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हमारे मेरठ शहर से मात्र, 3 घंटे (203 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित, “वृंदावन नगरी” भगवान् श्री कृष्ण की कई रास लीलाओं की साक्षी रही है। मेरठ के औघड़नाथ मंदिर में भी, विभिन्न अवसरों पर मधुर रासलीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। हालांकि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से निकली, यह लोक परंपरा, कैसे पूरे देश में नृत्य की एक लोकप्रिय अभिव्यक्ति बन गई।
रासलीला, जिसे रास नृत्य के रूप में भी जाना जाता है, भागवत पुराण और गीत गोविंदा जैसे हिंदू ग्रंथों में वर्णित एक पारंपरिक कहानी है। यह कहानी कृष्ण, राधा और बृज की गोपियों के बीच अगाध प्रेम और नृत्य के इर्द-गिर्द घूमती है। भरतनाट्यम, ओडिसी, मणिपुरी, कुचिपुड़ी और कथक सहित, विभिन्न शास्त्रीय भारतीय नृत्य रूपों में रासलीला, एक लोकप्रिय विषय रही है।
"रासलीला" शब्द संस्कृत से लिया गया है। जहां रस का अर्थ "अमृत," "भावना," या "मीठा स्वाद, होता है, और "लीला" का अर्थ "कार्य," "खेल," या "नृत्य" होता है। इस प्रकार, इसे मोटे तौर पर "दिव्य प्रेम के नृत्य" या "कृष्ण के मधुर अभिनय" के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
किंवदंतियों के अनुसार, रासलीला तब घटित होती है, जब वृंदावन की गोपियां श्री कृष्ण की बांसुरी की मोहक ध्वनि सुनती हैं। वे कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिए अपने घरों और परिवारों को भी त्याग देती हैं। कृष्ण भक्ति परंपराओं में, रासलीला को आत्मीय प्रेम के सबसे सुंदर चित्रणों में से एक माना जाता है। यह कृष्ण की आत्मा के मूल एवं आनंदमय आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक होती है। आज रासलीला का प्रदर्शन करने हेतु, मथुरा में कई समूह हैं, जिन्हें रसमंडली कहा जाता है, और उनके पास विशिष्ट नर्तकियां हैं, जिन्हें रसधारी कहा जाता है।
यह प्रदर्शन मंदिर के प्रांगण में जमीन से तीन फीट ऊपर, विशेष रूप से निर्मित गोलाकार मंच पर किए जाते हैं। भागवत पुराण के अनुसार, जो कोई भी विश्वासपूर्वक और स्नेहपूर्वक, रासलीला को सुनता या इसका वर्णन करता है, वह श्री कृष्ण की शुद्ध प्रेममयी भक्ति को प्राप्त करता है। रासलीला को भागवत पुराण का "अंतिम संदेश" माना जाता है। इसकी कहानी बृज में शुरू होती है, जहां गोपियाँ, श्री कृष्ण को अपनी बांसुरी बजाने के लिए प्रेरित करती हैं। श्री कृष्ण, प्रत्येक गोपी के साथ विभिन्न रूपों में रासलीला करते हैं। कहानी की समाप्ति होने पर, गोपियाँ अनिच्छा से पास की एक नदी में जलपान करने के बाद अपने घरों को लौट जाती हैं।
रासलीला को आज पूरे भारत में, विभिन्न नृत्य रूपों में व्यापक रूप से प्रदर्शित किया गया है। कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, मणिपुरी और कुचिपुड़ी में, कलाकार जटिल कलाओं, भावों और कहानी के माध्यम से, श्री कृष्ण, राधा और गोपियों के दिव्य प्रेम को समर्पित, रास नृत्य का चित्रण करते हैं। रासलीला मथुरा, वृंदावन और भारत के अन्य क्षेत्रों में भी लोक रंगमंच का एक लोकप्रिय रूप है।
वृंदावन में पारंपरिक रासलीला प्रदर्शन, एक आध्यात्मिक अनुभव के रूप में प्रसिद्ध हैं। निम्बार्क सम्प्रदाय (Nimbarka sect) के एक संत स्वामी श्री उद्धवघमण्डा देवाचार्य (Swami Sri Uddhavaghamanda Devacharya) ने 15वीं शताब्दी की शुरुआत में वृंदावन में रासलीला प्रदर्शन की शुरुआत की।
