विभाजन के बाद, क्या रही भारत से पाकिस्तान गए सत्ताधारी अभिजात्य वर्ग ‘मुहाजिर’ की स्थिति?

मेरठ

 20-05-2023 09:15 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

1947 में भारत विभाजन और पाकिस्तान के गठन के बाद, भारत के लाखों शरणार्थी और प्रवासिसी लोग कराची में वहां की मूल सिंधी आबादी के साथ बस गए थे। इन शरणार्थियों को वहां मुहाजिरों के रूप में पहचान मिली और तब से ये शरणार्थी पाकिस्तान में समावेशन करने की लंबी प्रक्रिया का हिस्सा बने हुए हैं। उर्दू में, ‘मुहाजिर’ शब्द का अर्थ एक प्रवासी या शरणार्थी है, जो अपने धर्म के संरक्षण के लिए अपनी मातृभूमि को भी छोड़ देता है। वास्तव में एक मुहाजिर वह व्यक्ति होता है जो संकट के समय अपनी जन्म-भूमि छोड़कर कहीं दूसरी जगह चले जाने का फैसला लेता है।, मुहाजिर शब्द का यह अर्थ पैगंबर मुहम्मद के जीवन की उस घटना को दर्शाता है, जब वे अपनी जन्म-भूमि मक्का का परित्याग करके मदीना चले गये थे। पाकिस्तान में शुरुआत में मुहाजिरों द्वारा एक विशेषाधिकार प्राप्त, कुलीन और शिक्षित वर्ग का गठन किया गया, लेकिन आज अन्य जातीय समूहों के बीच उनकी सामाजिक स्थिति पहले से कम हो गई है। सामाजिक रूप से तत्कालीन मुहाजिर शहरी और उदारवादी थे। लेकिन राजनीतिक रूप से उन्होंने देश के दो प्रमुख धार्मिक दलों ‘जमात-ए-इस्लामी’ (Jamaat-i-Islami), जो तत्कालीन मध्यम वर्ग-उन्मुख था, और ‘जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान’ (Jamiat Ulema-i-Pakistan), जो अधिक क्षुद्र-बुर्जुआ और लोकलुभावन था, का पक्ष लिया। मुहाजिरों की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में यह अंतर एक असुरक्षा की भावना का परिणाम था। मुहाजिरों ने उन धार्मिक दलों के विचारों का भी प्रतिध्वनित किया जो बहुलवाद और जातीय पहचान से बचते हैं और बहुसंख्यक पाकिस्तानियों द्वारा पालन किए जाने वाले विश्वास की समानता के आधार पर एक समग्र राष्ट्रीय एकता का प्रचार करते हैं। पाकिस्तान जैसे बहु-जातीय देश में समय के साथ मुहाजिरों की इस तरह की विचारधाराएं और मांगे अप्रचलित और कृत्रिम बनने लगी, तथा 1958 में अयूब खान द्वारा स्थापित पाकिस्तान के पहले सैन्य शासन के आगमन के साथ, मुहाजिरों ने सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग में अपना प्रभाव खोना शुरू कर दिया था।
बलूच, बंगाली और सिंधी राष्ट्रवादियों ने खुद को राज्य की राष्ट्रीयता के आख्यानों से दूर कर लिया, अयूब खान, जो खैबर पख्तूनखा प्रांत से थे, ने धीरे-धीरे पख्तूनों को अर्थव्यवस्था और राजनीति के क्षेत्रों में लाना शुरू कर दिया, जिसके कारण 1960 के दशक की शुरुआत से मुहाजिरों ने अयूब तानाशाही के खिलाफ आंदोलन करना शुरू कर दिया था।
हालांकि मुहाजिरों ने सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग में निर्णायक रूप से अपना स्थान खो दिया था, लेकिन वे अभी भी एक आर्थिक समर्थक (विशेष रूप से शहरी सिंध में) बने हुए थे। लेकिन जब जुल्फीकार अली भुट्टो, जो एक सिंधी थे, दिसंबर 1971 में देश के राज्य प्रमुख और फिर सरकार प्रमुख बने, मुहाजिरों को डर लगा कि इस बार भुट्टो के अधीन आने वाली सिंधी समुदाय के आर्थिक और राजनीतिक पुनरुत्थान से वे और अधिक दरकिनार हो जाएंगे। जिसके विरोध में उन्होंने 1977 में भुट्टो शासन के खिलाफ दक्षिणपंथी आंदोलन में उत्साहपूर्वक भाग लिया जिसका नेतृत्व बड़े पैमाने पर धार्मिक दलों ने किया था। उद्योगपतियों, व्यापारियों और दुकानदारों द्वारा आक्रामक रूप से समर्थित कराची के मध्य और निम्न-मध्य वर्ग के बीच यह आंदोलन विशेष रूप से तेज था। यह भी पहली बार था जब अपने समर्थन के लिए लोकलुभावन धार्मिक प्रवृत्तियों पर आधारित आंदोलन के लिए मुहाजिरों द्वारा अपने सामाजिक उदारवाद से समझौता किया था। परंतु सभी कोशिशों के बावजूद भी मुहाजिर वापस सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग में नहीं आ पाए।
निराश होकर, कुछ युवा मुहाजिर राजनेता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उनके समुदाय का धार्मिक दलों द्वारा शोषण किया गया था, और इन दलों ने सत्ता की सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए मुहाजिरों के कंधों का इस्तेमाल किया था। इस विचारधारा के चलते 1978 में ‘ऑल पाकिस्तान मुहाजिर स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन’ (All Pakistan Mohajir Students Organisation) और फिर 1984 में ‘मुहाजिर कौमी मूवमेंट’ (Mohajir Qaumi Movement) जैसे संगठनों का गठन हुआ। इन संगठनों के संस्थापकों अल्ताफ हुसैन और अजीम अहमद तारिक ने संपूर्ण मुहाजिर समुदाय को