चलिए ढूंढते हैं पराली दहन के अन्य विकल्प

मेरठ

 11-03-2023 10:20 AM
भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों द्वारा पराली जलाने के कारण फैलने वाले प्रदूषण की खबरें तो आए दिन समाचार पत्रों एवं टीवी पर समाचार चैनलों पर दिखाई व सुनाई देती हैं , लेकिन आजकल यह समस्या देश के अन्य हिस्सों में भी तेजी से फैल रही है। फसल काटने की आधुनिक मशीनों के कारण उत्पन्न होने वाले गेहूं के ठूंठों को जलाने का भी एक अपेक्षाकृत नया मुद्दा सामने खड़ा हो गया है । पिछले चार-पांच सालों से उ.प्र. के गाजीपुर जिले, खासकर जमानिया और चंदौली इलाके के किसान बड़े पैमाने पर गेहूं की पराली जला रहे हैं।
हालांकि, भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code (IPC) की धारा 188 और 1981 के वायु और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, फसल अवशेषों को जलाना अपराध है। किंतु इसका कार्यान्वयन उतने प्रभावी तरीके से नहीं हो पा रहा है। 2016 में पराली जलाने के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश और पंजाब सरकार द्वारा किसानों पर लगभग 73.2 लाख रुपए का जुर्माना लगाए जाने के बावजूद किसान हर मौसम में फसलों के अवशेषों को जलाते हैं, जिससे मिट्टी और हवा दोनों ही जहरीली हो जाती हैं।
गेहूँ और धान के अतिरिक्त, गन्ने की पत्तियों को सबसे अधिक जलाया जाता है। एक आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, देश में सालाना 500 मिलियन टन से अधिक पराली (फसल अवशेष) का उत्पादन होता है, जिसमें अनाज की फसलों (चावल, गेहूं, मक्का और बाजरा) का कुल फसल अवशेषों में 70 प्रतिशत हिस्सा होता हैं । इसमें भी 34 प्रतिशत हिस्सा चावल और 22 प्रतिशत हिस्सा गेहूं की फसलों का होता है, जिनमें से अधिकांश को खेत में ही जला दिया जाता है । एक अनुमान के मुताबिक, अकेले पंजाब में ही हर साल 2 करोड़ टन पराली पैदा होती है, जिसमें से 80 फीसदी जला दी जाती है। एक अध्ययन का अनुमान है कि फसल अवशेषों को जलाने से 149.24 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड ((Carbon Dioxide(CO2), 9 मिलियन टन से अधिक कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon Monoxide (CO), 0.25 मिलियन टन सल्फर ऑक्साइड (sulphur Oxide(SOX)), 1.28 मिलियन टन प्रदूषक तत्व (Particulate matter) और 0.07 मिलियन टन ब्लैक कार्बन (Black Carbon) उत्सर्जित होते हैं, जो दिल्ली में धुंध और हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने के लिए भी जिम्मेदार हैं। ये सभी तत्व मिलकर पर्यावरण प्रदूषण में प्रमुख योगदान देते हैं। धान के पुआल को जलाने से निकलने वाली गर्मी से मिट्टी 1 सेंटीमीटर गहराई तक गर्म हो जाती है, जिससे मिट्टी का तापमान 33.8 डिग्री से 42.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, एवं जो उपजाऊ मिट्टी के लिए महत्वपूर्ण बैक्टीरिया और कवक की आबादी को समाप्त कर देता है।
फसल अवशेषों को जलाने से मिट्टी की ऊपरी परत में मौजूद सूक्ष्म जीवों के साथ-साथ उसकी जैविक गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचता है। मिट्टी में लाभदायक कीटों के नुकसान के कारण, हानिकारक कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है और इसके परिणामस्वरूप फसलें रोग की चपेट में अधिक आने लगती हैं। मिट्टी की ऊपरी परतों की घुलनशील क्षमता भी कम हो जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक टन पराली जलाने से जैविक कार्बन के अलावा मिट्टी के 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फॉस्फोरस, 25 किलोग्राम पोटैशियम और 1 किलोग्राम से अधिक सल्फर जैसे पोषक तत्वों का नुकसान होता है।
प्रोफेसर विटुल के. गुप्ता द्वारा 2016 में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि 84.5 प्रतिशत लोग धुंए की बढ़ती घटनाओं के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो रहे हैं। अध्ययन में पाया गया कि 76.8 प्रतिशत लोगों द्वारा आंखों में जलन, 44.8 प्रतिशत लोगों द्वारा नाक में जलन और 45.5 प्रतिशत लोगों द्वारा गले में जलन की समस्‍या का सामना किया गया ।