Post Viewership from Post Date to 31-May-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1908 1148 3056

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

इसलिए राजनीतिक दलों और मतदाताओं की पहली पसंद होते हैं, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग

मेरठ

 20-04-2023 10:05 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

आपने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि, “आमुख/फलानां व्यक्ति नेता बनने से पहले इस क्षेत्र का एक छँटा हुआ बदमाश हुआ करता था!” लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि आपराधिक मामलों में संलिप्त ऐसे अपराधियों को वोट देकर, उन्हें नेता भी हमारे और आपके जैसी आम जनता ही बनाती है! आज के इस लेख में हम लेखक/पत्रकार, मिलन वैष्णव द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखित पुस्तक "व्हेन क्राइम पेज़ (When Crime Pays)" के माध्यम से इसी तथ्य की जांच करेंगे कि आखिर आम नागरिक, जानते हुए भी आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को अपना नेता क्यों चुन लेते हैं?
आज भारत में, पहले से कहीं अधिक आपराधिक रिकॉर्ड वाले राजनेता, सम्मानीय और जिम्मेदार पदों के लिए चुने जा रहे हैं। आपको हैरानी होगी कि 2004 में गंभीर आपराधिक रिकॉर्ड वाले सांसदों का अनुपात 12% था जो 2014 में बढ़कर 21% हो गया है। साफ-सुथरे रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार चुनाव में शामिल होने से हिचकिचाते हैं, और इसलिए यह चक्र निरंतर जारी है। दरअसल राजनीतिक दल, आपराधिक रिकॉर्ड वाले लोगों को टिकट इसलिए देते हैं क्योंकि उनके पैसों से वे अपने स्वयं के अभियानों (प्रचार या विस्तार आदि) को वित्तपोषित कर सकते हैं, तथा अन्य उम्मीदवारों को सब्सिडी भी दे सकते हैं। आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार अनुपातहीन रूप से धनी (गलत कामों से अर्जित धन) होते हैं, इसलिए उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त मात्रा में साधन और प्रोत्साहन भी होता हैं। एक बार चुने जाने के बाद, उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी मिल जाता है और वे भ्रष्टाचार के माध्यम से और अधिक पैसा कमा सकते हैं।
वहीं आम मतदाता भी इन उम्मीदवारों को इसलिए चुनते हैं, क्योंकि वे उनकी प्रतिष्ठा से परिचित होते हैं और उन्हें विश्वसनीय मानते हैं। यह अक्सर देखा गया है कि, जिन जगहों पर जहां कानून व्यवस्था कमजोर होती है, वहां पर मतदाता ऐसे प्रतिनिधि की तलाश करते हैं जो उनके समूह की सामाजिक स्थिति की रक्षा करने के लिए तैयार हो। भारत में, आपराधिक रिकॉर्ड वाले राजनेताओं का सार्वजनिक कार्यालय के लिए चुना जाना एक गंभीर समस्या है क्योंकि ऊँचे पदों पर आसीन होकर यही नेता आम लोगों के लिए कानून और निर्णय बनाते हैं।
मिलन वैष्णव की पुस्तक, “व्हेन क्राइम पेज़” विभिन्न पार्टियों एवं मतदाताओं द्वारा टिकट तथा वोट देने की प्रवृत्ति को समझने में हमारी बहुत मदद कर सकती है। वैष्णव ने भारत में राजनीति, धन और बाहुबल के बीच गठजोड़ का गहराई से अध्ययन किया है, इसके लिए उन्होंने 2003 से चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए उम्मीदवारों के स्व-खुलासे के एक आंकड़ों का उपयोग किया। उन्होंने सात वर्षों में भारत में आम लोगों के बीच जाकर फील्ड वर्क (Field Work) भी किया और व्यवस्था में विभिन्न हितधारकों का साक्षात्कार भी लिया। वैष्णव की यह पुस्तक आम पाठकों के लिए रोचक और सुलभ है, जो कि राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और इतिहास के विभिन्न विषयों को आपस में जोड़ती है। पुस्तक के माध्यम से वैष्णव तर्क देते हैं कि कांग्रेस पार्टी के कमजोर होने और पहले से वंचित समूहों में बढ़ती मुखरता ने अपराधियों और राजनेताओं के बीच मजबूत संबंध बनाने में अहम् भूमिका निभाई है। अपराधी स्व-संरक्षण, सुरक्षा, और संभावित वित्तीय लाभों के लिए राजनीति में उतरते हैं। राजनीतिक दल भी ऐसे स्वयं वित्तपोषित उम्मीदवारों को चुनना पसंद करते हैं। मतदाता ऐसे उम्मीदवारों को "काम पूरा करने" की उनकी क्षमता के कारण चुनते हैं।
आइये इसे एक उदाहरण के तौर पर समझते हैं:
