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भारत के गुजरात राज्य के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर, जिसे जगत मंदिर के रूप में भी जाना जाता है,श्रीकृष्ण को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। श्रीकृष्ण को यहां ‘द्वारकाधीश’ या ‘द्वारका के राजा’ के नाम से पूजा जाता है।यह मंदिर हिंदू चार धाम तीर्थस्थलों में से एक है। यहां 72 स्तंभों के आधार पर खड़ी पांच मंजिला इमारत का मुख्य मंदिर जगत मंदिर या निजा मंदिर के रूप में जाना जाता है। पुरातात्विक निष्कर्षों से पता चलता है कि मूल मंदिर 200 ईसा पूर्व में बनाया गया था। हालांकि,15वीं और 16वीं शताब्दी में इस मंदिर का पुनर्निर्माण और विस्तार किया गया। परंपराओं के अनुसार, यह माना जाता है कि ‘हरीगृह’ अर्थात श्रीकृष्ण के मुख्य आवासीय स्थान के ऊपर मूल मंदिर कृष्ण के पोते वज्रनाभ द्वारा बनवाया गया था। 1472 में महमूद बेगड़ा द्वारा इस मंदिर की मूल संरचना को नष्ट कर दिया गया था, अतः बाद में 15वीं और 16वीं शताब्दी में, मारू-गुर्जर वास्तुकला शैली में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था।
यह मंदिर औसत समुद्र तल से 40.0 फुट की ऊंचाई पर बना है। मंदिर का मुख पश्चिम की ओर है। मंदिर में एक गर्भगृह (निजा मंदिर या हरीगृह) और एक अंतराला (एक पूर्वकक्ष )है। हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारका का निर्माण कृष्ण द्वारा समुद्र से प्राप्त भूमि के एक टुकड़े पर किया गया था। ऋषि दुर्वासा एक बार कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी से मिलने आए थे। दुर्वासा ऋषि की इच्छा थी कि श्रीकृष्ण और रुक्मिणी उन्हें अपने महल ले जाए। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी इससे सहमत हो गए और ऋषि के साथ अपने महल की ओर चलने लगे। कुछ दूर चलने के बाद रुक्मिणी थक गई और उन्होंने कृष्ण से कुछ पानी मांगा। कृष्ण ने वहां धरती पर तीर से एक गड्ढा खोदा जिससे, गंगा नदी का पानी बाहर आया। इस बात से, ऋषि दुर्वासा क्रोधित हुए और उन्होंने रुक्मिणी को वहीं रहने का श्राप दे दिया। आज द्वारका में जिस जगह पर रुक्मिणी का मंदिर स्थित है, माना जाता है कि इस वृत्तांत के दौरान रुक्मिणी वहीं खड़ी थी।
द्वारका का अत्यंत प्राचीन, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। माना जाता है कि मथुरा को छोड़ने के बाद भगवान कृष्ण, उनके भाई बलराम और यादव जन, इसे राजधानी शहर के रूप में स्थापित करने के लिए द्वारका चले गए। यहां पर 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने धार्मिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए द्वारकापीठ की स्थापना की थी। तब से हिंदुओं द्वारा इसे चार धामों में से एक के रूप में माना जाता है। द्वारकाधीश मंदिर के अलावा भारत के अन्य तीन चार धाम तीर्थस्थल रामेश्वरम, बद्रीनाथ और पुरी हैं। यह मंदिर देश में हिंदू धार्मिक मान्यताओं के एकीकरण का बीड़ा उठाने वाले आदि शंकराचार्य (686-717) द्वारा स्थापित चार पीठों (धार्मिक केंद्रों) में से एक द्वारका पीठ का स्थान भी है। यह एक चार मंजिला संरचना है जो देश के विभिन्न हिस्सों में शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों का प्रतिनिधित्व करती है। यहां की दीवारों पर शंकराचार्य के जीवन इतिहास को दर्शाती पेंटिंग हैं जबकि गुंबद में विभिन्न मुद्राओं में शिव की नक्काशी है।
चूंकि यह स्थल द्वारका के प्राचीन शहर और महाभारत के वैदिक युग के कृष्ण से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। यह स्थल कृष्ण से संबंधित 3 मुख्य तीर्थ स्थलों - हरियाणा राज्य में कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा, उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा में ब्रज परिक्रमा और गुजरात राज्य में द्वारकाधीश मंदिर में द्वारका परिक्रमा (द्वारकाधीश यात्रा) में से एक है। एक किंवदंती के अनुसार, प्रसिद्ध कवयित्री-संत और कृष्ण की भक्त मीरा बाई भी इस मंदिर में देवता के साथ विलीन हो गईं। यह सप्त पुरी, भारत के सात पवित्र शहरों में से एक मानी जाती है।
