ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान हमारा मेरठ शहर अंग्रज़ों की पसंदीदा जगहों में से एक माना जाता था। डॉ जॉन मरे (Dr John Murray), जो कि 1857 से पहले मेरठ छावनी के एक प्रमुख चिकित्सक माने जाते थे, ने अपने जीवनकाल में ‘टोपोग्राफी (स्थलाकृति) ऑफ मेरठ’ (Topography Of Meerut, 1839), ‘टोपोग्राफी ऑफ फतेहपुर सीकरी’ (Topography Of Fatehpur Sikri, 1853), ‘ट्रीटमेंट ऑफ एपिडेमिक कोलेरा’ (महामारी हैजा का उपचार) (Treatment Of Epidemic Cholera”1869), ‘पैथोलॉजी एंड ट्रीटमेंट ऑफ कोलेरा’ (Pathology And Treatment Of Cholera,1874) जैसी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी। लेकिन आज वह एक चिकित्सक या लेखक के बजाय भारत के शुरुआती फोटोग्राफरों (Photographers) में से एक होने के कारण अधिक प्रसिद्ध हैं। आगरा के ताजमहल सहित कई अन्य भारतीय स्थलों और लोगों की सबसे पहली तस्वीरें उनके द्वारा ही खींची गई थीं। आइए, आज मेरठ के इस अग्रणी चिकित्सक के जीवन दर्शन पर गौर करें, और उनकी कुछ शानदार फोटोग्राफिक कृतियों (Photographic Masterpieces) का अवलोकन करें।
जॉन मरे का जन्म उत्तरी स्कॉटलैंड (Scotland) में हुआ था। स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी (Edinburgh University) से एम. डी. (M.D.) की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने पेरिस (Paris) में भी शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद, सन 1833 में उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) के अंतर्गत कोलकाता में चिकित्सक के पद को स्वीकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने भारत में 40 साल तक हैजा के मरीजों की सेवा की। 1849 में, उन्होंने शौक के तौर पर तस्वीरें लेना शुरू किया, और धीरे-धीरे वह एक बेहतरीन फोटोग्राफर बन गए।
अपने जीवनकाल में उन्होंने आगरा के ऐतिहासिक स्थलों और स्थानीय लोगों की कई उच्च-गुणवत्ता वाली शानदार तस्वीरें खींची। उन्होंने 1856 में फ़ोटोग्राफ़िक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल (Photographic Society of Bengal) में भी भाग लिया । मरे 1857 में वापस ब्रिटेन (Britain) चले गए और वापसी में अपने साथ अपने द्वारा खींची गई 400 तस्वीरें ले गए । जे. हॉगर्थ (J. Hogarth) नाम के एक प्रकाशक ने, मरे की तस्वीरों के प्रिंट (Print) को तीस के सेट में बेचना शुरू किया। फोटोग्राफी के लिए उन्हें बड़े वैक्स-पेपर नेगेटिव (Wax Paper Negative) का उपयोग करना सबसे अधिक पसंद था। वैक्स-पेपर नेगेटिव, स्पष्ट-फोकस प्रिंट (Sharp-Focus Print) का उत्पादन करता था।
उनकी अंतिम ज्ञात तस्वीरें 1865 में ली गई थीं, और वे 1870 में सेवानिवृत्त हुए। जॉन मरे की तस्वीरें अब निजी और सार्वजनिक दोनों अभिलेखागारों में मौजूद हैं, जो फोटोग्राफी के लिए उनकी प्रतिभा और जुनून के साथ-साथ, उस समय वैक्स-पेपर नेगेटिव की भारत में उपयोगिता को दर्शाती हैं।
भारत में अपनी चालीस साल की अवधि के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने व्यवस्थित रूप से आगरा के साथ-साथउत्तर प्रदेश में तथा उसके आसपास स्थित कई प्रसिद्ध इमारतों को भी चित्रित किया।
1800 के दशक के मध्य में, तस्वीरों को बड़ा करने का कोई सरल तरीका मौजूद नहीं था। इसलिए एक बड़े आकार का प्रिंट बनाने के लिए, मरे ने एक बड़े प्रारूप वाले लकड़ी के कैमरे के साथ काम किया, जो 16 इंच* 20 इंच तक के नेगेटिव प्रिंट को स्वीकार करने में सक्षम था। उन्होंने ग्लास और वैक्स-पेपर निगेटिव दोनों के साथ काम किया। यात्रा करने वाले और दूर-दराज के स्थानों पर रहने वाले फ़ोटोग्राफ़रों के लिए वैक्स-पेपर निगेटिव (Negative) विशेष रूप से बेहद उपयोगी साबित हुआ, क्योंकि इस कागज को तत्कालीन विकसित करने की आवश्यकता नहीं होती थी । इस बोझिल उपकरण के साथ भी, मरे ने भारत की वास्तुकला का दस्तावेजीकरण करने वाले कार्य का एक निकाय तैयार किया।
