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विभिन्न पौधों के अनुसंधान, उत्पादन, संरक्षण और प्रदर्शन के लिए देश भर में अनेकों वनस्पति उद्यान बनाए गए हैं। भारत में अभी तक 122 ज्ञात वनस्पति उद्यान मौजूद हैं। वनस्पति उद्यान, आमतौर पर एक ऐसा उद्यान होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इन प्रजातियों को आमतौर पर उनके वैज्ञानिक नामों के साथ लेबल किया जाता है। भारत में पौधों की प्रजातियों की एक विस्तृत विविधता पाई जाती है तथा ऐसा अनुमान लगाया गया है कि भारत के वनस्पति उद्यानों में लगभग 200,000 प्रजातियों के जीवित पौधे मौजूद हैं।
भारत में पहले वनस्पति उद्यान की स्थापना 1787 में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के एक सैन्य अधिकारी कर्नल रॉबर्ट किड (Colonel Robert Kyd) द्वारा कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में की गई थी। इस उद्यान की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य ऐसे पौधों की प्रजातियों की पहचान करना था, जिनका आर्थिक मूल्य बहुत अधिक हो, जिससे कि इन अधिक आर्थिक मूल्य वाले पौधों को व्यापार के लिए व्यावसायिक स्तर पर विकसित किया जा सके।
एक ऐसा ही वानस्पतिक उद्यान हमारे मेरठ शहर के समीप सहारनपुर में भी स्थित है, जिसकी स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लगभग 200 साल पहले की गई थी । यह उद्यान आज भारत सरकार के अधीन है तथा ब्रिटिश काल से लेकर इसमें अब तक काफी परिवर्तन हो चुके हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा यहां कार्ल लिनेअस (Carl Linnaeus) द्वारा विकसित पौधों के नामकरण की प्रणाली का उपयोग करके एक संपूर्ण बॉटनिकल हर्बेरियम (Botanical Herbarium) स्थापित किया गया था तथा यहां चीन(China) से आयातित चाय के पौधे के साथ भी प्रयोग किया गया था ।
स्वर्गीय श्री जे. ई. डूथी (J. E. Duthie) सहारनपुर वनस्पति उद्यान के प्रभारियों में से एक थे, तथा उन्होंने उद्यान को एक असाधारण रूप दिया। इस वनस्पति संग्रहालय को बाद में ‘वन अनुसंधान संस्थान’, देहरादून में स्थानांतरित कर दिया गया । डूथी ने वनस्पति उद्यान के बारे में काफी कुछ लिखा तथा उनके लेखन की मदद से वन वनस्पतिशास्त्री, श्री आर.एन. पार्कर (R. N. Parker) ने "द हर्बेरियम ऑफ़ द फ़ॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट"(The Herbarium of the Forest Research Institute) का एक विवरण प्रकाशित किया। पार्कर ने बताया कि ‘वन अनुसंधान संस्थान’ का वनस्पति संग्रहालय दो बहुत ही असमान भागों से बना है, जिसमें उत्तरी भारत के वानस्पतिक विभाग के वनस्पति संग्रहालय का भाग काफी बड़ा है, जिसे आमतौर पर सहारनपुर वनस्पति संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। इसे बाद में देहरादून में स्थानांतरित कर दिया गया था।”
सहारनपुर वनस्पति उद्यान की स्थापना 1816 में एक पुराने देशी उद्यान के स्थान पर की गई थी जिसके पहले अधीक्षक डॉ. गोवन (Govan) थे। उन्होंने इस उद्यान में शिमला जिले के अनेकों पौधों का संग्रह किया था । गोवन के बाद 1823 में जॉन फोर्ब्स रॉयल (John Forbes Royle) को सहारनपुर में वनस्पति उद्यान का अधीक्षक नियुक्त किया गया। गोवन के संग्रह के परिणामों को रॉयल द्वारा "हिमालयी पर्वतों के वनस्पति विज्ञान का चित्रण"(Illustrations of the Botany of