जातीय रूप में एकजुट होकर संगठित करने का फैसला किया। इसके लिए, उन्होंने धार्मिक दलों से राजनीतिक रूप से संबद्ध होने की समुदायिक परंपरा से अलग होने और मुहाजिरों की अधिक उदार सामाजिक गतिशीलता और चरित्र का राजनीतिकरण करने की आवश्यकता को महसूस किया। वहीं जुलाई 1972 में, सिंध विधानसभा द्वारा "सिंधी भाषा के शिक्षण, प्रचार और उपयोग" नामक बिल, जिसके द्वारा सिंधी भाषा को सिंध की एकमात्र आधिकारिक भाषा घोषित किया था, के पारित होने के बाद सिंधी और मुहाजिरों के बीच भाषा को लेकर दंगे होने लगे। दंगों के कारण, प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने समझौता किया और घोषणा की कि सिंध में उर्दू और सिंधी दोनों आधिकारिक भाषाएं होंगी। आधिकारिक उद्देश्यों के लिए सिंधी को उर्दू के समान भाषा बनाने से मुहाजिरों को निराशा हुई क्योंकि वे सिंधी भाषा नहीं बोलते थे। साथ ही 1977 के पाकिस्तानी आम चुनाव में, ‘जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान’ और ‘जमीयत उलेमा-ए-पाकिस्तान’, ‘पाकिस्तान नेशनल अलायंस’ (Pakistan National Alliance) नाम के एक गठबंधन में शामिल हो गए। चूंकि ज्यादातर मुहाजिरों ने पाकिस्तान नेशनल अलायंस को वोट दिया था, उन्होंने 1977 में भुट्टो शासन के खिलाफ दक्षिणपंथी आंदोलन में भाग लिया, जो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (Pakistan People's Party) द्वारा कथित चुनावी धोखाधड़ी के कारण हुआ था। 18 मार्च, 1984 को ‘ऑल पाकिस्तान मुहाजिर स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन’ (APMSO) के वरिष्ठ सदस्यों ने एक जातीय मुहाजिर पार्टी, ‘मुहाजिर कौमी मूवमेंट’ (MQM) की शुरुआत की। एक नए मुहाजिर राजनीतिक दल के आगमन के बावजूद, अधिकांश मुहाजिरों ने 1985 में बुशरा जैदी की घातक दुर्घटना तक ‘जमात ए इस्लामी’ का समर्थन किया, जिसके परिणामस्वरूप मुहाजिर जातीय राजनीतिक अभिजात वर्ग और मुख्य रूप से निरक्षर पख्तून बस चालकों के बीच दंगे हुए। 1988 के आम चुनावों के बाद, मुहाजिर राष्ट्रवादी ‘मुहाजिर कौमी मूवमेंट’ ‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी’ के साथ गठबंधन में पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरा। ‘मुहाजिर कौमी मूवमेंट’ ने 2016 में चार भागों में विभाजित होकर टूटने तक कराची और हैदराबाद के राजनीतिक परिदृश्य पर अपना दबदबा कायम रखा। यदि देखा जाए, तो अगस्त 1947 के बाद जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान में प्रवास करना चुना, उन्होंने स्वतंत्रता के बाद पहचान के लिए भारत में लक्षित किए जाने के डर से ऐसा किया। पहचान के लिए उनका संघर्ष तब से ही मौजूद था जब वे भारत में थे और दुर्भाग्य से, पाकिस्तान जाने के बाद भी पीढ़ियों तक उनका संघर्ष जारी रहा। सवाल यह है कि पाकिस्तान के मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने में मुहाजिरों के लिए क्या स्थान मौजूद है? इसका उत्तर साफ है - पाकिस्तानी समाज के केंद्र में। मुहाजिर एक बड़ा समुदाय है - लगभग पूरी तरह से शहरी और कामकाजी मध्य वर्ग का हिस्सा, जो आदिवासी प्रमुखों और सामंती अभिजात वर्ग के प्रभाव से मुक्त है। फिर भी, वे अपनी पहचान को परिभाषित करने के लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं। मुहाजिर लामबंदी की प्रकृति हमेशा एक राष्ट्रवादी समूह से एक जातीय-राष्ट्रवादी पार्टी और बाद में एक जातीय-उग्रवादी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पहचान के रूप में विकसित हुई है। जैसा कि मुहाजिरों की पहचान स्थापित होना जारी है, यह देखा जाना बाकी है कि क्या यह समुदाय भारत से प्रवासियों के वंशज के रूप में अपनी मुहाजिर पहचान पर कायम रहेगा या पाकिस्तानियों के रूप में अपनी पहचान को परिभाषित करना शुरू कर देगा।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3pS6g2D
https://bit.ly/3pW47CX
https://bit.ly/41R0oUx

चित्र संदर्भ
1. एमक्यूएम के पक्ष में मुहाजिरों के व्यापक विरोध को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. जमात-ए-इस्लामी’ के लोगो को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. जुल्फीकार अली भुट्टो को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. विभाजन के दौरान अपने घरेलू सामान और मवेशियों के साथ भारत से पाकिस्तान पलायन करने वाले एक जोड़े, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कराची के मजार-ए-कायद के बाहर मुहाजिर सांस्कृतिक दिवस रैली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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