रास लीला का एक पारंपरिक नृत्य रूप भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में से एक मणिपुर से भी उत्पन्न हुआ है। यह मणिपुरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे अपनी सुंदरता और श्रेष्ठ शैलियों के सुंदर चित्रण के लिए जाना जाता है। रास लीला की उत्पत्ति के संबंध में विभिन्न सिद्धांत मौजूद हैं। एक सिद्धांत बताता है कि इसकी शुरुआत निंगथउ चिंग-थांग खोंबा (Ningthou Ching-thang Khomba) द्वारा की गई थी, जिन्हें राजर्षि भाग्य चंद्र के नाम से भी जाना जाता है, जो 18वीं शताब्दी के मैतेई सम्राट थे। इन्होंने 1779 में नृत्य शैली की शुरुआत की थी। एक अन्य सिद्धांत मणिपुरी रास लीला के लोकप्रिय होने का श्रेय, एक दार्शनिक राजा, भाग्यचंद्र को देता है। मणिपुरी एक प्रकार का भारतीय शास्त्रीय नृत्य है जो अपनी सुंदरता और पारंपरिक शैलियों की सुंदर प्रस्तुति के लिए जाना जाता है। मणिपुरी नृत्य लोक परंपराओं और रीति-रिवाजों से निकटता से जुड़ा हुआ है, और यह मणिपुरी लोगों की परंपराओं से प्रभावित अद्वितीय सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करता है।
शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान कृष्ण अपनी बांसुरी बजाते थे, तो राधा और वृंदावन की गोपियाँ, उनके साथ नृत्य में शामिल होने के लिए दौड़ पड़ती थीं। प्रारंभ में, वृंदावन के लोगों को वृज भाषा में गाए जाने वाले गीतों से जुड़ने में कठिनाई हुई, इसलिए रासलीला के नृत्य तत्वों को भी इसमें शामिल किया गया।
रासलीला नृत्य प्रदर्शन, कई महीनों तक चलता है और छात्रों को "ओझा" नामक एक मुख्य गुरु द्वारा सिखाया जाता है। इसे विभिन्न रूपों में किया जाता है, जिसमें पूर्णिमा के दौरान मार्च-अप्रैल में वसंत रास, पूर्णिमा के दौरान नवंबर-दिसंबर में महा रास, नृत्य रास, कुंजा रास और दिबा रास शामिल हैं, जो दिन के दौरान किए जाते हैं। मणिपुर रासलीला नृत्य को इसकी अनूठी विशेषताओं के लिए सराहा जाता है, जिसमें बारीक कढ़ाई वाली पोशाकें, लयबद्ध पैटर्न और शरीर की अनूठी मुद्राएं शामिल हैं। यह मणिपुरी लोक संगीत को शास्त्रीय हिंदुस्तानी रागों के साथ जोड़ती है। माना जाता है कि मणिपुरी नृत्य ने 1917 में तब राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता हासिल कर ली, जब कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने एक प्रदर्शन देखा और इस नृत्य को उन्होंने शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल में अपने विश्व-भारती विश्वविद्यालय में सिखवाना शुरू कर दिया।
संदर्भ
https://bit.ly/3q1xPWZ
https://bit.ly/3olYZaU
चित्र संदर्भ
1. रासलीला, जिसे रास नृत्य के रूप में भी जाना जाता है, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गोपियों संग रासलीला के एक दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. रासलीला मंचन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. मणिपुरी नृत्य की रासलीला को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. मणिपुरी नृत्य की एक और रासलीला को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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