City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2163 | 565 | 2728 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
हालांकि आज भारत में बड़े पैमाने पर चेन्नई, कोलकाता और अन्य बड़े अंग्रेजी औपनिवेशिक आधार वाले शहरों में पुर्तगालियों के इतिहास को भुला दिया गया है, लेकिन इनकी विरासत को अभी भी गोवा में देखा जा सकता है। भारत में पुर्तगाली, समुद्र के रास्ते से आने वाले पहले यूरोपीय (European) थे, जिस वजह से ही ये डच (Dutch), अंग्रेज (English) और फ्रेंच (French) के आगमन तक एक सदी के लिए एशिया-यूरोप (Asia-Europe) समुद्री व्यापार का एकाधिकार हासिल करे हुए थे। भारत के समुद्री मार्ग की ‘वास्को डी गामा’ (Vasco da Gama) की "खोज" ने उपनिवेशवाद के युग का प्रारंभ किया, जिसके कारण अधिकांश एशिया में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य में ‘प्रिंस हेनरी द नेविगेटर’ (Prince Henry the Navigator) द्वारा समर्थित व्यापार और धर्म दोनों को प्रभावित करने वाली पुर्तगालियों द्वारा समुद्री मार्ग की खोज को एक प्रमुख घटना के रूप में देखा जा सकता है। 1453 में तुर्कों द्वारा कॉन्स्टेंटिनोपल (Constantinople) के पतन के बाद, मसालों, चीनी और अन्य पूर्वी सामानों में व्यापार करने वाले इतालवी (Italian) शहर-राज्यों ने अपने यूरोपीय ग्राहकों से खगोलीय कीमतों की मांग की, जिस पर उनका तर्क था कि अरब (Arab) और फ़ारसी (Persian)-नियंत्रित मध्य पूर्व मार्गो से इस तरह के सामान को प्राप्त करना बहुत कठिन हो चुका था। पारंपरिक मार्ग को दरकिनार कर इन उत्पादों के स्रोत तक सीधे समुद्र के रास्ते पहुंचने में बहुत लाभ था। इधर मुसलमानों के यूरोप की ओर बढ़ने के खतरे से चिंता के कारण पोप अलेक्जेंडर VI द्वारा भारत के लिए एक मार्ग खोजने के लिए प्रोत्साहन किया गया । वास्को डी गामा की खोज के महत्व को पुर्तगाली राजा मैनुअल I (Manuel I) द्वारा पहचाना गया, जिन्होंने वास्को डी गामा को "हिंद महासागर का नौ-सेनाध्यक्ष" बना दिया। दक्षिण भारत में पुर्तगाली उस समय में आए थे जब दक्कन में बहमनी साम्राज्य पांच इकाइयों में विभाजित हो गया था और उनमें से किसी के पास भी महत्वपूर्ण नौसेना नहीं थी। ऐतिहासिक रूप से, हालांकि भारत ने समुद्री व्यापार में खुद को प्रतिष्ठित किया था, लेकिन किसी भी भारतीय शासक (ग्यारहवीं शताब्दी में राजेंद्र चोल के अपवाद के साथ) ने आक्रमण या रक्षा के लिए एक नौसेना का निर्माण नहीं किया था, क्योंकि तब तक किसी भी दुश्मन ने कभी भी समुद्र के पार से भारत पर हमला नहीं किया था। दरसल कालीकट (कोझिकोड), कोचीन और कन्नानोर के शासक, तटीय और समुद्री व्यापार से आने वाले पर्याप्त राजस्व पर निर्भर थे, वे चीन (China), मलक्का (Malacca),, जावा (Java), अरब और उत्तरी अफ्रीका जैसे कई तटीय राज्यों से बड़ी संख्या में आने वाले व्यापारियों के आदी थे, जो शांतिपूर्ण व्यापारियों के रूप में आए और व्यापार का आदान-प्रदान किया करते थे, उनमें से कुछ ने अपने व्यापारिक हितों की देखभाल के लिए अपने प्रतिनिधियों को भी गोदामों में नियुक्त किया हुआ था।
प्रारंभ में, कालीकट के समुरी, पुर्तगालियों के अनुकूल और मेहमान नवाज थे। हालांकि पुर्तगालियों के प्रति उनका रवैया पुर्तगाली विरोधी अरब व्यापारियों के साथ-साथ वास्को डीगामा के दबाव से बदल गया, जिन्होंने मांग की कि समुरी, मुसलमानों के साथ सभी व्यापार छोड़ दें और इसके अलावा, सीमा शुल्क से पुर्तगालियों को छूट दें। पुर्तगालियों के साथ संपर्क के पहले दशक में, डि गामा और एफोंसो डी अल्बकर्क (Afonso de Albuquerque) दोनों के भयानक अत्याचार, जिसमें कार्गो और तीर्थयात्रियों (पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को हज, या धार्मिक तीर्थ यात्रा के लिए मक्का जाने वाले) को ले जाने वाले अरब जहाजों को जलाना, मालाबार और फारस की खाड़ी के बंदरगाह शहरों में प्रचंड बमबारी, निहत्थे