the Himalayan Mountains) में प्रकाशित किया गया है। रॉयल ने पौधों पर अपने अध्ययन को बढ़ाने और वनस्पति संग्रहालय के पुनर्निर्माण पर बहुत पैसा खर्च किया। रॉयल अक्सर कठिन परिस्थितियों में भी पौधों को इकट्ठा करते और उनका वर्णन करते। उन्होंने वनस्पति उद्यानों का प्रबंधन किया और पौधों के स्थानांतरण करने वाले लोगों के साथ कार्य किया। उनके काम से भारत में कृषि उत्पादन में बदलाव आया और ब्रिटिश बागानों में नए पौधों की शुरुआत हुई। उन्होंने सहारनपुर की उन्नत पारिस्थितिकी का लाभ उठाते हुए उन पौधों को उगाने का प्रयोग किया जो कोलकाता की गर्म परिस्थितियों का सामना नहीं कर सकते थे।
1831 में जॉन फोर्ब्स रॉयल के बाद ह्यू फॉल्कनर (Hugh Falconer) को सहारनपुर के वनस्पति उद्यान का अधीक्षक नियुक्त किया गया, जिन्होंने सहारनपुर में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई । ह्यू फॉल्कनर, एक स्कॉटिश (Scottish) भूविज्ञानी, वनस्पतिशास्त्री और जीवाश्म विज्ञानी थे। उन्होंने भारत, असम, बर्मा और अधिकांश भूमध्यसागरीय द्वीपों के वनस्पतियों, जीवों और भूविज्ञान का अध्ययन किया था। उन्होंने शिवालिक जीवाश्म संस्तरों का अध्ययन किया, और ऐसा माना जाता है, कि उन्होंने ही सबसे पहले जीवाश्म वानर की खोज की थी। फॉल्कनर 1842 तक सहारनपुर में रहे तथा इस दौरान उन्होंने शिवालिक पहाड़ियों में जीवाश्म स्तनधारियों का अध्ययन किया। 1831 में शिवालिक पहाड़ियों की तृतीयक परतों में फॉल्कनर ने मगरमच्छों, कछुओं और अन्य जानवरों की हड्डियों की खोज की। 1834 में फॉल्कनर को बंगाल आयोग द्वारा भारत में चाय उगाने की व्यावसायिक व्यवहार्यता की जांच करने के लिए कहा गया। उनकी सिफारिश पर यहां चाय के पौधे लगाए गए। 1842 में खराब स्वास्थ्य के कारण वे वापस लौट गए।
उन्होंने पूरे यूरोप (Europe) में भूवैज्ञानिक अवलोकन किए, और 1845 में वे रॉयल सोसाइटी के सदस्य चुने गए। एक प्रकृतिवादी के रूप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा जारी रखते हुए, उन्होंने ब्रिटिश संग्रहालय और ईस्ट इंडिया हाउस में शोध किया। फॉल्कनर के बाद 1842 में डॉ. जेम्सन (Dr. Jameson) को सहारनपुर के वनस्पति उद्यान का अधीक्षक नियुक्त किया गया, जो कि 1876 में सेवानिवृत्त हुए। हालांकि, वह वनस्पतिशास्त्री नहीं थे, लेकिन उन्हें उत्तरी भारत में चाय उद्योग स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। 1876 में डॉ.डूथी (Dr. Duthie) वनस्पति उद्यान के अधीक्षक के रूप में सहारनपुर पहुंचे। वे 1 अप्रैल, 1887 तक इस पद पर रहे तथा फिर उत्तरी भारत के वनस्पति विभाग के निदेशक बने। दिसंबर 1902 में सेवानिवृत्त होने तक उन्होंने अपना पूरा समय वानस्पतिक कार्य के लिए समर्पित किया।
संदर्भ:
https://rb.gy/ygtgim
https://rb.gy/fqruje
https://rb.gy/o38xfq
https://rb.gy/1o5lna
चित्र संदर्भ
1. ‘सहारनपुर वनस्पति उद्यान’ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सहारनपुर वनस्पति उद्यान’ में आम की विविध प्रजातियों को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
3. लखनऊ वनस्पति उद्यान में कैक्टस प्रजातियों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. सहारनपुर वनस्पति उद्यान के मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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