1982 में, ‘द आर्ट फाउंडेशन ऑफ़ विक्टोरिया’ (The Art Foundation Of Victoria) ने भारत और बर्मा (Burma) में स्थापत्य विषयों की 19वीं सदी की तस्वीरों का एक संग्रह खरीदा। ये तस्वीरें फोटोग्राफी के शुरुआती वर्षों के दौरान ली गई थीं जब माध्यम की अप्रत्याशितता के कारण दूरस्थ परिदृश्य के साथ काम करना मुश्किल था।
वास्तुकला की तस्वीरें ऐतिहासिक दस्तावेजों के रूप में महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनके भीतर की जानकारी किसी कलाकार के हाथ से संशोधित नहीं की गई है, बल्कि यह संपूर्ण रूप से सटीक, आँखों देखा हाल बयां करती हैं। इस संग्रह में डॉ. जॉन मरे और कप्तान लिनिअस ट्राइप (Captain Linnaeus Tripp) द्वारा कुछ बड़े कैलोटाइप (Calotypes) भी शामिल हैं। इस संग्रह में मरे की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक ताजमहल का तीन हिस्सों वाली चित्रमाला (Three-Piece Panorama) भी शामिल है, जो इस शानदार इमारत की गहरी समझ और परिदृश्य पर इसके प्रभावशाली प्रभुत्व को प्रदान करती है। उन्होंने भारत में व्यापक रूप से यात्रा की और उन्हें उन्नीसवीं सदी के भारत के सबसे महत्वपूर्ण फोटोग्राफरों में से एक माना जाता है।
नीचे दी गई यमुना नदी के किनारे से ताजमहल की एक दुर्लभ छवि को कैमरे में कैद करने का श्रेय भी जॉन मरे को ही दिया जाता है। जॉन मरे द्वारा खींची गई ताजमहल की इस छवि को स्मारक की पहली तस्वीरों में पहचाना जाता है। ताजमहल, सफेद संगमरमर से बनी, यमुना नदी के तट पर स्थित एक खूबसूरत इमारत है जिसे शाहजहाँ ने अपनी प्रिय पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था। इसे 1632 और 1645 के बीच बनाया गया था और इसे दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारतों में से एक माना जाता है।
नीचे दी गई छवि आगरा किले के दीवान-ए खास की है, जिसे भी जॉन मरे द्वारा ही 1862-64 के बीच खींचा गया था। दीवान-ए-ख़ास को सुंदर सजावट के साथ सफेद संगमरमर से बनाया गया था। किले में एक अन्य प्रसिद्ध स्थान मुसम्मन बुर्ज भी है, जो एक खूबसूरत बरामदा (Balcony) है जहाँ से शाहजहाँ, अपनी बीमारी के दिनों में, कैद में से, ताजमहल को देखा करते थे ।
1858-1862 में फतेहपुर सीकरी की एक सड़क
1865 के आसपास आगरा में एत्माद-उद-दौला का मकबरा
आगरा में 1853-1858 के दौरान प्राचीन महल के अवशेष
1865 के आसपास मथुरा में मस्जिद
1862 का ताज महल
संदर्भ
https://bit.ly/3TFYfst
https://bit.ly/3Z3w9rP
https://bit.ly/3Tq8yjY
https://bit.ly/3TsKexX
https://bit.ly/3JsXGND
चित्र संदर्भ
1. ताज महल की पहली शानदार फोटोग्राफ को संदर्भित करता एक चित्रण (
The Metropolitan Museum of Art)
2. जॉन मरे द्वारा खिंची गई ताज महल की एक अन्य शानदार फोटोग्राफ को संदर्भित करता एक चित्रण (ngv.vic.gov.au)
3. वैक्स-पेपर नेगेटिव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हिंदू भित्तिचित्रों के साथ , आगरा में शाहजहाँ के हॉल, को दर्शाता एक चित्रण (getty)
5. जॉन मरे द्वारा खिंची गई ताज महल की पहली शानदार फोटोग्राफ को संदर्भित करता एक चित्रण (metmuseum)
6. आगरा किले के दीवान-ए खास की फोटोग्राफ को संदर्भित करता एक चित्रण (metmuseum)
7. 1858-1862 में फतेहपुर सीकरी की एक सड़क को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. 1865 के आसपास आगरा में एत्माद-उद-दौला के मकबरे को दर्शाता एक चित्रण (getty)
9. आगरा में 1853-1858 के दौरान प्राचीन महल के अवशेष को दर्शाता एक चित्रण (getty)
10. 1865 के आसपास मथुरा में मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (getty)
11. 1862 के ताज महल को दर्शाता एक चित्रण (getty)