भारत में चार धाम यात्रा भारत में चारों दिशाओं में चार प्राचीन श्रद्धेय मंदिरों की तीर्थयात्रा का पर्याय है। हालांकि उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,गंगोत्री एवं यमुनोत्री को भी चार धाम कहा जाता है, किंतु आज इन चार धामों की तीर्थयात्राओं से संबंधित पर्यावरण व् स्वास्थ्य मुद्दा, एक अहम समस्या बन रहा है। देश में उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में स्थित तीर्थों की वार्षिक तीर्थयात्रा में पिछले साल जून महीने तक ही 125 लोगों की जान जा चुकी थी। यात्रा की शुरुआत के महज 30 दिनों के भीतर ही मरने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या में खतरनाक वृद्धि हुई थी। यह आंकड़ा 2019 में लगभग 90, 2018 में 102 और 2017 में 112 तीर्थयात्रियों की मृत्यु से अधिक था। यहां तक कि खड़ी चढ़ाई के दौरान तीर्थयात्रियों को लाने और ले जाने वाले खच्चर भी जरूरत से ज्यादा काम की वजह से मर रहे थे। केदारनाथ मार्ग के दुर्गम भूभाग के कारण मात्र 20 दिनों में ही 60 खच्चरों की मौत हुई थी। और चौंकाने वाली बात तो यह थी कि इन जानवरों के शवों को मंदाकिनी नदी में फेंका जा रहा था।
उत्तराखंड राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल यात्रा खत्म होने तक हिमालयी चार धाम यात्रा के दौरान कुल 311 तीर्थयात्रियों की मौत हुई थी। सबसे ज्यादा मौतें केदारनाथ (135), उसके बाद यमुनोत्री (80), बद्रीनाथ (75) और गंगोत्री (21) में हुई थी।
तीर्थयात्रियों की मृत्यु का प्रमुख कारण दिल का दौरा था। जबकि, कुछ डॉक्टरों ने कोविड-19 में उत्पन्न हुई जटिल स्वास्थ्य समस्याओं को भी इन मौतों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया। साथ ही, पिछले साल मरने वाले 125 लोगों में से 75 लोगों की उम्र 60 साल से ऊपर थी।
कुछ आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल 90 लोगों की मौत यमुनोत्री और केदारनाथ की जोखिम भरी चढ़ाई में हुई थी, जबकि 26 लोगों की मौत बद्रीनाथ क्षेत्र में और 9 तीर्थयात्रियों की मौत गंगोत्री में हुई थी। कई तीर्थयात्री योग्य गर्म कपड़ों के साथ नहीं आते हैं क्योंकि वे गर्मियों में पहाड़ियों में तापमान को कम आंकते हैं। ऐसे में वे हाइपोथर्मिया (Hypothermia) और हाइपोक्सिमिया (Hypoxemia) के शिकार होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दिल के दौरों का प्रमाण बढ़ जाता है।
हालांकि इन तीर्थस्थलों पर तीर्थयात्रियों की मृत्यु न हो, इसलिए कुछ उपाय भी किए जा रहे है। इन स्थलों पर तीर्थयात्रियों की नियमित स्वास्थ्य जांच की जा रही है। कैलाश मानसरोवर यात्रा और अमरनाथ यात्रा के लिए स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रणाली लागू की गई है। स्वास्थ्य और पर्यटन विभाग ने बुजुर्ग तीर्थयात्रियों को तीर्थ यात्रा पर जाने से पहले अपने डॉक्टरों से परामर्श करने की सलाह दी है। यह भी सलाह दी जाती है कि यात्रियों को धीरे-धीरे ऊंचाइयों को नापना चाहिए, जिससे वे अपनी यात्रा के दौरान हिमालय की दुर्लभ होती हवा के अनुकूल होने के लिए पर्याप्त आराम कर सकें।
संदर्भ
https://bit.ly/42fH0Bz
https://bit.ly/42n58lX
https://bit.ly/42pkNAX
https://bit.ly/42pNgqk
चित्र संदर्भ
1. भारत के गुजरात राज्य के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. साँझ के समय द्वारकाधीश मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. द्वारकाधीश मंदिर की सीढ़ियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नदी के तट पर बसे द्वारकाधीश मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. श्रद्धालुओं की अथाह भीड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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