अनंत सिंह, बिहार के एक निर्वाचन क्षेत्र मोकामा से तीन बार के विधायक हैं। उन्हें अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि के लिए जाना जाता है और स्थानीय गॉडफादर (Godfather) या दादा माना जाता है। वह सत्तारूढ़ जनता दल, यूनाइटेड राजनीतिक दल (United Political Party) से जुड़े हुए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि अनंत सिंह पर दर्जनों आपराधिक दर्ज हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें किसी भी कथित अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है। सिंह का सार्वजनिक अपराधों का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसमें एके -47 (Ak 47) के साथ नशे में नाचते हुए वीडियो भी शामिल है। उन्हें अपने जुनून और अपव्यय जैसे कि एक अजगर को घर के पालतू जानवर के रूप में रखना, हाथ मिलाने के लिए प्रशिक्षित हाथी और महंगे घोड़ों को पालने के लिए भी जाना जाता है। इस भयंकर आपराधिक पृष्ठभूमि के बावजूद, बिहार के सुधारवादी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी अनंत सिंह के राजनीतिक संरक्षक माने जाते हैं। सिंह को अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है और उनके घटकों द्वारा “छोटे सरकार” के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसका अर्थ है “छोटा भगवान”। अपनी कुख्यात प्रतिष्ठा के बावजूद, उन्हें क्षेत्र में सुरक्षा और सेवाओं तक पहुंच में सुधार करने का श्रेय दिया जाता है।
मिलन वैष्णव की यह किताब भारतीय लोकतंत्र की इसी बड़ी समस्या को उजागर करती है। अनंत सिंह जी तो केवल एक उदाहरण है, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 2014 में राष्ट्रीय चुनावों के बाद, संसद के एक तिहाई से अधिक सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे, और उनमें कई पर बेहद गंभीर आरोप लगाए गए थे। पुस्तक के माध्यम से लेखक बाजार (Free Market) की उपमा का उपयोग करते है, “जहां मतदाता खरीदार हैं और राजनेता विक्रेता हैं।” बाजार ऐसे माहौल में काम कर रहा है जहां भ्रष्टाचार आम है और संस्थान कमजोर हो गए हैं। अपराधी, राजनीति में इसलिए आए क्योंकि यह लाभ कमाने और साख जमाने का एक सुरक्षित तरीका था। वैष्णव कहते हैं कि मतदाता अक्सर आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को उनकी आपराधिक साख के कारण समर्थन करते हैं, न कि उनका विरोध।
मिलन वैष्णव बताते हैं कि भारत में मजबूत संस्थानों की कमी और लोकतंत्र की विफलता पूरी तरह से मतदाताओं की गलती नहीं है। इसके बजाय, वैष्णव का तर्क है कि दोष उन राजनेताओं का है जो वोट सुरक्षित करने के लिए आपराधिकता और बाहुबल का इस्तेमाल करते हैं। इसका परिणाम एक दुष्चक्र में बदल गया है जहां ईमानदार लोग राजनीति में प्रवेश करने से कतराते हैं क्योंकि वे गुंडों से जुड़ना या भिड़ना नहीं चाहते हैं। हालांकि इन सभी चुनौतियों के बावजूद, वैष्णव आशावादी हैं कि भारत अपनी मौजूदा चुनौतियों से बाहर निकलने का रास्ता खोज लेगा।
उनका तर्क है कि राजनीति में आपराधिकता को कम करने के लिए, हमें शासन की उस कमी को दूर करने की जरूरत है जो ताकतवर लोगों को खालीपन भरने की अनुमति देती है। हमें उन उपायों पर काम करना चाहिए जो आपराधिक राजनेताओं की आपूर्ति को कम करने में मदद कर सकते हैं: इनमें चुनावी मदद रोकने (आर्थिक मदद या अन्य), राजनीतिक दलों के कामकाज में सुधार, और यह सुनिश्चित करना कि गंभीर गलत काम करने वाले निर्वाचित अधिकारियों को त्वरित सुनवाई मिलती रहे; जैसे उपाय शामिल है। इसके अलावा राजनीतिक दलों के खातों की एक स्वतंत्र, तीसरे पक्ष के लेखा परीक्षक द्वारा जांच की जानी चाहिए। चुनाव आयोग के पास मौजूदा नियमों और विनियमों की धज्जियां उड़ाने वालों को दंडित करने के लिए मजबूत अधिकारी होने चाहिए। इसके अलावा वैष्णव यह भी सुझाव देते हैं कि आपराधिक राजनेताओं की मांग और आपूर्ति दोनों को ही विफल कर दिया जाना चाहिए। साथ ही अभियान वित्त विनियमों को स्पष्ट किया जाना चाहिए, राजनीतिक दलों में पारदर्शिता और समावेशन में सुधार किया जाना चाहिए, आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकना चाहिए तथा सार्वजनिक सेवाओं को प्रदान करने में राज्य की क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिए। सबसे जरूरी यह है कि कानून के शासन से जुड़ी संस्थाओं को मजबूत किया जाना चाहिए।

