Post Viewership from Post Date to 30-Jun-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
4215 573 4788

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

सागौन से भी महंगी व् बहुपयोगी है काले शीशम की लकड़ी

मेरठ

 27-05-2023 09:46 AM
घर- आन्तरिक साज सज्जा, कुर्सियाँ तथा दरियाँ

रोज़वुड (Rosewood) या काला शीशम का पेड़ उत्तर प्रदेश की एक स्थानिक प्रजाति है। शीशम की यह प्रजाति मुख्य रूप से गोंडा और बलरामपुर जिले में होती है। काला शीशम, आमतौर पर, शीशम की उगाई जाने वाली अन्य किस्मों की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाली प्रजाति होती है। हालाँकि, लोगों ने इसे उगाना लगभग बंद कर दिया था, क्योंकि अब तक उन्हें इसके बहुमूल्य गुणों की जानकारी नहीं थी। लेकिन अब समय के साथ काले शीशम के प्रति बढ़ती जागरुकता ने इसकी मांग को बढ़ा दिया है। शीशम की लकड़ी को साल और सागौन की लकड़ी से भी उत्कृष्ट गुणवत्ता वाला माना जाता है। हालांकि अब काले शीशम की प्रजाति के पेड़ जंगलों से गायब हो गए हैं। एक समय में यह पेड़ जंगलों में बहुतायत में पाए जाते थे, लेकिन अब ये पेड़ ज्यादा कटाई और निरोपण के कारण जंगलों से गायब होते जा रहे हैं। पहले काले शीशम की लकड़ी किलो के भाव बिकती थी, लेकिन अब इतनी महत्वपूर्ण प्रजाति के पेड़ ढूढऩे पर भी नहीं मिल पा रहे हैं। काले शीशम का वैज्ञानिक नाम डैलबर्जिया लैटिफोलिया (Dalbergia Latifolia) है। इसकी लकड़ी साल-सागौन से भी महंगी होती है, जिस कारण जंगलों से इसके पेड़ गायब होते जा रहे हैं।
हालांकि, भारत में शीशम की लकड़ी का व्यापार और इसका उपयोग सरकारी प्रतिबंधों के अधीन है। ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) ने काले शीशम को “लुप्तप्राय” प्रजाति की श्रेणी में दर्ज किया है। ‘उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान’ (Tropical Forest Research Institute (TFRI) के वैज्ञानिकों द्वारा चार राज्यों में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि इन पेड़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। लकड़ी महंगी होने के कारण पेड़ों की अवैध रूप से कटाई की जा रही है। क्योंकि इसकी खेती में करीब 40 वर्षों का समय लगता है, और साथ ही जब इसका पौधा एक से दो फीट का होता है तब कवक संक्रमण के कारण कम पौधे ही पेड़ का आकार ले पाते हैं, इसलिए किसानों द्वारा इसके पौधे का रोपण भी नहीं किया जा रहा है।
हालांकि, काला शीशम और साधारण शीशम एक ही परिवार के हैं, लेकिन इन दोनों में काफी अंतर होता है। उदाहरण के लिए साधारण शीशम का वैज्ञानिक नाम डैलवर्जिया सिस्सो (Dalvargia Sisso) है, जिसकी पत्तियां नुकीली होती हैं। काले शीशम की लकड़ी बैगनी रंग की होती है तथा लकड़ी का बाहरी हिस्सा मुलायम तथा अंदर का हिस्सा बहुत कठोर होता है। इसके अलावा इसकी लकड़ी की फिनिशिंग (Finishing) और चमक काफी अच्छी होती है। काला शीशम का पेड़ अक्सर सीधा ऊपर की ओर बढ़ता है, जो कि 18 से 22 मीटर तक की ऊंचाई तक का हो सकता है। भारत में, शीशम की लकड़ी लंबे समय से आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण रही है, और उपयोग के मामले में सागौन के बाद दूसरे स्थान पर है। इसका उपयोग कृषि उपकरण, संगीत वाद्ययंत्र और आभूषण, साथ ही ईंधन के लिए, और लकड़ी का कोयला बनाने के लिए किया जाता है। भारतीय फर्नीचर (furniture) व्यापार में इसका बहुतायत में उपयोग किया जाता है। अपने आकर्षक रंगों और गुणों के कारण इस पेड़ की लकड़ी दुनिया भर में तेजी से लोकप्रिय हो गई है। शीशम की लकड़ी बहुत टिकाऊ मानी जाती है, जिसकी फ़िनिशिंग बहुत आकर्षक होती है। यह लकड़ी भारी और घनी होती है तथा कीटों और विभिन्न कारकों, जैसे पानी आदि, से तुरंत प्रभावित नहीं होती है। सागौन और कई अन्य दृढ़ लकड़ी की तुलना में यह अधिक लचीली भी होती है। अर्थात इसे बिना दरार लाए आसानी से मोड़ा जा सकता है। इस पर किसी भी प्रकार की खरोंच का आसानी से प्रभाव नहीं होता, है तथा इसे साफ करना भी बहुत आसान है। यदि आपका फर्श या मेज ठोस शीशम की लकड़ी से बना है, तो इसमें होने वाली किसी भी क्षति की आसानी से मरम्मत की जा सकती है। लकड़ी की रासायनिक प्रकृति के कारण इसमें हल्की सुखद सुगंध भी होती है। स्टील, कंक्रीट या कांच जैसी कृत्रिम सामग्रियों की तुलना में यह लकड़ी एक बेहतर विकल्प है। इसका उपयोग ईंधन की लकड़ी और धूप में छाया प्राप्त करने के लिए शेड (Shed) बनाने में भी किया जा सकता है। बिहार में इसके पेड़ों का सड़कों एवं नहरों के किनारे, और चाय बागानों में छायादार पेड़ के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी पौध को अक्सर जड़ वाले छोटे पौधे के रूप में लगाया जाता है, हालांकि, इसके बीजों को बोकर भी इसकी खेती की जा सकती है। इसके बीज कुछ ही महीनों के लिए व्यवहार्य रहते हैं। बीजों की बुवाई से पहले उन्हें 48 घंटे तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए। 1 से लेकर 3 सप्ताह में इसका 60%- 80% अंकुरण हो जाता है।
इसके इतने अधिक उपयोग एवं गुणवत्ता को देखते हुए उत्तर प्रदेश में शीशम के उत्पादन को बढ़ाने के लिए इसके पौधों का रोपण किया जा रहा है, ताकि जिन पेड़ों को पहले काट दिया गया है, उसकी भरपाई की जा सके।

