रित रहे और मोटापा न हो,इसका भी ध्यान रखें।
किडनी एक ऐसा अंग है जो शरीर के लगभग सभी अंगों को प्रभावित करता है, चाहे वह हृदय हो, मस्तिष्क हो या यकृत हो। इसलिए अगर किडनी खराब हो जाए तो शरीर के अन्य सभी अंग प्रभावित होंगे और फिर किडनी की बीमारी का उपचार भी आसान नहीं है । इसलिए, शुरुआती एहतियाती कदम उठानाही उचित विकल्प है।
गुर्दे की बीमारी हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है,रोगियों के परिवारों और देखभाल करने वालों पर बोझ डालती है; और इसका उपचार स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के प्रबंधन के लिए भी बेहद महंगा है। रोग के बढ़ने से पहले ही इसकी जांच और प्रभावी उपचार प्राप्तकरने से स्वास्थ्य में सुधार होता है।साथ ही बीमारी के उपचार के लिए उपयोग किए गए धन और संसाधन सार्थक सिद्ध होते हैं।
अन्य विकासशील देशों की तरह ही, भारत में भी किडनी की बीमारियों के शीघ्र निदान और प्रबंधन को प्रभावित करने वाली अद्वितीय परिस्थितियां और चुनौतियां मौजूद हैं। उपलब्ध सुविधाएं और विशेषज्ञता देश के विभिन्न भागों में असमान रूप से वितरित हैं। इस रोग की रोकथाम और शीघ्र निदान हेतु सभी स्तरों पर चिकित्सकों की भागीदारी अनिवार्य है। क्रोनिक किडनी डिसीज वाले अधिकांश रोगियों को उनके प्राथमिक चिकित्सकों द्वारा समय पर नेफ्रोलॉजी(Nephrology)चिकित्सक, अर्थात किडनी रोग के विशेषज्ञों के परामर्श के साथ प्रबंधित किया जा सकता है। ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ नेफ्रोलॉजी’ (The Indian Society of Nephrology) को अपने उपखंडों की क्षमता में वृद्धि करनी चाहिए और वितरित देखभाल की एकरूपता का नेतृत्व करना चाहिए। आज,हमारी सरकार द्वारा सस्ती और आसानी से उपलब्ध आरआरटी (Rapid Response Team) का प्रावधान, वाणिज्यिक किडनी प्रत्यारोपण (kidney transplantation) के खर्च में कमी, और मृतक किडनीदाता प्रत्यारोपण (deceased donor kidney transplant) में वृद्धि आदि पहलों के साथ,अंतिम चरण में पकड़ी गयी गुर्दोंकी बीमारियों के लिए स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार किए जा रहे हैं।
संदर्भ
https://rb.gy/jnpn1
https://rb.gy/e2uqe
https://rb.gy/gftcf
चित्र संदर्भ
1. किडनी का ऑपरेशन करते चिकित्सकों को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. गुर्दे की स्थिति दिखाने वाले पेट के सीटी स्कैन, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक सिक्के से किडनी स्टोन की तुलना को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. पेरिटोनियल डायलिसिस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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