संदर्भ
https://bit.ly/3mJ1TFQ
https://bit.ly/41V3S95
https://bit.ly/43ToVdU
https://bit.ly/3Lc3Gg8
https://amzn.to/40hhVEG
https://whr.tn/3A6efuP

चित्र संदर्भ

1. वोट देकर आई हुई महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr,amazon)
2. मिलन वैष्णव द्वारा अंग्रेजी भाषा में लिखित पुस्तक "व्हेन क्राइम पेज़ (When Crime Pays) को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
3. एक राजनैतिक रैली को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. राजनैतिक व्यंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मतदान केंद्र को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आधुनिक हिंदी और उर्दू की आधार भाषा है खड़ी बोली
    ध्वनि 2- भाषायें

     28-12-2024 09:28 AM


  • नीली अर्थव्यवस्था क्या है और कैसे ये, भारत की प्रगति में योगदान दे रही है ?
    समुद्री संसाधन

     27-12-2024 09:29 AM


  • काइज़ेन को अपनाकर सफलता के शिखर पर पहुंची हैं, दुनिया की ये कुछ सबसे बड़ी कंपनियां
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     26-12-2024 09:33 AM


  • क्रिसमस पर लगाएं, यीशु मसीह के जीवन विवरणों व यूरोप में ईसाई धर्म की लोकप्रियता का पता
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:31 AM


  • अपने परिसर में गौरवपूर्ण इतिहास को संजोए हुए हैं, मेरठ के धार्मिक स्थल
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, क्या है ज़ीरो टिलेज खेती और क्यों है यह, पारंपरिक खेती से बेहतर
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:30 AM


  • आइए देखें, गोल्फ़ से जुड़े कुछ मज़ेदार और हास्यपूर्ण चलचित्र
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:25 AM


  • मेरठ के निकट शिवालिक वन क्षेत्र में खोजा गया, 50 लाख वर्ष पुराना हाथी का जीवाश्म
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:33 AM


  • चलिए डालते हैं, फूलों के माध्यम से, मेरठ की संस्कृति और परंपराओं पर एक झलक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:22 AM


  • आइए जानते हैं, भारत में कितने लोगों के पास, बंदूक रखने के लिए लाइसेंस हैं
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:24 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id