संदर्भ:
https://rb.gy/tgv7d
https://bit.ly/3otGIsf
https://bit.ly/3OGXejc
https://bit.ly/3oqwo4j

 चित्र संदर्भ
1. काला शीशम, आमतौर पर, शीशम की उगाई जाने वाली अन्य किस्मों की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाली प्रजाति होती है। को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. शीशम के वृक्ष को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. काले शीशम के तने को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. काले शीशम के प्यादों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • जानें भारतीय उपमहाद्वीप में पहली दर्ज राज्य-स्तरीय सभ्यता, कुरु साम्राज्य के बारे में
    ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक

     22-10-2024 09:27 AM


  • आइए जानें, तंजावुर गुड़ियों के पीछे छिपे विज्ञान और सांस्कृतिक धरोहर का महत्व
    हथियार व खिलौने

     21-10-2024 09:27 AM


  • आइए देखें, कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सांख्यिकी कैसे बनती है सहायक
    संचार एवं संचार यन्त्र

     20-10-2024 09:26 AM


  • चीन के दुर्लभ विशाल सैलामैंडर को क्यों एक स्वादिष्ट भोजन मान लिया गया है?
    मछलियाँ व उभयचर

     19-10-2024 09:18 AM


  • राजस्थान के बाड़मेर शहर का एप्लिक कार्य, आप को भी अपनी सुंदरता से करेगा आकर्षित
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     18-10-2024 09:22 AM


  • मानवता के विकास में सहायक रहे शानदार ऑरॉक्स को मनुष्यों ने ही कर दिया समाप्त
    स्तनधारी

     17-10-2024 09:24 AM


  • वर्गीकरण प्रणाली के तीन साम्राज्यों में वर्गीकृत हैं बहुकोशिकीय जीव
    कोशिका के आधार पर

     16-10-2024 09:27 AM


  • फ़िल्मों से भी अधिक फ़िल्मी है, असली के जी एफ़ की कहानी
    खदान

     15-10-2024 09:22 AM


  • मिरमेकोफ़ाइट पौधे व चींटियां, आपस में सहजीवी संबंध से, एक–दूसरे की करते हैं सहायता
    व्यवहारिक

     14-10-2024 09:28 AM


  • आइए देखें, कैसे बनाया जाता है टूथपेस्ट
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     13-10-2024 09:16 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id