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मध्य प्रदेश की भील जनजाति की कला के विलक्षण उदाहरण हैं, भूरी बाई व लाडो बाई के चित्र

मेरठ

 10-05-2023 09:00 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

भील जनजाति भारत का दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है। वहीं यदि कला की बात की जाए, तो कहा जा सकता है कि यह भील समुदाय को विरासत में मिली है। भील जनजाति द्वारा बनाए गए चित्रों की समृद्ध बनावट आम तौर पर प्रकृति और आदिवासी शैली को दर्शाती है। भील कलाकारों की भव्य चित्रकारी को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी है। उनके चित्रों में बालक के जन्म पर होने वाली साधारण मानवीय खुशियों और फसल को काटने जैसे औपचारिक अवसरों को चित्रित किया जाता है, जिन्हें हमारे आधुनिक समाज में अक्सर भुला दिया जाता है। अन्य आदिवासी समूहों के साथ-साथ भीलों की कला हमें याद दिलाती है कि जीवन में साधारण सुख क्या है। वहीं सुप्रसिद्ध भील कलाकारों भूरी बाई और लाडो बाई द्वारा कला की पारंपरिक प्रथाओं से हटकर कुछ अद्भुत करने की कोशिश की गई है। उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले रंग उनकी छवियों को प्रतिबिंबित करते प्रतीत होते हैं और ये रंग उनके चित्रों का अभिन्न अंग हैं, जिनमें भील अनुष्ठान कला में प्रतिष्ठित रूपांकन दर्शकों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाते हैं। प्रसिद्ध भील कलाकार भूरी बाई कागज और चित्रफलक पर चित्रकारी करने वाली भील समुदाय की पहली कलाकार हैं। मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के पिथोल गांव में जन्मी भूरी बाई का परिचय पिथौरा भित्ति चित्रकला की रस्मों जैसी परंपराओं से बहुत पहले ही हो गया था। हालांकि समुदाय की महिलाओं को इन गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। केंद्रीय देवता ‘पिथौरा देव’ और उनके आस-पास की धार्मिक प्रतिमाओं जैसे कि भगवान के घोड़ों को चित्रित करने का कार्य समुदाय के पुरुषों द्वारा ही किया जाता था। उनके गाँव के पुजारी झोपड़ियों की दीवारों पर गाय के गोबर से पवित्र पिथौरा चित्र बनाते थे। इस अभ्यास में भूरी बाई की रुचि बढ़ने लगी, तो उन्होंने अपने घर की मिट्टी की दीवारों को चित्रित करना शुरू कर दिया, जिसमें पिथौरा चित्रकला में देखे गए विषयों सहित कई अन्य विषयों को चित्रित करने के लिए उन्होंने स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक रंजक और कपड़े के टुकड़ों को टहनियों में लपेटकर उपयोग किया। सोलह वर्ष की आयु में शादी होने के बाद, भूरी बाई बीस वर्ष की आयु में अपने पति जौहर सिंह के साथ भोपाल चली गईं, जहाँ दोनों पति-पत्नी निर्माण कार्य में दिहाड़ी मजदूर के रूप में कार्य करते थे। एक बार वह भारत भवन के स्थल पर कार्य कर रही थीं, जब वहां के तत्कालीन निदेशक जे. स्वामीनाथन श्रमिकों में से कलाकारों और चित्रकारों की तलाश कर रहे थे। स्वामीनाथन के आग्रह पर, भूरी बाई ने उनके लिए चित्रकारी करना शुरू किया, और तब उनकी मिट्टी की दीवारों पर चित्रकारी करने की यात्रा पोस्टर पेंट (Poster paint), ब्रश (Brush) और पैकिंग पेपर (Packing paper) जैसी कला सामग्री का उपयोग करके चित्रकारी बनाने में परिवर्तित हो गई। इन नई सामग्रियों के साथ, वह न केवल एक चिकनी सतह पर पेंटिंग का अभ्यास कर पा रही थी, बल्कि वह अधिक रंगों के साथ प्रयोग करने में भी सक्षम थी। साथ ही उन्होंने अपने चित्रों में विभिन्न विषयों का भी उपयोग किया, जैसे वह गाँव में उनके जीवन के साथ-साथ विभिन्न दृष्टिकोणों और रूपों को संदर्भित करती थी, साथ ही उन्होंने पिथौरा चित्रों के कुछ तत्वों के साथ-साथ अपनी स्वयं की दृश्य भाषा से कई विषयों को लिया। उनकी चित्रकला में लोकगीत, अनुष्ठान, लोककथाएं, वनस्पति, जीव, उत्सव, नृत्य और गांव की वास्तुकला जैसे झोपड़ियां और अन्न भंडार आदि विषय शामिल हैं।