मछुआरों की नाक और कान काट देना, पराजितों की विधवाओं और बेटियों को जबरन कैथलिक (Catholic) धर्म में परिवर्तित करना, और मंदिरों और मस्जिदों को चर्चों में परिवर्तित करना शामिल थे, इन घटनाओं ने तटीय राज्यों के हिंदू शासकों के रवैये को प्रभावित किया। उन्होंने गुजरात के सुल्तान से संपर्क किया, जिन्होंने 1507 और 1508 में चौल में पुर्तगालियों पर संयुक्त नौसैनिक हमले शुरू करने के लिए मिस्र (Egypt) और तुर्की (Turkey) से मदद मांगी। पुर्तगालियों की व्यक्तिगत स्वच्छता की कमी, महीनों तक बिना नहाए रहना, और दिन के हर समय शराब के प्रभाव में उनके जंगली व्यवहार ने कई भारतीयों के बीच यूरोपीय लोगों की एक अप्रिय छाप छोड़ी। साथ ही उनके द्वारा बच्चों, महिलाओं और निहत्थे लोगों पर किए जाने वाले अत्याचार ईसाई धर्म में ‘शांति के राजकुमार’ (Prince of Peace) के रूप में जाने जाने वाले यीशु (Jesus Christ) से काफी भिन्न थे। एक सम्मानजनक सभ्यता के अग्रदूत होने से दूर, पुर्तगालियों ने अतीत में सभ्यताओं को नष्ट करने वाले असभ्य लुटेरों के समान असंबद्ध और प्रचंड बर्बरता की छाप छोड़ी । पूर्व में पुर्तगाली के समुद्र में शासन का नेतृत्व पुर्तगाली जनरल एफोंसो डि अल्बकर्क द्वारा किया गया था।
एशिया-यूरोप व्यापार में एकाधिकार को सुरक्षित रूप से लागू करने की दृष्टि से, अल्बकर्क ने दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और फारस की खाड़ी के बीच व्यापार मार्गों के प्रमुख बिंदुओं पर बंदरगाहों और किलों की कल्पना की। 1510 में गोवा को पूर्व में पुर्तगाली संपत्ति का मुख्यालय बनाकर, 1511 में मलक्का को दक्षिण पूर्व एशिया में मसाला व्यापार के लिए प्रमुख मंडी बनाकरऔर 1515 में ओरमुज (Ormuz) को फारस की खाड़ी में प्रमुख बंदरगाह बनाकर उन्होंने एक ऐसे साम्राज्य की शुरुआत की, जो सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक, दक्षिण पूर्व अफ्रीका (Africa) में सोफाला (Sofala) से लेकर इंडोनेशियाई (Indonesian) द्वीपसमूह में कई द्वीपों और बंदरगाहों तक और चीन (China) तट से दूर मकाऊ (Macau) तक फैला हुआ था।
भारत में, पुर्तगालियों ने पश्चिमी तट पर लगभग पूर्ण समुद्री वर्चस्व कायम रखा और पूर्वी तट और बंगाल की खाड़ी पर कुछ सीमित नियंत्रण किया। यह नीति तीन आधारशिलाओं पर आधारित थी: सबसे पहले, पुर्तगालियों ने खुले समुद्र पर नियंत्रण प्राप्त किया, फिर अरब नौ-परिवहन को नामंजूरी दे दी, या उन्हें जब्त कर लिया, या उनमें आग लगा दी। वास्तव में, इस तरह के समुद्री डाकू कृत्यों का उद्देश्य गैर-पुर्तगाली नौवहन को रोकना था जो सदियों से अरब सागर पर व्यापार के लिए यात्रा करते थे। दूसरा, पुर्तगालियों ने कोचीन (Cochin) से दीव (Diu) तक पश्चिमी तट पर सभी प्रमुख बंदरगाहों पर यातायात और माल की सुरक्षा के लिए शक्तिशाली तोपों से सुसज्जित किले बनाए। पुर्तगालियों ने अपने व्यापार को मलक्का (Malacca), कालीकट और ओरमुज में तीन बड़े कारखानों पर केंद्रित किया, जिससे पुर्तगालियों के लिए मसालों और अन्य उत्पादों को मौसम के दौरान कम कीमतों पर खरीदना और संग्रह करना संभव हो गया। तीसरा, और सबसे महत्वपूर्ण, पुर्तगालियों द्वारा एक पास जारी किया गया, जिसको सभी गैर-पुर्तगाली समुद्री जहाजों द्वारा भारत में व्यापार करने के लिए लेना आवश्यक था।
यूरोप में धार्मिक कट्टरता के उदय और सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक पुर्तगालियों ने एशिया और अफ्रीका में कैथलिक धर्म के अलावा सभी धर्मों के अभ्यास पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने पश्चिमी भारत और श्रीलंका में हिंदू और बौद्ध मंदिरों को नष्ट कर दिया, उनकी पवित्र पुस्तकों को जला दिया, और जन्म, विवाह और मृत्यु से जुड़े गैर-कैथलिक धार्मिक संस्कारों के सार्वजनिक पालन पर प्रतिबंध लगा दिया।
