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भारत में कुछ समय से ‘यौन कर्मियों के अधिकार और उनके प्रति कानून का व्यवहार’ विषय पर बहस चल रही थी। परंतु 2022 में , भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि “यौन व्यवसाय” एक पेशा है।” और इसीलिए, पुलिस द्वारा यौन कर्मियों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी फैसला सुनाया है कि “यौन कर्मी कानूनी संरक्षण के समान हकदार हैं।“ आपराधिक कानून ‘आयु’ और ‘सहमति’ के आधार पर सभी मामलों में समान रूप से लागू होना चाहिए। जब यह स्पष्ट हो जाए कि, यौनकर्मी बालिग है और सहमति से यौन कार्यों में भाग ले रहे है, तो पुलिस को ऐसी स्थिति में हस्तक्षेप या कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए।” अदालत का यह फैसला महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह यौनकर्मियों की गरिमा को बनाए रखता है। यह फैसला यौनकर्मियों को किसी भी अन्य नागरिक की तरह समान लाभ और सुविधाओं का लाभ उठाने में भी सक्षम बनाता है।
भारत में यौन व्यवसाय या वैश्यावृत्ति अवैध नहीं है, हालांकि यौन शोषण के लिए तस्करी भारतीय कानून के तहत एक अपराध है। एक संगठित व्यापार के रूप में, ऐसा यौन व्यवसाय जिसमें दलाली, याचना, शोषण या यौन कार्य के लिए किसी संपत्ति को किराए पर देना शामिल है, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code (IPC)) और ‘अनैतिक तस्करी रोकथाम अधिनियम’ (Immoral Trafficking Prevention Act) के अनुसार दंडनीय हैं।
चूंकि हाल ही में अदालत के इस फैसले पर बहुत बहस हुई थी, अतः यौन शोषण के लिए तस्करी के खिलाफ़ लड़ने वाले कार्यकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि अदालत का यह फैसला वैश्यालय में “देह व्यापार” को वैध नहीं करता है। इस फैसले का उद्देश्य यौनकर्मियों (वैश्याओं) की रक्षा करना है। यह फैसला वैश्यालय के मालिकों और तस्करों के रुप में, यौन व्यापार से लाभ उठाने वाले लोगों की रक्षा नहीं करता हैं, और उन पर मुकदमा चलाया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यौन कर्मियों को समान रूप से गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है। पुलिस और कानून प्रवर्तन करने वाली संस्थाओं को यौनकर्मियों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए; और उनके साथ क्रूर और हिंसक व्यवहार करने से बचना चाहिए। जहां तक यौनकर्म और यौन व्यापार का संबंध है, उसमें स्पष्टता और पारदर्शिता की आवश्यकता है।
क्योंकि, एक ऐसी महिला के लिए जिसे वैश्यावृत्ति के लिए मजबूर किया जाता है और जिसके पास आवाज उठाने की कोई गुंजाइश ही नहीं है, उसके लिए तो यौन संबंधों के लिए ‘सहमति’ का सवाल ही नहीं उठता है। वैश्यालय के मालिक जैसे स्वार्थी लोग जानबूझकर इस फैसले के बारे में गलत जानकारी फैलाते हैं। वे इन यौनकर्मी महिलाओं को, जिनमें छोटी-छोटी बच्चियां भी शामिल हैं, यह कहते हुए भी धमकाते हैं कि अब अदालत के अनुसार पुलिस भी यौनकर्मियों के साथ किए जाने वाले व्यवहार में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है; जबकि यह तथ्यात्मक रूप से गलत है।
यौनकर्मियों के साथ रह रहे बच्चों के प्रश्न पर अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह किसी बच्चे को उसकी मां से केवल इसलिए अलग न करें कि वह यौन व्यापार में है। यदि कोई नाबालिग वैश्यालय में पाया जाता है, तो यह जरूरी नहीं है कि बच्चे की तस्करी की गई हो। मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों और उनके बच्चों के लिए भी समान ही है। हालांकि, बाल संरक्षण मानदंडों के तहत, बच्चों के लिए जिन्हें देखभाल और सुरक्षा की अत्यधिक आवश्यकता होती है, एक वैश्यालय सुरक्षित स्थान नहीं है। कोविड-19 महामारी के दौरान जब वैश्यालय बंद थे, तब ऐसे कई मामले सामने आए थे जब नाबालिग बच्चों को यौनकर्म के लिए दलाल बनाया गया था, जिससे यह बात तो स्पष्ट है कि वैश्यालय वाकई में वैश्याओं के बच्चों के लिए एक सुरक्षित स्थान नहीं है।
