City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2289 | 579 | 2868 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
जब भी हम कोई फिल्म, धारावाहिक अथवा सपना देखते हैं, तो हम भी उसका एक किरदार बन जाते हैं और जाने-अनजाने में हम भी उस पात्र के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानने लगते हैं ! भारत के सबसे महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक माने जाने वाले आदि शंकराचार्य भी, अपने अद्वैत वेदांत दर्शन के माध्यम से हमारे पूरे जीवन को ठीक ऐसे ही संदर्भित करते है। उनके अनुसार, यह पूरा जगत ही मिथ्या है, और हम यहाँ पर केवल एक भ्रामक किरदार मात्र हैं! लेकिन अब आप पूछेंगे कि "यदि वास्तव में ऐसा है तो, हमारा अस्तित्व क्या है?"
देखिए आदि शंकराचार्य ने इस प्रश्न का क्या उत्तर दिया है:
आदि शंकराचार्य भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध दार्शनिकों में से एक माने जाते हैं। उन्हें श्री शंकर भगवत्पाद के नाम से भी जाना जाता है। वे अपने अद्वैत दर्शन के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं, जो उपनिषदों पर आधारित है। शंकराचार्य एक विपुल लेखक और टीकाकार थे, और उनकी रचनाएँ अभी भी कालातीत, समय तथा स्थान की सीमाओं से परे मानी जाती हैं। शंकराचार्य की भाषा अलंकृत थी, उनकी शैली स्पष्ट थी और उनके तर्क अत्यंत कठोर माने जाते थे। उन्होंने स्वयं को संतुलित तरीके से अभिव्यक्त किया और वेदों में उनकी अटूट आस्था थी।
शंकराचार्य के जीवन इतिहास को उनकी जीवनी “शंकर दिग्विजय” में प्रलेखित किया गया है। उनके जीवन के सबसे लोकप्रिय और पारंपरिक लेखन का श्रेय माधवीय शंकर दिग्विजय को दिया जाता है। श्री माधव भी बाद में एक तपस्वी बन गए और आदि शंकराचार्य द्वारा श्रृंगेरी में स्थापित शारदा पीठम के प्रमुख के रूप में श्री विद्यारण्य के नाम से 12वें जगद्गुरु के रूप में उच्च पद पर आसीन हुए।
शंकराचार्य का जन्म केरल के कालाडी में हुआ था और उन्होंने कम उम्र में ही अपने पिता का गृह त्याग दिया था। मात्र आठ साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी मां की सहमति प्राप्त करने के बाद सन्यास ले लिया था। इसके पश्चात वह अपने गुरु की तलाश में जुट गये और अंततः नर्मदा के तट पर गोविंदा भगवत्पाद (गौड़पाद के शिष्य) को अपना गुरु माना। कुछ समय तक वे अपने गुरु के पास ही रहे और उनकी आज्ञा से काशी और बद्रीनाथ गए।
बद्रीनाथ में रहते हुए, मात्र बारह वर्ष की आयु में, शंकराचार्य ने बादरायण के वेदांत सूत्र, प्रमुख उपनिषद और भगवत गीता पर अपनी सबसे गहन टीकाएँ लिख डाली थी। आदि शंकराचार्य ने पूजा के पंचकायतन रूप यानी एक साथ पांच देवताओं (गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और देवी) की पूजा की भी शुरुआत की।
माना जाता है कि शंकराचार्य के आगमन के समय, भारतीय जनता वैदिक जीवन पद्धति से दूर चली गई थी। समय के साथ, मानव, पशु बलि जैसे कर्मकांड अत्यधिक प्रचलित हो चुके थे । इसके विपरीत सच्चे वैदिक आदेशों (ज्ञान कांड) को भुला दिया गया था। ऐसे निर्णायक मोड़ पर शंकराचार्य प्रकट हुए।
शंकराचार्य ने महसूस किया कि जब तक वे कर्मकांड के समर्थकों और अनुयायियों के शक्तिशाली समूह पर विजय प्राप्त नहीं कर लेंगे, तब तक भारत को फिर से जोड़ने और इसे आध्यात्मिकता का प्रकाश स्तंभ बनाने का उनका लक्ष्य अधूरा ही रहेगा। भारत को एकजुट देखने के अपने सपने के साथ ही शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक पुनरुत्थान यात्रा शुरू की।
श्री शंकराचार्य ने विद्वानों और आम लोगों के साथ शिक्षण और बहस जारी रखी। उन्होंने भारत के चारों कोनों में चार मठों (उत्तर में जोशीमठ , पूर्व में गोवर्धन मठ, पश्चिम में शारदा पीठम और दक्षिण में शृंगेरी शारदा पीठम) की स्थापना की। ये मठ शिक्षा और आध्यात्मिक अभ्यास के केंद्र बन गए, और आज भी बने हुए हैं।
