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आधुनिक शहरीकरण की दौड़ में हम, अपनी सांस्कृतिक एवं पारंपरिक विरासतों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में देश के विभिन्न शहरों में मौजूद संग्रहालय, हमारी परंपराओं को कलाकृतियों के रूप में जीवित रखने में अहम् भूमिका निभाते हैं। हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और पर्यटन को बढ़ावा देने के संदर्भ में संग्रहालयों की भूमिका को समझते हुए राज्य सरकार ने हमारे मेरठ सहित, प्रदेश के सात जिलों में नए संग्रहालयों के निर्माण की योजना बनाकर एक सराहनीय कदम उठाया है। चलिए समझते है कि यह पहल क्यों जरूरी थी?
संग्रहालय, व्यापक सामाजिक परिवर्तन लाने और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को आपस में जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शहरी संग्रहालय, विशेष रूप से, रचनात्मक और औपचारिक संवाद के माध्यम से आम जनता से सीधे जुड़ने की क्षमता रखते हैं। इसलिए सही जगह पर संग्रहालयों का निर्माण करके हम, शहरी जीवन की जटिल और विकसित मानसिकता के लिए एक खुला मंच प्रदान कर सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि संग्रहालयों का भविष्य आंतरिक रूप से शहरों के भविष्य से भी जुड़ा हुआ है।
संग्रहालयों ने ऐतिहासिक रूप से शहरी नियोजन में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन समय के साथ दोनों के बीच समन्वय लड़खड़ा गया है। हालांकि, अब शहरों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले, संग्रहालयों की मान्यता बढ़ रही है, जिससे उनके प्रभाव को पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं। शहरों के भीतर संग्रहालयों की स्थापना करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वहां रहने वाले समुदाय अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े रहें।
पूरे मानव इतिहास में, अधिकांश लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे। हालाँकि, आज, दुनिया की अधिकांश आबादी घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में निवास करती है। शहर बौद्धिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों के केंद्र रहे हैं, शायद इसलिए भी शहरों में संग्रहालयों की अहमियत काफी बढ़ जाती है। शहरों के संग्रहालय केवल इतिहास पर केंद्रित नहीं रहते बल्कि समकालीन (तत्कालीन) शहरी जीवन को भी संबोधित करते हैं, जिससे वे अपने आगंतुकों के लिए और भी अधिक प्रासंगिक तथा भरोसेमंद हो जाते हैं।
इसी जरूरत को पूरा करने के लिए, दुनिया भर के शहरों में उन शहरों की संस्कृति एवं इतिहास को दर्शाते, संग्रहालयों का निर्माण और विस्तार किया गया। दुर्भाग्य से, भारत में स्थिति काफी विडंबनापूर्ण है। देश के कई संग्रहालय पुराने हो चुके हैं और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को आज के युग में ठीक से प्रदर्शित करने में विफल साबित हो रहे हैं। देश के कई मूल्यवान खजानों को पर्याप्त रूप से प्रदर्शित या संरक्षित नहीं किया जाता है। जिसका खामियाजा हमारी सांस्कृतिक विरासत को भुगतना पड़ता है। यहां पर सबसे बड़ी समस्या उचित दृष्टिकोण की कमी है। सरकार द्वारा संचालित संग्रहालयों में अक्सर पर्याप्त योजना, संरक्षण प्रयासों और निगरानी का अभाव होता है। इसके विपरीत, निजी संग्रहालय, विशेष रूप से अहमदाबाद में, अत्यधिक सावधानी से प्रबंधित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और अमृतसर जैसे शहरों में भी ऐसे ही उल्लेखनीय संग्रहालय मौजूद हैं। संग्रहालयों को न केवल सीखने और अन्वेषण के लिए सांस्कृतिक स्थलों के रूप में काम करना चाहिए बल्कि सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और प्रस्तुति को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। लेकिन संग्रहालयों को सफल बनाने के लिए, अनुभवी विशेषज्ञों और पारखी लोगों की आवश्यकता पड़ती है, जो सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और प्रस्तुत करने के महत्व को भली-भांति समझते हैं।
शहरी परिप्रेक्ष्य में संग्रहालयों की अहमियत को समझते हुए हमारे मेरठ सहित, उत्तर प्रदेश के कुल सात जिलों (लखनऊ, सोनभद्र, लखीमपुर खीरी, गोरखपुर, वाराणसी और कन्नौज) में नए संग्रहालयों की स्थापना की जा रही है। इन संग्रहालयों के पीछे प्राथमिक उद्देश्य आगंतुकों को आकर्षित करना और क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देना है। आदिवासी थारू समुदाय पर केंद्रित थारू जनजाति संग्रहालय (Tharu Tribe Museum) का निर्माण पूरा होने वाला है और जल्द ही आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
जनजातीय संग्रहालयों के अतिरिक्त विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग विषयों पर केंद्रित संग्रहालयों की भी स्थापना की जा रही है। उदाहरण के तौर पर मेरठ और गोरखपुर में प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय बनाया जाएगा, जबकि वाराणसी में संत रविदास संग्रहालय बनाया जाएगा। इसके अलावा, आने वाले भविष्य में कन्नौज में भी बच्चों को समर्पित एक संग्रहालय के स्थापित होने की उम्मीद है।
राज्य की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने, बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के प्रयासों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना की जानी चाहिए। इन प्रयासों के तहत, समुदाय को जोड़ने और स्थानीय संस्कृति को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से, संगीत नाटक अकादमी में “जय घोष” नामक एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन (Community Radio Station) लॉन्च करने की भी योजना बनाई गई है। कुल मिलाकर, नए संग्रहालयों, सामुदायिक रेडियो स्टेशनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत से उत्तर प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा मिलने, और अधिक आगंतुकों को आकर्षित करने के साथ-साथ राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और संवर्धन में वृद्धि होने की उम्मीद की जा रही है।
संग्रहालय हमारे समुदायों के कल्याण और सतत विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक वर्ष 18 मई को अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 का अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस "संग्रहालय, स्थिरता और भलाई" के विषय पर केंद्रित होगा। इस विषय के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को सम्बोधित करने, सामाजिक अलगाव को दूर करने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने जैसे प्रयास किये जायेंगे।
संदर्भ
https://bit.ly/3Wa4Qwq
https://bit.ly/3BDoB5O
https://bit.ly/3Bzj0Oc
https://bit.ly/41ShQYU
चित्र संदर्भ
1. एक शहरी संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एक संग्रहालय में हिन्दुस्तानी गायन कार्यक्रम प्रस्तुत करती शुभा मुद्गल जी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत के प्राकृतिक इतिहास के राष्ट्रीय संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय, भोपाल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ब्रिटिश संग्रहालय में मौजूद कृति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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