इसके साथ ही 41.6 प्रतिशत लोगों द्वारा खांसी में वृद्धि की बात कही गई और 18.0 प्रतिशत लोगों ने घबराहट की शिकायत की । ‘इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज’ (Institute for Social and Economic Change), बेंगलुरु के एक अन्य अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि ग्रामीण पंजाब में पराली जलाने से होने वाली बीमारियों के इलाज पर लोग हर साल 7.6 करोड़ रुपये खर्च करते हैं। एक तरफ जहां पराली जलाने से इतनी सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं वही पराली न जलाने से फसल अच्छी होती है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ( Punjab Agricultural University (PAU) और कृषि विभाग के अधिकारियों ने भी पुष्टि की है कि पुरानी फसल की अधकटी ठूंठ नई फसलों को उच्च तापमान के प्रतिकूल प्रभावों से बचाती है। पिछले 12 साल से बिना पराली जलाए 17 एकड़ में गेहूं की बुआई करने वालेचठे नकटे गांव के एक किसान दलजिंदर सिंह के अनुसार “मेरे गेहूं के खेत में अधकटी ठूंठ की परत लंबे समय तक नमी बनाए रखने में मदद करती है। दूसरे शब्दों में, मैं कह सकता हूं कि एक बार सिंचाई के बाद मेरी गेहूं की फसल लगभग एक महीने तक नमी बनाए रखने में सक्षम है। यह उच्च तापमान और सूरज की किरणों के प्रभाव से फसल की रक्षा करता है,”। उगराहां गांव के एक किसान धरमिंदर ढिल्लों, ने कहा “मैंने 2007 से पराली नहीं जलाई है और तब से मेरी फसल का उत्पादन बढ़ा है। पिछले साल भी, जब अधिकांश किसानों ने प्रति एकड़ उपज में गिरावट देखी, तो मेरे खेत में प्रति एकड़ 20 क्विंटल गेहूं उत्पन्न हुआ । अधकटे ठूंठ की परत पौधों के विकास में मदद करती है और इसे उच्च तापमान से बचाती है, ”। संगरूर के मुख्य कृषि अधिकारी हरबंस सिंह के अनुसार " पराली की परत लंबे समय तक नमी बनाए रखने में मदद करती है और फसलों को बढ़ते तापमान से बचाती है।" लोहरमाजरा गाँव के एक अन्य किसान जसप्रीत सिंह ने भी बताया कि वह पिछले आठ वर्षों से 21 एकड़ से अधिक में फसल अवशेषों को खोदे बिना बुवाई कर रहे हैं।
किंतु प्रश्न उठता है कि नई फसल के लिए खेतों को किस प्रकार पराली मुक्त किया जाए । पराली को जलाने के बजाय इसे पशु चारा, कम्पोस्ट खाद, ग्रामीण क्षेत्रों में छत बनाना, बायोमास ऊर्जा, मशरूम की खेती, पैकिंग सामग्री, ईंधन, कागज, बायो-इथेनॉल और औद्योगिक उत्पादन आदि जैसे विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल किया जा सकता है । 2014 में, केंद्र सरकार ने भी फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति जारी की थी । तब से, फसल अवशेष प्रबंधन ने मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाने में मदद की है, जिसके परिणामस्वरूप किसान की खाद लागत से प्रति हेक्टेयर 2,000 रुपये की बचत हुई है।
किसान निम्नलिखित कृषि यंत्रों का उपयोग करके भी फसल अवशेषों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन कर सकते हैं:
❁हैप्पीसीडर (Happy seeder) (खड़ी ठूंठ में फसल की बुवाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है)
❁रोटावेटर (Rotavator) (भूमि की तैयारी और मिट्टी में फसल के ठूंठ को शामिल करने के लिए उपयोग किया जाता है)
❁जीरो टिल सीड ड्रिल (Zero Till Seed Drill) (पिछली फसल के ठूंठ में सीधे बीज बोने के लिए भूमि तैयार करने के लिए उपयोग किया जाता है)
❁बेलर (Baler) (पुआल इकट्ठा करने और धान के ठूंठ की गांठें बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है)
❁पैडी स्ट्रॉ चॉपर (Paddy Straw Chopper) (मिट्टी में आसानी से मिलाने के लिए धान के ठूंठ को काटने के लिए इस्तेमाल किया जाता है)
❁रीपर बाइंडर(Reaper Binder) (धान के डंठल की कटाई और बंडल बनाने के लिए उपयोग किया जाता है) किंतु समस्या यह है कि ये मशीनें बहुत महंगी हैं इसीलिए राज्य सरकारों को आगे आकर बेहतर सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए ताकि किसान इन मशीनों को खरीद सकें। पूर्व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा था कि सरकार फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी के लिए 50-80 फीसदी की दर से सब्सिडी दे रही है। इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लिए दो साल के लिए 1,151.80 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3kJxupY
https://bit.ly/3KSuBOa

चित्र संदर्भ
1. पराली दहन को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. संगरूर, पंजाब, भारत के आसपास, गेहूं की बुआई के लिए जल्दी से जमीन तैयार करने के लिए कटाई के बाद चावल के अवशेषों को जलाते हुए , दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दिल्ली की धुंध को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. खेत में पराली के ढेर को संदर्भित करता एक चित्रण (Hippopx)
5. पराली के एकत्रीकरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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