जैसे जैसे उनका कार्य अधिक प्रसिद्ध होने लगा, उन्होंने भारत और विदेशों में कई शहरों में यात्रा की, जिससे उन्होंने अपने आस-पास दिखने वाले दृश्यों को अपनी चित्रकला में शामिल करना शुरू कर दिया जिसमें समकालीन शहरी और औद्योगिक समाज जैसे कि बसें, कार, हवाई जहाज और टीवी शामिल थे। आज, भूरी बाई की चित्रकला शैली और विषय उनके सांस्कृतिक प्रभाव और व्यक्तिगत अनुभवों के साथ-साथ उनके कई प्रयोगों की पराकाष्ठा है। उनके सबसे प्रसिद्ध कार्यों में मध्य प्रदेश राज्य के जनजातीय संग्रहालय में 70 फीट ऊंची दीवार पर उनके भित्ति चित्र हैं, जिनमें उन्होंने अपने जीवन की कहानी को बताया है। उन्हें झोपड़ी बनाने की कला भी आती थी, यह प्रथा उन्होंने अपनी मां झब्बू बाई से सीखी थी। वह ‘इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय’, भोपाल में भील झोपड़ी के निर्माण में भी शामिल थीं। भूरी बाई की कला को भारत के साथ-साथ यूरोप (Europe), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) के संग्रहालयों और प्रदर्शनियों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शित किया गया है। लाडो बाई के साथ मिलकर, उन्होंने कुछ चित्रों पर काम किया, जिन्हें 1983 में ज्योति भट्ट द्वारा चित्रित किया गया था और बाद में जगदीश स्वामीनाथन की पुस्तक ‘द परसीविंग फिंगर्स’ (1987) (The Perceiving Fingers (1987)) में प्रकाशित किया गया था।
भील समुदाय के रीति-रिवाजों और पशु जीवन के चित्रों के लिए जानी जाने वाली कलाकार, लाडो बाई का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में हुआ था। वे अपने समुदाय से जुड़ी हुई चित्रकला को देखते हुए बड़ी हुई, लेकिन उनके अंदर के कलाकार को जागने में थोड़ा अधिक समय लगा। भूरी बाई की तरह ही लाडो बाई भारत भवन, भोपाल के निर्माण स्थल पर एक मजदूर के रूप में काम कर रही थीं, जहां स्वामीनाथन ने स्थल के पास बने उनके अस्थायी घर के फर्श और मिट्टी की दीवारों पर किए गए चित्रों को देखा और लाडो बाई को चित्रकारी करने के लिए प्रेरित किया। स्वामीनाथन ने उन्हें चित्रफलक और कागज के माध्यमों से परिचित कराया, जिसके बाद वह अस्थायी भित्ति चित्रकला की सीमा से मुक्त हो गई। पिथौरा चित्रों की परंपराओं से प्रेरित, उनके कई चित्रों में पिथौरा देव को दर्शाया गया है। लाडो बाई की कला समुदाय की कहानियों और किंवदंतियों से प्रेरित है, और जंगल, जानवरों और वनस्पतियों के जीवंत चित्रण पर केंद्रित है। उनके द्वारा बनाई गई चित्र आकृतियाँ लंबी, चमकीले रंग की और दर्शकों को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाने की सक्षमता रखती हैं। लाडो बाई ने अपने कुछ कार्यों में पारंपरिक चित्रों से अलग चित्रण किया। उन्होंने अपने चित्रों को भरने के लिए बिंदीदार स्वरूप का इस्तेमाल किया, जिसके बाद वे उन बिंदियों को एक तरंग स्वरूप में संशोधित करती थी, जो जानवरों और मानव आकृतियों के चित्रण के लिए गति की गुणवत्ता प्रदान करती थी। 1970 के दशक में भारत भवन में रूपांकर संग्रहालय के लिए लाडो बाई के कई चित्रों को उनके घर की कच्ची मिट्टी की दीवारों से कागज और चित्रफलक में स्थानांतरित कर दिया गया था। उनकी कला को पूरे भारत के साथ-साथ फ्रांस (France) और यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से प्रदर्शित किया गया है। उन्हें 1996 में ‘इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट’ (Indira Gandhi Memorial Trust) द्वारा ‘लोक रंग फैलोशिप’ (Lok Rang Fellowship) पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्तमान में लाडो बाई आदिवासी लोक कला अकादमी के लिए काम करती हैं।

संदर्भ :-
https://bit.ly/40YZB3h
https://bit.ly/3nrs9F6

चित्र संदर्भ
1. भूरी बाई व लाडो बाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia, youtube)
2. भूरी बाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भूरी बाई के चित्र को दर्शाता एक चित्रण (youtube )
4. सरमाया आर्ट्स फाउंडेशन के तहत भूरी बाई की पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लाडो बाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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