कपड़ा उद्योग, उन उद्योगों में से एक है जो कुशल और अकुशल दोनों प्रकार के कार्यबल के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर प्रदान करता है। कपड़ा उद्योग से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों में 450 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां और 1000 लाख अन्य रोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के 17 सतत विकास लक्ष्यों में से एक लक्ष्य ‘महिलाओं को रोजगार देना और उन्हें सशक्त बनाना’ भी शामिल है। कपड़ा उद्योग एक ऐसा उद्योग है, जिसमें ग्रामीण भारत की अनेकों महिलाओं को शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार कपड़ा उद्योग महिलाओं को रोजगार देने और उन्हें सशक्त बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
यह उद्योग राष्ट्रीय खजाने में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। उदाहरण के लिए, यह ‘कपड़े और परिधान’ के वैश्विक व्यापार में 4%, सकल घरेलू उत्पाद में 2% (लगभग 70 बिलियन डॉलर), और मूल्य के मामले में उद्योग उत्पादन में 7% का योगदान देता है। चूंकि भारत आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहा है, इसलिए कपड़ा उद्योग इस सपने को साकार करने में अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है। यह भारत के “मेक इन इंडिया”(Make in India) मिशन को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इस प्रकार इसे 'साइलेंट कैश काऊ ' (Silent Cash Cow) अर्थात एक ऐसा व्यवसाय जो लाभ का एक विश्वसनीय स्रोत है, कहना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
कपड़ा उद्योग, कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है, साथ ही यह क्षेत्र विदेशी आय में भी अत्यधिक योगदान देता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कपड़ा उद्योग में लगभग चार करोड़ लोग शामिल हैं, तथा यह संख्या आगे भी बढ़ने की उम्मीद है। इस क्षेत्र में अपार अवसरों को देखते हुए, भारत सरकार तमिलनाडु के तिरुपुर की तर्ज पर 75 नए “कपड़ा उद्योग केंद्र” बनाने की योजना बना रही है। भारत सरकार का एक अन्य लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण भी है, इसलिए हर क्षेत्र में सतत विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी अत्यधिक ध्यान दिया जा रहा है।
कपड़ा उद्योग में जिन विभिन्न गतिविधियों के द्वारा कपड़ों का निर्माण किया जाता है, उनसे सालाना 1.2 बिलियन टन ग्रीनहाउस (Greenhouse) गैसों का उत्सर्जन होता है। वैश्विक स्तर पर अकेले कपड़ा उत्पादन उद्योग द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 8-10% का योगदान दिया जाता है। साथ ही कपड़ा उद्योगों द्वारा उत्पन्न एवं विसर्जित अपशिष्ट जल प्रदूषण में 20% का योगदान देता है। इस प्रकार यह दूसरा सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला उद्योग है। कपड़ा उद्योग में प्रयुक्त विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे रंगाई, डी साइज़िंग (Desizing),ब्लीचिंग (Bleaching) और मर्सराइज़िंग (Mercerising) आदि में पानी की अत्यधिक खपत होती है। उदाहरण के लिए एक सूती शर्ट के निर्माण के लिए उतना ही पानी चाहिए जितना कि एक व्यक्ति ढाई साल में पीता है। कृत्रिम कपड़ों (Synthetic Clothes) जैसे नायलॉन (Nylon) और पॉलिएस्टर (Polyester) के उत्पादन में पानी की कम खपत होती है, लेकिन इन कपड़ों के उत्पादन से खतरनाक ग्रीनहाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन होता है ।
कुछ साल पहले केंद्र सरकार द्वारा पावरलूम क्षेत्र में एकीकृत योजना शुरू की गई, जिसका उद्देश्य उद्योग को उत्पादन के अधिक ऊर्जा-कुशल तरीकों में स्थानांतरित करने में मदद करना है। इसके अतिरिक्त, कपड़ा मंत्रालय ने पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों और तरीकों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए हरित प्रौद्योगिकी मिशन शुरू किया है । इस मिशन के द्वारा इस उद्योग के पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव को कम करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल सामग्रियों, रंगों और उत्पादन तकनीकों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाता है।
स्थायी प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ‘राष्ट्रीय कपड़ा निगम’ की स्थापना भी की गई है। निगम उद्योग को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है और साथ ही इसके द्वारा टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए सतत वस्त्र केंद्र भी बनाया गया है। उपभोक्ता भी अपने पहनावे को लेकर सतर्क हो रहे हैं। लोग ऐसे कपड़ों को खरीदना पसंद कर रहे हैं, जो पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। मैकिन्से (McKinsey) के अनुसार, ‘हर पांच में से तीन लोग पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सामान खरीदते हैं।’ ग्राहकों की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए, उद्योग द्वारा वस्त्र निर्माण में सुधार भी किया जा रहा है।
किंतु समस्या यह है कि कपड़ा उद्योग में सतत विकास की अवधारणा लागू करने से उद्योग में लाभप्रदता कम हो गई है। कपड़ा उद्योग में सतत या स्थिरता की अवधारणा लागू करने की लागत अत्यधिक होने के परिणामस्वरूप स्थिर व्यापार मॉडल के कारण पहले की तुलना में मुनाफा कम हो गया है। ऐसे कुछ कारक हैं, जिनकी वजह से कपड़ा उद्योग में सतत विकास को लागू करना काफी महंगा है। इन कारकों में कम उपभोक्ता मांग, कच्चे माल की लागत और उत्पादन, प्रक्रिया और उत्पाद प्रमाणन आदि शामिल हैं। बदलते फैशन, बुनियादी ढांचे की लागत, कुशल श्रम का अभाव आदि ऐसे अनेकों कारक हैं, जिनकी वजह से कपड़ा उद्योग में सतत विकास के साथ लाभ प्राप्त करना कठिन हो गया है। मुनाफे को बनाए रखने के लिए अंतिम उत्पादों की लागत में वृद्धि आवश्यक है, और यदि ऐसा किया जाता है, तो उपभोक्ता मांग में गिरावट आ सकती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3JkaUfG
https://bit.ly/3JLCzYx
https://bit.ly/3JnmSoK
चित्र संदर्भ
1. एक कपड़ा फैक्ट्री को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. टंगे हुए कपड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (Hippopx)
3. संश्लेषित कपड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कृषि वैज्ञानिकों को दर्शाता एक चित्रण (Excellence in Breeding Platform)
5. बुनकरों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.