भले ही भारत में यौन व्यवसाय अवैध नहीं है, लेकिन मौजूदा कानूनी प्रावधान किसी भी यौन कर्मी के लिए इनका सहारा लेना मुश्किल बना देते हैं जिसके कारण उन्हें ग्राहकों की मांग को पूरा करने के लिए शोषित भी किया जा सकता है। सामाजिक रूप से वर्जित अन्य पेशों की तरह, इसमें संलग्न होने पर स्पष्टता की अभी भी कमी है।
यौन व्यवसाय के विषय में सुनाया गया यह फैसला एक अन्य विषय की तरफ भी हमारा ध्यान आकर्षित करता हैं। ऑनलाइन यौन चलचित्र (Porn video), चित्र (Pictures) या लेख पोस्ट करने वाले हर व्यक्ति को भारतीय कानून के अनुसार कानून तोड़ने वाला अपराधी माना जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में 89% भारतीय लोगों ने अपने स्मार्ट फोन पर कई वेबसाइटों (Websites) पर अश्लील साहित्य देखा था। इस चर्चा में ‘ओनली फैंस’ (OnlyFans) वेबसाइट भी शामिल हैं। इस सेवा का उपयोग मुख्य रूप से यौनकर्मियों द्वारा किया जाता है जो अश्लील साहित्य या पॉर्नोग्राफी (Pornography) का निर्माण करते हैं। हालांकि, अब इस प्लेटफॉर्म पर विभिन्न कंटेंट क्रिएटर्स (Content Creators), सरल शब्दों में विशिष्ट कलाकार, जैसे की गायक,बावर्ची आदि लोगों का मनोरंजन भी करते है। किंतु प्रश्न यह है कि अगर भारत में ऑनलाइन अश्लील सामग्री पोस्ट करना ग़ैरक़ानूनी है,और ओनलीफैंस भी इसी श्रेणी में आता हैं, तो इस पर कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है?
इसका एक प्रमुख कारण यह है कि अन्य सोशल मीडिया (Social Media) प्लेटफ़ॉर्म के विपरीत, जो विज्ञापन पर मिलने वाले राजस्व पर निर्भर करते हैं जिसके कारण ये प्लेटफ़ॉर्म रचनाकारों की कमाई में बड़ी कटौती करते हैं, ओनली फैंस रचनाकारों को अपनी आय का 80% हिस्सा रखने देता है और उन्हें अधिक कमाई करने के लिए विभिन्न सुविधाएँ भी प्रदान करता है। इस वेबसाइट पर कोई ग्राहक अपनी इच्छा अनुसार किसी यौन कर्मी को यौन कंटेंट बनाने के लिए मांग भी कर सकता है। और चूंकि, प्रत्येक यौन कर्मी ग्राहक द्वारा बिना भुगतान किए, कोई कंटेंट साझा नहीं करता है, इससे उनकी आय में वृद्धि के साथ-साथ, उनकी सहमती व् आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है। दूसरी तरफ, यहां यौन कर्मियों को पॉर्न चलचित्रों में शामिल नहीं होना पड़ता है, जो कि अन्यथा एक बुरी और शोषक बात होती। यह वेबसाइट यौन कर्मी को हमेशा ही किसी अन्य कलाकार को शामिल करने की आवश्यकता के बिना, अपनी शर्तों पर यौन कंटेंट पेश करने के काबिल भी बनाता है। अर्थात हम यह कह सकते है कि, इससेयौन कर्मियों के अधिकारों की भी रक्षा होती है।
और इसी वजह से, आज ओनलीफैंस प्रसिद्धि का नया आसमान छू रहा है, इस पर यौन कर्मी काफी पैसा भी कमा रहे हैं। यह वेबसाइट विचित्र एवं हिंसक पॉर्न चलचित्रों से भी लोगों को दूर रखती है । साथ ही, इसने सोशल मीडिया कंटेंट और पॉर्न के बीच की रेखाओं को धुंधला कर दिया है।
संदर्भ
https://bit.ly/413mFPm
https://nyti.ms/3o9WIih
https://bit.ly/3KzbI0Y
https://bit.ly/3GEByzg
https://bit.ly/3A5X1gN
चित्र संदर्भ
1. एक पोर्न शूट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. पोर्नोग्राफी का विश्व मानचित्र (18+) कानून को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. यौन पीड़िता को दर्शाता एक चित्रण (Coconuts)
4. OnlyFans कंटेंट क्रिएटर्स के विकास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)