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नदियाँ हमारे विश्व की जीवनदायिनी हैं। दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्रों को पानी की आपूर्ति प्रदान करने के साथ-साथ ये विभिन्न जीवों की एक महत्वपूर्ण आबादी को भी आवास प्रदान करती हैं। इसके अलावा नदियां परिवहन और मनोरंजन का स्रोत भी हैं। किंतु यह उस समय मानव के लिए खतरा बन जाती हैं, जब इनका जल स्तर अत्यधिक बढ़ जाता है, तथा बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।हर साल उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदियों के जल स्तर में वृद्धि के कारण यहां के 18 जिलों के 650 गाँव जलमग्न हो जाते हैं। विभिन्न जिलों में गंगा, यमुना, शारदा, घाघरा, चंबल और बेतवा नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। हालांकि बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन मानव जनित जलवायु परिवर्तन इस तरह की गंभीर बाढ़ की घटनाओं को और अधिक सामान्य बना रहा है। पिछले वर्ष हमीरपुर जिले में सबसे अधिक (114) गांव बाढ़ से प्रभावित हुए। इसके बाद वाराणसी के 107 गांव, प्रयागराज के 96 गांव, जालौन के 74 गांव, कानपुर देहात के 54 गांव, इटावा के 49 गांव, मिर्जापुर के 39 गांव, आगरा के 36 गांव, चित्रकूट के 20 गांव, औरैया के 18 गांव, फर्रुखाबाद के 15 गांव, बांदा और कानपुर के 8 गांव, सीतापुर के 5 गांव, फतेहपुर के 4 गांव, बलिया, कासगंज और मऊ का 1 गांव बाढ़ से प्रभावित हुआ।
उत्तर प्रदेश के सिंचाई और जल संसाधन विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार आगरा में चंबल और लखीमपुर खीरी जिले के पलियाकलां में शारदा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। फर्रुखाबाद, प्रयागराज और वाराणसी जिलों में गंगा खतरे के निशान के पास बह रही है। इटावा और प्रयागराज जिलों में यमुना नदी की भी यही स्थिति थी। उत्तर प्रदेश में सालाना लगभग 27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के कारण प्रभावित होता है तथा बाढ़ के कारण सालाना 432 करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
हालांकि बाढ़ एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन मानव जनित जलवायु परिवर्तन इस तरह की बाढ़ की घटनाओं को और अधिक सामान्य तथा गंभीर बना रहा है। बाढ़ की घटनाओं में ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) एक मुख्य भूमिका निभा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी पर ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से पृथ्वी का वायुमंडल भी गर्म होता जा रहा है।
गर्म तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं,जो समुद्र के जल स्तर को बढ़ाते हैं। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार जलवायु परिवर्तन जल विज्ञान और बाढ़ को प्रभावित करता है। पर्वतीय क्षेत्रों में, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के तीन प्रभाव बाढ़ के उच्च जोखिम पैदा कर रहे हैं। इन तीन मुख्य प्रभावों में अधिक तीव्र वर्षण, बर्फ और बारिश के पैटर्न में बदलाव और प्रकृति पर जंगल की आग का प्रभाव शामिल है।जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म वातावरण अधिक तीव्र वर्षण का कारण बन रहा है।ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्म हवा अधिक नमी धारण कर सकती है। यदि वायुमंडलीय तापमान में 1.8 डिग्री फ़ारेनहाइट या 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो वायुमण्डल द्वारा धारण की जाने वाली जलवाष्प की मात्रा में लगभग 7% की वृद्धि हो सकती है।
हाल के वर्षों में दुनिया के कई हिस्सों ने बाढ़ की ऐसी घटनाओं का अनुभव किया है, जैसे कि पहले कभी नहीं महसूस की गई।ऑस्ट्रेलिया (Australia), पश्चिमी यूरोप (Western), भारत और चीन (China) में भयावह बाढ़ की घटनाएं सामने आई हैं। जलवायु परिवर्तन रिकॉर्ड तोड़ने वाली वर्षा की घटनाओं को और अधिक संभावित बना रहा है।जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल द्वारा प्रकाशित नवीनतम मूल्यांकन रिपोर्ट से पता चला है कि भविष्य में यह पैटर्न ऐसे ही जारी रहेगा क्योंकि वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रहेगी।
ठंडे क्षेत्रों में, विशेष रूप से पहाड़ी या उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में, जलवायु परिवर्तन अन्य तरीकों से बाढ़ को प्रभावित करता है।इन क्षेत्रों में, कई सबसे बड़ी ऐतिहासिक बाढ़ें हिमपात के कारण आई हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म सर्दी के साथ, वर्षण, बर्फ के रूप में कम गिर रहा है, तथा वर्षा के रूप में अधिक हो रहा है। बर्फ से बारिश में यह बदलाव बाढ़ का कारण बन रहा है। जबकि बर्फ आमतौर पर वसंत या गर्मियों के अंत में धीरे-धीरे पिघलती है,बारिश अपवाह का निर्माण करती है जो नदियों में अधिक तेज़ी से बहती है। एक शोध के अनुसार बारिश से होने वाली बाढ़ बर्फ पिघलने से होने वाली बाढ़ की तुलना में बहुत बड़ी हो सकती है।जब बारिश बर्फ पर गिरती है, तब बारिश और बर्फ के पिघलने से विशेष रूप से उच्च अपवाह हो सकता है तथा बाढ़ आ सकती है।
बर्फ पर वर्षा का गिरना कोई नई घटना नहीं है। गर्म परिस्थितियों में, बर्फ पर वर्षा के होने की घटनाएं उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक सामान्य हो जाती हैं। वर्षा की तीव्रता में वृद्धि और गर्म परिस्थितियों के कारण तेजी से हिमपात होता है।जब वर्षा,बर्फ पर गिरती है, तब वर्षा और हिमपात के संयोजन से विशेष रूप से उच्च अपवाह और बाढ़ आ सकती है।ऐसे क्षेत्रों में जहां बाढ़ की घटनाएं सामान्य होने लगी हैं, वहां बाढ़ के पूर्वानुमान,बांधों और बेसिनों के निर्माण, तटबंधों का निर्माण, वृक्षारोपण आदि के द्वारा बाढ़ से होने वाले संभावित खतरों को कम किया जा सकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/422GDt8
https://bit.ly/422wCMu
https://bit.ly/3ol5cUj
चित्र संदर्भ
1. जलमग्न गांव को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)
2. नदी को पार करते ग्रामीणों को दर्शाता चित्रण (Flickr)
3. उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा को दर्शाता चित्रण (Flickr)
4. पानी में डूबे गांव को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
5. पहाड़ों में बर्फ़बारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)