32 साल के अपने छोटे से जीवनकाल में, श्री शंकराचार्य ने ज्ञान से लेकर प्रतिष्ठा तक बहुत कुछ प्राप्त कर लिया। इस अल्प समयावधि में उन्होंने वेदों की सच्ची शिक्षाओं को पुनर्जीवित किया, उपनिषदों के महत्व को फिर से स्थापित किया और अद्वैत वेदांत के दर्शन का प्रचार किया। उन्होंने शास्त्रों पर कई टीकाएँ भी लिखीं और विचार के अन्य विद्यालयों के विद्वानों के साथ वाद-विवाद में लगे रहे।
अद्वैतवाद के संदर्भ में उनका दर्शन और स्वयं की वास्तविक प्रकृति तथा परम वास्तविकता पर उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक मानी जाती हैं। दरअसल शंकराचार्य द्वारा प्रदत्त अद्वैत विचार, सोचने का एक तरीका है जो धार्मिक एकता को संदर्भित करता है, जिसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि आध्यात्मिक रूप से सब कुछ जुड़ा हुआ है और कोई अलगाव नहीं है। यह एकता ही हमारा वास्तविक स्वरूप है। यह हमें मानसिक सीमाओं से मुक्त कर सकता है।
अद्वैत के बारे में जानने से पहले, हमें साधना चतुष्टय नामक चार गुना योग्यता विकसित करनी होगी। इसका अर्थ है कि अद्वैत को वास्तव में समझने से पहले हमें कुछ गुणों की आवश्यकता है। इन गुणों को विकसित करने का एक मार्ग भक्ति मार्ग होता है। अद्वैत दर्शन संसार को एक भ्रम या माया बताता है! सुख-दुःख, सभी कार्य और भावनाएं केवल भ्रम हैं, क्योंकि ब्रह्म के आलावा दूसरा कुछ है ही नहीं।
संसार की कुछ परंपराओं में लोग भगवान और भक्तों को अलग-अलग प्राणियों के रूप में देखते हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु के बाद हम स्वर्ग जैसी जगह में भगवान के साथ रह सकते हैं। इस विचार का उपयोग लोगों को बरगलाने के लिए किया गया था।
लेकिन अद्वैत दर्शन मानता है कि ब्रह्म और हम एक ही हैं, तथा यह हमारे अस्तित्व का वास्तविक सत्य है। हमारे चारों ओर बदलती दुनिया एक फिल्म पटल या स्क्रीन (Screen) की भाँति है! ब्रह्म वह अपरिवर्तनीय पटल है, जो दुनिया को उसकी वास्तविकता प्रदान करता है।
हालाँकि, हम वास्तविकता को एक विकृत तरीके से देखते हैं क्योंकि हम स्वयं को अपने “दिव्य स्व” के बजाय अपने शरीर, मन और अहंकार के रूप में पहचानते हैं। यह हमारे जीवन में अज्ञानता और दर्द को और अधिक बढ़ाता है। वास्तव में हम बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु से इसलिए डरते हैं, क्योंकि हम अपने आप को अपने शरीर और मन के रूप में पहचानते हैं। हम क्रोध, घृणा और अन्य नकारात्मक भावनाओं से पीड़ित होते हैं ,क्योंकि हम स्वयं को अपने अहंकार के रूप में पहचानते हैं। ध्यान, निस्वार्थ कार्य, और निरंतर सकारात्मक सोच, हमें अपने मन को शुद्ध करने और माया के उस आवरण को हटाने में मदद कर सकती हैं। एक बार जब माया का पर्दा हट जाता है, तो हम हर जगह और हर चीज में ब्रह्म को देखते हैं। माया की इस अवधारणा को रस्सी और सांप के उदाहरण से समझा जा सकता है। जिस तरह रस्सी को सांप समझने की गलती से डर और घबराहट उत्पन्न हो सकती है, उसी भाँति खुद को नश्वर प्राणी समझने की गलती दुख का कारण बन सकती है। लेकिन एक बार जब हमें अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाता है, तो नश्वरता और पीड़ा का भ्रम हमेशा के लिए दूर हो जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3UVQcIs
https://bit.ly/3UYwv2U
https://bit.ly/3oBwu8Y
चित्र संदर्भ
1. आदि शंकराचार्य की पूजा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. अद्वैत दर्शन को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. माता मठ में शंकराचार्य की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अपने चार शिष्यों के साथ आदि शंकराचार्य को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
5. मानव चेतना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. रस्सी को सांप समझने के भ्रम को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.