1498 में वास्को डी गामा और 1595 में डचों के आगमन के बाद की अवधि, जिसके बाद फ्रेंच (French) और अंग्रेज (British) आते हैं, को एशिया में "पुर्तगाली शताब्दी" कहा जाता है। 1580 से 1640 तक पुर्तगाल और स्पेन (Spain) के राजघरानों को मिलाने पर पूर्व में पुर्तगालियों को पहली बार नुकसान उठाना पड़ा। उनका उद्यम, किसी भी मामले में, दस लाख से कम आबादी वाले देश के लिए बहुत अधिक विस्तारित था। पुर्तगाली उद्यम के विपरीत, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) और डच ईस्ट इंडिया कंपनी (Dutch East India Company) ने व्यापार और लाभ पर ध्यान केंद्रित किया और धर्म के प्रचार से दूर रहे। हालांकि विशाल ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के सबसे पुराने सहयोगी होने की वजह से पुर्तगालियों का भारत में आधिपत्य बना रहा। ब्रिटिश भारत में शैक्षिक और आर्थिक अवसरों के कारण गोवा, दमन और दीव आर्थिक रूप से पुर्तगालियों द्वारा सुरक्षित रहे, विशेष रूप से बंबई, जहां गोवा के एक-पांचवें (1/5) लोग रहते थे और अपने परिवारों के लिए घर पर धन प्रेषित किया करते थे।
साथ ही पुर्तगाली अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करने के लिए पुर्तगाल-भारत के बीच व्यापार अलगाव को समाप्त करना चाहते थे। जो ब्रिटिश भारत के साथ एक सीमा शुल्क संघ और एक रेलवे मार्ग के निर्माण के माध्यम से ही होना संभव था। जिसके लिए 1878 की एंग्लो-पुर्तगाली संधि का उपयोग किया गया। 1878 की एंग्लो-पुर्तगाली संधि पुर्तगाल और यूनाइटेड किंगडम के बीच उनके व्यापार और भारत में उनके उपनिवेशों के बीच रेलवे और आर्थिक समझौता था। यह संधि 14वीं सदी के एंग्लो-पुर्तगाली गठबंधन के अनुरूप थी। पुर्तगाल ने बदले में ब्रिटेन को गोवा के नमक उत्पादन पर एकाधिकार की पेशकश की। गोवा के नमक को ब्रिटिश भारत में औपनिवेशिक सरकार द्वारा प्रयोग किए जाने वाले नमक एकाधिकार के लिए खतरा माना जाता था। संयोग से, भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल पहले, गोवा में मैंगनीज (Manganese) और लौह अयस्क (Iron ore) की खोज की गई थी, जिसने इस क्षेत्र को न केवल आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना दिया बल्कि अंग्रेजों को इसे पुर्तगाल को बेच कर एक मूल्यवान विदेशी मुद्रा अर्जित होने लगी।
पुर्तगालियों की भाषा और रीति-रिवाजों का भारतीय भाषाओं में गहरा प्रभाव भी पड़ा । जैसे इंग्लैंड के लोगों को हिंदी और अधिकांश भारतीय भाषाओं में "अंग्रेज" के रूप में जाना जाता है। लेकिन वास्तव में यह "अंग्रेज" शब्द पुर्तगालियों द्वारा इंग्लैंड के लोगों के लिए “इंगल्स (INGLES)” कहने का एक भारतीय तरीका है। हालाँकि अधिकांश पुर्तगाली वार्तालाप दक्षिण और मध्य भारत में हुआ करता था, जहाँ ज्यादातर द्रविड़ भाषाएँ बोली जाती हैं, इन द्रविड़ भाषाओं के साथ-साथ पुर्तगाली भाषा का हिंदी भाषा पर प्रभाव पड़ा था। आइए हिंदी में पुर्तगाली भाषा से लिए हुए कुछ शब्द देखें:
वहीं हिन्दी भाषा में कई ऐसे शब्द भी हैं जिन्हें पुर्तगाली मूल के रूप में पहचाना जाता है, किंतु वास्तव में वे फारसी और अरबी से लिए गए हैं, क्योंकि पुर्तगाली के साथ-साथ इन दोनों भाषाओं का हिंदी भाषा पर बहुत ही गहरे प्रभाव का संकेत मिलता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3muqM8c
https://bit.ly/3L2OKAy
https://bit.ly/3MKF2nI
https://bit.ly/3MOLUAM
https://bit.ly/3mvObGl
चित्र संदर्भ
1. ब्रिटिश दौर के दौरान परिवहन को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
2. प्रिंस हेनरी द नेविगेटर को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
3. वास्को डी गामा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एफोंसो डी अल्बकर्क को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ब्रिटिश नौसेना के आगमन को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
6. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.